Friday 25 February 2011

मालखाने में जमा हैं लोहिया और डॉ. अंबेडकर

मूर्ति प्रेम की सियासत से सरकार का मोह भंग
स्थापित नहीं हो पाईं करोड़ों की मूर्तियां

मूर्तियों पर विरोधियों द्वारा लगातार सियासत किए जाने को लेकर ही शायद अब बसपा सरकार का मूर्ति प्रेम के प्रति मोह भंग हो गया है। मूर्तियों के प्रति अचानक बदली सरकार की धारणा के परिणाम स्वरूप ही न सिर्फ बहुजन समाज को प्रेरित करने वाले बाबा साहब अंबेडकर, छत्रपति शाहूजी महराज, संत ज्योतिबा फूले, नारायण गुरु बल्कि समाजवादी आंदोलन के अगुवा डॉ. राम मनोहर लोहिया, राजनारायण और भाजपाइयों में राष्ट्रवाद की अलख जगाने वाले पंडित दीन दयाल उपाध्याय समेत तमाम महापुरुषों के करोड़ो की लागत वाली मूर्तियां संस्कृति विभाग के मालखाने में जमा हैं।

मालूम हो कि अंजुमन हिंद कमेटी की ओर से अधिवक्ता एसपी मिश्र ने संस्कृति विभाग व प्रमुख सचिव लोक शिकायत से सूचना का अधिकार के तहत करोड़ो की लागत से बनी महापुरुषों, क्रांतिकारियों व अन्य विभिन्न समाज सेवियों की मूर्तियों के बारे में जानकारी मांगी थी। श्री मिश्र ने प्रमुख सचिव को लिखे पत्र में यह कहा है कि वर्तमान में कुल निर्माणाधीन व स्थापित नहीं हुई मूर्तियों में सरकार का काफी पैसा लग चुका है। पूर्व की सरकारों में भी ऐसा होता चला आ रहा है। उसने लोक शिकायत विभाग से यह निवेदन भी किया है कि सरकार मूर्तिकारों को मूर्ति स्थापित करने के पहले 75 प्रतिशत धन भुगतान करने के बजाय 10 प्रतिशत ही करे। इससे अधिकांश पैसा फंस जाता है और मूर्तियां मालखाने में पड़ी रह जाती हैं। आवेदक ने संस्कृति विभाग के निदेशक से पूछा है कि 4 नवंबर 2008 तक जिन मूर्तियों का भुगतान 75 प्रतिशत हो चुका है, वे मूर्तियां किन-किन मालखाने में जमा हैं? मगर निदेशालय ने इसका जवाब देना मुनासिब नहीं समझा।

संस्कृति विभाग की अपर निदेशक नीलम अहलावत ने निदेशक की तरफ से मूर्तियों के भुगतान के पश्चात उन्हें न लगाने की जो सूची उपलब्ध कराई है उनमें बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की मूर्तियों पर 75 प्रतिशत धन, गौतम बुद्ध की मूर्ति पर 25 प्रतिशत, छत्रपति शाहूजी पर 67 प्रतिशत, संत ज्योतिबा फूले पर 67 प्रतिशत, नारायण गुरु पर 67 प्रतिशत धन खर्च किया जा चुका है। सूत्र बताते हैं कि यह सभी प्रतिमाएं विभाग के मालखाने में जमा हैं। इसके अलावा समाजवाद की पंक्ति से जुड़े नेताओं में डॉ. राम मनोहर लोहिया, स्व. कपरूरी ठाकुर, राज नारायण, चौधरी चरण सिंह, जनसंघ के संस्थापक सदस्य पंडित दीन दयाल उपाध्याय, पूर्व मुख्यमंत्री चन्द्रभानु गुप्ता, राहुल सांस्कृत्यायन, पूर्व राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन, हेमवती नंदन बहुगुणा, निषादराज गुह, गणेश शंकर विार्थी, सरदार बल्लभ भाई पटेल, नेताजी सुभाष चंद बोस, महाराजा बिजली पासी, जनसंघ के नेता डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, रानी अहिल्याबाई होलकर, महाराणा प्रताप, महारानी दुर्गावती, मंगल पांडेय, सम्राट चन्द्र गुप्त, शहीद चन्द्रशेखर आजाद, वीर लाखा बंजारा, अवंती बाई लोधी, लोक नायक जयप्रकाश नारायण, कैफी आजमी और टीपू सुल्तान की मूर्तियां या तो निर्माणाधीन हैं या फिर वे स्थापित नहीं हो पाई हैं। अपर निदेशक नीलम अहलावत ने आवेदक को भेजे अपने जवाब में कहा है कि जो मूर्तियां स्थापित नहीं हुई हैं उनके लिए शासन को पत्र भेजा गया है। अभी वह विचाराधीन हैं। संस्कृति निदेशक द्वारा शासन के अनुसचिव को भेजे पत्र में लिखा गया है कि आवेदक ने जो सुझाव दिए हैं उन पर वे कोई मार्गदर्शन देने का कष्ट करें।

Thursday 24 February 2011

मंच पर जमा होने लगे गठबंधन के सरपंच


मैडम की मोर्चेबंदी करने निकले छोटे चौधरी आधा दर्जन दलों को लेकर बनाया नया मंच

यूपी में आसन्न विधानसभा चुनाव देख अब फिर से सियासत के मंच पर गठबंधन के सरपंच जमा होने लगे हैं। गठबंधन के नए और पुराने सरपंच एक दूसरे के हाथ में हाथ डालकर सूबे में अपनी-अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को खूंटी पर टांग देने के लिए तैयार हो गए। राजनीति की एक डाल से दूसरे डाल पर उछल-कूद में महारत हासिल कर चुके छोटे चौधरी अजित सिंह ने बुधवार को यहां तक कह डाला कि सिर्फ एक गुंजाइश यह नहीं है कि अब मायावती को बचाया जाय बाकी हर हथकंडे के लिए वे तैयार होकर आए हैं।

छोटे चौधरी ही क्यों? पीस पार्टी के डॉ. अय्यूब, इंडियन जस्टिस पार्टी के डॉ. उदित राज, भारतीय समाज पार्टी के ओम प्रकाश राजभर, भारतीय लोकहित पार्टी, अति पिछड़ा महासंघ, जनवादी पार्टी व उदय मंच के नेता लखनऊ के प्रेस क्लब में एक नया मंच लेकर पत्रकारों के सामने मुखातिब हुए। छोटे चौधरी समेत अपने-अपने गोल के हर चौधरियों ने कहा कि न तो उनमें कोई फासला है और न ही उनके कारवां में शामिल होने के लिए दूसरों से कोई फासला बनाया जाएगा। रालोद मुखिया को कांग्रेस से मुंह की खाने के बाद भी उन्हें न तो सोनिया की शरण में जाने से गुरेज है और न ही अब सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव से हाथ मिलाने में किसी प्रकार की कोई दिक्कत है। उधर कल तक मुलायम से किनारा कसने वाले और अमर सिंह के साथ गलबहिया करने वाले पीस पार्टी के नेता अय्यूब अब सपा मुखिया से बातचीत करने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा, अमर सिंह पहले अपनी पार्टी बनाएं बाद में बात होगी। कल्याण सिंह से निकट भविष्य में कोई सहयोग लेने की इच्छा नहीं है। सपा से बात करने के लिए हमारे रास्ते खुले हैं। दरअसल हर चुनाव के ऐन वक्त पर सभी छोटे चौधरियों का जमावड़ा अब आम बात हो गई है। पिछले चुनावों में इनका हश्र बहुत बुरा रहा है। राजनाथ सिंह ने भी अजित सिंह, सोनेलाल पटेल, ओमप्रकाश राजभर समेत तमाम वोट काटने वाले नेताओं को भाजपा का शंख बजाने के लिए एक साथ जोड़ा था मगर सबके सब डपोरशंख ही साबित हुए। अबकी बार अजित सिंह माया मेमसाहब के किले की मोर्चेबंदी करने निकले हैं। उन्होंने अपने मोर्चे के आकार और प्रकार को समझाते हुए कहा कि एक साथ आए सभी दल मकसद लेकर आए हैं। हमने एक मंच बना लिया है। अगले हफ्ते बैठकर सारी व्यूह रचना कर लेंगे। जो समझौता हम-सबने मिलकर बनाया है उसे व्यापक बनाएंगे। उसी के हिसाब से सीटें भी तय की जाएंगी। अगले हफ्ते पूरा कार्यक्रम बना लिया जाएगा। वैचारिक वैमनस्यता पर वे बोले कि गठबंधन में राजनीतिक इच्छाओं का समायोजन कर लिया जाएगा। कई गठबंधनों के अनुभव के आधार पर वह यह कहने से भी नहीं चूके कि साथ आए तमाम राजनीतिक इच्छाओं का नेतृत्व करना लगभग टेढ़ी खीर के समान है। यहां तो मैन मैनेजमेंट करना पड़ता है। अंत में बड़े दलों सपा या कांग्रेस के साथ गठबंधन के सवाल पर छोटे चौधरी ने कहा कि अभी किसी से गंभीर वार्ता नहीं हुई है। उन्होंने इशारा किया कि पहले अपना मोर्चा तो गंभीर कर लें फिर गंभीरता से उनसे गांठ बांधने की सोंचे।

Wednesday 23 February 2011

25 रुपए नहीं दिए तो दलितों की उम्र घटा दी!

मामला खुलने पर अफसरों ने की लीपापोती
18 दलितों में से 15 महिलाओं की उम्र घटाने के आरोप

बसपा सरकार में ही दलित एजेंडे की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। दलित उत्पीड़न की शिकायतों को अफसर दबाने में जुटे हैं ताकि बात मुख्यमंत्री मायावती और उनके राजनीतिक विरोधियों तक न पहुंच सके। लखनऊ स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र उतरठिया में वृद्धावस्था पेंशन की खातिर उम्र सत्यापित कराने गए दलित के साथ 25 रुपए रिश्वत के लिए अभद्रता की गई बल्कि फार्मासिस्ट ने दलितों की उम्र घटाने की धमकी दे डाली। हद तो तब हो गई जब स्वास्थ्य केन्द्र के डाक्टर ने 18 बुजुर्ग दलितों की उम्र कम कर दिया। पीड़ित दलित ने जब इसकी शिकायत प्रमुख सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य से की तो पूरे स्वास्थ्य महकमें में हड़कम्प मच गया तथा अफसर मामले की लीपापोती में जुट गए।

दलितों की उम्र सत्यापन में रिश्वत लेने और 25 रुपए के लिए दलित के साथ अभद्रता का मामला आरटीआई के जरिए सामने आया है। लखनऊ निवासी दलित दर्शन रावत ने प्रमुख सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य को दिए आरटीआई के तहत शिकायती पत्र में कहा कि मैं 18 बुजुर्ग दलितों की उम्र सत्यापन के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र उतरठिया गया। अस्पताल में मौजूद फार्मासिस्ट ने 25 रुपए रिश्वत के लिए अभद्रता की। रुपए न देने पर नेतागीरी निकालने और उम्र घटाने की धमकी दी। यही नहीं अस्पताल के डाक्टर ने 18 बुजुर्ग दलितों क्रमश : जगराना रावत, राम केवल रावत, जुगनू रावत, रामावती रावत, श्रीमती कुसमा रावत, अयोध्या रावत, नन्हकई रावत, श्रीमती फुलवसा रावत, श्रीमती शारदा रावत, श्रीमती मैका रावत, श्रीमती शांति रावत, श्रीमती कलावती रावत, श्रीमती चंचल रावत, श्रीमती रूपरानी रावत, श्रीमती सुदामा रावत, श्रीमती मैका रावत, श्रीमती रामवती रावत तथा राजाराम रावत की उम्र कम दर्शा दिया। प्रमुख सचिव से शिकायत पर पूरे विभाग में हड़कम्प मच गया। सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र सरोजनीनगर के चिकित्सा अधीक्षक से लेकर सीएमओ तथा सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य तक के अफसर लीपापोती में जुट गए। आनन-फानन में जांच आख्या तलब की गई। सरोजनीनगर के चिकित्सा अधीक्षक ने सीएमओ को भेजी अपनी रिपोर्ट में कहा कि अभद्रता के आरोपी फार्मास्टि व शिकायतकर्ता दर्शन रावत समेत श्रीमती मैका रावत तथा शांति रावत को बुलाया गया। फार्मास्टि राम नरेश ने बताया कि उम्र सत्यापन के लिए कोई धन नहीं मांगा गया, न उम्र घटाया गया तथा न ही अभद्रता की गई। जबकि दलित दर्शन रावत का कहना है कि उसने इस तरह का कोई बयान नहीं दिया है। लीपापोती में जुटे अफसर अपने ऊपर के अधिकारियों को गलत रिपोर्ट करते रहे। लखनऊ के सीएमओ ने सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य को पत्र लिख कर कहा कि इस घटना की जांच सरोजनीनगर सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र के अधीक्षक द्वारा तीन चिकित्सकों डा. एके मिश्रा, डा. एसके वर्मा और डा. शिप्रा की संयुक्त टीम से कराई गई। जांच में 18 महिलाओं को बुलाया गया जिसमें दो महिलाएं ही उपस्थित हुईं। महिलाओं की उम्र 60 वर्ष से कम पाई गई। दर्शन यादव ने भी लिखकर बयान दिया है कि फार्मासिस्ट द्वारा उनके साथ कोई अभद्र व्यवहार नहीं किया गया है। अंत में चिकित्सा अनुभाग-सात के अनुसचिव जितेन्द्र राम त्रिपाठी ने तीन फरवरी को पूरे विवाद का पटाक्षेप करते हुए कहा कि चूंकि दर्शन रावत ने लिखकर कहा कि उनके साथ न तो अभद्रता की गई और न ही 25 रुपए रिश्वत मांगे गए। मगर इसके ठीक विपरीत दलित का कहना है कि उसने इस प्रकार कोई बयान नहीं दिया है।

बंटाढार हो रहे पैसों पर कड़ा पहरा

केन्द्र ने लागू न करने पर अनुदान न देने की दी चेतावनी
एक वाउचर करेगा सारी मनमानियों का हिसाब-किताब
पंचायतीराज विभाग में मॉडल एकाउंटिंग सिस्टम लागू

यूपी में बंटाढार हो रहे अरबों रुपयों पर केन्द्र सरकार ने कड़े पहरे का बंदोबस्त कर दिया है। इसकी शुरुआत उसने राज्य की पंचायतीराज संस्थाओं से की है। केन्द्रीय पंचायतीराज विभाग ने प्रदेश की सरकार से साफ-साफ कह दिया है कि 13 वें वित्त आयोग की संस्तुतियों के अनुसार उसे निष्पादन अनुदान तभी मिलेगा जब वह विभाग में मॉडल एकाउंटिंग सिस्टम लागू करेगी। इस सिस्टम में एक ऐसा बाउचर होगा जिसमें विभागीय योजनाओं की मास्टर फाइल, बैंकों में पंचायतीराज के खाते, खातेवार जमा धनराशि समेत तमाम वित्तीय जानकारियां होंगी ताकि राज्य सरकार के अफसर कोई गड़बड़ी न कर सकें। चूंकि केन्द्र सरकार ने अरबों रुपयों के लिए प्रदेश सरकार के सामने यह शर्त रख दी है तो अब इसे मानना ही पड़ेगा क्यों कि यह चुनावी वर्ष जो है? राज्य सरकार भी जान रही है कि कहना नहीं मानेंगे तो आने वाला धन भी हाथ नहीं लगेगा। दरअसल केन्द्र सरकार ने मॉडल एकाउंटिंग सिस्टम एवं प्रिया सॉफ्ट की शर्त रखकर अपने पैसों पर कड़ा पहरा बैठा दिया है ताकि राज्य सरकार के अफसर पैसों की मनमानी न कर सकें। क्या है मॉडल एकाउंट सिस्टम : केन्द्र ने इसके तहत प्रिया सॉफ्ट नामक एक यूजर फ्रेंडली सॉफ्टवेयर तैयार कराया है जिसके द्वारा पंचायतीराज संस्थाओं के लेखों को स्पष्ट, शुद्ध एवं त्वरित करने के साथ-साथ समय-समय पर शासन, महालेखाकार एवं भारत सरकार द्वारा साविधिक रिपोर्ट एवं र्टिन्स तथा अन्य वित्तीय सूचनाएं मात्र एक बाउचर में प्राप्त की जा सकेंगी। इससे सारे के सारे लेखे को शुद्ध किया जा सकेगा तथा इसमें पारदर्शिता लाई जा सकेगी। राज्य सरकार के अफसरों की मनमानी को रोका जा सकेगा। केन्द्र सरकार के सूत्रों के मुताबिक पंचायतों को विश्वसनीय बनाने के लिए प्रिया सॉफ्ट एक वेब आधारित एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर है। जिसके सम्बंध में राष्ट्रीय व प्रदेश में कार्यशालाएं व गोष्ठियां आयोजित कर इसमें सुझाव मांगे गए थे। इसे एनआईसी दिल्ली द्वारा तैयार किया गया है। प्रिया सॉफ्टवेयर के माध्यम से तैयार किए जाने वाले लेखों से प्रदेश की 51,914 ग्राम पंचायतें, 821 क्षेत्र पंचायतें एवं 72 जिला पंचायतों में विभिन्न योजनाओं को लागू करने, उनका अनुश्रवण व पर्यवेक्षण के द्वारा उच्चकोटि की जानकारी मिल सकेगी। यही नहीं सार्वजनिक डोमेन पर डेटा उपलब्ध होने पर सूचना के अधिकार के तहत आम आदमी भी इसे देख सकेगा। देश के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने इसे हरी झंडी दिखाते हुए कहा है कि यह सॉफ्टवेयर अत्यंत उपयोगी है।

इस साफ्टवेयर में पंचायतीराज संस्थाओं को योजनाओं की मास्टर फाइल, जिन बैंकों में पंचायतीराज संस्थाओं के खाते संचालित हैं, प्रत्येक बैंक में योजना एवं खातेवार जमा धनराशि का पहली अप्रैल 2010 से बचा पैसा, कर्मचारियों एवं विभिन्न कार्यदायी संस्थाओं को भुगतान किए गए अग्रिम धन का विवरण तथा बैंकवार चेक बुक का विवरण देना होगा। मगर संभव है कि राज्य सरकार के अफसर यहां इन प्रमुख प्रविष्टियों का डेटा उपलब्ध कराने में गड़बड़ी करें अन्यथा केन्द्र सरकार इन तकनीकी प्राविधानों को लागू करने में सफल हो गई तो भविष्य में वह अरबों रुपयों के खर्च का लेखा-जोखा का कारगर उपाय कर ले जाएगी। पंचायतीराज निदेशक ने समस्त जिला पंचायतराज अधिकारियों को लिखे पत्र में कहा है कि माडल एकाउंटिंग सिस्टम व प्रिया सॉफ्ट को 15 जनवरी 2011 से जिला पंचायतों में, 30 जनवरी से क्षेत्र पंचायतों में तथा 15 फरवरी से ग्राम पंचायतों में लागू किए जाने का शासनादेश निर्गत कर दिया है।

Monday 21 February 2011

सिंगापुर की सैर कर रहे सीआईसी साहब

अक्टूबर में 10 दिन के लिए यूरोपीय देशों के दौरे पर गए थे
घुमक्कड़ आदतों के चलते फिर चर्चा में
सूचना आयोग में 32 हजार से भी ज्यादा मामले विचाराधीन

प्रदेश के मुख्य सूचना आयुक्त रणजीत सिंह पंकज कभी विवादास्पद आदेशों तो कभी सूचना आयुक्तों से मनमुटाव के चलते विवादों में घिरे रहते हैं तो कभी अपने खराब आचरण के चलते निंदा का शिकार होते हैं तो कभी अपने घुक्कड़ी आदतों के चलते सूचना आयोग में चर्चा का विषय बने रहते हैं। इन दिनों सीआईसी साहब सिंगापुर के सैर-सपाटे पर हैं तो चर्चा का केन्द्र बने हुए हैं।

जब से सीआईसी के पद पर रणजीत सिंह पंकज आसीन हुए हैं वे वादकारियों के बजाय अफसरों का बचाव करने से लगातार कई शिकायतकर्ताओं की आलोचनाओं से विवादों में रहे हैं। यही नहीं साहब कभी-कभी तो गुस्से से इतना आग बबूला हो जाते हैं कि अप्रत्याशित हरकत कर बैठते हैं। आयोग के विधि अधिकारी रहे और सेवानिवृत्त न्यायाधीश नियाज अहमद ने पंकज के अमर्यादित आचरण को लेकर गंभीर आरोप लगाए थे। अपने आरोपों में सेवानिवृत्त न्यायाधीश ने कहा था कि सीआईसी से मिलने जब वे उनके कक्ष में मिलने गए तो इतने खफा हुए कि अपने सुरक्षा कर्मियों से उन्हें नीचे फेंक देने का आदेश दे डाला था। श्री अहमद ने इसकी शिकायत प्रदेश के राज्यपाल व हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार तक की थी। सीआईसी के इस आचरण की काफी आलोचना हुई थी।

पंकज अपने घुमक्कड़ आदतों के चलते भी चर्चा में बने रहते हैं। सूचना आयोग में 32 हजार से भी ज्यादा मामले विचाराधीन हैं। शिकायतकर्ताओं को सूचनाएं न मिलने की शिकायतों की भरमार है। बावजूद इसके वे सैर-सपाटे के लिए वक्त निकाल ही लेते हैं। अभी अक्टूबर में सात समंदर पार 10 दिन कई यूरोपीय देशों का चक्कर काट आए थे कि पिछले 13 फरवरी को फिर एक हफ्ते के लिए सिंगापुर घूमने निकल गए। आयोग के सूत्रों के अनुसार सीआईसी नितांत निजी यात्रा पर सिंगापुर गए हैं। इसके लिए उन्होंने प्रदेश के राज्यपाल से अनुमति भी ले ली है। बताते हैं कि पंकज जब भी देश के बाहर घूमने-फिरने या किसी अन्य कारणवश जाते हैं तो सूचना आयोग के किसी कर्मचारी तक को इसकी भनक तक नहीं लगती।

पिछली बार ही किसी को कानोंकान खबर तक नहीं हुई थी पंकज सात समंदर पार घूम आए। आयोग के ज्यादातर सूचना आयुक्त भी सीआईसी साहब के विदेश यात्रा से बेखबर रहे। जिन सूचना आयुक्तों को साहब के परदेश घूमने की जानकारी थी, वे डर के मारे चुप्पी साधे रहे। पिछली बार नवंबर में सात समंदर पार बेल्जियम, ब्रिटेन, नीदरलैंड और इटली तक सैर कर आए थे। करीब 10 दिन घूमने के बाद पंकज 19 अक्टूबर को स्वदेश वापस आ गए थे। वे पांच अक्टूबर को विदेश यात्रा पर गए थे। मगर उनकी पूरी परदेश यात्रा की खबर उस समय भी आयोग के ज्यादातर सूचना आयुक्तों को नहीं थी। यहां तक आयोग के सचिव योगेन्द्र सिंह को भी उनके बाहर भ्रमण की जानकारी नहीं थी। सरकारी यात्रा पर जाने के सम्बंध में पूछने पर एक सूचना आयुक्त ने कहा कि आयोग के पास इतना पैसा तो नहीं है कि कोई सात समंदर पार या कहीं और घूम सके।

आयोग में कर्मचारी इन दिनों पंकज से काफी नाराज बताए जाते हैं। कर्मचारियों का कहना है कि वे आयोग की समस्याओं को दरकिनार कर सैरसपाटा कर रहे हैं। 32 हजार से भी ज्यादा वाद आयोग में लम्बित हैं। एक-एक कर्मचारी चार-चार कर्मचारियों के बराबर काम कर रहा है। जहां 140 कर्मचारियों का स्टाफ होना चाहिए वहां 60 कर्मचारियों से ही काम चलाया जा रहा है। आयोग में स्थानाभाव है। सूचना आयुक्त के पास जहां सात कर्मचारियों का स्टाफ होना चाहिए वहां वह दो या तीन कर्मचारियों से ही काम करवाया रहा है।

यूपी और यूपीए में जगह तलाश रहे छोटे चौधरी

सपा व कांग्रेस के साथ गठजोड़ का दिया संकेत
गठबंधन का तिनका फेंक गए रालोद मुखिया

किसान नेता चौधरी चरण सिंह की राजनीतिक जमीन पर हल चला रहे छोटे चौधरी अजित सिंह चुनाव करीब आते ही सत्ता के खांचे में फिट बैठने की गुंजाइश तलाशने लगते हैं। अब जबकि विधानसभा चुनाव फिर सामने है तो छोटे चौधरी की छटपटाहट जोर मारने लगी है। गुरुवार को लखनऊ आए रालोद मुखिया सूबे में चुनाव पूर्व गठबंधन को यह कह कर हवा दे गए कि उनके पसंदीदा सियासी गोट में बसपा और भाजपा फिट नहीं बैठ रहे हैं।

मतलब बिलकुल साफ है। छोटे चौधरीे सपा और कांग्रेस की ओर इशारा कर रहे हैं। दोनों में से किसी के साथ गांठ बंध जाएगी तो उन्हें किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं है। वह जिस प्रकार का राजनीतिक ढर्रा अपने शुरुआती दिनों से अपना रखे हैं उससे वे हमेशा फायदे में ही रहे हैं। इस बार वे पहले से ही डबल स्टैंडर्ड गेम का तानाबाना बुनने में लगे हैं। दरअसल तिनका फेंक राजनीति के माहिर छोटे चौधरी को मालूम है कि सपा के साथ गठबंधन का जुगाड़ लग गया तो कदाचित सरकार बनने पर फायदा मिलेगा ही और कांग्रेस उनके जाल में फंस गई तो यूपी में न सही यूपीए सरकार में जाने का रास्ता तैयार हो जाएगा। इसी मंसूबे के साथ राजधानी लखनऊ पधारे अजित सिंह गुरुवार को जब पत्रकारों से रूबरू हुए तो यह कह कर अपनी बात शुरू की कि आप लोग गठबंधन के बारे में जानने को उतावले होंगे। छोटे चौधरी अपने उतावलेपन को पत्रकारों पर थोपते हुए बोले आप लोग बयानबाजी को लेकर कयास न लगाएं। गठबंधन को लेकर अभी किसी से गंभीर वार्ता नहीं हुई है। किसी से मुलाकात भी नहीं। यहां तक कि टेलीफोन पर भी नहीं। इतनी सफाई के बाद फिर पलटते हुए उन्होंने कहा कि लोग मायावती से निजात पाना चाहते हैं। अब एक अदद विकल्पों की तलाश की दरकार है। बसपानेत्री को हराने में जो सक्षम होगा जनता उसी के साथ लामबंद होगी। अजित सिंह के इस वक्तव्य के पीछे का निहितार्थ नितांत राजनीतिक और अपने लिए जगह तलाश करने वाला है कि मायावती के साथ आने का उनका कोई मतलब नहीं तथा भाजपा इस लड़ाई से कोसों दूर है। बची सपा और कांग्रेस के जरिए चुनावी वैतरिणी पार करने का इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा। चार साल तक खामोशी साधे रहने के बाद अचानक सक्रिय हुए रालोद नेता यह कह कर भी चुनावी ताल ठोंक रहे हैं कि पश्चिमी यूपी में बसपा की लड़ाई उनसे ही है। इसलिए वे सीटों के मोल-तोल में अपने संभावित गठजोड़ वाले दलों को रालोद की अहमियत समझा रहे हैं। उन्होंने किसानों की बात नहीं की। किसानों की समस्याओं पर नहीं बोले। न ही हरित प्रदेश ही उनके मुंह से निकला। बस मायावती पर औरों की तरह हमला बोले और कहा कि माया सरकार का इकबाल खत्म हो गया है।

महाधिवक्ता ने छीन ली महिला की रोजी

यूपी के महाधिवक्ता पर भी सत्ता का नशा सवार है। वकील साहब अपने दफ्तर में जिसे चाहते हैं उसे नौकरी करने देते हैं और जिन्हें नहीं चाहते उसका कानूनी बंदोबस्त इस तरह कर देते हैं ताकि वह बाद में कानून की भाषा भी न बोल पाए। महाधिवक्ता ने हाईकोर्ट लखनऊ बेंच के अपने दफ्तर में छह साल से कार्यरत नैत्यिक श्रेणी की लिपिक श्रीमती आदर्श गुप्ता को नौकरी से निकाल दिया। महिला कर्मचारी ने राज्य सूचना आयोग में नौकरी से निकाले जाने के औचित्य पर सवाल उठाते हुए इंसाफ की गुहार लगाई है।

हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच स्थित महाधिवक्ता दफ्तर में कार्यरत रही महिला ने बताया कि 24 सितंबर 2003 को तत्कालीन महाधिवक्ता वीरेन्द्र भाटिया ने दिए नियुक्ति पत्र में लिखा था कि श्रीमती मिथिलेश कुमारी तिवारी की प्रतिनियिुक्ति पर बाल विकास एवं पुष्टाहार में जाने से रिक्त हुई नैत्यिक श्रेणी लिपिक के लिए आदर्श गुप्ता की नियुक्ति उनके वापस आने तक कार्य करने की अनुमति प्रदान की जाती है। इस दौरान उसे महंगाई व अन्य भत्ते देय होंगे। उसे वर्तमान महाधिवक्ता ज्योतीन्द्र मिश्र ने पांच फरवरी 2010 को नोटिस देकर यह कहते हुए नौकरी से निकाल दिया कि श्रीमती आदर्श गुप्ता की निुयक्ति बिना चयन प्रक्रिया के तहत हुई थी। इसके लिए विज्ञापन भी नहीं निकाले गए थे। मगर शिकायतकर्ता का कहना है कि महाधिवक्ता ने 27 फरवरी 2007 को ही इलाहाबाद स्थित हाईकोर्ट के शासकीय अधिवक्ता के दफ्तर में श्रीमती मिथिलेश कुमारी तिवारी को नैत्यिक श्रेणी की लिपिक पद पर कार्यभार ग्रहण करवा दिया था। आदर्श गुप्ता ने सवाल खड़ा करते हुए कहा कि नियुक्ति पत्र के हिसाब से उसे 27 फरवरी 2007 को क्यों नहीं निकाला गया? तीन साल अधिकनौकरी क्यों करने दी गई? साथ ही राज्य सूचना आयोग में दाखिल अपने वाद में आदर्श गुप्ता ने कहा है कि बाल विकास एवं पुष्टाहार में प्रतिनियुक्ति पर गई श्रीमती मिथिलेश तिवारी के वापस आकर कार्यभार ग्रहण करने के बारे में उसे सूचना नहीं दी गई। सूचना के कानून के तहत दिए अपनी शिकायत में उसने यह भी कहा है कि वर्ष 2002 के शासनादेश में यह अंकित है कि किसी भी सरकारी कर्मचारी की प्रतिनियुक्ति तीन वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए। किसी विषम परिस्थिति में ही वित्त विभाग की सहमति के बाद उसे दो वर्ष के लिए बढ़ाया जा सकता है और पांच वर्ष के बाद मुख्यमंत्री के आदेश के बिना प्रतिनियुक्ति का कार्यकाल नहीं बढ़ाया जा सकता है जबकि मिथिलेश की प्रतिनियुक्ति कुल अवधि पांच वर्ष छह माह और 29 दिन हो गई है। आदर्श गुप्ता ने पूछा है कि किन विषम परिस्थितियों में उसका कार्यकाल बढ़ाया गया है? कार्यकाल बढ़ाए जाने से संबंधित अनुमति किस अधिकारी द्वारा प्रदान की गई है? इस संबंध में डीएनए ने जब महाधिवक्ता ज्योतीन्द्र मिश्र से उनके मोबाइल 9415016021 पर बात करने की कोशिश की तो वह स्विच ऑफ मिला। उनके आवासीय व कार्यालय के दूरभाष पर भी सम्पर्क नहीं हो पाया।

मौत के खेल में किसानों का इस्तेमाल


हार्मोन्स की सूई से खाद्य एवं औषधि विभाग ने पल्ला झाड़ा
ऑक्सीटोसिन के लिए हार्टीकल्चर पर ठीकरा फोड़ा


यूपी में मिलावटखोरों का धंधा तो फल फूल रहा ही है, कच्ची सब्जियों को कृत्रिम रंग से रंग कर खुलेआम हर बाजारों में बेंचा जा रहा है। यही नहीं गहरी नींद में सो रही सरकार की लाचारी का फायदा उठाते हुए बड़े सौदागर सब्जियों में हार्मोन्स की सूई लगाकर पैदावार बढ़ाने में किसानों का इस्तेमाल कर रहे हैं। कृषि और हार्टीकल्चर विभाग की उदासीनता से जहर के सौदागरों का हौंसला बुलंद है तो खा एवं औषधि प्रशासन विभाग सब्जियों में ऑक्सीटोसिन के इस्तेमाल से पल्ला झाड़ लिया है। वह कह रहा है कि सब्जियों में हार्मोन्स की सूई लगाने को रोकने की जिम्मेदारी हार्टीकल्चर विभाग की है।

हरी सब्जियां ग्रीन प्वाइजन बन चुकी हैं। सरकार इससे बेतकल्लुफ है। जहर के सौदागरों ने लौकी, गाजर, खीरा, करैला, शलजम, टमाटर से लेकर यहां तक कि पपीते में ऑक्सीटोसिन का इंजेक्शन लगाकर पैदावार बढ़ाने और उसके प्राकृतिक आकार में बदलाव पैदा कर दिया है। जहर का यह कारोबार खुलेआम हो रहा है। इसके अलावा सब्जियों को कृत्रिम रंग से रंगने का काम भी बड़ी-बड़ी मंडियों में चल रहा है। आरटीआई ऐक्टिविस्ट सलीम बेग द्वारा पूछे गए सूचना का अधिकार के तहत खा एवं औषधि प्रशासन विभाग के आयुक्त ने स्वीकार भी किया है कि प्रदेश में कृत्रिम रूप से रंगी गई कच्ची सब्जियों के 124 नमूने संग्रहीत कर जांच कराई गई। जांच में पांच नमूने अखा रंगों से रंगे हुए पाए गए। खा आयुक्त ने बताया कि अखा रंगों से रंगी पाई गई पांच नमूनों की सब्जियों के विक्रेताओं को दंडित कराने के लिए खा अपमिश्रण निवारण अधिनियम के तहत मुकदमा सक्षम न्यायालय में दायर कराए गए। दरअसल जहर के बड़े कारोबारियों के हाथ इतने लम्बे हैं कि खा एवं औषधि प्रशासन विभाग उन्हें पकड़ने की हिमाकत नहीं कर पाता है। विभाग सिर्फ छापेमारी के जरिए उसे ही पकड़ रहा है जो उनके हाथों की कठपुतली बने हुए हैं। सब्जियों में हार्मोन्स की सूई लगाने जैसे अपराध पर भी विभाग ने अपना पल्ला झाड़ लिया है। डीएनए ने जब खा एवं औषधि प्रशासन विभाग के विशेष सचिव शिव श्याम मिश्रा से इस बाबत पूछा तो वे हार्टीकल्चर विभाग पर इसका ठीकरा फोड़ने लगे। श्री मिश्र ने कहा कि पहले आप हार्टीकल्चर से यह पूछो कि वे सब्जियों, फलों व अन्य शाक-भाजी के विकास में क्या प्रमोट करते हैं? वह यूरिया है या अन्य फर्टिलाइजर? अगर सब्जियों की पैदावार में ऑक्सीटोसिन इस्तेमाल किया जा रहा है तो इसे रोकने की जिम्मेदारी उनकी है। हमारी नहीं। उधर विशेष सचिव ने कहा कि हमने 29 लाख ऑक्सीटोसिन के डोज छापेमारी के दौरान पकड़े हैं। बीते नौ महीने में 76 को जेल भेजा है और 89 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है। मगर खा एवं औषधि प्रशासन विभाग ने सब्जियों में हार्मोन्स की सूई लगाकर पैदावार बढ़ाने सम्बंधी किसी ऐसी शिकायत से साफ इनकार कर दिया है। मगर जिस प्रकार कृत्रिम रूप से रंगी गई कच्ची सब्जियों को बेचने तथा हार्मोन्स की सूई के जरिए सब्जियों की पैदावार बढ़ाई जा रही है उससे घातक बीमारियां हो सकती हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. भगवान सिंह ने बताया कि रंगी गई सब्जियों से चर्म रोग, अल्सर तथा पाचन तंत्र खराब हो जाता है। आंतों पर प्रभाव पड़ता है। कैंसर की संभावना बढ़ जाती है।

Wednesday 16 February 2011

पंचायत सचिवालयों के लिए पैसा नहीं

भारत निर्माण राजीव गांधी सेवा केन्द्र बनाने का भी प्रस्ताव
मनरेगा के पैसों से 37 जिलों में बनेंगे सचिवालय

मनरेगा के पैसों ने राज्य सरकार की लाज बचा रखी है अन्यथा उसकी अधिकांश योजनाएं पानी मांगती फिरतीं। हालत यह हो गई है कि जब किसी विभाग का अफसर योजनाओं को अमलीजामा पहनाने के लिए पैसों का रोना रोता है तो उसे निश्चिंत करते हुए कहा जाता है मनरेगा है ना, काहे परेशान हो। अब पंचायतीराज विभाग को ही ले लीजिए, ग्रामसभाओं में पंचायत सचिवालय बनाने के लिए सरकार के पास चवन्नी भी नहीं है। 35 जिलों में बीआरजीएफ के पैसों से पंचायत सचिवालय बनाए जा रहे हैं। बाकी बचे 37 जिलों में पंचायत सचिवालय बनाने से जब विभाग ने हाथ खड़े कर दिए तो सरकार ने कहा कि इन जिलों में मनरेगा के पैसों से पंचायत सचिवालय बनाए जाएंगे। पंचायतीराज विभाग ने इसका प्रारूप भी तैयार कर लिया है।

पंचायतीराज विभाग के सूत्रों के अनुसार अगर केन्द्र का पैसा न हो तो अधिकांश योजनाएं सिर्फ फाइलों में ही दबी रह जाएं। गांव के विकास और पंचायतों को स्वशासन इकाई के रूप में विकसित करने का दावा करने वाली राज्य सरकार के पास धेला भी नहीं है। पहले पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि के पैसों के बलबूते 35 जिलों में पंचायत सचिवालय बनाने की योजना शुरू की अब बाकी बचे 37 जिलों में मनरेगा के पैसों से 9271 ग्राम पंचायतों में पंचायत सचिवालय बनाए जाने की तैयारी जोरशोर से चल रही है। मालूम हो कि प्रदेश में कुल 52,914 ग्राम पंचायतें हैं जिनमें से 35 बीआरजीएफ जिलों में ग्राम पंचायत भवन नहीं हैं। यहां पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि से ग्राम पंचायत सचिवालयों का निर्माण किया जा रहा है। बीआरजीएफ जिलों में 2000 ग्राम सचिवालय बनने हैं। सूत्र बताते हैं कि प्रथम चरण में प्रदेश की 5000 या उससे अधिक जनसंख्या की ऐसी ग्राम पंचायतें जिनमें भवन नहीं हैं वहां 10 लाख रुपए की लागत से भारत निर्माण राजीव गांधी सेवा केन्द्रों का निर्माण किया जाएगा और जिन ग्राम पंचायतों में पंचायत भवन तो हैं किंतु वे ग्राम सचिवालय के लिए पर्याप्त नहीं हैं वहां मनरेगा के पैसों से ग्राम सचिवालय बनाए जाएंगे। जानकारी के अनुसार पंचायतीराज विभाग ने गैर बीआरजीएफ जिलों में पंचायत सचिावालय बनाए जाने की रूपरेखा तैयार कर ली है। मनरेगा के तहत उपलब्ध धनराशि से ग्राम सचिवालय भवन का निर्माण किया जाएगा। इसका दायित्व ग्राम्य विकास विभाग पर होगा। इसके लिए योजना अनुश्रवण समितियों का गठन किया जाएगा। राज्य स्तर पर मनरेगा के उपायुक्त अनुराग यादव, निदेशक पंचायतीराज व सयुंक्त निदेशक पंचायत राज समिति में होंगे तथा जिला स्तर पर मुख्य विकास अधिकारी व जिला पंचायतराज अधिकारी समिति का जिम्मा सभांलेंगे। इस प्रकार गैर बीआरजीएफ जिलों में 9271 ग्राम पंचायतों में भारत निर्माण राजीव गांधी सेवा केन्द्रों के निर्माण के लिए भी मनरेगा के पैसों से बनाने का प्रस्ताव है। इसके लिए पंचायतीराज विभाग ने 927.10 करोड़ रुपए प्राविधान किए जाने का भी प्रस्ताव तैयार किया है। मनरेगा के पैसों से गैर बीआरजीएफ जिलों में पंचायत सचिवालय बनाए जाने पर पंचायतीराज निदेशक डीएस श्रीवास्तव ने कुछ भी बताने से इनकार किया तथा संयुक्त निदेशक से बात करने को कहा मगर संयुक्त निदेशक सुघन चंद्र चंदोला ने बताया कि ऐसी कोई जानकारी उनके पास नहीं है।

Tuesday 15 February 2011

दलित एजेंडे पर बरसा रहे डंडे

आयुर्वेद विभाग दलित सुविधाओं से अछूता
दलितों की उपेक्षा से अनजान हैं प्रमुख सचिव

कहने को सूबे में दलित एजेंडे पर काम करने वाली सरकार है मगर कई एक विभाग ऐसे हैं जहां सरकारी नुमाइंदे खुद यहां डंडे बरसाने से नहीं चूक रहे हैं। मसलन दलितों के विकास के नाम पर सरकार में ऊंचे-ऊंचे ओहदों पर बैठे अफसर मुख्यमंत्री मायावती तक को गच्चा दे रहे हैं। स्वास्थ्य सेवाओं में खासकर आयुर्वेद विभाग में तो दलितों को मिलने वाली सुविधाओं का टोटा है। उन्हें स्पेशल कम्पोनेंट के नाम पर भी एक पैसा नहीं दिया जा रहा है।

बसपानेत्री के राज में दलितों के साथ हो रहे अन्याय का उजागर मुरादाबाद निवासी सलीम बेग की आरटीआई द्वारा मांगी गई सूचना के जरिए हुआ है। बेग ने मुख्यमंत्री कार्यालय के जनसूचना अधिकारी से सूचना मांगी थी कि आयुर्वेद विभाग में दलितों के विकास के लिए पिछले तीन सालों में कितना धन स्वीकृत किया गया, कितना अवमुक्त और कितना शेष है? मगर मुख्यमंत्री कार्यालय के निर्देश पर आयुर्वेद निदेशालय ने जो सूचना मुहैया कराई है वह चौकाने वाली है। निदेशालय प्रभारी अधिकारी डॉ. आरके सिंह ने लिखित में बताया है कि दलितों के विकास के नाम से आयुर्वेद विभाग में कोई योजना संचालित नहीं है। लखनऊ स्थित आयुर्वेद महाविद्यालय के रिटायर्ड प्रधानाचार्य डॉ. भगवान सिंह ने भी डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट को बताया कि दलितों के नाम पर कोई सुविधाएं आज तक विभाग को उपलब्ध नहीं हो पाईं। दलित एजेंडे वाली सरकार में एक और तथ्य चौंकाने वाला यह है कि आयुर्वेद विभाग में स्पेशल कम्पोनेंट प्लान के तहत सिवाय पांच जिलों को छोड़ कर इतने बड़े प्रदेश में इस विभाग को एक पैसा तक नहीं दिया गया। यह राज्य सरकार की संवेदनशून्यता है या फिर सरकारी मशीनरी चला रहे बड़े अफसरशाहों की उदासीनता। सबसे दुर्भाग्यजनक तथ्य तो यह भी है कि विभाग के मुखिया प्रमुख सचिव प्रदीप शुक्ला तक को यह जानकारी नहीं है कि आयुर्वेद विभाग में दलितों को सुविधाएं मिल भी पा रही हैं या नहीं। डीएनए ने जब इस बाबत प्रमुख सचिव से पूछा तो उन्होंने कहा कि मेरी जानकारी में नहीं है। इस सम्बंध में विशेष सचिव व निदेशक श्रद्धा मिश्रा बेहतर बता सकती हैं। आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक आयुर्वेद विभाग को स्पेशल कम्पोनेंट प्लान के तहत वर्ष 2008-09, 2009-10 में एक पैसा नहीं मिला। इस दौरान सिर्फ मुजफ्फरनगर को 431 लाख, बरेली को 2221 लाख, गाजीपुर को 1293 लाख, लखनऊ 9534 लाख तथा बाराबंकी को 862 लाख समेत कुल 14341 लाख रुपए दिए गए। यूपी में आयुर्वेद केन्द्र के अनुदान पर ही आश्रित है। निदेशालय की जानकारी के अनुसार वर्ष 2008 में ड्रग एंड क्वालिटी कंट्रोल पर 15 लाख, ड्रग क्वालिटी कंट्रोल व ड्रग टेस्टिंग पर दो लाख, आयुर्वेदिक प्रयोगशालाओं के लिए 65 लाख 33 हजार रुपए, अलीगढ़ के तिब्बिया कॉलेज के दवाखाना के लिए 1,35,39,306, ग्रामीण क्षेत्रों में दवा आपूर्ति पर 5,88,50,000, आयुष इंस्टीट्यूट के विकास के लिए दो करोड़ व वाराणसी आयुर्वेद कॉलेज के लिए 1,70,00, 000 रुपए अनुदान के रूप में मिला है। इसके साथ ही प्रदेश में आयुर्वेदिक महाविद्यालयों के बारे में निदेशालय ने बताया है कि लखनऊ के टुड़ियागंज में राजकीय आयुर्वेदिक महाविद्यालय, झांसी में बुंदेलखंड राजकीय आयुर्वेदिक महाविद्यालय, वाराणसी में सम्पूर्णानंद संस्कृत राजकीय आयुर्वेदिक महाविद्यालय, मुजफ्फरनगर में स्वामी कल्याण देव राजकीय आयुर्वेदिक महाविद्यालय, पीलीभीत में ललित हरि राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज, इलाहाबाद के हडिया में राजकीय महाविालय, बांदा में तथा बरेली में शाहू रामनरायन मुरली मनोहर आयुर्वेदिक कॉलेज है।