Thursday, 25 August 2011

मंत्री, नेता और दलाल-सब हुए मालामाल

सरकारी विभागों ने खूब उड़ाए पैसे
उजागर हुई सरकारी तंत्र की संवेदनशून्यता

लखनऊ। बसपा सरकार अपने खिलाफ विरोधी दलों के बयानों से तिलमिलाती जरूर रही है मगर उसके कच्चे-चिट्ठे पर नजर डाली जाय तो इतना जरूर साफ हो जाता है कि मुख्यमंत्री और बसपानेत्री के दलित एजेंडे समेत उनके ड्रीम प्रोजेक्ट के अलावा उत्तर प्रदेश के आम आदमी के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया। जनता की जरूरतमंद जरूरतों जैसे बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार समेत तमाम क्षेत्रों में या तो पैसा लगाया नहीं गया या फिर जो धन खर्च किया गया वह मंत्रियों, बसपा नेताओं, दलालों व ठेकेदारों की जेबों में जाकर गिरा।

डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट ने कैग रिपोर्ट समेत तमाम आंकड़ों के आधार पर सरकारी विभागों की वस्तुस्थिति की सिलसिलेवार पड़ताल की तो सरकारी तंत्र की निरंकुशता व संवेदनशून्यता उजागर हुई। सूचना क्रांति के इस दौर में भी राज्य सरकार बुनियादी पहल नहीं कर पाई। यूपी में ई-गर्वर्नेस का पिछले चार साल में कहीं कोई बुनियादी ढांचा ही नहीं खड़ा हो पाया। सरकारी कामकाज की विश्वसनीयता, पारदर्शिता और दक्षता सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय ई-गवर्नेस कार्यक्रम का क्रियान्वयन मई 2006 में शुरू किया था। इसके तहत सूचना प्रौोगिकी के क्षेत्र में बुनियादी ढांचे जैसे स्टेट वाइड ऐरिया नेटवर्क, स्टेट डाटा सेंटर और सामान्य सेवा केन्द्रों की स्थापना करना था। पिछले चार सालों में सूचना एवं तकनीक की मूलभूत स्वरूप ही सरकार नहीं बना पाई। यह पहली दफे है जहां सरकार ने वित्तीय प्रशासन और नियंत्रण का कोई पालन ही नहीं किया। वित्तीय अनुशासन को खूंटी पर टांग दिया गया। परिणाम यह रहा कि भारी पैमाने पर वित्तीय अनियमितता और धोखधड़ी की शिकायतें जैसे मुख्य अभियंता मध्य गंगा सिंचाई विभाग द्वारा जरूरत से ज्यादा सीमेंट कम्प्रेस्ड टाइलों में 5.15 करोड़ फूंक दिया गया। लोक निर्माण विभाग में रोड चौड़ीकरण के नाम पर 3.68 करोड़ ठेकेदार खा गए। सिंचाई विभाग के 1.69 करोड़ रुपए कुंवरपुर एवं पांडेयपुर रजबहों पर अनावश्यक खर्च कर दिए गए। कई विभागों में तो बिना किसी औचित्य के पैसे लुटाए गए। जनकल्याण के लिए खर्च किए जाने वाले धन में विशेष सर्तकता बरतनी पड़ती है। मगर मौजूदा सरकार में इस प्रकार की सर्वाधिक शिकायतें सामने आई हैं। नियंत्रक महालेखा परीक्षक की जांच में 47.56 करोड़ रुपए के अनुचित और अधिक खर्च का मामला उजागर हुआ है। वन विभाग द्वारा बुन्देलखंड में बिना किसी योजना के वृक्षारोपण अभियान पर 40.10 करोड़ रुपए अनियमित तरीके से खर्च कर दिया गया। सिंचाई विभाग द्वारा डिक्रीटल धनराशि के विलंब से भुगतान किए जाने की वजह से निर्माण कम्पनी को 1.87 करोड़ का ब्याज अतिरिक्त भुगतान करना पड़ा। नियोजन की कमी के कारण लखनऊ जिले में मध्यम सुरक्षा कारागार के अधूरे निर्माण पर जेल प्रशासन एवं सुधार विभाग द्वारा चार करोड़ का निर्थक व्यय किया गया। लघु सिंचाई विभाग में 1.03 करोड़ लागत वाली डायरेक्ट सरकुलेटरी रोटरी रिंग मशीन 2009 से निष्क्रिय पड़ी है। मलिन बस्तियों पर खर्च किया गया 54.80 लाख रुपए किसी काम नहीं आया। लेखा परीक्षा में यह बात भी सामने उभर कर आई है कि मंत्रियों और अफसरों की लापरवाही की वजह से 58.43 करोड़ रुपए की अनियमितता उान विभाग, सिंचाई, आईआईटी रुड़की, कारागार प्रशासन, महिला कल्याण व खेल के क्षेत्रों में आई है। पशुपालन विभाग में 77.54 करोड़ रुपए का सही रूप से इस्तेमाल नहीं हो पाया।

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