Thursday, 20 October 2011

5 करोड़ का प्लाट 90 लाख में बेचा


लघु उोग निगम के अफसरों का खेल, 600 ट्रक कोयला गायब कर बाजार में बेचा

यूपी में लघु उोग भले ही पनप नहीं पा रहे हों मगर लघु उोग निगम लिमटेड के अफसर जरूर मालामाल हो गए हैं। निगम में लौह-इस्पात योजना देख रहे अजय शर्मा ने बिना गारंटी के मेसर्स अनुज स्टील को पांच करोड़ रुपए का लोहा उधार दे दिया। वह काम छोड़ कर भाग गया। निगम अपने पास से छह करोड़ स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया को भुगतान कर रहा है। यही नहीं साहब ने 600 ट्रक कोयला गायब करवा कर बाजार में बिकवा दिया। निगम को बेचने पर आमादा अफसर ने आगरा में लघु उोग निगम का पांच करोड़ रुपए का प्लाट 90 लाख में प्राइवेट हाउसिंग कम्पनी के हाथों बिकवा दिया।

कानपुर के रवि शुक्ला ने निगम अफसर अजय शर्मा की शिकायत मुख्यमंत्री मायावती से की है। उन्होंने मुख्यमंत्री से कहा है कि लघु उोग निगम लघु उोग इकाइयों को कच्चा माल उपलब्ध कराता है। इसमें कोयला, लोहा व पीतल आदि शामिल हैं। निगम में लौह-इस्पात की योजना देख रहे अजय शर्मा ने बिना गारंटी के मेसर्स अनुज स्टील को पांच करोड़ का लोहा उधार दे दिया। वह वर्ष 2000 में काम छोड़ कर भाग गया जिससे निगम को छह करोड़ का नुकसान हुआ। यह पैसा निगम द्वारा स्टील अथॉॅरिटी ऑफ इंडिया को दिया जा रहा है। शर्मा के रसूख के चलते कोई कार्रवाइ्र नहीं हुई अलबत्ता उसे पुरस्कार में कोयला की योजना अलग से दे दी गई। कोयला का इंचार्ज बने शर्मा ने यहां भी अपना हाथ दिखाना शुरू कर दिया। वर्ष 2006 में कोयले के एमओयू होल्डर्स मेसर्स दयाल फ्यूल को सड़क से ट्रकों के द्वारा कोयला लाने के लिए 600 फार्म -31 उपलब्ध करा दिए गए। मेसर्स के साथ मिलकर शर्मा द्वारा 600 ट्रक कोयला गायब करवा कर बाजार में बिकवा दिया गया। जिसका हिसाब शर्मा ने अभी तक नहीं दिया है। उन्होंने लघु उोग इकाइयों से कोई कर नहीं लिया था जिससे स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया द्वारा निगम से व्यापार कर के मद में 1.50 करोड़ वसूले गए जो उसे अपने पास से भुगतान करना पड़ा। इस हरकत पर डिप्टी एकाउंटेंट जनरल ने ऑडिट में साफ लिखा कि शर्मा ने निगम का 1.90 करोड़ का नुकसान किया है। मगर इसे दबा दिया गया।

निगम के उप मुख्य प्रबंधक लेखा शर्मा प्रॉपर्टी अनुभाग के भी प्रभारी हैं। उन्होंने आगरा के संजय प्लेस में स्थित निगम के पांच करोड़ रुपए वाले प्लाट को 90 लाख रुपए में प्राइवेट हाउसिंग कम्पनी के हाथों बिकवा दिया। शर्मा ने सर्वोच्च न्यायालय में चल रहे इस प्रकरण को वापस कराकर उसकी रजिस्ट्री हाउसिंग सोसाइटी के पक्ष में करा दी। मुख्यमंत्री से अजय शर्मा के खिलाफ शिकायत पर निगम के प्रबंध निदेशक राज मंगल ने डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट से कहा कि मुझे अभी चार महीने आए हुआ है। इन मामलों में शासन स्तर पर जांच चल रही है। कोयले वाले मामले में सीबीआई जांच चल रही है।लघु उोग निगम के प्रबंध निदेशक राज मंगल पहले ऐसे दलित अफसर हैं जिन पर सरकार मेहरबान है। प्रमुख सचिव कुंवर फतेह बहादुर के चहेते साहब को यूपिका और हैंडलूम का भी प्रभार सौंप दिया गया है। 1981 बैच के पीसीएस अफसर को निगम में फैले भ्रष्टाचार पर फोन से बात करना पसंद नहीं है। कहते हैं कि बात करनी हो तो कानपुर आइए।

Wednesday, 19 October 2011

ऐक्टिविस्ट को सूचना आयुक्त ने बनाया बंधक


वयोवृद्ध आरटीआई ऐक्टिविस्ट से माफीनामा लिखवाया

यूपी में सूचना के कानून को बंधक बना चुकी राज्य की मौजूदा सरकार के साथ-साथ सूचना आयोग में सरकार द्वारा नियुक्त सूचना आयुक्त भी कानून को बंधक बनाने का दुस्साहस करने लगे हैं। मंगलवार को राज्य सूचना आयुक्त बृजेश कुमार मिश्रा ने तो हद ही कर दी तथा अपने संवैधानिक अधिकारों का अतिक्रमण करते हुए आरटीआई ऐक्टिविस्ट 73 वर्षीय वयोवृद्ध तुलसी बल्लभ गुप्ता को न सिर्फ पुलिस के जरिए बंधक बनाया बल्कि दबाव डालकर उलटे उनसे माफीनामा भी लिखवा लिया।

आरटीआई ऐक्टिवस्टिों के साथ ज्यादती का यह पहला मामला नहीं है। ऐक्टिविस्ट तुलसी बल्लभ गुप्ता का मामला मंगलवार को सूचना आयुक्त बृजेश कुमार मिश्र की कोर्ट में लगा था। उन्होंने लखनऊ के जिला विालय निरीक्षक द्वितीय के जनसूचना अधिकारी से प्राइमरी स्कूलों की सूची मांगी थी जिनमें अध्यापक-अध्यापिकाओं की नियुक्ति होनी थी। उसमें कितने पद आरक्षित हैं तथा कितने सामान्य वर्ग के हैं? अध्यापिकाओं की पात्रता व चयन प्रक्रिया संबंधी अनेक सूचनाएं मांगी थी। मगर जनसूचना अधिकारी ने कोई सूचना उपलब्ध नहीं कराई। वयोवृद्ध कार्यकर्ता ने सूचना दिलाने के लिए सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाया। मंगलवार को सूचना आयुक्त बृजेश मिश्रा की कोर्ट में यह मामला सुनवाई के लिए लगा था। श्री मिश्र ने उनसे पूछा कि जो आवेदन जिला विालय निरीक्षक के यहां की है उसमें सूचना मांगने का 10 रुपए की शुल्क रसीद कहां है? जवाब में श्री गुप्ता ने बताया कि उन्होंने 10 रुपए नगद दिया था मगर जनसूचना अधिकारी ने रसीद नहीं दी। इसी बात को लेकर सूचना आयुक्त और वादी में नोक-झोंक होने लगी। श्री गुप्ता ने बताया कि वे गुस्से में कुछ ज्यादा ही तेज स्वर में अपनी दलील देने लगे। इस बात से नाराज होकर सूचना आयुक्त ने तत्काल पुलिस को बुलाकर कस्टडी में लेने का आदेश दे दिया। इसके साथ ही आदेश लिखाने लगे कि मैने शोर मचाया और एक ही प्रकरण पर कई आवेदन दे रखा है।

श्री गुप्त ने बताया कि सूचना आयुक्त ने उन्हें एक शपथपत्र दायर करने को कहा है कि उनके सारे वादों की सुनवाई एक साथ की जाय। मगर यह आरटीआई की मंशा के विपरीत है। सूचना आयुक्त अफसरों के दबाव में सूचनाएं नहीं दिलवाना चाहते हैं। इसके पहले राज्य सूचना आयुक्त सुनील कुमार चौधरी से भी ऐक्टिविस्ट का वाद-विवाद माध्यमिक शिक्षा परिषद के स्कूलों में होने वाली अध्यापकों की भर्ती में शिक्षकों की पात्रता व प्रारूप संबंधी मांगी गई सूचना पर हो चुका है। डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट ने जब सूचना आयुक्त बृजेश कुमार मिश्र से इस संबंध में प्रतिक्रिया के लिए सम्पर्क किया तो उन्होंने बताया कि शिकायतकर्ता को शपथपत्र दायर करने को कहा गया है जिससे एक ही विषय पर अलग-अलग सुनवाई न की जा सके। श्री मिश्र ने बताया कि इस ऐक्टिविस्ट ने सैकड़ों मामले दायर कर रखे हैं। इससे दूसरे मामलों की सुनवाई में अड़चन पैदा होती है। दूसरे उसने सुनवाई के दौरान अनुशासनहीनता भी करने की कोशिश की। बाद में लिखित माफीनामे के बाद उसे छोड़ दिया गया।

Tuesday, 18 October 2011

अन्ना इफेक्ट या माया इफेक्ट!



चार सालों बाद लोकायुक्त व सरकार की बदली धारणा पर सवाल
लगातार चार सालों तक उदासीनता के साए में दिन काटने वाले लोकायुक्त न्यायमूर्ति एनके मेहरोत्रा के चेहरे पर अचानक तैरने वाली विजयी मुस्कान जितनी चमक रही है ठीक उतनी ही बसपानेत्री की सरकार भी चहक रही है। चार साल तक बेदाग घूम रहे मंत्रियों को दागी घोषित कर लोकायुक्त वाहवाही लूट रहे हैं तो वहीं सरकार भी अपना दागदार चेहरा बेदाग करने में जुटी है। महज मुठ्ठीभर भ्रष्ट मंत्रियों को किनारे लगा कर न तो सरकार भ्रष्टाचार की कालिख से बच सकती है और न ही अपने दो-चार फैसलों से फूलकर कुप्पा हो रहे लोकायुक्त कोई भ्रष्टाचार मुक्त उत्तर प्रदेश की बुनियाद ही रखने जा रहे हैं। अगर ऐसा होता तो नौकरशाहों के विरुद्ध भ्रष्टाचार की शिकायतों को न्यायमूर्ति मेहरोत्रा गंभीरता से लेते और सरकार उनकी सिफारिशों पर तत्परता से कार्रवाई करती।

सत्ता के गलियारों में इस बात की जबरदस्त चर्चा है कि जिस तरह और जिस अतिवेग से भ्रष्टाचार में लिप्त मंत्रियों को उनके पद से हटाने की सिफारिश लोकायुक्त कर रहे हैं उससे तो यही लगता है कि उन पर समाजसेवी अन्ना का इफेक्ट कम बल्कि माया का इफेक्ट कुछ ज्यादा ही दिखाई दे रहा है। वरना यह इफेक्ट पिछले चार सालों में भी लोकायुक्त और बसपा सरकार के बीच दिखना चाहिए था। लगता है कि लोकायुक्त ने 2010 के अपने वार्षिक प्रतिवेदन में जो सुझाव मुख्यमंत्री को दिए थे सरकार उसके पालन में आखिरकार जुट ही गई है। उन्होंने मुख्यमंत्री को भेजे अपने प्रतिवेदन में लिखा कि अब ऐसा समय आ गया है कि यदि किसी सरकार को आम जनता का विश्वास हासिल करना है और अपनी साख बचानी है तो उसे भ्रष्टाचार के खिलाफ तत्काल प्रभाव से कोई न कोई कठोर कार्रवाई करनी ही होगी। अब कोरी बयानबाजी पर्याप्त नहीं होगी। चार सालों बाद सरकार के बारे में लोकायुक्त की बदली धारणा और इसके ठीक विपरीत विधानसभा चुनाव के ऐन वक्त पर बसपा सरकार का बदला आचरण बड़ी सहजता के साथ समझा जा सकता है। सवाल यह उठता है कि सिर्फ भ्रष्ट मंत्रियों के ही खिलाफ लोकायुक्त और सरकार क्यों अत्यधिक सक्रिय हैं।

..मगर भ्रष्ट नौकरशाहों के प्रति दोनों के नजरिए में इस प्रकार की सक्रियता क्यों नहीं है? अगर ऐसा न होता तो लोकायुक्त द्वारा सरकार को भेजे गए 2007 में तत्कालीन प्रमुख सचिव समाज कल्याण, पूर्व प्रमुख सचिव आर रमणी, पूर्व प्रमुख सचिव आरसी श्रीवास्तव, पीसीएस रमाशंकर सिंह, 2007 में ही पीलीभीत के तत्कालीन जिलाधिकारी, आईएएस करनैल सिंह, 2008 में शाहजहांपुर के तत्कालीन जिलाधिकारी, निदेशक समाज कल्याण, 2009 में तत्कालीन वन विभाग के प्रमुख सचिव, 2010 में तत्कालीन प्रमुख सचिव समाज कल्याण, विशेष सचिव समाज कल्याण, राज्य म निषेध अधिकारी, चंदौली के तत्कालीन जिलाधिकारी, बांदा के तत्कालीन जिलाधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की जाती। नौकरशाहों के खिलाफ कार्रवाई पर लोकायुक्त ने डीएनए से कहा कि उनके विरुद्ध जांच में देर की जाने लगती है और मामला कोर्ट में जाने से कोई फैसला नहीं हो पाता है। मगर लोकायुक्त के पास ही नौकरशाहों के खिलाफ ढेरों शिकायतें जांच के लिए लम्बित पड़ी हैं।

Thursday, 13 October 2011

नियम-कानून?.. बनाने वाले ही जानें

संरक्षित स्मारकों के प्रतिबंधित क्षेत्र में अवैध निर्माण पर बोले डीएम
 कमिश्नर ने देखेंगे कह कर पल्ला झाड़ा
सरकारी इमारतें भी अवैध

समेट्री चिरैया झील के आस-पास प्रतिबंधित इलाके में अवैध आलीशान इमारतें, व्यावसायिक काम्प्लेक्स, बड़ी-बड़ी मोटर व ऑटोमोबाइल कम्पनियों के शोरूम तथा बेशकीमती दुकानों का संरक्षक पुरातत्व विभाग न सिर्फ अपनी नाकामियों पर पर्दा डाले बैठा है बल्कि गैरकानूनी तरीके से बनाए गए भवनों को हटाने के लिए सरकारी तंत्र की मदद लेने का पहल भी नहीं कर रहा है। विभाग सिर्फ अवैध निर्माणकर्ताओं को नोटिस जारी कर सरकारी मशीनरी या फिर कोर्ट की सक्रियता का बाट जोह रहा है। पुरातत्व विभाग तो उदासीन है ही लखनऊ के कमिश्नर, डीएम, नगर आयुक्त तथा डीआईजी तक गैरकानूनी तरीके से बने भवनों को हटाने में बेबश हैं।

दरअसल केन्द्रीय संरक्षित चिरैया झील के 100 मीटर वाला प्रतिबंधित क्षेत्र मूल रूप से हजरतगंज में आता है। यहां ज्यादातर बड़े व्यावसायियों की दुकानें, होटल, व्यावासायिक काम्प्लेक्स, मोटर गाड़ियों के शोरूम व अन्य प्रतिष्ठान हैं। इस नाते अवैध निर्माणकर्ताओं के सम्बंध राजनेताओं, नौकरशाहों व पुलिस प्रशासन से होने के कारण पुरातत्व विभाग बौना पड़ जाता है और वह स्वयं इसमें रुचि लेना बंद कर देता है। विभाग और प्रशासन की सांठ-गांठ का फायदा उठाते हुए अवैध निर्माणकर्ता पैसे व अन्य तरकीबों से अपना बचाव करते हैं। संरक्षित चिरैया झील के प्रतिबंधित क्षेत्र में विभाग ने मोहम्मद दाऊद के सप्रू मार्ग स्थित अवैध निर्माण, सिटी फाइनेंस भवन, दुर्गमा रेस्टोरेंट, प्रबंधक मिशनरीज ऑफ चैरिटी ट्रस्ट, प्रेम नगर निवासी धनराज का भवन संख्या 22, अशोक ठुकराल, सर्वोदय कालोनी निवासी सीएस श्रीवास्तव, उत्तम आहुजा, वीरेन्द्र गुप्ता निखलेश पैलेस अशोक मार्ग, परमजीत सिंह, अशोक मार्ग के पीछे अजय गुप्ता, राहुल गुप्ता, जवाहर लाल जायसवाल, सप्रू मार्ग पर जैदीप माथुर, महिन्द्रा शोरूम, अशोक टावर, तेज कुमार, पुलिस अधीक्षक गोपनीय शाखा के सामने श्रवण प्लाजा, शाहनजफ मार्ग स्थित हिन्दुस्तान मोटर्स, सर्वोदय कालोनी निवासी श्रीमती गीता मिश्रा, प्रेमनगर निवासी धरराज व राजीव, सप्रू मार्ग पर डा. रवि दुबे, शुक्ला बिजनेस प्वांइट, सर्वोदय कालोनी के एके घई, राणा प्रताप मार्ग पर परमार हाऊस को नोटिस जारी किया है।

आरटीआई के जरिए पुरातत्व विभाग व प्रशासन की लापरवाही उजागर करने वाले अधिवक्ता एसपी मिश्र का कहना है कि नियम और कानून सिर्फ कागजों पर बनाए गए हैं। केन्द्रीय संरक्षित स्मारक शाहनजफ इमामबाड़ा व सिमेट्री चिरैया झील के प्रतिबंधित क्षेत्र में बने अवैध निर्माणों को लेकर पुरातत्व विभाग हाथ पर हाथ धरे बैठा ही है साथ ही लखनऊ के मंडलायुक्त व डीएम ने भी खामोशी ओढ़ रखी है। डीएनए ने जब इस सम्बंध में मंडलायुक्त प्रशांत त्रिवेदी से बात की तो उन्होंने विवाद से बचते हुए कहा कि हम इसे देखेंगे। वहीं लखनऊ के डीएम ने कहा कि अवैध निर्माण नहीं हट पाएंगे। पुरातत्व विभाग द्वारा स्थापित नियम और कानून पर उन्होंने कहा कि नियम-कानून बनाने वाले ही इसे जानें।

Wednesday, 12 October 2011

पैसों पर टिका पुरातत्व का अस्तित्व!

जवाहर लाल जायसवाल ने जवाहर होटल से बना लिया होटल इंडिया अवध
अवैध होटलों, बेशकीमती दुकानों व व्यावसायिक काम्प्लेक्सों पर छह साल से लटकी है तलवार

 पुरातत्व विभाग को जब तक पैसे नहीं मिलते हैं तब तक वह केन्द्रीय संरक्षित स्मारक की प्रतिबंधित सीमा में बने अवैध निर्माणधारकों पर कार्रवाई की तलवार लटकाए रहता है। संरक्षित स्मारक शाहनजफ इमामबाड़ा व चिरैया झील के 100 मीटर के अंदर बने अवैध बेशकीमती दुकानों, होटलों और करोड़ों की लागत वाले आवासों पर पुरातत्व विभाग बीते कई वर्षो से तलवार लटकाए है। उसने तकरीबन 70 से अधिक अवैध निर्माणधारकों को नोटिस भी जारी किया है तथा कुछेक के विरुद्ध एफआईआर भी दर्ज करा रखी है। पता चला है कि इन नोटिस की आड़ में पुरातत्व विभाग के अफसरों की दुकानें खूब फल-फूल रही हैं।

पुरातत्व विभाग ने सप्रू मार्ग स्थित जवाहर लाल जायसवाल द्वारा निर्मित अवैध निर्माण को भी नोटिस जारी किया है। 14 अगस्त 2005 को जारी नोटिस में विभाग के अधीक्षण पुरातत्वविद ने कहा है कि जवाहर लाल द्वारा कराया गया निर्माण संरक्षित स्मारक सिमेट्री चिरैया झील के प्रतिबंधित क्षेत्र में आता है। जो प्राचीन स्मारक एवं पुरास्थल व अवशेष 1959 के नियम 33 के प्राविधानों के विपरीत है। गौरतलब है कि पुरातत्व विभाग ने यह नोटिस जवाहर जायसवाल को छह साल पहले जारी की थी। विभाग के सूत्रों का कहना है कि जब नोटिस से जुड़े पक्षों द्वारा अधिकारियों की मिजाजपुर्सी में कमी की शिकायत आने लगती है तो अफसर अपना शिकंजा और कसने लगता है। ठीक इसी प्रकार का हथकंडा अफसरों ने जवाहर जायसवाल के विरुद्ध अपनाया तो मामला हाईकोर्ट ले जाना पड़ा। विभाग ने जब कोर्ट का रास्ता दिखाया तो जवाहर जायसवाल भी सीधे रास्ते पर आ गए। वर्ष 2009 में कोर्ट ने यथास्थिति का आदेश जारी कर दिया। मगर इसके बावजूद ऐसा खेल रचा गया कि कोर्ट का आदेश धरा का धरा ही रह गया। मसलन पुरातत्व विभाग ने जवाहर होटल के नाम से बने जिस अवैध निर्माण के खिलाफ नोटिस जारी की तथा अदालत तक मामला गया, उसी होटल का नाम विभागीय अफसरों की सांठ-गांठ के चलते होटल इंडिया अवध हो गया। इस होटल को बीते नवरात्र में चालू भी कर दिया गया। यही नहीं मेसर्स हिन्दुस्तान मोटर्स, श्रवण प्लाजा, तेज कुमार, अशोक टावर, सप्रू मार्ग स्थित महिन्द्रा शो रूम के मालिक मेसर्स नारायण आटोमोबाइल जैसे अवैध निर्माणकर्ता हों तो पुरातत्व विभाग के अफसरों की दुकानें खूब फलेंगी भी और फूलेंगी भी। विभाग के अधीक्षण पुरातत्वविद ने इन सभी को नोटिस जारी करते हुए कहा है कि उनके द्वारा कराया गया अवैध निर्माण संरक्षित स्मारक सिमेट्री चिरैया झील के प्रतिबंधित क्षेत्र में आता है जो प्राचीन स्मारक एवं पुरास्थल व अवशेष नियम 1959 के नियम 33 क के प्राविधानों के विपरीत है। विभाग ने नोटिस में विधिवत स्पष्ट किया है कि इसके उल्लंघन के दोषी को तीन महीने के कारावास अथवा पांच हजार रुपए तक अथवा दोनों दंड दिए जाने का प्रावधान है।

आरटीआई ऐक्टिविस्ट व अधिवक्ता एसपी मिश्र का कहना है कि सहारागंज माल के अलावा 70 से अधिक अवैध निर्माणधारक हैं जिसमें होटल से लेकर बड़ी-बड़ी बेशकीमती दुकानें तथा करोड़ों की लागत से बने लोगों के आवास हैं। पुरातत्व विभाग को जब तक पैसे नहीं मिलता है तब तक वह कार्रवाई की तलवार अवैध इमारतों पर लटकाए रहता है। मसलन इस क्रम में विभाग द्वारा जारी की गई 70 से अधिक नोटिस से पता चलता है कि वह अपनी जिम्मेदारियों को इससे ज्यादा नहीं निभा सकता है। उप अधीक्षण पुरातत्वविद इंदु प्रकाश ने डीएनए को बताया कि विभाग ने संरक्षित स्मारक के प्रतिबंधित क्षेत्र में बने अवैध निर्माणधारकों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज कराया है। सिर्फ प्राथमिक रिपोर्ट दर्ज कराना पर्याप्त है, के सवाल पर वह कहते हैं कि हमारी अपनी सीमाएं हैं। विभाग के पास स्टाफ नहीं है। कमिश्नर, डीएम, नगर आयुक्त व डीआईजी समेत सभी को 2005 में ही सूचित किया गया था। यहां तक अवैध निर्माण को भी गिराने का आदेश जारी किया गया है। मगर यह काम मेरा नहीं है।

Tuesday, 11 October 2011

वाह! झूठ और फरेब का ‘सहारा’

संरक्षित शाहनजफ इमामबाड़ा और चिरैया झील का बदल डाला मानचित्र
सहारागंज मॉल को मिले अनापत्ति प्रमाण पत्र पर खड़ा हुआ विवाद
पैसों के चक्कर में सरकारी अफसर नियम-कानून को खूंटी पर टांग देते हैं। सही को गलत और गलत को सही ठहराने में जुट जाते हैं। यदि पैसे हैं तो पैसों के बल पर झूठ और फरेब करना कितना आसान हो जाता है इसका उदाहरण लखनऊ शहर में बने सबसे आलीशान मार्केट सहारागंज मॉल को देखने और उसकी सच्चाई जानने के बाद पता चल जाता है। सहारागंज मॉल की बुनियाद रखने में पैसों ने इतना कमाल दिखाया कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने आस-पास का मानचित्र ही बदल कर रख दिया। सहारागंज मॉल से केन्द्रीय संरक्षित स्मारक शाहनजफ इमामबाड़ा की दूरी 102 मीटर और चिरैया झील की दूरी 69 मीटर बताकर खुद ही नए विवाद को जन्म दे दिया है। अब तो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के निदेशक द्वारा कार्टन होटल के मालिक और सहारागंज के निर्माण को दिए गए अनापत्ति प्रमाण पत्र पर भी सवाल खड़े हो गए हैं। इसके साथ ही पुरातत्व विभाग का दोहरा मापदंड भी सामने खुलकर आ गया है कि उसने केन्द्रीय संरक्षित स्मारक के आस-पास बने दूसरे अवैध निर्माण को तो नोटिस जारी कर दिया मगर सहारागंज मॉल के निर्माण पर विभागीय अफसर मुंह खोलने तक तैयार नहीं हैं।

सहारागंज मॉल के निर्माण को लेकर भारतीय पुरातत्व विभाग कटघरे में खड़ा हो गया है। अधिवक्ता व आरटीआई ऐक्टिविस्ट एसपी मिश्र ने विभाग के जनसूचना अधिकारी से संरक्षित इमारत शाहनजफ इमामबाड़ा और संरक्षित चिरैया झील से सहारागंज मॉल की दूरी, संरक्षित इमारत का दायरा व चारों ओर प्रतिबंधित क्षेत्र, सहारागंज मॉल निर्माण को अनापत्ति प्रमाण पत्र देने की प्रक्रिया व अधिकारी आदि का नाम बताने समेत अन्य अवैध निर्माण की जानकारी मांगी थी। श्री मिश्र का कहना है कि जो जानकारी पुरातत्व विभाग ने मुहैया कराई है वह बेहद चौकाने वाली है। लगता है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक ने 21 जून 2002 को अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करते समय सारे नियम व कानून ताक पर रख दिए। सिर्फ सहारागंज मॉल के निर्माण की ऊंचाई 22.50 मीटर तक प्रतिबंधित करते हुए अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी कर दिया। अधिवक्ता का कहना है कि पुरातत्व विभाग के केन्द्रीय महानिदेशक को यह अनापत्ति प्रमाण पत्र तो जारी ही नहीं करना चाहिए था। चूंकि यह लखनऊ मंडल का मामला है इसलिए मंडल के अधीक्षण पुरातत्वविद को ही अधिकार है कि वह अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करे। मगर उन्होंने दबाव के चलते स्थानीय अफसरों के अधिकारों को छीनते हुए इसलिए अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी कर दिया कि अगर कहीं मंडल स्तर पर संरक्षित इमारत के आस-पास की दूरी की नाप-जोख की जाएगी तो आलीशान मॉल की योजना खटाई में पड़ जाएगी।

श्री मिश्र ने पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित चिरैया झील व शाहनजफ इमामबाड़े से सहारागंज माल की दूरी क्रमश: 69 मीटर व 102 मीटर बताए जाने पर कड़ी आपत्ति व्यक्त करते हुए कहा है कि विभाग द्वारा दोनों की दूरियां जान-बूझ कर ज्यादा दर्शाई गई हैं। इससे लगता है कि बड़ा खेल खेला गया है। आरटीआई द्वारा दिए जवाब में पुरातत्व विभाग के केन्द्रीय महानिदेशक द्वारा जो अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी किया गया है उसमें सहारागंज मॉल या उसके मालिक का कहीं जिक्र तक नहीं है। प्रमाण पत्र में कार्टन होटल व उसके मालिक के नाम का उल्लेख किया गया है। विभाग की इस पूरी प्रक्रिया पर इसलिए भी संदेह हो रहा है कि अगर संरक्षित इमारत के चारों तरफ 100 मीटर का क्षेत्र प्रतिबंधित है और चिरैया झील से सहारागंज माल की दूरी सिर्फ 69 मीटर ही (जैसा कि विभाग ने गूगल सर्च और विभागीय नाप-जोख के आधार पर दूरी दर्शाई है) है तो चिरैया झील की दूरी को क्यों नजरअंदाज कर दिया गया? डीएनए ने जब लखनऊ मंडल के उप अधीक्षण पुरातत्वविद् इंदू प्रकाश से यही सवाल किया तो वे चुप्पी साध गए। उन्होंने कहा कि यह सवाल आप केन्द्रीय महानिदेशक से पूछिए। मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकता हूं। यह अनापत्ति प्रमाण पत्र दिल्ली से जारी किया गया है।

Sunday, 9 October 2011

मलाईदार विभागों के अफसर नहीं गए विदेश


40 में से 24 पीसीएस अफसर अमेरिका रवाना
महिला अफसरों ने भी जाने से किया इनकार


स्थान - अमौसी एयरपोर्ट, समय- सायं छह बजे . दिन - रविवार .. 24 पीसीएस अफसर अमेरिका जाने के लिए पूरी तैयारी के साथ हवाई जहाज में सवार होने के लिए कर रहे इंतजार! परदेश जा रहे अफसरों की तैयारी बिलकुल देशी तरीके वाली! किसी के बैग में देशी घी के लड्डू तो कोई लइया-चना से लेकर सत्तू तक साथ में लिए जा रहा है! मगर यह क्या? ट्रेनिंग के लिए अमेरिका जा रहे 40 अफसरों के बैच में सिर्फ 24 अफसर ही एयरपोर्ट पहुंचे। माजरा न जाने वाले अफसरों के मलाईदार विभागों से समझ में आया। सबसे चौकाने वाली बात तो यह है कि पुरुष पीसीएस अफसर तो पुरुष ठहरे किंतु मलाईदार विभागों से जुड़ीं दो महिला अफसरों ने अमेरिका जाने से इनकार कर दिया।

यूपी एकमात्र ऐसा राज्य है जहां पीसीएस अफसरों को विदेश में प्रशिक्षण के लिए भेजा जाता है। मजे की बात यह है कि विदेश प्रशिक्षण का कार्यक्रम मायावती सरकार ने ही शुरू किया था। इससे भी बड़ी दिलचस्प बात यह है कि यूपी का ही एक रिटायर्ड आईएएस अफसर अमेरिका में पीसीएस अफसरों को गुड गर्वनेंस के गुर सिखाता है और बदले में राज्य सरकार से करोड़ों ऐंठता है। ट्रेनिंग में 20 वर्ष की सेवा कर लेने वाले अफसर ही जाते हैं। रविवार सायं छह बजे अमौसी एयरपोर्ट से 24 पीसीएस अफसरों का दल रवाना हो गया। अफसर पहले दिल्ली जाएंगे फिर रविवार रात 12 बजे फ्लाइट पकड़ कर ड्यूक सेंटर फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट डरहम अमेरिका पहुंचेंगे।

जानकारी के अुनसार प्रशिक्षण के दौरान पीसीएस अफसरों को अमेरिका द्वारा एक्सपोजर विजिट भी कराई जाएगी। प्रशिक्षण 10 अक्टूबर से 21 अक्टूबर तक चलेगा। नवंबर 2007 में 40 अफसरों का पहला बैच विदेश प्रशिक्षण के लिए गया था। अब तक 200 अफसरों को प्रशिक्षण के लिए विदेश भेजा जा चुका है। इस बार भी 40 अफसरों को प्रशिक्षण के लिए अमेरिका जाना था मगर 24 अफसर ही जाने के लिए तैयार हुए। सूत्रों का कहना है कि 16 उन अफसरों ने अमेरिका जाने से इनकार कर दिया जो मलाईदार विभागों से जुड़े हैं। मसलन कानपुर विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष ओएन सिंह, गाजियाबाद के नगर आयुक्त बसंत लाल गुप्ता, यमुना एक्सप्रेस वे नोएडा के उप मुख्य कार्यपालक अधिकारी आरके सिंह, ग्रेटर नोएडा के उप मुख्य कार्यपालक अधिकारी पीसी गुप्ता समेत 16 अफसरों ने अमेरिका जाने से इनकार कर दिया। पीसी गुप्ता का नाम लगातार तीसरी बार विदेश जाने के लिए भेजा गया मगर वे नहीं गए। श्री गुप्ता कैबिनेट सचिव के करीबी बताए जाते हैं। इसके अलावा यह पहला बैच है जिसमें कोई महिला अफसर नहीं जा रही है। संयुक्त आवास आयुक्त शकुंतला गौतम और महिला कल्याण विभाग की संयुक्त सचिव भावना श्रीवास्तव ने विदेश जाने से साफ-साफ मना कर दिया। पीसीएस संवर्ग के अफसरों में यह जबरदस्त चर्चा है कि अमेरिका न जाने के पीछे उनकी मंशा साफ है और वे तथाकथित वसूली के चक्कर में इतना बड़ा मौका छोड़ रहे हैं। पीसीएस अफसर व आईएएस अधिकारी विजय शंकर पांडेय के भाई अजय शंकर का अमेरिका जाने से इनकार किए जाने का मामला भी पंचम तल से जोड़ कर देखा जा रहा है।

राज्य सरकार पीसीएस अफसरों के प्रशिक्षण पर करोड़ों रुपए खर्च करती है मगर इसके बावजूद कई एक अफसर जाने से मना कर देते हैं। नियुक्ति विभाग के सयुंक्त सचिव योगेश्वर राम ने बताया कि एक अफसर के विदेश में प्रशिक्षण पर ढाई से तीन लाख रुपए खर्च होते हैं। 71 हजार रुपए तो टिकट का ही लग जाता है। डेढ़ लाख रुपए ट्यूशन पर खर्च होते हैं।

भ्रष्टाचार के पुराने पुरोधा हैं निदेशक

पंचायतीराज विभाग के निदेशक ने पत्नी की कम्पनी को मालामाल किया
लखनऊ। पंचायतीराज विभाग में भ्रष्टाचार का मकड़जाल बुनने वाले निदेशक व विशेष सचिव डीएस श्रीवास्तव के हाथ बहुत पहले से ही भ्रष्टाचार के कीचड़ में सने हैं। यूपी इलेक्ट्रॉनिक्स कारपोरेशन में तत्कालीन प्रबंध निदेशक व आईटी एवं इलेक्ट्रॉनिक्स विभाग के विशेष सचिव साहब ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए न सिर्फ अपनी पत्नी की संस्था मे. इन्नोटेक इन्फोकॉम सोल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड को फायदा पहुंचाया बल्कि कम्प्यूटर प्रशिक्षण कार्यक्रम के तहत 33,04,800 रुपए के फर्जी भुगतान का षड्यंत्र भी रचा था। तत्कालीन प्रबंध निदेशक व मौजूदा पंचायतीराज निदेशक को वित्तीय अनियमितता व अपने पद के दुरुपयोग के चलते 21 दिसंबर 2009 को निलंबित कर दिया गया था।

पीसीएस संवर्ग के 1979 बैच के अफसर दया शंकर श्रीवास्तव को तत्कालीन राज्यपाल ने 21 दिसंबर 2009 को यह कहते हुए निलंबित कर दिया था कि उन्होंने झूठ बोला कि मे. इन्नोटेक इन्फोकॉम सोल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी से उनकी पत्नी श्रीमती शशी श्रीवास्तव का कोई लेना-देना नहीं है। जबकि उनकी पत्नी कम्पनी में निदेशक थीं। शासन की नीतियों के विरुद्ध अपनी पत्नी की संस्था को 2.50 करोड़ की धनराशि से खोले गए कम्प्यूटर प्रशिक्षण केन्द्रों को उन्होंने हस्तांतरित कर दिया। 2.50 करोड़ का सम्यक उपयोग भी नहीं किया गया। मौजूदा पंचायतीराज निदेशक व इलेक्ट्रॉनिक्स कारपोरेशन लि. के तत्कालीन प्रबंध निदेशक ने विभिन्न विभागों के ई-टेंडरिंग से सम्बंधित कार्यो का भुगतान इलेक्ट्रॉनिक्स कारपोरेशन लि. के बजाय मे. इन्नोटेक इन्फोकॉम सोल्यूशन प्राइवेट लि. को करा कर वित्तीय अनियमितताएं की थीं। यही नहीं तत्कालीन प्रबंध निदेशक ने अपनी पत्नी की संस्था को अनुचित लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से प्रशिक्षण हेतु पूर्व में बनाई गई सभी फ्रेंचाइजीज को बंद कर बनाई गई नई फ्रेंचाइजी मे. इन्नोटेक कम्पनी को भुगतान किए जाने का नियम विरुद्ध आदेश भी दिया। कम्प्यूटर प्रशिक्षण से प्राप्त होने वाली आय का 95 प्रतिशत भाग अपनी पत्नी की कम्पनी के पक्ष में तथा पांच प्रतिशत भाग यूपी इलेक्ट्रॉनिक्स कारपोरेशन लि. के पक्ष में देने का आदेश 22 दिसंबर 2008 को किया था। इसके अलावा शासकीय विभागों से 33,04,800.00 रुपए का फर्जी भुगतान अपनी पत्नी की कम्पनी को कराए जाने का षड्यंत्र भी तत्कालीन प्रबंध निदेशक ने रचा था। नियुक्ति विभाग ने राज्यपाल की ओर से 21 दिसंबर 2009 को जारी अपने आदेश में निलंबन की सजा डीएस श्रीवास्तव को सुनाई थी। नियुक्ति विभाग के प्रमुख सचिव व जांच अधिकारी कुंवर फतेह बहादुर सिंह ने कहा था कि मे. इन्नोटेक इन्फोकॉम सोल्यूशन प्राइवेट लि. कम्पनी श्रीमती शशी श्रीवास्तव के नाम से रजिस्ट्रार कम्पनी के आफिस में 11 दिसंबर 2008 को पंजीकृत हुआ है। इसमें डीएस श्रीवास्तव की पत्नी निदेशक हैं। प्रमुख सचिव ने इस प्रकरण में श्री श्रीवास्तव द्वारा शासन को झूठी सूचना देने का दोषी पाया था।गोयल को मुक्त नहीं कर रहे मीना

लखनऊ। पंचायतीराज विभाग का बेड़ा गर्क करने में और कई अफसर फुरसत के साथ जुटे हैं। एक विशेष सचिव ऐसे हैं कि उनका पिछले 29 सितंबर को ही विभाग से ट्रांसफर हो गया था। मगर उनकी योग्यता और कमर्ठता को देखते हुए विभाग के प्रमुख सचिव बीएम मीना ही उन्हें कहीं और नहीं जाने देना चाहते हैं। विभाग के विशेष सचिव राजेन्द्र कुमार गोयल ट्रांसफर होने के बावजूद न तो जाना चाहते हैं और न ही उन्हें विभाग के मुखिया मीना साहब जाने देने की इजाजत दे रहे हैं।

Wednesday, 5 October 2011

‘40 परसेंट कमीशन मांग रहे हैं विशेष सचिव’

शिकायतकर्ता के पास कमीशन मांगने वाली ऑडियो सीडी
कमीशन मांगने का मामला हाईकोर्ट पहुंचा
 पंचायतीराज विभाग में सिर्फ एक ही डीएस श्रीवास्तव नहीं हैं बल्कि ऐसे कइयों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लग रहे हैं। विभाग के एक दूसरे विशेष सचिव व बीआरजीएफ का कामकाज देख रहे राजेन्द्र गोयल ने तो कमीशन लेने की खातिर सारी हदें ही पार कर दीं। उन्होंने क्षमता विकास कार्यक्रम के तहत कराए गए प्रशिक्षण कार्य में सेवा प्रदाता एजेंसियों से खुलेआम डेढ़ करोड़ रुपए कमीशन मांगा है। खुल्लम-खुल्ला 40 प्रतिशत कमीशन मांगने की बात अब हाईकोर्ट तक पहुंच गई है। याचिकाकर्ता ने कोर्ट में वह ऑडियो सीडी भी साक्ष्य के तौर पर प्रस्तुत की है जिसमें विशेष सचिव गोयल साहब 40 परसेंट कमीशन एडवांस मांग रहे हैं।

याचिकाकर्ता इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरप्राइज साइंस इंजीनियरिंग एंड मैनेजमेंट ने पंचायतीराज विभाग के विशेष सचिव व बीआरजीएफ के प्रोजेक्ट डायरेक्टर राजेन्द्र गोयल के खिलाफ न सिर्फ इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में कमीशन लेने व अन्य भ्रष्टाचार सम्बंधी याचिका प्रस्तुत की है बल्कि मुख्यमंत्री मायावती से भी इसकी शिकायत की है। मुख्यमंत्री को भेजे शिकायती पत्र में शिकायतकर्ता संस्था ने कहा है कि केंद्र सरकार द्वारा संचालित पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि में करोड़ों रुपए राज्य को मिल रहा है। वर्तमान में इस योजना को विशेष सचिव एवं परियोजना निदेशक राजेन्द्र गोयल देख रहे हैं। विशेष सचिव परियोजना के तहत काम कर रहीं सेवा प्रदाता एजेंसियों को काम के एवज में अभी तक आंशिक रूप से ही धन का भुगतान किया गया है। जब सेवा प्रदाता एजेंसियों ने पंचायतीराज विभाग के प्रमुख सचिव बीएम मीना से इस बाबत सम्पर्क किया तो उन्होंने श्री गोयल से मिलकर उनके द्वारा बताई गई शर्तो के अनुसार कार्य करने के लिए कहा। एजेंसी द्वारा यह आरोप लगाने से साफतौर पर स्पष्ट हो जाता है कि प्रमुख सचिव भी कहीं न कहीं इस मामले में लिप्त हैं। गौरतलब है कि याचिकाकर्ता एजेंसी ने प्रमुख सचिव को भी पार्टी बनाया है।

बीआरजीएफ के तहत क्षमता विकास में कराए गए प्रशिक्षण कार्य व अन्य कार्यो का शेष भुगतान 3,05,32,115.00 रुपए के लिए सेवा प्रदाता एजेंसी के संचालक ने जब विशेष सचिव राजेन्द्र गोयल से इस सम्बंध में बात करने गए तो उन्होंने 40 प्रतिशत यानि लगभग डेढ़ करोड़ रुपए कमीशन एडवांस देने की शर्त रखी। शिकायतकर्ता ने कहा कि श्री गोयल ने काफी अनुरोध के बावजूद भी 40 प्रतिशत कमीशन की जिद नहीं छोड़ी और कहा कि इसके बगैर संभव नहीं है। मुख्यमंत्री मायावती और कोर्ट में दाखिल की गई याचिका में भी शिकायतकर्ता ने कहा है कि उसके पास श्री गोयल से हुई वार्ता की ऑडियो सीडी तैयार की गई है। हाईकोर्ट में तो उसने ऑडियो सीडी प्रस्तुत भी की है। मुख्यमंत्री को अगर जरूरत होगी तो ऑडियो सीडी प्रस्तुत कर दी जाएगी। वहीं बीआरजीएफ के लंबित तीन करोड़ रुपए से अधिक की धनराशि में सेवा प्रदाता एजेंसियों से 40 प्रतिशत कमीशन मांगने तथा अन्य भ्रष्टाचार के आरोपों पर जब डीएनए ने विशेष सचिव राजेन्द्र गोयल से प्रतिक्रिया जाननी चाही तो उन्होंने कहा कि इस तरह वे कोई जवाब नहीं देंगे। आप शासन में आकर बात कीजिए। सेवा प्रदाता एजेंसी द्वारा प्रमुख सचिव पर लगाए गए आरोपों के सम्बंध में बीएम मीना ने कहा कि मैं सभी आरोपों का जवाब दूंगा।

Tuesday, 4 October 2011

कंप्यूटरीकरण के नाम पर भ्रष्टाचार का खेल!


821 विकासखंडों को कंप्यूटरीकृत करने का नया खाका तैयार
पंचायतीराज डायरेक्टर समेत अफसरों के दफ्तर होंगे हाईटेक

पंचायतीराज विभाग के प्रमुख सचिव बीएम मीना को यह नहीं मालूम कि कंप्यूटरीकरण के नाम पर पैसे कहां से आ रहे हैं? कहां खर्च हो रहा है? वे कहते हैं उन्हें कुछ भी नहीं मालूम। लगता है कि निदेशक डीएस श्रीवास्तव का पंचायतीराज विभाग में अखंड राज चल रहा है। निदेशक साहब पिछले चार सालों से तीनों पंचायतों को हाईटेक बनाने में जुटे हुए हैं मगर आज तक एक भी ग्राम पंचायत में एक अदद कंप्यूटर तक खरीद कर नहीं लगा पाए। 12 वें वित्त आयोग से कंप्यूटर के लिए मिले 62 करोड़ से भी ज्यादा रकम को शुद्ध पानी और सफाई के नाम से सफाचट कर गए तो राष्टीय ग्राम स्वरोजगार का पैसा क्षेत्र पंचायतों में कंप्यूटर लगाने के नाम पर डकार गए। अब फिर से कंप्यूटरीकरण के लिए भ्रष्टाचार का तानाबाना बुनने में जुट गए हैं।

सरकारी सूत्रों के अनुसार पंचायतीराज विभाग ने पंचायतीराज संस्थाओं के कंप्यूटरीकरण के लिए 51,914 ग्राम पंचायतें, 821 क्षेत्र पंचायतें तथा 72 जिला पंचायतों के अलावा 72 जिला पंचायतराज अधिकारी, 18 मंडलीय उपनिदेशक, राज्य स्तर पर जिला पंचायत अनुश्रवण कोष्ठक, परियोजना प्रबंध इकाई पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि तथा निदेशक पंचायतीराज का दफ्तर कंप्यूटरीकरण से लैश होगा। जानकारी के अनुसार प्रथम चरण में पांच हजार से अधिक जनसंख्या की ग्राम पंचायतों में एमजी नरेगा से कंप्यूटरीकरण का प्रस्ताव तैयार किया गया है। क्षेत्र पंचायत कार्यालयों में कंप्यूटरीकरण के लिए यूनीवर्सल सर्विस औबलिगेशन फंड से योजना अफसरों ने तैयार की है। इस सम्बंध में 16 सितंबर 2009 को बीएसएनएल एवं एचसीएल के मध्य एक समझौता हुआ है जिसकी वैधता की तिथि 19 जनवरी 2017 तक है।

पता चला है कि पंचायतीराज विभाग के अफसरों की बीएसएनएल के सहायक प्रबंधक इन्द्रमणि से बातचीत भी हो चुकी है कि कंप्यूटरीकरण के लिए बीएसएनएल द्वारा देय कनेक्टिविटी 512 केबीपीएस है। विकास खंड स्तर पर बढ़ते दायित्वों को देखते हुए एक एमबीपीएस की स्पीड के साथ अनलिमिटेड डाउनलोड की आवश्यकता हो सकती है। अफसरों ने विकासखंडवार कंप्यूटरीकरण का जो खर्च निकाला है उसके मुताबिक प्रति विकास खंड में अगर तीन साल का प्लान तैयार किया जाएगा तो 96,689 रुपए और अगर प्रति विकास खंड में पांच साल का प्लान बनाया जाएगा तो 1,13,658 रुपए खर्च आएगा। अफसरों ने 821 विकासखंडों में कंप्यूटरीकरण के लिए तीन साल के प्लान के मुताबिक कुल 7,93,81, 669 रुपए का बजट बनाया है तथा इन्हीं विकासखंडों में पांच साल के प्लान का हिसाब कुल 9,33,13,218 रुपए का निकाला है।

एक-दो नहीं, अब छह परसेंट दो बाबा


सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान में प्रशासनिक मद के पैसों पर अफसरों की नजर

जनता से जुड़ी योजनाओं पर पैसा बाद में स्वीकृत होता है मगर अफसर धन ऐंठने की जुगलबंदी पहले से ही शुरू कर देते हैं। पंचायतीराज विभाग में कुछ इसी प्रकार की ही तस्वीर दिखाई पड़ती है। केंद्र द्वारा संचालित सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के पैसों से जिला परियोजना समन्वयक की तैनाती, वेतन एवं अन्य भत्तों की व्यवस्था प्रशासनिक मद से कर ली गई। सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के तहत ही प्रशासनिक मद के नाम से एक परसेंट का बैंक ड्राफ्ट भी भेजने का निर्देश सभी डीपीआरओ को दे दिए गए। मगर इतने से भी तसल्ली नहीं हुई तो पंचायतीराज निदेशक डीएस श्रीवास्तव ने दो प्रतिशत धन का बैंक ड्राफ्ट भेजने का दूसरा आदेश भी जारी कर दिया। मगर अब वह कह रहे हैं कि प्रशासनिक मद में धन ही उपलब्ध नहीं है लिहाजा इस परियोजना लागत का छह प्रतिशत धन राज्य स्तर पर उपलब्ध होना चाहिए।

विभाग के सूत्रों के अनुसार निदेशक डीएस श्रीवास्तव ने 12 जुलाई 2011 को समस्त डीपीआरओ को पत्र लिखकर कहा था कि 31 मार्च 2009 में विमान व्यवस्था के क्रम में सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के तहत अनुमन्य पांच प्रतिशत प्रशासनिक मद की धनराशि से एक प्रतिशत धन का बैंक ड्राफ्ट स्टेट सैनिटेशन एण्ड हाइजिन एजूकेशन सेल के नाम तैयार कर निदेशालय को उपलब्ध कराएं। इसके पीछे निदेशक व विशेष सचिव ने यह तर्क दिया कि सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के तहत जिला परियोजना समन्वयक की तैनाती सेवा प्रदाता वीबग्योर एजेंसी के माध्यम से की गई है। इनके वेतन एवं भत्ते का भुगतान सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के प्रशासनिक मद से ही वहन किया जाना है। इसलिए राज्य स्वच्छता मिशन द्वारा प्रशासनिक मद की धनराशि को एक प्रतिशत के स्थान पर दो प्रतिशत धनराशि जिलों से राज्य स्तर पर प्राप्त किए जाने का निर्णय लिया गया है। जबकि इसके ठीक विपरीत विभाग के कुछ अफसरों व कर्मचारियों ने मुख्यमंत्री मायावती को पत्र लिख कर निदेशक के विरुद्ध यह आरोप लगाया है कि वीबग्योर एजेंसी के माध्यम से दो लाख रुपए प्रति व्यक्ति से रिश्वत लेकर 70 से भी अधिक लोगों की नियुक्तियां की गई हैं।

पंचायतीराज विभाग में प्रशासनिक मद के पैसों की चाहत अफसरों में किस प्रकार होती है इस बात से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि 30 मार्च 2011 को प्रस्तुत की जाने वाली सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान की समीक्षात्मक टिप्पणी में साफ-साफ कहा गया कि प्रदेश स्तर पर प्रशासनिक मद में धनराशि उपलब्ध न होने के कारण योजना के अनुश्रवण एवं मूल्यांकन में कठिनाइयां व्याप्त है। इसलिए परियोजना लागत का छह प्रतिशत अंश प्रशासनिक मद के रूप में राज्य स्तर पर उपलब्ध कराया जाना चाहिए। इससे तो यही लगता है कि अधिकारी विकास योजनाओं में भले ही रुचि न रखते हों मगर वे प्रशासनिक मद के रूप में मिलने वाले धन के लिए जरूर व्याकुल रहते हैं। शायद इसीलिए खासकर पंचायतीराज विभाग में यह शिकायतें भी ज्यादा तादाद में हैं कि जिला परियोजना समन्वयकों की नियुक्ति का मामला हो या फिर स्वच्छता कार्यक्रम में अवैध ढंग से विकास खंडों में कम्प्यूटर आपरेटरों की नियुक्ति हो सभी में प्रशासनिक मद का पैसा खर्च होने के बावजूद रिश्वत लेने के आरोप लगे हैं। प्रशासनिक मद में खर्च किए जाने वाले पैसों के बाबत डीएनए ने निदेशक डीएस श्रीवास्तव से प्रतिक्रिया जाननी चाही तो उन्होंने फोन ही नहीं उठाया और न ही एसएमएस का कोई जवाब दिया। प्रशासनिक मद के बारे में व्यय किए जा रहे पैसों को लेकर प्रमुख सचिव बीएम मीना ने अनभिज्ञता जाहिर की तथा कहा कि निदेशक की बात निदेशक ही जानें।

डीपीआरओ की तैनाती में उगाही कर रहे निदेशक!


कृषि एवं ग्राम्य विकास संस्थान ने की प्रमुख सचिव से शिकायत
पंचायतीराज विभाग के निदेशक व विशेष सचिव डीएस श्रीवास्तव पर अब जिलों में पैसे लेकर डीपीआरओ की नियुक्तियां करने का भी आरोप लगने लगा है। झूंसी इलाहाबाद की संस्था कृषि एवं ग्राम्य विकास संस्थान की मंत्री अनीता ने प्रमुख सचिव से शिकायत की है कि जिला पंचायतराज अधिकारियों की जिला स्तर पर नियमों के विपरीत तैनाती में धन उगाही की जा रही है। शासन के उच्च अफसरों को संज्ञान में लाए बिना निदेशक मनमाने फैसले ले रहे हैं।
संस्थान ने विभाग के प्रमुख सचिव को लिखे शिकायती पत्र में कहा है कि जिला पंचायतराज अधिकारियों की स्वीकृत संख्या 72 है। 72 पदों में लोक सेवा आयोग के माध्यम से सीधी भर्ती के 36 पदों से स्पष्ट है कि पदोन्नति के जरिए पदों के भरे जाने की अनुमन्यता के सापेक्ष सहायक विकास अधिकारी के कुल 32 पदों के विपरीत 46 पदों पर पूर्व से ही प्रभारी जिला पंचायतराज अधिकारी बनाए गए हैं। जबकि सहायक जिला पंचायतराज अधिकारी तकनीकी के लिए अनुमन्य चार पदों के सापेक्ष 14 पदों पर तैनाती की गई है। इस प्रकार सहायक विकास अधिकारी (पंचायत) संवर्ग से 14 तथा सहायक जिला पंचायत अधिकारी तक संवर्ग से 10 अधिक पदों पर प्रभारी जिला पंचायतराज अधिकारी तैनात हैं। इससे स्पष्ट है कि पूर्व से ही स्वीकृत जिला पंचायतराज अधिकारियों के पदों के विपरीत 24 अधिकारी अधिक प्रभारी बनाए गए हैं। संस्थान के मंत्री ने कहा है कि प्रभारी जिला पंचायतराज अधिकारियों के अलावा निदेशक ने अंबेडकरनगर में अनिल कुमार सिंह को कनिष्ठ सहायक विकास अधिकारी एवं गोरखपुर में अति कनिष्ठ ग्राम पंचायत अधिकारी आरके भारती को प्रभारी जिला पंचायत अधिकारी बनाया है। कृषि एवं ग्राम्य विकास संस्थान ने कहा है कि प्रशासनिक भ्रष्टाचार के अलावा सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान में भी गड़बड़ियां सामने आई हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के समस्त बीपीएल परिवारों तथा 10 प्रतिशत एपीएल परिवारों को व्यक्तिगत शौचालय से आच्छादित करने के लिए प्रोत्साहन राशि दिए जाने का प्रावधान है। इसमें प्रति शौचालय निर्धारित धनराशि 2640 है जबकि डॉ. अंबेडकर ग्रामों में प्रदेश सरकार द्वारा 4940 जिसमें 4540 रुपए अनुदान तथा 400 लाभार्थी अंश है। राज्य स्तर से जारी शासनादेश व भारत सरकार की गाइड लाइन के अनुसार शौचालय की धनराशि लाभार्थियों के खाते में जानी चाहिए। किंतु शासनादेश के विपरीत जनपद स्तर के शौचालय सेट की धनराशि काटकर पंचायत उोगों को दी जा रही है।
लाभार्थी को कोई भी धनराशि उपलब्ध नहीं कराई जा रही है। संस्थान ने कहा है कि पंचायत उोगों को निदेशक द्वारा अधिकृत करते हुए अग्रिम में कमीशन वसूला जा रहा है। डा. अंबेडकर गांवों में फिर भी कुछ शौचालय बनाए जा रहे हैं मगर नॉन अंबेडकर गांवों में व्यापक स्तर पर हेराफेरी की जा रही है। संस्थान ने फर्जी प्रगति रिपोर्ट भेजे जाने का भी आरोप लगाया है। निदेशक द्वारा जिलों में नियमों के विपरीत डीपीआरओ की तैनाती पर 28 फरवरी 2011 को की गई शिकायत तथा धन उगाही के मामले में प्रमुख सचिव बीएम मीना ने कहा कि मैं तो उस समय विभाग में नहीं था। पता नहीं उस समय इसकी जांच क्यों नहीं की गई? मगर मैं इसे देखूंगा।

Tuesday, 20 September 2011

कांशीराम स्वरोजगार योजना में घपला


सही आंकड़े नहीं दे रहे जिलों के अफसर

सूबे की मुखिया मायावती की शीर्ष प्राथमिक योजनाओं पर भी बट्टा लगाने से भ्रष्ट अफसर नहीं चूक रहे हैं। कांशीराम जी अल्पसंख्यक स्वरोजगार योजना में अल्पसंख्यक कल्याण विभाग व अल्पसंख्यक वित्तीय विकास निगम के अधिकारियों ने भारी पैमाने पर गोलमाल किया है। दर्जनों जिलों में लाभार्थियों की संख्या और उन्हें दिए गए धन की सूचना ही विशेष सचिव को नहीं है। कई जिलों में मान्यवर कांशीराम जी अल्पसंख्यक स्वरोजगार योजना का पैसा भी जरूरमंदों को नहीं मिला है।

अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के सूत्रों का कहना है कि मान्यवर कांशीराम जी अल्पसंख्यक स्वरोजगार योजना में जमकर धांधली की गई है। जिलों में भारी कमियां पाई गईं हैं। इस योजना में जिलों के अफसरों ने विशेष सचिव को सही आंकड़े ही नहीं भेजे हैं। अफसरों की हीलाहवाली की वहज से ही कानपुर, उन्नाव, झांसी, बाराबंकी आदि जिलों में वर्ष 2009 में किसी को भी योजना का लाभ नहीं दिया गया है। योजना में भारी गोलमाल का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2011-12 में एटा, अंबेडकरनगर, कानपुर में लाभार्थियों की संख्या एवं वितरित धनराशि का विवरण ही जिले के अफसरों ने विशेष सचिव शहाबुद्दीन मोहम्मद को नहीं भेजा है। यही नहीं जिन जिलों में लाभार्थियों की संख्या एवं व्यय धन की सूचना विशेष सचिव को भेजी है वहां के लाभार्थियों के नाम, पते व वितरित धनराशि आदि की सूचना तथा जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारियों के पत्रों की प्रतियां उपलब्ध नहीं कराई गई हैं। इस प्रकार बड़ी मात्रा में पैसों का घपला किया गया है। इन जिलों में महामाया नगर, अलीगढ़, मैनपुरी, कांशीरामनगर, आजमगढ़, बलिया, मऊ, इलाहाबाद, कौशाम्बी, संतकबीरनगर, बहराइच, फैजाबाद, सुलतानपुर, कुशीनगर, जालौन, इटावा, फरुखाबाद, कन्नौज, औरैया, हरदोई, मेरठ, बागपत, गौतमबुद्धनगर, मिर्जापुर, गाजीपुर, चन्दौली और जौनपुर शामिल हैं।

विभाग के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2009-10 में आगरा में पांच लाभार्थियों को 0.38 लाख, झांसी में 16 लाभार्थियों को 1.08 लाख, फिरोजाबाद में सात लाभार्थियों को 0.49 लाख, बिजनौर में 58 लाभार्थियों को 4.35 लाख, बदायूं में 23 लाभार्थियों को 1.60 लाख, एटा में 12 लाभार्थियों को 0.71 लाख, अंबेडकर नगर में चार लाभार्थियों को 0.30 लाख, बस्ती में 13 लाभार्थियों को 0.95 लाख, बरेली में 26 लाभार्थियों को 1.80 लाख, लखनऊ में 30 लाभार्थियों को 2.17 लाख, सहारनपुर में 78 लाभार्थियों को 5.51 लाख, सिद्धार्थनगर में 11 लाभार्थियों को 0.83 लाख रुपए दिया गया है।

मान्यवर कांशीराम जी अल्पसंख्यक योजना का पैसा बेरोजगारों को कई जिलों में वर्ष 2010 में भी नहीं मिला है। इनमें झांसी, फिरोजाबाद, बिजनौर, एटा, बस्ती व लखनऊ प्रमुख रूप से शामिल हैं। सूत्रों का कहना है कि अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के विशेष सचिव शहाबुद्दीन मोहम्मद ने अल्पसंख्यक वित्तीय एवं विकास निगम लि. के प्रबंध निदेशक को इस सम्बंध में पत्र लिखा है कि भारी कमियों को दूर किया जाय तथा मान्यवर कांशीराम जी अल्पसंख्यक स्वरोजगार योजना में परियोजना लागत एवं अनुदान राशि बढ़ाए जाने सम्बंधी प्रकरण में संशोधित सूचना व अभिलेख सहित पुनरीक्षित प्रस्ताव शासन को उपलब्ध कराएं। अल्पसंख्यक स्वरोजगार योजना में व्यापक गड़बड़ियों के बाबत डीएनए संवाददाता ने जब विशेष सचिव शहाबुद्दीन मोहम्मद से पूछा तो उन्होंने बहाना बताते हुए कहा कि वे कहीं और बैठे हैं और सम्बंधित अधिकारी से जानकारी कर ही बता पाएंगे।

भ्रष्टों को सेवा विस्तार का तोहफा!


पीडब्लूडी में रिटायर होने के बाद भी मिलता है वेतन

पीडब्लूडी में इंजीनियर रिटायर होने के बाद भी सरकारी वेतन पाते हैं। भ्रष्टाचार में आरोपित अफसरों को सेवा विस्तार देकर इनाम दिया जाता है। मंत्री और प्रमुख सचिव की एक प्रमुख अभियंता पर इतनी कृपा बरसी कि उसके रिटायर होने के तुरंत बाद तीन सेवा विस्तार व चौथी दफे संविदा पर रख उसके भ्रष्ट अनुभवों का फायदा उठाया गया। अब भ्रष्टाचार में आरोपित विधि अधिकारियों को सेवा विस्तार का तोहफा दिया जा रहा है।

मंत्री नसीमुद्दीन और प्रमुख सचिव रवीन्द्र सिंह को तकनीकी रूप से मदद करने वाले सेवा विस्तार के हकदार बताए जाते हैं। पीडब्लूडी के रिटायर्ड प्रमुख अभियंता टी. राम को ही देख लीजिए, उनके गुड वर्क से मंत्री और प्रमुख सचिव इतने प्रभावित हुए कि रिटायर होने के बाद पहली बार दो साल, दूसरी बार छह महीने, फिर तीन महीने और चौथी दफे नहीं कुछ समझ आया तो संविदा पर ही रख दिया। टी. राम ने भी इस परम्परा को आगे बखूबी बढ़ाया। उन्होंने 28 फरवरी 2011 को विधि अधिकारी पद से रिटायर हो रहे जेपी यादव को छह महीने के अनुबंध के आधार पर सेवा विस्तार दे दिया। श्री यादव 30 सितंबर के दिन सेवानिवृत्त होने वाले थे कि टी. राम के पदचिन्हों पर चल रहे प्रमुख अभियंता यदुनंदन प्रसाद यादव ने उन्हें दूसरी बार सेवा विस्तार दे दिया।

पीडब्लूडी में इस प्रकार के खेल को खत्म करने के लिए अधिवक्ता त्रिभुवन कुमार गुप्ता ने मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव से दो विधि अधिकारियों को हटाए जाने की मांग की है। श्री गुप्ता ने कहा है कि दो विधि अधिकारी पिछले 10 वर्षो से लखनऊ में ही कार्यरत हैं। इनका वेतनमान तो अवर अभियंता से भी अधिक है। इन दोनों द्वारा 20-20 वर्षो से अधिक समय तक की अनेकों कोर्ट में चल रही याचिकाओं में प्रतिशपथ पत्र तक दाखिल नहीं किया है। जबकि प्रत्येक मास वसूली करने के लिए न्यायालय के मुकदमों की मासिक बैठक आयोजित होती है। दोनों ही विधि अधिकारियों द्वारा याचिकाकर्ता की याचिका संख्या 8535 एसएस 2005 वशिष्ट नारायन उपाध्याय बनाम यूपी सरकार व अन्य मामले में जिसमें उच्च न्यायालय ने 23 दिसंबर 2005 को छह सप्ताह में शपथपत्र दाखिल करने का आदेश दिया था, पांच वर्षो तक शपथपत्र नहीं दाखिल किया, याची को कोर्ट के आदेश की आड़ में 10 लाख 45 हजार 65 रुपए का फायदा करा दिया। शासन द्वारा विजलेंस जांच भी चल रही है।

भ्रष्टाचार का खेल यहीं तक सीमित नहीं है। यहां यह खेल पुराना है। टीआर गुप्ता बताते हैं कि विभाग के अवर अभियंता इकबाल सिंह व कृष्णमोहन 31 जुलाई 2004 को सेवानिवृत्त हो गए थे। इसके बावजूद दोनों 31 जुलाई 2006 तक न सिर्फ वेतन प्राप्त करते रहे बल्कि अन्य सरकारी सेवाओं का भी पूरा लाभ उठाया। फिर सेवानिवृत्त दिखाकर पेंशन लेने लगे। ठीक इसी तरह निर्माण निगम के सेवानिवृत्त अवर अभियंता वशिष्ठ नारायण उपाध्याय और विजय सिंह वर्मा ने रिटायर होने के दो साल बाद तक वेतन व सरकारी सुविधाओं का फायदा उठाया। विभाग में नियम विरुद्ध सेवा विस्तार व विधि अधिकारियों द्वारा की जा रही वित्तीय अनियमितताओं के बारे में डीएनए ने प्रमुख सचिव रवीन्द्र सिंह से उनके मोबाइल नंबर 9839173644 पर प्रतिक्रिया जाननी चाही तो उन्होंने फोन ही नहीं उठाया।

Wednesday, 7 September 2011

अवधपाल की ऐंठ बरकरार

अवधपाल के खिलाफ कार्रवाई के लिए समय मांग रही सरकार : लोकायुक्त
कहा : कम्पेल्ड बाई द ऑनरेबल चीफ मिनिस्टर फॉर सबमिटिंग रेजिग्नेशन

लखनऊ। मंत्री पद छिनने से नाराज अवध पाल सिंह यादव की ऐंठ अभी भी बरकरार है। अब तो वे मुख्यमंत्री मायावती को भी हेकड़ी दिखा रहे हैं। कह रहे हैं कि उन्हें इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया है। लगता है कि अवधपाल की दबंगई से बसपा सरकार भी डर गई है। इसीलिए सरकार की मुखिया भ्रष्टाचार में आरोपित मंत्री के खिलाफ और कोई कार्रवाई करने के लिए लोकायुक्त से छह महीने का समय मांग रही हैं।

लोकायुक्त की जांच में दोषी पाए गए पशुधन एवं दुग्ध विकास राज्य मंत्री अवध पाल सिंह यादव ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में एक याचिका भी दायर कर दी है। श्री यादव के वकील ओपी श्रीवास्तव द्वारा अपने विरोधी पक्ष डॉ. सुबोध यादव को दिए रिट नोटिस में साफ-साफ कहा है कि उन्हें मंत्रीपद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया है। इसका सीधा और साफ मतलब है कि वे बसपानेत्री और मुख्यमंत्री मायावती के फैसले को चुनौती देने की भी जुर्रत कर रहे हैं। अवधपाल के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले डॉ. सुबोध यादव का कहना है कि रिट नोटिस में पूर्व मंत्री ने कोर्ट से लोकायुक्त की सिफारिश पर कोई कार्रवाई न किए जाने की प्रार्थना की है। लिहाजा सरकार को भेजी लोकायुक्त की सिफारिश निरस्त कर दी जाय। कुल मिलाकर अवधपाल न सिर्फ बसपानेत्री की राजनीतिक मजबूरियों का फायदा उठाकर दोबारा मंत्रिपद पर काबिज होने के लिए दबाव बनाने की फिराक में हैं बल्कि दूसरी तरफ वे बसपा की उन्हीं राजनीतिक लाचारियों के चलते मुख्यमंत्री को अपनी हेकड़ी भी दिखा रहे हैं। शायद इसलिए भी राज्य सरकार मंत्रीपद छीनने के अलावा अवधपाल के खिलाफ और कोई कानूनी कार्रवाई करने से आनाकानी कर रही है।

प्रदेश के लोकायुक्त न्यायमूर्ति एनके मेहरोत्रा ने डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट को बताया कि पशुधन एवं दुग्ध विकास राज्यमंत्री पद से हटाए गए अवधपाल सिंह के खिलाफ राज्य सरकार कार्रवाई करने के लिए छह माह का समय मांग रही है। इससे तो सरकारी बेबसी साफ-साफ नजर आती है।

लोकायुक्त की जांच में दोषी साबित हुए अवधपाल को सिर्फ मंत्रीपद से हटाकर सरकार एक तरफ अपनी इज्जत बचाने में जुटी है तो दूसरी तरफ अपने भ्रष्ट मंत्री के खिलाफ कोई कार्रवाई न कर उसके बचाव का भी नाटक कर रही है। मगर जिस अवध पाल के भ्रष्ट कारनामों पर बसपा सरकार पर्दा डालने में लगी है वही सरकार और सरकार की मुखिया के खिलाफ मूंछ ऐंठ कर ताल ठोंक रहे हैं कि उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया वरन उनको इस्तीफे के लिए मजबूर किया गया।

Tuesday, 6 September 2011

अफसर बेलगाम मंत्री जी नाकाम


यूपी में अफसर इतने बेलगाम हो गए हैं कि न तो वे मुख्यमंत्री मायावती के किसी आदेश का पालन करना जरूरी समझते हैं और न ही विभागीय मंत्रियों को सेटते हैं। अफसरों पर पैसा कमाने का इस कदर भूत सवार है कि वे कोई न कोई तरकीब ढूंढ़ते ही रहते हैं। राज्य औोगिक विकास निगम कानपुर में दो अफसर ऐसे हैं जिन्होंने वार्षिक स्थानांतरण नीति को खूंटी पर टांग एक दिन में 50 इंजीनियरों का तबादला अलग-अलग जिलों में कर दिया। विभागीय मंत्री इन्द्रजीत सरोज एवं सचिव एसके वर्मा के आश्चर्य और रोष व्यक्त किए जाने के बाद भी अफसरों ने अपना रवैया नहीं बदला और न ही किसी का स्थानांतरण रद्द किया। एक दिन में इतनी बड़ी तादात में तबादलों के पीछे पैसे की उगाही का खेल बताया जा रहा है।

राज्य औोगिक विकास निगम के सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री मायावती ने सरकारी विभागों व सार्वजनिक निगमों में कार्यरत अधिकारियों व कर्मचारियों की स्थानांतरण सत्र शून्य घोषित किया था। मगर कानपुर स्थित निगम में मुख्यमंत्री के इस आदेश को ताक पर रखते हुए प्रभारी कार्मिक सुभाष चन्द्रा व अपर प्रबंध निदेशक देवी शंकर शर्मा ने बीते दो जून को निगम में कार्यरत 72 अभियंताओं में से 50 का तबादला विभिन्न जिलों में कर दिया। सूत्रों का कहना है कि ये तबादले इसलिए किए गए हैं ताकि इंजीनियर या तो स्थानांतरित जिलों में जाएं अथवा मुंह मांगा पैसा अफसरों को दे दें। सूत्रों का यह भी कहना है कि इन तबादलों में 13 अनुसूचित जाति एवं 16 पिछड़ी जाति के इंजीनियर हैं। कानपुर से हटाए गए अभियंताओं ने अफसरों की इस करतूत की शिकायत मुख्यमंत्री से भी की है कि निगम के दोनों अफसर लगातार उत्पीड़न कर रहे हैं। 50 इंजीनियरों के तबादले समेत धन उगाही की आई शिकायतों को लेकर जसराना के बसपा विधायक राम प्रकाश यादव, हसनगंज उन्नाव के बसपा विधायक राधेलाल रावत, विभागीय विशेष सचिव मुकेश कुमार गुप्ता, भारत रत्न बोधिसत्व बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर महासभा के मंत्री जगत नारायण के अलावा राज्य औोगिक विकास निगम के प्रभारी मंत्री इन्द्रजीत सरोज व विभाग के सचिव एसके वर्मा द्वारा 8 जून को हुई मासिक समीक्षा बैठक में तबादलों एवं अन्य शिकायतों के सम्बंध में नाराजगी जाहिर करने के बाद भी निगम के दोनों अफसरों सुभाष चन्द्रा व देवी शंकर शर्मा के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं हुई है।

अंबेडकर महासभा के मंत्री जगत नरायण ने मुख्यमंत्री मायावती को लिखे पत्र में तो यहां तक कहा है कि विभागीय मंत्री इन्द्रजीत सरोज ने तबादलों से अपनी असहमति जताई थी और उन्हें निरस्त करने को कहा था। मुख्यमंत्री को उन्होंने यह भी लिखा है कि मुख्य अभियंता के अधीन अधिकारियों में से एक कांग्रेस सांसद एवं अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष का रिश्तेदार है और अवैध गतिविधियों में अत्यंत सक्रिय है।

निगम में बेलगाम अफसर नियम और कानूनों की भी धज्जियां उड़ा रहे हैं। सीनियर इंजीनियर मनमोहन को चीफ इंजीनियर इंचार्ज न बना कर उनसे जूनियर आरके चौहान को चीफ बना दिया है। यही नहीं निगम स्थित लखनऊ में अधिशासी अभियंता एनके आदर्श को गाजियाबाद के ट्रानिका सिटी का अतिरिक्त चार्ज दे रखा है जबकि गाजियाबाद में दो अधिशासी अभियंता पहले से ही कार्यरत हैं। डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट ने निगम के अपर प्रबंध निदेशक देवी शंकर शर्मा से जब 50 इंजीनियरों के तबादले और अन्य शिकायतों पर उनकी प्रतिक्रिया पूछी तो उन्होंने कहा कि आप क्यों परेशान हैं? जो छापना हो वो छाप दो। हमे कुछ नहीं कहना है।

एक ही सुर अलाप रहे पिता-पुत्र

गठबंधन के दरवाजे नहीं खोल पा रहे रालोद मुखिया
कांग्रेस को मुंह चिढ़ाने का कर रहे काम

 रालोद मुखिया और उनके बेटे एक ही सुर अलाप रहे हैं। सोमवार को लखनऊ आए जयंत चौधरी की भी टीश कांग्रेस के प्रति देखने को मिली। कांग्रेस से समझौते की बात न बनती देख छोटे चौधरी ने भी यूपीए सरकार और उनके मंत्रियों पर हमला बोला। अब तो समाजसेवी अन्ना हजारे की भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम की तारीफ में पुल बांध रहे रालोद नेता कांग्रेस को मुंह चिढ़ाने का भी काम शुरू कर दिया है। कांग्रेसियों द्वारा तवज्जो न मिलने से हैरान और परेशान पिता-पुत्र यह कहते फिर रहे हैं कि हमारे दरवाजे खुले हैं।

पिछले एक साल से गठबंधन और सीटों के तालमेल के लिए छटपटा रहे चौधरी अजित सिंह की सारी कसरतों पर पानी फिरता जा रहा है। पहले उन्होंने डा. उदितराज वाली इंडियन जस्टिस पार्टी, डा. अयूब की पीस पार्टी, ओमप्रकाश राजभर वाली भारतीय समाज पार्टी समेत अन्य छोटे दलों का मोर्चा बनाया। यह सियासी कुनबा बन भी नहीं पाया था कि उससे पहले ही बिखर गया। चौधरी साहब ने फिर कांग्रेस और सपा की ओर तांक-झांक करनी शुरू की तो दोनों दलों के नेताओं ने इनसे किनारा कसना ही मुनासिब समझा। बसपा-भाजपा से गठबंधन न करने की सार्वजनिक घोषणा पर भी यदि सपा और कांग्रेस रालोद को तवज्जो नहीं दे रही है तो इसके पीछे सियासी रणनीति के संकेत साफ हैं। दोनों पार्टियां चुनाव पूर्व ऐसे किसी छोटी पार्टियों को साथ लेकर नहीं चलना चाहती हैं जो उनके वोटों का फायदा भी उठाएं और सरकार में बड़े साझीदार का दावा भी करते नजर आएं। वैसे भी अजित सिंह की दिल्ली और लखनऊ की सरकारों में शामिल होने के अनुभवों को देखते हुए सपा और कांग्रेस पहले से ही कन्नी काटे हुए है। रालोद मुखिया दिल्ली में भी गठबंधन की कसरत जारी रखे हुए हैं। बीते दिनों उन्होंने कामरेड प्रकाश करात, पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा, आंध्र के पूर्व मुख्यमंत्री चन्द्रबाबू नायडू समेत पुराने राष्ट्रीय मोर्चा के नेताओं से हाथ मिलाकर भी यूपी की राजनीतिक पार्टियों का ध्यान खींचने की कोशिश की। मगर चौधरी साहब की ये सारी कवायदें आकार लेती नहीं दिख रही हैं।

राष्ट्रीय स्तर जिन नेताओं के साथ किसान नेता घूम रहे हैं वे सभी के सभी अपने-अपने राज्यों में खारिज किए जा चुके हैं। उत्तर प्रदेश में सपा और कांग्रेस से बात बनती नजर नहीं आ रही है। यहां तक कि छोटे दल भी उनसे किनारा कस चुके हैं। बसपा-भाजपा से हाथ मिलाएंगे नहीं। सिर्फ पश्चिम यूपी में छिटके राजनीतिक ताकत के जरिए किसके लिए दरवाजे खोल रखे हैं।

Sunday, 4 September 2011

एक लाख घूस मांग रहा है ट्रेजरी बाबू


सेवानिवृत्ति लाभ के 10 लाख में से 10 परसेंट मांगी रिश्वत
मरणासन्न कर्मचारी को भी नहीं बख्शा

यूपी की राजधानी लखनऊ में रिश्वत और घूस लेने की घटनाएं आमतौर पर रोजमर्रा की हैं। घूसखोर अफसर हों या बाबू उन्हें सिर्फ किसी भी सूरत में घूस चाहिए ही चाहिए। सामने वाला व्यक्ति चाहे मरणासन्न ही क्यों न हो? खासतौर पर कुछेक विभागों में तो ऐसे बाबू हैं जिन्हें रिश्वत के सामने कुछ सूझता ही नहीं है। लखनऊ कलक्ट्रेट भी उसी में से एक है। ऐसे ही ट्रेजरी के एक बाबू से पीडब्लूडी के रिटायर कर्मचारी का पाला पड़ गया। कर्मचारी बिलकुल मरणासन्न हालत में है। उसे अपनी सेवानिवृत्त व अन्य लाभ के 10 लाख लेने के लिए लोहे के चने चबाने पड़ रहे हैं। मगर टस से मश नहीं हो रहे बाबू का खुलेआम कहना है कि जब तक 10 लाख में से 10 परसेंट यानि एक लाख घूस नहीं दोगे तब तक ये पैसे तुम्हें कदापि मिलने वाले नहीं हैं।

आइए देखते हैं लखनऊ ट्रेजरी के घूसखोर बाबू हरीराम की कथा और पीडब्लूडी के सेवानिवृत्त कर्मचारी जियाउल हक की व्यथा : पार्किंसन रोग से ग्रसित कर्मचारी हक इन दिनों मरणासन्न दशा में हैं। वे नजरबाग के क्लासिक अपार्टमेंट में रहते हैं। वह चलने-फिरने में असमर्थ हैं। याददाश्त भी लगभग जा चुकी है। उनके शरीर के नर्वस सिस्टम डाउन हो चुके हैं। जियाउल को उम्मीद बंधी थी कि सेवानिवृत्त के 10 लाख मिल जाएंगे तो वे इलाज भी करा लेंगे और उनकी बाकी की जिंदगी कट जाएगी। मगर उन्हें नहीं पता था कि उनका पाला ऐसे बाबू से पड़ जाएगा कि वह उनकी जिंदगी ही नरक बना देगा।

ट्रेजरी के बाबू हरीराम ने सेवानिवृत्त कर्मचारी के लाख भाग-दौड़ करने के बाद भी उसका पैसा नहीं दिया। बाबू के हेकड़ी का आलम देखिए कि उसने कर्मचारी के 10 लाख रुपयों को पांच-पांच बार कोई न कोई आपत्ति लगाकर वापस कर दिया। कर्मचारी से साफ-साफ कह दिया कि जब तक 10 लाख का 10 परसेंट यानि एक लाख रुपए बतौर घूस के नहीं दोगे तो तुम्हें यह रकम मिलने वाली नहीं है। रिटायर्ड कर्मचारी को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने भी उनके सभी देयों को देने के लिए पीडब्लूडी को आदेश दिया था। कोर्ट के आदेश के क्रम में विभाग द्वारा 10 लाख रुपए आदर्श कोषागार को भेज भी दिया गया। मगर बाबू किसी भी हालत में पैसा देने से इनकार कर दिया। तमाम आपत्तियां लगाकर पैसे को वापस करता रहा। सेवानिवृत्त कर्मचारी ने अपने अधिवक्ता टीआर गुप्ता के जरिए जब बाबू से उसकी शिकायत भ्रष्टाचार निवारण संगठन से करने की चेतावनी दी तो उसने घूस की राशि एक लाख रुपए से घटाकर 60 हजार कर दिया।

किसी भी तरह सुनवाई न होते देख जियाउल हक ने बाबू हरीराम की शिकायत प्रदेश के मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव वित्त, अल्पसंख्यक आयोग व जिलाधिकारी से की है। बाबू द्वारा रिटायर्ड कर्मचारी से एक लाख रुपए रिश्वत मांगे जाने पर डीएनए ने मुख्य कोषाधिकारी प्रिय रंजन से पूछा तो उन्होंने बताया कि बाबू को उसके पद से हटा दिया गया है और पूरे मामले की जांच कराई जा रही है।

बेकाबू हैं एलडीए के करामाती बाबू

आश्रयहीनों से भी किया खिलवाड़
एक-एक मकान तीन-चार लोगों को आवंटित

भ्रष्ट प्राधिकरणों में से एक लखनऊ विकास प्राधिकरण गरीबों को भी बलि का बकरा बनाने से नहीं चूकता है। एलडीए में कुंडली मारे बैठे बाबुओं की तो पूछिए ही नहीं। बड़े-बड़े तेज-तर्रार अफसर आए और चले गए मगर बाबुओं का धेला भी बिगाड़ नहीं पाए। यहां अफसर वही करता है जो बाबू उसे करने के लिए कहता है। लिहाजा वह गरीब हो या मालदार हरेक को बगैर चप्पल घिसे एलडीए की छत मुहैया नहीं होती है और किसी को तो मिलती भी नहीं है। किसी-किसी को छप्पर फाड़कर मिल जाता है। यह वही एलडीए है जहां करामाती बाबू और अफसर एक-एक मकान को दो-दो, तीन-तीन और चार-चार लोगों को आवंटित कर देते हैं। आश्रयहीन भवनों के निर्माण में भी अफसरों ने बाबुओं की मिलीभगत से गरीबों और झुग्गी-झोपड़ीवासियों की गरीबी से मजाक उड़ाने में कोई कोताही नहीं बरती है।

आरटीआई के जरिए एलडीए में व्याप्त भ्रष्टाचार और धांधली का मामला एक बार फिर उजागर हुआ है। अधिवक्ता एसपी मिश्र ने सूचना का कानून के माध्यम से एलडीए द्वारा आश्रयहीन लोगों के लिए बनाए गए मकानों के बारे में सूचनाएं मांगी थी। एलडीए ने जो सूचना शारदानगर एवं जानकीपुरम में बनाई गई कालोनी के बारे में उपलब्ध कराई है, वह बेहद चौकाने वाली है। इससे भी बड़ी दिलचस्प बात तो यह है कि सूचना देने के साथ-साथ ही एलडीए ने बड़ी ईमानदारी भी बरतने की कोशिश की है। सम्पत्ति अधिकारी गजेन्द्र कुमार ने अपने जवाब में बड़े ही साफगोई से लिखा है कि भविष्य में यदि कोई आवंटी आश्रयहीन भवन के लिए अपात्र पाया जाता है तो प्राधिकरण द्वारा नियमानुसार आवंटन निरस्त किए जाने की कार्रवाई करेगा। गौरतलब है कि 2001-02 में बनाई गई कालोनी में पिछले 10 सालों से अवैध रह रहे लोगों की पड़ताल एलडीए इसलिए नहीं करता कि वहां बैठे अफसरों और बाबुओं ने ही उसे रहने की इजाजत दे रखी है। अधिवक्ता एसपी मिश्र बताते हैं कि यह सब मात्र एकखेल है। इस खेल में अफसर और बाबू पारंगत हैं। उनका कोई कुछ बिगाड़ भी नहीं सकता है।

आश्रयहीनों के लिए शारदानगर के रक्षा खंड व अन्य खंडों में 50 से ज्यादा ऐसे मकान होंगे जिन्हें तीन-तीन और दो-दो लोगों को आवंटित कर दिया गया है। तीनों आवंटियों से पैसे भी वसूले गए और सबसे बड़ी तो यह है इस प्रकार झमेले वाले मकानों में कोई चौथा आदमी रह रहा है। श्री मिश्र को मिली मकानों की सूची के मुताबिक करीब 50 से ज्यादा मकान तो ऐसे हैं जिनके नाम मकान एलॉट हुआ उसे मिला ही नहीं उस मकान का किराया एलडीए का बाबू वसूल कर अपनी जेब में डाल रहा है। रक्षा खंड के ई 393, ई 406 ए, एफ-8/571, एफ-8/472, 473, 474 और 475 समेत 50 से अधिक मकान हैं जो मिसिंग में हैं। ई-394 ए, ई-408, ई-419, ई-420, ई-445, ई-476, रुचि खंड में 1/333, 1/336, 1/737, 1/747, 1/827, 1/828, 1/835, 1/852, 54, 86, 99 और 900, रजनी खंड में 6/ 239, 7/404 और 409 नंबर वाले मकानों को दो-दो लोगों को आवंटित कर दिया गया है। इसी प्रकार रुचि खंड में 1/299, 3/358 समेत कई मकानों को तीन-तीन लोगों को आवंटित कर दिया गया है। ठीक इसी प्रकार रक्षा खंड में मकान नंबर 1/924 को चार-चार लोगों को दे दिया गया है। एलडीए के बाबुओं की बड़ी करामात तो देखिए कि आठ मकान ऐसे हैं जिसका भवन ही नहीं नहीं बना और नम्बर भी एलॉट कर दिया। कई ऐसे भी मकान हैं जो किसी को भी नहीं मिले हैं। पता यह भी चला है कि वहां या तो बाबू या किसी अफसर का जानने वाला रह रहा है।

Thursday, 1 September 2011

हैदर कैनाल से भी पैदा कर लिया माल

रकारी कर्मचारियों को दे दिए मकान
जिन्होंने नहीं लिए उनके बेच दिए मकान
शिकायतों को गंभीरता से देखूंगा : आवास आयुक्त

आवास एवं विकास परिषद के अफसरों ने राजधानी लखनऊ में हैदर कैनाल के बाएं और दाएं सरकारी जमीन पर दो-दो और तीन-तीन मंजिला मकान बनाने वाले उन सरकारी कर्मचारियों को भी वृन्दावन, तेलीबाग व आम्रपाली योजना में मकान दे दिए जिन्हें सरकार मकान का भत्ता तक देती है। आरटीआई के जरिए इस खुलासे के साथ विभागीय अफसरों द्वारा की गई धांधलीबाजी भी सामने आने लगी है। विस्थापितों में सरकारी कर्मचारियों को मकान देने के पीछे यह भी चर्चा है कि न सिर्फ एक-एक सरकारी कर्मचारी से मोटी रकम वसूली गई है बल्कि जिन्होंने घर नहीं लिया उनके मकानों को ऊंची-ऊंची दरों में बेच देने के आरोप भी अधिकारियों पर हैं।

दरअसल हैदर कैनाल के किनारे बसे लोगों को इसलिए उजाड़ दिया गया क्योंकि कैनाल का एक किनारा बसपा के राष्ट्रीय महासचिव व राज्यसभा सांसद सतीश चन्द्र मिश्रा के मकान की शोभा को नष्ट कर रहा था तो बहुजन प्रेरणा स्थल के नाते हैदर कैनाल वासी सरकार की आंखों में चुभ रहे थे। कैनाल के दोनों किनारों पर रहने वाले लोगों को रातों-रात उजाड़ दिया गया। इसके खिलाफ विरोध के स्वर को भी पुलिसिया लाठी के सहारे कुचला गया। विस्थापितों को रातों-रात बसाने का काम भी सरकार के इशारे पर बड़ी तत्परता के साथ किया गया। विभागीय सूत्र बताते हैं कि सरकार मलिन बस्तियों को उजाड़ने के नाम पर कोई बखेड़ा खड़ा होना नहीं देखना चाहती थी, इसलिए इसकी आड़ में आवास एवं विकास परिषद के अफसरों ने जमकर फायदा उठाया। उन्होंने ऐसे सरकारी कर्मचारियों को भी वृन्दावन, तेलीबाग, आम्रपाली व हरदोई रोड योजना में मकान दे दिए जो जल निगम, पीडब्लूडी, शक्ति भवन, सचिवालय, सूचना विभाग, बिजलेंस, बीएसएनएल, रेलवे, बिजली विभाग में काम करने के साथ शिक्षक भी हैं जिन्होंने दो-दो और तीन-तीन मंजिला मकान बनाकर कब्जा कर रखा था। मालूम हो कि अधिवक्ता एसपी मिश्र ने आरटीआई के तहत हैदर कैनाल के विस्थापितों की सूची, उन्हें विभिन्न योजनाओं में दिए गए मकान समेत विभिन्न सूचनाएं मांगी थी। जिला नगरीय अभिकरण के परियोजना अधिकारी सतीश चन्द्र वर्मा ने बड़ी मुश्किल से जो सूची उपलब्ध कराई उससे सरकारी कर्मचारियों और दूसरी धांधलीबाजी का भंडाफोड़ हुआ है। श्री मिश्र ने डीएनए को बताया कि सरकारी कर्मचारियों को विस्थापितों में शामिल ही नहीं किया जाना चाहिए था। चूंकि सरकार उन्हें मकान भत्ता देती है दूसरे वे सरकारी जमीन पर कब्जा कर दो-दो और तीन-तीन मंजिला मकान बना रखे थे। उन्होंने यह भी बताया कि जिन्होंने मकान नहीं लिए उनके मकानों को अधिकारियों द्वारा ऊंची-ऊंची दरों पर बेच दिया गया। जिला नगरीय विकास अभिकरण द्वारा उपलब्ध कराई गई सूची के अनुसार जिन सरकारी कर्मचारियों को मकान दिए गए उनमें जलनिगम की श्रीमती मीना यादव, पीडब्लूडी से शांती देवी, शक्ति भवन में काम करने वाले कामता प्रसाद, सचिवालय की कर्मचारी रमा देवी, असमा बेग, गलफीश, सुरजीत, श्रीमती सीमा, कैसर जहां, सरे, देवमुखी व रामफेरी, इस्लामिया कॉलेज की टीचर श्रीमती राजदा, गन्ना संस्थान की चम्पा, नगर निगम की सोनी, जवाहर भवन में काम करने वाली जीनत बेगम, सूचना विभाग की श्याम कली, बीएसएनएल के कमलेश, रेलवे में काम करने वाली सावित्री शुक्ला, बिजलेंस की प्रेम कुमारी समेत सैकड़ों सरकारी कर्मचारियों को मकान दे दिए गए। इस मामले में हुई धांधली पर नवनियुक्त आवास आयुक्त जगमोहन ने कहा कि इसे मैं गंभीरता से देखूंगा।

Wednesday, 31 August 2011

हिलोरें मार रही मंत्री जी की प्रभुता


मालदार केडीए और जीडीए में रंग जमाए हैं 
अधीक्षण अभियंता बीके सोनकर





सूबे की मुखिया और बसपा नेत्री मायावती की वरदहस्त से किनारे हुए बाबू सिंह कुशवाहा की जगह अब अपना रंग दिखा रहे मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी की प्रभुता जमकर हिलोरें मार रही है। मंत्री जी के इर्द-गिर्द रहने वाले अफसर और इंजीनियर भी खूब रंग जमाए हुए हैं। बीके सोनकर नाम के एक अधीक्षण अभियंता की तो जमकर तूती बोल रही है। इंजीनियर साहब सूबे के दो मालदार प्राधिकरणों कानपुर विकास प्राधिकरण और गाजियाबाद विकास प्राधिकरण में अपना कमाल दिखा रहे हैं। मसलन दोनों प्राधिकरणों में मंत्री जी की कृपा से वे तीन-तीन पद एक साथ थामे हुए हैं। मजाल क्या है कोई उन पर हाथ डाल दे?

सत्ता के गलियारों में इन दिनों न सिर्फ पीडब्लूडी, सिंचाई व आवास समेत डेढ़ दर्जन विभागों के मुखिया नसीमुद्दीन सिद्दीकी के पावर की गूंज रहती है बल्कि उनके सरपरस्ती में निष्ठा रखने वाले अफसर और इंजीनियर भी पूरे यूपी में धाक जमाए हुए हैं। मंत्री जी के सानिध्य में रहने वाले एक इंजीनियर साहब की पोल आरटीआई के जरिए खुल ही गई। लखनऊ निवासी व अधिवक्ता एसपी मिश्र ने केडीए, आवास विभाग व शासन से यह सूचना मांगी थी कि अधीक्षण अभियंता वीके सोनकर कानपुर विकास प्राधिकरण में न सिर्फ कार्यवाहक मुख्य अभियंता हैं बल्कि गाजियाबाद विकास प्राधिकरण में भी अधीक्षण अभियंता के पद पर तैनात हैं। इसका जवाब न तो शासन कारगर तरीके से दे पाया और न ही सरकार के पसंदीदा अफसर रहे और वर्तमान में प्रदेश के मुख्य सूचना आयुक्त रणजीत सिंह पंकज यह सूचना दिलवा पाए। सीआईसी ने तो इस मामले को यह कह कर निस्तारित कर दिया कि आवेदनकर्ता सूचना आयोग की बजाय किसी और सक्षम फोरम पर गुहार लगाए। इस मामले में शासन के अनु सचिव और जनसूचना अधिकारी बराती लाल ने यह कह कर पल्ला झाड़ लिया है कि कानपुर विकास प्राधिकरण में मुख्य अभियंता का पद जुलाई 2010 से रिक्त पड़ा है। मुख्य अभियंता का पद कितने दिन तक रिक्त रखा जा सकता है, इस सम्बंध में नियमों में कोई व्यवस्था नहीं है। सोनकर केडीए में अधीक्षण अभियंता की जिम्मेदारी के साथ 17 जुलाई 2010 से मुख्य अभियंता का कार्य भी देख रहे हैं। अधिवक्ता एसपी मिश्र का कहना है फिर सोनकर द्वारा गाजियाबाद में अधीक्षण अभियंता के पद पर तैनाती का क्या औचित्य है? केडीए की विशेष कार्याधिकारी रेनू पाठक ने कहा है कि मुख्य अभियंता का पद केन्द्रीयित सेवा का पद है। इस पर नियुक्ति शासन द्वारा की जाती है। मगर शासन ने अभी तक केडीए में मुख्य अभियंता के पद पर किसी की तैनाती क्यों नहीं की? पता चला है कि सम्बंधित विभाग के मुखिया और मंत्री जी की कृपा से ही बीके सोनकर दोनों प्राधिकरणों में जमे हुए हैं। उधर आरटीआई के जरिए यह भी पता चला है कि अयोध्या-फैजाबाद, गोरखपुर, मथुरा-वृन्दावन व खुर्जा विकास प्राधिकरण में अधीक्षण अभियंता के पद रिक्त हैं। इसके साथ ही कानपुर, वाराणसी और गोरखपुर में मुख्य अभियंता के पद भी रिक्त पड़े हुए हैं। चर्चा यह भी है रिक्त पड़े पदों पर मंत्री जी के सानिध्य वाले अभियंता बागडोर सभाले हैं। यही नहीं मंत्री जी की कृपा से ही प्राधिकरण केन्द्रीयित सेवा के मुख्य अभियंता एससी मिश्र की तैनाती आवास बंधु में हो गई है। तो भला किसकी हिम्मत है कि रिक्त पड़े पदों पर मुख्य अभियंताओं व अधीक्षण अभियंताओं की नियुक्ति बिना उनसे पूछे करे।

Tuesday, 30 August 2011

यूपी है! यहां आबरू किसी की भी लुट जाए

भ्रष्टाचार के साथ अपराधों ने भी राज किए चार साल




लखनऊ। यूपी में बसपा सरकार की स्थापना के साथ ही अपराध और भ्रष्टाचार की वापसी भी बड़े जोर-शोर से शुरू हुई जो आज भी उतने वेग से बदस्तूर जारी है। सूबे की मुखिया और बसपा नेत्री मायावती के सरकारी कारिंदे भ्रष्टाचार व अपराध के आंकड़ों पर पर्दा डालते रहे तो ये दोनों सरकार के लिए सिर दर्द बनते गए। कानून व्यवस्था के नाम पर विरोधी दलों को चित कर सत्ता में प्रतिष्ठित हुईं माया मैडम के राज में अपहरण, बलात्कार, लूट, हत्या, डकैती और छिनैती की घटनाओं ने पूरे प्रदेश को झकझोर कर रख दिया। चार साल तक प्रदेश के हर कोने में पुलिस और प्रशासन की नाकामियां तथा बसपा सरकार व संगठन के नुमाइंदों ने अराजकता का विशाल अखंड राज स्थापित किया।

बसपा के विरोधियों ने जब-जब सूबे में बढ़ते अपराध को लेकर सरकार पर हमला बोला तब-तब सरकारी कारिदों ने कांग्रेस और भाजपा शासित वाले राज्यों के आंकड़े दिखाकर बसपाइयों के दामन पर लग रहे खून के घब्बों को धोने की खूब कसरतें कीं। हालांकि समय-समय पर पुलिस और प्रशासनिक अफसरों को इसकी बख्शीश भी मिलती रही। दरअसल अपराध के आंकड़ों से जवाब देने वाली सरकार आंकड़ों में हीआंकड़ों के ही अनुसार कुछ अन्य संगीन अपराधों सहित कुल भारतीय दंड विधान के तहत 2008 में 161082, 2009 में 160875 तथा 2010 में 159796 प्रकरण दर्ज किए गए। राष्ट्रीय मानवाधिकार द्वारा जो रिपोर्ट केन्द्र को भेजी गई है उसमें फर्जी इनकाउंटर के 2006-07 में 82, 2007-08 में 48, 2008-09 में 41 तथा 2009-10 में माह जुलाई तक 11 फर्जी इंनकाउंटर के मामले सामने आए हैं। इन आंकड़ों के साथ ही साथ सरकार को कटघरे में खड़ा करने वाली वे घटनाएं भी हैं जो एक महिला मुख्यमंत्री के राज में पूरे प्रदेश को शर्मशार करती हैं। इनमें वही लिप्त पाए गए जो सर्वजन सुखाय का नारा देकर सत्ता हासिल किए हैं। महिलाओं की आबरू बचाने में नाकारा साबित हुई। सामूहिक बलात्कार के घटनाओं की जैसी झड़ी सी लग गई। थानों में बलात्कार हुए। यहां तक कि दलित महिलाएं और बच्चियां निशाना बनाई गईं। लखीमपुर खीरी में 10 जून 2011 को 14 वर्षीय सोनम से पुलिस कर्मियों ने दुराचार की कोशिश की और हत्या कर दी। 11 जून 2011 को बाराबंकी के थाना घुंघटेर में पांच वर्षीय सविता की हत्या कर दी गई। उसकी किडनी तक निकाली गई। 17 जून 2011 को गोंडा के करनैलगंज निवासी राजेश की 15 वर्षीय पुत्री की बलात्कार के बाद हत्या की गई। 17 जून को ही कानपुर में एक नाबालिग लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार कर उसकी हत्या कर दी गई।

यूपी में आरटीआई पर आई शामत

नियुक्ति सम्बंधी सूचना से पल्ला झाड़ रहा प्रशासनिक सुधार विभाग
छह सूचना आयुक्तों व सीआईसी की नियुक्ति पर उठे सवाल

यूपी में कानूनी,संवैधानिक और प्रशासनिक संस्थाएं भी पिछले चार सालों में मौजूदा सत्ताधारियों के तिरस्कार व मनमानियों की शिकार हुई हैं। सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की तो इतनी छीछालेदर शायद ही दूसरे राज्यों में देखने को मिली हो। छह-छह राज्य सूचना आयुक्तों और मुख्य सूचना आयुक्त के अत्यंत महत्वपूर्ण पद पर भ्रष्टाचार के आरोपी अफसर रणजीत सिंह पंकज को बैठा दिया गया। सूचना आयुक्तों और सीआईसी के चयन पर अब प्रशासनिक सुधार विभाग को जवाब देते नहीं बन रहा है। विभागीय अधिकारी यह कह कर पल्ला झाड़ रहे हैं कि मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच चलने वाली फाइल को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है। मगर क्यों? सूचना आयुक्तों और मुख्य सूचना आयुक्त को लेकर आखिर ऐसी कौन सी गोपनीय बात है जिसके चलते मुख्यमंत्री व राज्यपाल के बीच की फाइल को जनहित में सार्वजनिक करने से प्रशासनिक विभाग के अधिकारियों को गुरेज हो रहा है।

अधिवक्ता एसपी मिश्र और आरटीआई ऐक्टिविस्ट सलीम बेग ने इस मुद्दे को सूचना के कानून केतहत उठाया है। श्री मिश्र ने कहा कि पिछले चार सालों में सूचना आयुक्तों और मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति में चयन प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है। सरकार ने पहले चार सूचना आयुक्तों राम सरन अवस्थी, सुभाष चंद पांडेय, बृजेश मिश्र और सुनील कुमार चौधरी की नियुक्ति की। चारों की नियुक्ति में मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में गठित समिति ने नेता विरोधी दल की राय जाने बिना ही हरी झंडी दे दी। इसी प्रकार दो और सूचना आयुक्तों ज्ञान प्रकाश मौर्य और खजीअतुल कुबरा को भी राज्य सूचना आयुक्त बनाए जाते समय निर्धारित चयन प्रक्रिया नहीं अपनाई गई। नेता विरोधी दल शिवपाल सिंह यादव की समिति में उपस्थिति और बगैर उनकी स्वीकृति के ही दोनों सूचना आयुक्तों को सूचना आयोग में बैठा दिया गया। इस प्रकार मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर भी नियमों की अनदेखी की गई। रणजीत सिंह पंकज की नियुक्ति के दौरान भी मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने नेता विरोधी दल की स्वीकृति नहीं ली। जबकि पंकज पर खनन विभाग के एक मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 50 हजार रुपए का जुर्माना किया था। मौजूदा सीआईसी पर भ्रष्टाचार के कई आरोप भी विभिन्न विभागों में विभागीय अधिकारी रहते लग चुके हैं। चार सूचना आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर तो मामला हाईकोर्ट में लंबित भी है।

सीआईसी और छह सूचना आयुक्तों की नियुक्ति से सम्बंधित आरटीआई द्वारा मांगी गई सूचना पर प्रशासनिक सुधार विभाग ठोस जवाब देने के बजाय राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच की फाइल को सार्वजनिक करने से इनकार कर पल्ला झाड़ रहा है। विभाग के अनु सचिव और जनसूचना अधिकारी रामचन्द्र यादव ने कहा है कि राज्य सूचना आयोग द्वारा सुनील कुमार यादव बनाम उप सचिव प्रशासनिक सुधार विभाग के वाद में यह आदेश पारित किए गए हैं कि जो फाइल मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच चलती है, जनहित में उनको बताया जाना बिलकुल उचित नहीं है। इस प्रकार राज्य सूचना आयुक्तों की नियुक्ति से सम्बंधित समिति की सिफारिश तथा मंत्रिमंडल के सदस्य को नाम निर्देशित किए जाने में हुई कार्यवाही की सूचना नहीं उपलब्ध कराई जा सकती है। अब सवाल यह उठता है कि अगर सूचना आयुक्तों और मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति में ही जब पारदर्शिता नहीं दिखाई देती है तो इन पदों पर बैठने वाले लोग सूचना के कानून की मंशा के अनुरूप सरकारी विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार, वित्तीय अनियमितताएं, सरकारी कर्मचारियों के कामकाज में पारदर्शिता सुनिश्चित करा पाएंगे।

Thursday, 25 August 2011

मंत्री, नेता और दलाल-सब हुए मालामाल

सरकारी विभागों ने खूब उड़ाए पैसे
उजागर हुई सरकारी तंत्र की संवेदनशून्यता

लखनऊ। बसपा सरकार अपने खिलाफ विरोधी दलों के बयानों से तिलमिलाती जरूर रही है मगर उसके कच्चे-चिट्ठे पर नजर डाली जाय तो इतना जरूर साफ हो जाता है कि मुख्यमंत्री और बसपानेत्री के दलित एजेंडे समेत उनके ड्रीम प्रोजेक्ट के अलावा उत्तर प्रदेश के आम आदमी के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया। जनता की जरूरतमंद जरूरतों जैसे बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार समेत तमाम क्षेत्रों में या तो पैसा लगाया नहीं गया या फिर जो धन खर्च किया गया वह मंत्रियों, बसपा नेताओं, दलालों व ठेकेदारों की जेबों में जाकर गिरा।

डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट ने कैग रिपोर्ट समेत तमाम आंकड़ों के आधार पर सरकारी विभागों की वस्तुस्थिति की सिलसिलेवार पड़ताल की तो सरकारी तंत्र की निरंकुशता व संवेदनशून्यता उजागर हुई। सूचना क्रांति के इस दौर में भी राज्य सरकार बुनियादी पहल नहीं कर पाई। यूपी में ई-गर्वर्नेस का पिछले चार साल में कहीं कोई बुनियादी ढांचा ही नहीं खड़ा हो पाया। सरकारी कामकाज की विश्वसनीयता, पारदर्शिता और दक्षता सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय ई-गवर्नेस कार्यक्रम का क्रियान्वयन मई 2006 में शुरू किया था। इसके तहत सूचना प्रौोगिकी के क्षेत्र में बुनियादी ढांचे जैसे स्टेट वाइड ऐरिया नेटवर्क, स्टेट डाटा सेंटर और सामान्य सेवा केन्द्रों की स्थापना करना था। पिछले चार सालों में सूचना एवं तकनीक की मूलभूत स्वरूप ही सरकार नहीं बना पाई। यह पहली दफे है जहां सरकार ने वित्तीय प्रशासन और नियंत्रण का कोई पालन ही नहीं किया। वित्तीय अनुशासन को खूंटी पर टांग दिया गया। परिणाम यह रहा कि भारी पैमाने पर वित्तीय अनियमितता और धोखधड़ी की शिकायतें जैसे मुख्य अभियंता मध्य गंगा सिंचाई विभाग द्वारा जरूरत से ज्यादा सीमेंट कम्प्रेस्ड टाइलों में 5.15 करोड़ फूंक दिया गया। लोक निर्माण विभाग में रोड चौड़ीकरण के नाम पर 3.68 करोड़ ठेकेदार खा गए। सिंचाई विभाग के 1.69 करोड़ रुपए कुंवरपुर एवं पांडेयपुर रजबहों पर अनावश्यक खर्च कर दिए गए। कई विभागों में तो बिना किसी औचित्य के पैसे लुटाए गए। जनकल्याण के लिए खर्च किए जाने वाले धन में विशेष सर्तकता बरतनी पड़ती है। मगर मौजूदा सरकार में इस प्रकार की सर्वाधिक शिकायतें सामने आई हैं। नियंत्रक महालेखा परीक्षक की जांच में 47.56 करोड़ रुपए के अनुचित और अधिक खर्च का मामला उजागर हुआ है। वन विभाग द्वारा बुन्देलखंड में बिना किसी योजना के वृक्षारोपण अभियान पर 40.10 करोड़ रुपए अनियमित तरीके से खर्च कर दिया गया। सिंचाई विभाग द्वारा डिक्रीटल धनराशि के विलंब से भुगतान किए जाने की वजह से निर्माण कम्पनी को 1.87 करोड़ का ब्याज अतिरिक्त भुगतान करना पड़ा। नियोजन की कमी के कारण लखनऊ जिले में मध्यम सुरक्षा कारागार के अधूरे निर्माण पर जेल प्रशासन एवं सुधार विभाग द्वारा चार करोड़ का निर्थक व्यय किया गया। लघु सिंचाई विभाग में 1.03 करोड़ लागत वाली डायरेक्ट सरकुलेटरी रोटरी रिंग मशीन 2009 से निष्क्रिय पड़ी है। मलिन बस्तियों पर खर्च किया गया 54.80 लाख रुपए किसी काम नहीं आया। लेखा परीक्षा में यह बात भी सामने उभर कर आई है कि मंत्रियों और अफसरों की लापरवाही की वजह से 58.43 करोड़ रुपए की अनियमितता उान विभाग, सिंचाई, आईआईटी रुड़की, कारागार प्रशासन, महिला कल्याण व खेल के क्षेत्रों में आई है। पशुपालन विभाग में 77.54 करोड़ रुपए का सही रूप से इस्तेमाल नहीं हो पाया।

खेल में भी भ्रष्टाचार का खेल

स्टेडियम में न चौकीदार न ग्राउंडमैन और न ही प्रशिक्षक
ग्रामीण क्षेत्रों में बने खेल स्टेडियमों पर खर्च 18.31 करोड़ पानी में

यूपी के हर सरकारी विभागों की तरह ग्रामीण खेलकूद विभाग भी भ्रष्टाचार के खेल का शिकार हुआ। 50 खेल स्टेडियमों के निर्माण में खर्च 18.31 करोड़ रुपए पानी में पड़ गया। बेसुध सोई सरकार करोड़ों की लागत से बने स्टेडियम विभाग को सौंप नहीं पाई। महज स्टेडियम का ढांचा भर खड़ा कर फर्ज अदायगी कर छुट्टी पा ली। न वहां चौकीदार, न ही ग्राउंडमैन तैनात किए गए। यही नहीं 18.27 लाख रुपए के खरीदे गए खेल के सामान भी खिलाड़ियों को नहीं मिले। और तो और युवाओं को खेल से जोड़ने के लिए प्रशिक्षकों की कोई व्यवस्था ही नहीं की गई।

यह हाल है ग्रामीण क्षेत्रों के उत्कृष्ट खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देने के उद्देश्य से बनी योजना का। जहां स्टेडियम, प्रशिक्षक, खेल सामग्री तथा खेल से जुड़ी जरूरी चीजें सरकार की समझ में नहीं आती हैं तो वहां यह कल्पना करना कि उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय स्तर पर खिलाड़ी पैदा करेगा, यह समझ से परे है। मगर भ्रष्टाचार के खेल ने खेल को भी अपने साथ जमकर जकड़ कर रखा है। युवा कल्याण विभाग की जानकारी के मुताबिक तत्कालीन प्रदेश सरकार ने 1995 में ग्रामीण क्षेत्रों में स्टेडियम स्थापित करने की योजना शुरू की थी। वर्ष 2004 से 2009 की अवधि में विभिन्न सरकारों द्वारा 26 जिलों में 50 मिनी स्टेडियम के निर्माण के लिए 18.31 करोड़ रुपए स्वीकृत किए गए। प्रत्येक स्टेडियम के निर्माण कार्य को पूरे करने के लिए तीन कार्यदायी संस्थाओं को धन भी स्वीकृत कर दिया गया। इसमें कंस्ट्रक्शन एण्ड डिजाइन सर्विस, जल निगम, पैक्सफेड तथा प्रोजेक्ट कॉरपोरेशन शामिल हैं। नामित कार्यदायी संस्थाओं को 2006-07 में तीन, 2007-08 में चार, 2008-09 में आठ तथा 2009-10 में 16 स्टेडियम बनाने थे। ये स्टेडियम सोनभद्र में दो, गोंडा में एक, कानपुर देहात में एक, मेरठ में दो, रायबरेली में तीन, हरदोई में चार, मऊ में तीन, उन्नाव में तीन, बाराबंकी में तीन, फिरोजाबाद में तीन, लखनऊ में एक, कौशाम्बी में दो, कानपुर नगर में एक, आजमगढ़ में एक, एटा में दो, फैजाबाद में दो, बुलंदशहर में दो, बरेली में एक, खीरी में एक, बहराइच में दो, मैनपुरी में एक, शाहजहांपुर में एक, गाजीपुर में छह, बलिया में एक और गाजियाबाद में एक स्टेडियम बनाया गया है।

कैग की रिपोर्ट के मुताबिक महानिदेशक प्रांतीय रक्षा दल, विकास दल एवं युवा कल्याण के जब दस्तावेजों की जांच की गई तो जनवरी 2010 यानि मौजूदा सरकार के कार्यकाल में यह पाया गया कि 50 में से 19 स्टेडियम विभाग को हस्तांतरित ही नहीं किए गए। इसमें तमाम प्रकार की लापरवाहियां सामने आईं मसलन चल सम्पत्ति का विवरण न होना, चहर दिवारी न बनना और विुतीकरण शामिल थी। महानिदेशक ने तो इन स्टेडियम को उपयोग में लाने के लिए राज्य सरकार को प्रशिक्षकों, ग्राउंड मैन एवं चौकीदार की नियुक्ति के लिए एक प्रस्ताव किया था जिसे 2010 तक स्वीकृत नहीं किया गया। इस प्रकार विभाग को स्टेडियमों को विलंब से हस्तांतरित करने एवं प्रशिक्षकों, ग्राउंड मैन तथा चौकीदारों की नियुक्ति न किए जाने से स्टेडियम के निर्माण पर किया गया 18.13 करोड़ व खेल सामग्री की खरीद पर 18.27 लाख रुपए का व्यय किसी काम नहीं आया। यही नहीं लखनऊ जनपद में युवा छात्रावासों के निर्माण पर किया गया 1.39 करोड़ रुपए का खर्च भी व्यर्थ गया क्योंकि वहां वार्डन और सहायक वार्डन की तैनाती ही नहीं की गई। सरकार सिर्फ कागजों पर पैसे दिखाकर भ्रष्टाचार का खेल करती रही। छात्रावास तो काम नहीं कर रहे मगर सरकार ने कागजों पर छात्रावास के बने भवन की देखभाल के लिए 1.88 लाख रुपए जरूर खर्च कर डाले।

Tuesday, 23 August 2011

माननीयों को लैपटॉप का नया चस्का


विधायकों ने की खूब मनमानियां
सूबे के माननीयों ने भी विधायक निधि से खूब मनमानियां कीं। अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों में कोई कारगर काम तो जनता के लिए किया नहीं अलबत्ता स्कूलों, कॉलेजों पर पैसे खर्च कर अपना उल्लू जरूर सीधा किया है। ज्यादातर माननीय सियासत में इतने मशगूल रहे कि अपने ही निधि के पैसों को खर्च करने के लिए वक्त ही नहीं निकाल पाए। लिहाजा 385.58 करोड़ रुपए तो जस का तस पड़ा रहा। पांच जिलों ने अपने अधिकार सीमा से परे हटकर लैपटॉप पसंद माननीयों के शौक पर लाखों रुपए लुटा दिए। मगर देखने वाली बात यह रही कि यूपी के ये लैपटॉप पसंद माननीयों ने स्वास्थ्य और पीने के पानी पर खर्च करना मुनासिब नहीं समझा।
कैग की रिपोर्ट ने सूबे के माननीयों के मंसूबे और उनकी जनता के प्रति गंभीरता की कलई खोल कर रख दी है। स्कूलों पर दिल खोल कर विधायक निधि का पैसा खर्च करने में माननीयों में जबरदस्त होड़ रही। 11 जिलों के 48 विधानसभा क्षेत्रों में निधि के वार्षिक आवंटन का 40 प्रतिशत से 70 प्रतिशत तक और आठ जिलों की 25 विधानसभा क्षेत्रों में 71 से 100 प्रतिशत तक धनराशि स्कूल भवनों के निर्माण पर माननीयों ने खर्च किए। कैग ने इन विधायकों को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा है कि स्थानीय जरूरतों से परे जाकर पैसे खर्च करना इस योजना के साथ खिलवाड़ है। माननीयों ने आम आदमी की सेहत और पीने के पानी की जरूरतों को नजरअंदाज करते हुए सड़क और स्कूलों पर 82 प्रतिशत धन खर्च कर दिया। सड़कों और स्कूलों पर धन खर्च करने के पीछे मोटे कमीशन ऐंठने की ज्यादातर शिकायतें पूरे प्रदेश से प्राप्त हुई हैं।
माननीयों ने मनमानियों के सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए ऐसे काम कराए जो किसी भी दशा में मान्य नहीं थे। अनियमित तरीके अपनाकर अस्थाई काम करवाए ताकि पैसे उनकी जेबों में आते रहें। इस तरह विधायकों ने 5.20 करोड़ रुपए अनाप-शनाप खर्च कर दिए। नई सड़कें नहीं बनाई। सिर्फ सड़कों की मरम्मत में कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी दिखाई। तकरीबन 111.62 लाख रुपए गड्ढे भरने में खपा दिए। विकास कार्यो को कराने के लिए जिलों में तमाम सीडीओ को तकनीकी सलाह न मिलने से गलत कार्यदायी संस्थाएं चुनी गईं। आठ जिलों में तो 35.33 करोड़ रुपए का काम छह संस्थाओं को आवंटित कर दिया गया। इसमें अभी भी 10.98 करोड़ के काम अधूरे छूटे हुए हैं।
सबसे हैरानी वाली बात यह है कि माननीयों ने बिना मॉडल ड्राइंग के बारात घर, रैन बसेरों का निर्माण करा दिया। कई जिलों में बनाए गए प्रतीक्षालय खंडहर के रूप में खड़े हैं। उसका इस्तेमाल जानवर कर रहे हैं। इस तरह करोड़ो रुपए बारात घरों और रैन बसेरों पर बर्बाद कर दिए गए। यहीं नहीं माननीयों ने सारे कार्य बेतरतीब और बेढंगे तरीके से कराए। 9.21 करोड़ रुपए हाई मास्ट लाइटों पर तो खर्च कर दिए मगर उनको बिजली से नहीं जोड़ पाए और वे सारी लाइटें धूल खा रही हैं।
लैपटॉप पसंद माननीयों ने जिलों में दबाव डालकर अपने लिए लैपटॉप नियम विरुद्ध खरीदवा लिए। पांच जिलों में 42.56 लाख रुपए की कीमत वाले 38 लैपटॉप विधायकों ने खरीदे। मगर कार्यदायी संस्था उत्तर प्रदेश इलेक्ट्रानिक्स को सिर्फ 2.78 लाख रुपए ही भुगतान किया गया। विभागीय सचिव को माननीयों से शेष धनराशि वसूलनी है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि प्रदेश के माननीय विकास कार्यो के प्रति सजग इतना रहे कि 385.58 करोड़ खर्च ही नहीं कर पाए। खर्च वहीं किए जहां विधायक निधि का कायदे से दोहन कर सकते थे। इस प्रकार की शिकायतें कैग रिपोर्ट से उजागर हुई हैं।

Monday, 22 August 2011

मंत्री से ठेकेदार तक सब मालामाल

कैग रिपोर्ट में अधिशासी अभियंताओं व ठेकेदारों की मिलीभगत उजागर
पीडब्लूडी में पिछले चार सालों में दोनों हाथों से पैसे लुटाए गए। सड़कें भले ही न बनीं हों मगर मंत्री से लेकर इंजीनियर व ठेकेदार तक आदमी बन गए। पीडब्लूडी का कोई ऐसा सेक्शन नहीं है जहां पैसों का घालमेल न किया गया हो। प्रांतीय खंड जौनपुर में 1.75 करोड़ रुपए का घपला हुआ। ठेकेदारों की जेब में 1.51 करोड़ डाल दिया गया। ढुलाई कार्यो में दोगुनी दूरी बताकर 1.92 करोड़ रुपए भुगतान हुआ। क्षेत्रीय मुख्य अभियंताओं द्वारा करोड़ो रुपए अतिरिक्त खर्च कर दिए गए। विभाग में आमतौर पर चर्चा है कि यह सारा खेल बगैर विभागीय मंत्री के संभव नहीं है।
कैग की रिपोर्ट से साफ हो जाता है कि पीडब्लूडी में भ्रष्टाचार को लेकर न तो सरकार अपने ऊपर अंकुश लगा पाई और न ही विभागीय काम करते हुए इंजीनियरों पर कोई लगाम लगा सकी। जौनपुर जिले में इंडियन ऑयल कारपोरेशन मथुरा ने 728 इनवायसों द्वारा खंड को 10,688,350 मीट्रिक टन बिटुमिन 33.09 करोड़ लागत वाली की आपूर्ति अप्रैल 2006 से नवंबर 2009 की अवधि में की। इसमें से 1.75 करोड़ मूल्य के 43 इनवायस के 627.920 मीट्रिक टन बिटुमिन को खंडीय भंडार के लेखाओं में दर्ज नहीं किया गया था। अवर अभियंताओं ने 1.41 करोड़ मूल्य के 515.340 मीट्रिक टन बिटुमिन यानि 35 इनवायस को जो उनके द्वारा प्राप्त किया गया था उन्हें भंडार लेखाओं में दर्ज नहीं किया था। बिटुमिन की शेष मात्रा 112.580 मीट्रिक टन खंड को प्राप्त नहीं हुई थी। करीब 40 लाख रुपए का नुकसान पहुंचाया गया।
वर्ष 2007 में निविदा पत्रों में पारदर्शिता लाने के लिए मॉडल बिड डाक्यूमेंट का आरम्भ जनवरी में जारी कर प्रमुख अभियंता, जिलाधिकारियों एवं क्षेत्रीय मुख्य अभियंताओं को इसे अपनाने के निर्देश दिए गए थे। मॉडल बिड डाक्यूमेंट में यह प्राविधानित था कि ठेकेदार भारतीय तेल रिफाइनरियों से बिटुमिन की खरीद करेगा तथा भुगतान का दावा करते समय इन कम्पनियों द्वारा निर्गत मूल कनसाइनी रिसीट सर्टिफिकेट प्रस्तुत करेगा। मगर इसे तो कई खंडो में अपनाया ही नहीं गया। मॉडल बिड डाक्यूमेंट को अपनाने के स्थान पर अधीक्षण अभियंता आगरा एवं फैजाबाद ने अपने स्तर से नियमों व शर्तो में बदलाव कर लिया। जांच में यह पाया गया कि अधिशासी अभियंता निर्माण खंड प्रथम में ठेकेदारों को 1.51 करोड़ रुपए अनुचित तरीके से फायदा पहुंचाया गया। लोक निर्माण विभाग सुलतानपुर के तहत सुलतानपुर-रायबरेली मार्ग बनाने के लिए ठेकेदारों को 19.86 लाख रुपए लाभ पहुंचाया गया। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा निर्गत मानक के अनुसार प्लांट से कार्यस्थल तक वेट मिक्स व हाट मिक्स सामग्री की ढुलाई की दरों की गणना में आने एवं जाने की यात्रा शामिल होती है। इसमें भी अभियंताओं ने जबरदस्त घपला किया। शासन द्वारा फैजाबाद जनपद के तीन मार्गो के चौड़ीकरण एवं सुदृढ़ीकरण हेतु 44.63 करोड़ स्वीकृत किया गया था। फैजाबाद के अधिशासी अभियंता ने एक ठेकेदार के साथ तीन अनुबंध कर लिए और उसकी जेब में 1.29 करोड़ रुपए डाल दिए। कैग रिपोर्ट के अनुसार कानपुर के अधिशासी अभियंता ने रमईपुर-सारा-जहानाबाद मार्ग के एक से 30 किलोमीटर तक के चौड़ीकरण एवं सुदृढ़ीकरण के लिए 20.04 करोड़ की स्वीकृति प्रदान की गई। इस कार्य में अधीक्षण अभियंता ने 18.87 करोड़ का ही अनुबंध किया। डब्लूएमएम, बीएम एवं एसडीबीसी की सतह को बिछाने के लिए मिश्रण की ढुलाई में 62 लाख रुपए अधिक भुगतान कर दिया।

Sunday, 21 August 2011

पीजीआई में तो घपले ही घपले

विभागीय मंत्री लालजी वर्मा के इशारे पर हुए घपले के खेल
यूपी के सबसे बड़े अस्पताल एसजीपीजीआई में अब घोटाले परत दर परत खुलने लगे हैं। मरीजों के हितों के साथ खिलवाड़ करने का ठीकरा चिकित्सा शिक्षा मंत्री लालजी वर्मा और उनसे कदमताल कर रहे निदेशक आरके शर्मा पर फूटने भी लगा है। पता चला है कि पीजीआई में साइक्लोट्रोन मशीन खरीदने और उसको लगाने के लिए भवन बनाने में 2.5 करोड़ रुपए का भुगतान अनियमित तरीके से कर दिया गया। हॉस्पिटल रिवाल्विंग फंड का बेजा दुरुपयोग किया गया है। हॉस्पिटल इनफारमेशन सिस्टम के उच्चीकरण में 12 करोड़ रुपए की धांधली की गई है। मंत्री जी पर तो यह खुला आरोप भी लगने लगा है कि उनकी चहेती दवा कंपनियों को नियमों के विरुद्ध दवाइयों की खरीद में 20 करोड़ रुपए का घपला किया गया है।

  नेता विरोधी दल शिवपाल सिंह यादव ने पीजीआई में व्याप्त भ्रष्टाचार पर कहा कि यह सब मंत्री लालजी वर्मा के इशारे पर किया गया है। निदेशक डॉ. आरके शर्मा वही कर रहे हैं जो मंत्री जी उन्हें निर्देश दे रहे हैं। भ्रष्टाचार से अर्जित की गई बड़ी धनराशि मंत्री तक पहुंची है।
घपला नं. एक- कार्यालय सहायक निदेशक स्थानीय निधि लेखा परीक्षा ने पीजीआई में साइक्लोट्रोन एवं इसकी स्थापना के लिए भवन बनाने में 2.50 करोड़ रुपए का घपला पकड़ा है। सहायक निदेशक अबुल फजल ने कहा है कि मशीन लगाने के लिए मैं गुजरात आइसेटोप लि. द्वारा प्रस्तुत टर्न के आधार पर 2.5 करोड़ के प्रस्ताव में लागत का 20 प्रतिशत कार्या आदेश जारी करते समय तथा शेष 80 प्रतिशत बैंक गारंटी के विरुद्ध अग्रिम भुगतान किया जाना अपेक्षित था। इस प्रस्ताव का परीक्षण सिविल अभियंत्रण विभाग से कराते हुए भवन निर्माण के विभिन्न स्तरों पर भुगतान किया जाना चाहिए था। फर्म द्वारा दी गई बैंक गारंटी भी अस्पष्ट व भ्रमपूर्ण थी।
..पत्रावली की नोटशीट पर इसके फर्म के पक्ष में होने की टिप्पणी अंकित थी जबकि इसे संस्थान के पक्ष में होना चाहिए था। इस बैंक गारंटी के विरुद्ध भुगतान किया जाना अनियमित था। इस प्रकार पीजीआई पर 10 लाख रुपए की अनियमित जिम्मेदारी डाली गई और अधिकारियों द्वारा 45 लाख रुपए का भुगतान फर्म को बैंक गारंटी के विरुद्ध कर दिया गया।

पीजीआई निदेशक डॉ. आरके शर्मा 
स्थानीय निधि लेखा परीक्षा जैसी हजारों जांच हुआ करती हैं। मैं टेलीफोन पर बात नहीं करसकता हूं। आपफेस टू फेस बात करिए। मैं आपको अपने कागज दिखाऊंगा।

घपला नं. दो- हास्पिटल रिवाल्विंग फंड में बरती गई वित्तीय अनियमितताओं के सम्बंध में पुलिस अधीक्षक उत्तर प्रदेश सर्तकता अधिष्ठान, कानपुर द्वारा 28 जुलाई 2009 द्वारा पीजीआई लखनऊ से सूचना मांगे जाने के बावजूद भी सूचना उपलब्ध नहीं कराई गई। आरोप यह लग रहा है कि इस घपले को दबाने का प्रयास मंत्री लालजी वर्मा के इशारे पर निदेशक डा. आरके शर्मा द्वारा किया जा रहा है। पुलिस अधीक्षक ने इस अनियमितता में तत्कालीन निदेशक महेन्द्र सिंह भंडारी, डा. आरके शर्मा, प्रो. पीके सिंह, डा. एके बरोनिया, एके चंदोली, हरेन्द्र श्रीवास्तव, आरए यादव, जुनेद अहमद, केके श्रीवास्तव, अरविंद अग्रवाल, पीसी खन्ना, अनिल श्रीवास्तव समेत 24 लोगों के बारे में सूचना मांगी थी मगर यह नहीं दी गई। इस प्रकार इसमें 20 करोड़ के भ्रष्टाचार की चर्चा है।
 घपला नं. तीन- हास्पिटल इनफारमेशन सिस्टम के उच्चीकरण में भी करोड़ों रुपए का घपला किया गया। एचआईएस के उच्चीकरण के लिए 12 करोड़ रुपए की धनराशि मंजूर की गई थी। मंत्री लालजी वर्मा पर यह आरोप है कि उनके दबाव में यह कार्य मेसर्स एसआरआईटी बंगलौर को 2009 तक करने को दिया गया था मगर आज तक नहीं हुआ। योजना को साकार करने के लिए तीन फर्मो से निविदाएं प्राप्त हुई थीं। निविदा की शर्तो के अनुसार फर्म द्वारा साफ्टवेयर, हार्डवेयर उपकरणों की सप्लाई करना एवं स्थापना के लिए भवन निर्माण करना था।