Thursday 5 April 2012

यूपी में सूचना आयोग हाईजैक


सीआईसी के शिकंजे में महत्वपूर्ण विभाग, 35 हजार से ज्यादा मामले लंबित

लखनऊ। यूपी के सीआईसी रणजीत सिंह पंकज ने राज्य सूचना आयोग को हाईजैक कर लिया है। आए दिन सूचना के कानून को पलीता लगाने वाले पंकज की कार्यशैली से खिन्न सूचना आयुक्त तक कई धड़ों में बंट चुके हैं। सीआईसी की कुर्सी पर बैठते ही उन्होंने एक-एक कर सरकारी महकमे के सारे महत्वपूर्ण विभाग मसलन राज्यपाल से लेकर मुख्यमंत्री कार्यालय तक अपने अरदब में ले लिया। पूर्ववर्ती सरकार में सीआईसी ने लगातार पांच वर्षो तक सत्ता और संविधान के दोनों प्रतिष्ठानों की सूचनाओं पर पर्दा डाले रखा।

पूर्ववर्ती बसपा सरकार के पसंदीदा अफसर रहे रणजीत सिंह पंकज की सीआईसी के पद पर नियुक्ति ही अवैध बताई जाती है। तत्कालीन नेता विरोधी दल शिवपाल सिंह यादव ने सीआईसी की नियुक्ति का मुखर विरोध किया था। मायावती ने जिस खास मकसद से उन्हें सीआईसी की कुर्सी पर बैठाया, वह उसमें कामयाब इसलिए रहे कि ऐसे महत्वपूर्ण सरकारी विभागों, जिनकी सूचनाओं से सरकार की छवि पर बट्टा लग सकता था, उन विभागों से मांगी जाने वाली सूचनाएं आयोग तक आती-आती कहां चली जातीं, आज तक किसी को पता नहीं चल पाया। पिछली सरकार में कई बड़े-बड़े आरटीआई ऐक्टिविस्ट सीएम कार्यालय से लेकर अन्य महत्वपूर्ण विभागों की सूचनाएं मांगते रह गए मगर अंदरखाने की कोई भी सूचना बाहर निकल कर नहीं आ पाई। ऐक्टिविस्टों ने डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट को बताया कि सीआईसी ने सारे महत्वपूर्ण विभाग जैसे राज्यपाल कार्यालय, मुख्यमंत्री कार्यालय, कैबिनेट सचिव कार्यालय, मुख्य सचिव, विधानमंडल के दोनों सदन, गृह विभाग व उससे संबद्ध विभाग, पुलिस महानिदेशक व अन्य पुलिस विभाग, प्रशासनिक सुधार विभाग, आवास एवं विकास परिषद, नियुक्ति एवं कार्मिक विभाग, राज्य संपत्ति विभाग, लोक सेवा आयोग, राज्य सूचना आयोग, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, चिकित्सा शिक्षा, पर्यावरण, सतर्कता, सचिवालय प्रशासन, सामान्य प्रशासन व खा एवं रसद जैसे विभाग अपने मातहत कैद कर रखे हैं। आरटीआई ऐक्टिविस्ट सलीम बेग ने बताया कि पंकज की कार्यशैली सूचना का कानून के अनुरूप नहीं है। सैकड़ों किमी दूर-दूर से आने वाले वादी बिना सूचना के निराश होकर बैरंग लौट जाते हैं। सूचना का कानून के मुताबिक प्रतिवादी द्वारा सूचना मुहैया न कराने पर 250 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से 25 हजार रुपए का अर्थदंड अधिरोपित किया जाता है मगर सीआईसी कानून के विपरीत मात्र 10000 का ही जुर्माना करते हैं। 
वादी को दो-दो साल तक सूचना नहीं मिल पाती है। कई-कई ऐसे मामले हैं जो राज्य सूचना आयोग के गठन के समय के हैं। सीआईसी ने नकल विभाग पर सेंसर लगा दिया है। सूचना आयुक्तों के यहां अब यह पहले ही तय कर लिया जाता है कि किस मामले में नकल की प्रति देनी है अथवा नहीं देनी। वादी को अब तो उनके मामलों में नोटिस भी भेजी जानी बंद कर दी गई है। ऐक्टिविस्टों ने बताया कि सीआईसी के उदासीन रवैए की वजह से दूसरे सूचना आयुक्त भी हीलाहवाली करने लगे हैं। वे अपनी कोर्ट में समय से बैठते भी नहीं हैं। वादी को लंबी-लंबी तारीखें दे दी जाती हैं। 

Thursday 20 October 2011

5 करोड़ का प्लाट 90 लाख में बेचा


लघु उोग निगम के अफसरों का खेल, 600 ट्रक कोयला गायब कर बाजार में बेचा

यूपी में लघु उोग भले ही पनप नहीं पा रहे हों मगर लघु उोग निगम लिमटेड के अफसर जरूर मालामाल हो गए हैं। निगम में लौह-इस्पात योजना देख रहे अजय शर्मा ने बिना गारंटी के मेसर्स अनुज स्टील को पांच करोड़ रुपए का लोहा उधार दे दिया। वह काम छोड़ कर भाग गया। निगम अपने पास से छह करोड़ स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया को भुगतान कर रहा है। यही नहीं साहब ने 600 ट्रक कोयला गायब करवा कर बाजार में बिकवा दिया। निगम को बेचने पर आमादा अफसर ने आगरा में लघु उोग निगम का पांच करोड़ रुपए का प्लाट 90 लाख में प्राइवेट हाउसिंग कम्पनी के हाथों बिकवा दिया।

कानपुर के रवि शुक्ला ने निगम अफसर अजय शर्मा की शिकायत मुख्यमंत्री मायावती से की है। उन्होंने मुख्यमंत्री से कहा है कि लघु उोग निगम लघु उोग इकाइयों को कच्चा माल उपलब्ध कराता है। इसमें कोयला, लोहा व पीतल आदि शामिल हैं। निगम में लौह-इस्पात की योजना देख रहे अजय शर्मा ने बिना गारंटी के मेसर्स अनुज स्टील को पांच करोड़ का लोहा उधार दे दिया। वह वर्ष 2000 में काम छोड़ कर भाग गया जिससे निगम को छह करोड़ का नुकसान हुआ। यह पैसा निगम द्वारा स्टील अथॉॅरिटी ऑफ इंडिया को दिया जा रहा है। शर्मा के रसूख के चलते कोई कार्रवाइ्र नहीं हुई अलबत्ता उसे पुरस्कार में कोयला की योजना अलग से दे दी गई। कोयला का इंचार्ज बने शर्मा ने यहां भी अपना हाथ दिखाना शुरू कर दिया। वर्ष 2006 में कोयले के एमओयू होल्डर्स मेसर्स दयाल फ्यूल को सड़क से ट्रकों के द्वारा कोयला लाने के लिए 600 फार्म -31 उपलब्ध करा दिए गए। मेसर्स के साथ मिलकर शर्मा द्वारा 600 ट्रक कोयला गायब करवा कर बाजार में बिकवा दिया गया। जिसका हिसाब शर्मा ने अभी तक नहीं दिया है। उन्होंने लघु उोग इकाइयों से कोई कर नहीं लिया था जिससे स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया द्वारा निगम से व्यापार कर के मद में 1.50 करोड़ वसूले गए जो उसे अपने पास से भुगतान करना पड़ा। इस हरकत पर डिप्टी एकाउंटेंट जनरल ने ऑडिट में साफ लिखा कि शर्मा ने निगम का 1.90 करोड़ का नुकसान किया है। मगर इसे दबा दिया गया।

निगम के उप मुख्य प्रबंधक लेखा शर्मा प्रॉपर्टी अनुभाग के भी प्रभारी हैं। उन्होंने आगरा के संजय प्लेस में स्थित निगम के पांच करोड़ रुपए वाले प्लाट को 90 लाख रुपए में प्राइवेट हाउसिंग कम्पनी के हाथों बिकवा दिया। शर्मा ने सर्वोच्च न्यायालय में चल रहे इस प्रकरण को वापस कराकर उसकी रजिस्ट्री हाउसिंग सोसाइटी के पक्ष में करा दी। मुख्यमंत्री से अजय शर्मा के खिलाफ शिकायत पर निगम के प्रबंध निदेशक राज मंगल ने डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट से कहा कि मुझे अभी चार महीने आए हुआ है। इन मामलों में शासन स्तर पर जांच चल रही है। कोयले वाले मामले में सीबीआई जांच चल रही है।लघु उोग निगम के प्रबंध निदेशक राज मंगल पहले ऐसे दलित अफसर हैं जिन पर सरकार मेहरबान है। प्रमुख सचिव कुंवर फतेह बहादुर के चहेते साहब को यूपिका और हैंडलूम का भी प्रभार सौंप दिया गया है। 1981 बैच के पीसीएस अफसर को निगम में फैले भ्रष्टाचार पर फोन से बात करना पसंद नहीं है। कहते हैं कि बात करनी हो तो कानपुर आइए।

Wednesday 19 October 2011

ऐक्टिविस्ट को सूचना आयुक्त ने बनाया बंधक


वयोवृद्ध आरटीआई ऐक्टिविस्ट से माफीनामा लिखवाया

यूपी में सूचना के कानून को बंधक बना चुकी राज्य की मौजूदा सरकार के साथ-साथ सूचना आयोग में सरकार द्वारा नियुक्त सूचना आयुक्त भी कानून को बंधक बनाने का दुस्साहस करने लगे हैं। मंगलवार को राज्य सूचना आयुक्त बृजेश कुमार मिश्रा ने तो हद ही कर दी तथा अपने संवैधानिक अधिकारों का अतिक्रमण करते हुए आरटीआई ऐक्टिविस्ट 73 वर्षीय वयोवृद्ध तुलसी बल्लभ गुप्ता को न सिर्फ पुलिस के जरिए बंधक बनाया बल्कि दबाव डालकर उलटे उनसे माफीनामा भी लिखवा लिया।

आरटीआई ऐक्टिवस्टिों के साथ ज्यादती का यह पहला मामला नहीं है। ऐक्टिविस्ट तुलसी बल्लभ गुप्ता का मामला मंगलवार को सूचना आयुक्त बृजेश कुमार मिश्र की कोर्ट में लगा था। उन्होंने लखनऊ के जिला विालय निरीक्षक द्वितीय के जनसूचना अधिकारी से प्राइमरी स्कूलों की सूची मांगी थी जिनमें अध्यापक-अध्यापिकाओं की नियुक्ति होनी थी। उसमें कितने पद आरक्षित हैं तथा कितने सामान्य वर्ग के हैं? अध्यापिकाओं की पात्रता व चयन प्रक्रिया संबंधी अनेक सूचनाएं मांगी थी। मगर जनसूचना अधिकारी ने कोई सूचना उपलब्ध नहीं कराई। वयोवृद्ध कार्यकर्ता ने सूचना दिलाने के लिए सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाया। मंगलवार को सूचना आयुक्त बृजेश मिश्रा की कोर्ट में यह मामला सुनवाई के लिए लगा था। श्री मिश्र ने उनसे पूछा कि जो आवेदन जिला विालय निरीक्षक के यहां की है उसमें सूचना मांगने का 10 रुपए की शुल्क रसीद कहां है? जवाब में श्री गुप्ता ने बताया कि उन्होंने 10 रुपए नगद दिया था मगर जनसूचना अधिकारी ने रसीद नहीं दी। इसी बात को लेकर सूचना आयुक्त और वादी में नोक-झोंक होने लगी। श्री गुप्ता ने बताया कि वे गुस्से में कुछ ज्यादा ही तेज स्वर में अपनी दलील देने लगे। इस बात से नाराज होकर सूचना आयुक्त ने तत्काल पुलिस को बुलाकर कस्टडी में लेने का आदेश दे दिया। इसके साथ ही आदेश लिखाने लगे कि मैने शोर मचाया और एक ही प्रकरण पर कई आवेदन दे रखा है।

श्री गुप्त ने बताया कि सूचना आयुक्त ने उन्हें एक शपथपत्र दायर करने को कहा है कि उनके सारे वादों की सुनवाई एक साथ की जाय। मगर यह आरटीआई की मंशा के विपरीत है। सूचना आयुक्त अफसरों के दबाव में सूचनाएं नहीं दिलवाना चाहते हैं। इसके पहले राज्य सूचना आयुक्त सुनील कुमार चौधरी से भी ऐक्टिविस्ट का वाद-विवाद माध्यमिक शिक्षा परिषद के स्कूलों में होने वाली अध्यापकों की भर्ती में शिक्षकों की पात्रता व प्रारूप संबंधी मांगी गई सूचना पर हो चुका है। डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट ने जब सूचना आयुक्त बृजेश कुमार मिश्र से इस संबंध में प्रतिक्रिया के लिए सम्पर्क किया तो उन्होंने बताया कि शिकायतकर्ता को शपथपत्र दायर करने को कहा गया है जिससे एक ही विषय पर अलग-अलग सुनवाई न की जा सके। श्री मिश्र ने बताया कि इस ऐक्टिविस्ट ने सैकड़ों मामले दायर कर रखे हैं। इससे दूसरे मामलों की सुनवाई में अड़चन पैदा होती है। दूसरे उसने सुनवाई के दौरान अनुशासनहीनता भी करने की कोशिश की। बाद में लिखित माफीनामे के बाद उसे छोड़ दिया गया।

Tuesday 18 October 2011

अन्ना इफेक्ट या माया इफेक्ट!



चार सालों बाद लोकायुक्त व सरकार की बदली धारणा पर सवाल
लगातार चार सालों तक उदासीनता के साए में दिन काटने वाले लोकायुक्त न्यायमूर्ति एनके मेहरोत्रा के चेहरे पर अचानक तैरने वाली विजयी मुस्कान जितनी चमक रही है ठीक उतनी ही बसपानेत्री की सरकार भी चहक रही है। चार साल तक बेदाग घूम रहे मंत्रियों को दागी घोषित कर लोकायुक्त वाहवाही लूट रहे हैं तो वहीं सरकार भी अपना दागदार चेहरा बेदाग करने में जुटी है। महज मुठ्ठीभर भ्रष्ट मंत्रियों को किनारे लगा कर न तो सरकार भ्रष्टाचार की कालिख से बच सकती है और न ही अपने दो-चार फैसलों से फूलकर कुप्पा हो रहे लोकायुक्त कोई भ्रष्टाचार मुक्त उत्तर प्रदेश की बुनियाद ही रखने जा रहे हैं। अगर ऐसा होता तो नौकरशाहों के विरुद्ध भ्रष्टाचार की शिकायतों को न्यायमूर्ति मेहरोत्रा गंभीरता से लेते और सरकार उनकी सिफारिशों पर तत्परता से कार्रवाई करती।

सत्ता के गलियारों में इस बात की जबरदस्त चर्चा है कि जिस तरह और जिस अतिवेग से भ्रष्टाचार में लिप्त मंत्रियों को उनके पद से हटाने की सिफारिश लोकायुक्त कर रहे हैं उससे तो यही लगता है कि उन पर समाजसेवी अन्ना का इफेक्ट कम बल्कि माया का इफेक्ट कुछ ज्यादा ही दिखाई दे रहा है। वरना यह इफेक्ट पिछले चार सालों में भी लोकायुक्त और बसपा सरकार के बीच दिखना चाहिए था। लगता है कि लोकायुक्त ने 2010 के अपने वार्षिक प्रतिवेदन में जो सुझाव मुख्यमंत्री को दिए थे सरकार उसके पालन में आखिरकार जुट ही गई है। उन्होंने मुख्यमंत्री को भेजे अपने प्रतिवेदन में लिखा कि अब ऐसा समय आ गया है कि यदि किसी सरकार को आम जनता का विश्वास हासिल करना है और अपनी साख बचानी है तो उसे भ्रष्टाचार के खिलाफ तत्काल प्रभाव से कोई न कोई कठोर कार्रवाई करनी ही होगी। अब कोरी बयानबाजी पर्याप्त नहीं होगी। चार सालों बाद सरकार के बारे में लोकायुक्त की बदली धारणा और इसके ठीक विपरीत विधानसभा चुनाव के ऐन वक्त पर बसपा सरकार का बदला आचरण बड़ी सहजता के साथ समझा जा सकता है। सवाल यह उठता है कि सिर्फ भ्रष्ट मंत्रियों के ही खिलाफ लोकायुक्त और सरकार क्यों अत्यधिक सक्रिय हैं।

..मगर भ्रष्ट नौकरशाहों के प्रति दोनों के नजरिए में इस प्रकार की सक्रियता क्यों नहीं है? अगर ऐसा न होता तो लोकायुक्त द्वारा सरकार को भेजे गए 2007 में तत्कालीन प्रमुख सचिव समाज कल्याण, पूर्व प्रमुख सचिव आर रमणी, पूर्व प्रमुख सचिव आरसी श्रीवास्तव, पीसीएस रमाशंकर सिंह, 2007 में ही पीलीभीत के तत्कालीन जिलाधिकारी, आईएएस करनैल सिंह, 2008 में शाहजहांपुर के तत्कालीन जिलाधिकारी, निदेशक समाज कल्याण, 2009 में तत्कालीन वन विभाग के प्रमुख सचिव, 2010 में तत्कालीन प्रमुख सचिव समाज कल्याण, विशेष सचिव समाज कल्याण, राज्य म निषेध अधिकारी, चंदौली के तत्कालीन जिलाधिकारी, बांदा के तत्कालीन जिलाधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की जाती। नौकरशाहों के खिलाफ कार्रवाई पर लोकायुक्त ने डीएनए से कहा कि उनके विरुद्ध जांच में देर की जाने लगती है और मामला कोर्ट में जाने से कोई फैसला नहीं हो पाता है। मगर लोकायुक्त के पास ही नौकरशाहों के खिलाफ ढेरों शिकायतें जांच के लिए लम्बित पड़ी हैं।

Thursday 13 October 2011

नियम-कानून?.. बनाने वाले ही जानें

संरक्षित स्मारकों के प्रतिबंधित क्षेत्र में अवैध निर्माण पर बोले डीएम
 कमिश्नर ने देखेंगे कह कर पल्ला झाड़ा
सरकारी इमारतें भी अवैध

समेट्री चिरैया झील के आस-पास प्रतिबंधित इलाके में अवैध आलीशान इमारतें, व्यावसायिक काम्प्लेक्स, बड़ी-बड़ी मोटर व ऑटोमोबाइल कम्पनियों के शोरूम तथा बेशकीमती दुकानों का संरक्षक पुरातत्व विभाग न सिर्फ अपनी नाकामियों पर पर्दा डाले बैठा है बल्कि गैरकानूनी तरीके से बनाए गए भवनों को हटाने के लिए सरकारी तंत्र की मदद लेने का पहल भी नहीं कर रहा है। विभाग सिर्फ अवैध निर्माणकर्ताओं को नोटिस जारी कर सरकारी मशीनरी या फिर कोर्ट की सक्रियता का बाट जोह रहा है। पुरातत्व विभाग तो उदासीन है ही लखनऊ के कमिश्नर, डीएम, नगर आयुक्त तथा डीआईजी तक गैरकानूनी तरीके से बने भवनों को हटाने में बेबश हैं।

दरअसल केन्द्रीय संरक्षित चिरैया झील के 100 मीटर वाला प्रतिबंधित क्षेत्र मूल रूप से हजरतगंज में आता है। यहां ज्यादातर बड़े व्यावसायियों की दुकानें, होटल, व्यावासायिक काम्प्लेक्स, मोटर गाड़ियों के शोरूम व अन्य प्रतिष्ठान हैं। इस नाते अवैध निर्माणकर्ताओं के सम्बंध राजनेताओं, नौकरशाहों व पुलिस प्रशासन से होने के कारण पुरातत्व विभाग बौना पड़ जाता है और वह स्वयं इसमें रुचि लेना बंद कर देता है। विभाग और प्रशासन की सांठ-गांठ का फायदा उठाते हुए अवैध निर्माणकर्ता पैसे व अन्य तरकीबों से अपना बचाव करते हैं। संरक्षित चिरैया झील के प्रतिबंधित क्षेत्र में विभाग ने मोहम्मद दाऊद के सप्रू मार्ग स्थित अवैध निर्माण, सिटी फाइनेंस भवन, दुर्गमा रेस्टोरेंट, प्रबंधक मिशनरीज ऑफ चैरिटी ट्रस्ट, प्रेम नगर निवासी धनराज का भवन संख्या 22, अशोक ठुकराल, सर्वोदय कालोनी निवासी सीएस श्रीवास्तव, उत्तम आहुजा, वीरेन्द्र गुप्ता निखलेश पैलेस अशोक मार्ग, परमजीत सिंह, अशोक मार्ग के पीछे अजय गुप्ता, राहुल गुप्ता, जवाहर लाल जायसवाल, सप्रू मार्ग पर जैदीप माथुर, महिन्द्रा शोरूम, अशोक टावर, तेज कुमार, पुलिस अधीक्षक गोपनीय शाखा के सामने श्रवण प्लाजा, शाहनजफ मार्ग स्थित हिन्दुस्तान मोटर्स, सर्वोदय कालोनी निवासी श्रीमती गीता मिश्रा, प्रेमनगर निवासी धरराज व राजीव, सप्रू मार्ग पर डा. रवि दुबे, शुक्ला बिजनेस प्वांइट, सर्वोदय कालोनी के एके घई, राणा प्रताप मार्ग पर परमार हाऊस को नोटिस जारी किया है।

आरटीआई के जरिए पुरातत्व विभाग व प्रशासन की लापरवाही उजागर करने वाले अधिवक्ता एसपी मिश्र का कहना है कि नियम और कानून सिर्फ कागजों पर बनाए गए हैं। केन्द्रीय संरक्षित स्मारक शाहनजफ इमामबाड़ा व सिमेट्री चिरैया झील के प्रतिबंधित क्षेत्र में बने अवैध निर्माणों को लेकर पुरातत्व विभाग हाथ पर हाथ धरे बैठा ही है साथ ही लखनऊ के मंडलायुक्त व डीएम ने भी खामोशी ओढ़ रखी है। डीएनए ने जब इस सम्बंध में मंडलायुक्त प्रशांत त्रिवेदी से बात की तो उन्होंने विवाद से बचते हुए कहा कि हम इसे देखेंगे। वहीं लखनऊ के डीएम ने कहा कि अवैध निर्माण नहीं हट पाएंगे। पुरातत्व विभाग द्वारा स्थापित नियम और कानून पर उन्होंने कहा कि नियम-कानून बनाने वाले ही इसे जानें।

Wednesday 12 October 2011

पैसों पर टिका पुरातत्व का अस्तित्व!

जवाहर लाल जायसवाल ने जवाहर होटल से बना लिया होटल इंडिया अवध
अवैध होटलों, बेशकीमती दुकानों व व्यावसायिक काम्प्लेक्सों पर छह साल से लटकी है तलवार

 पुरातत्व विभाग को जब तक पैसे नहीं मिलते हैं तब तक वह केन्द्रीय संरक्षित स्मारक की प्रतिबंधित सीमा में बने अवैध निर्माणधारकों पर कार्रवाई की तलवार लटकाए रहता है। संरक्षित स्मारक शाहनजफ इमामबाड़ा व चिरैया झील के 100 मीटर के अंदर बने अवैध बेशकीमती दुकानों, होटलों और करोड़ों की लागत वाले आवासों पर पुरातत्व विभाग बीते कई वर्षो से तलवार लटकाए है। उसने तकरीबन 70 से अधिक अवैध निर्माणधारकों को नोटिस भी जारी किया है तथा कुछेक के विरुद्ध एफआईआर भी दर्ज करा रखी है। पता चला है कि इन नोटिस की आड़ में पुरातत्व विभाग के अफसरों की दुकानें खूब फल-फूल रही हैं।

पुरातत्व विभाग ने सप्रू मार्ग स्थित जवाहर लाल जायसवाल द्वारा निर्मित अवैध निर्माण को भी नोटिस जारी किया है। 14 अगस्त 2005 को जारी नोटिस में विभाग के अधीक्षण पुरातत्वविद ने कहा है कि जवाहर लाल द्वारा कराया गया निर्माण संरक्षित स्मारक सिमेट्री चिरैया झील के प्रतिबंधित क्षेत्र में आता है। जो प्राचीन स्मारक एवं पुरास्थल व अवशेष 1959 के नियम 33 के प्राविधानों के विपरीत है। गौरतलब है कि पुरातत्व विभाग ने यह नोटिस जवाहर जायसवाल को छह साल पहले जारी की थी। विभाग के सूत्रों का कहना है कि जब नोटिस से जुड़े पक्षों द्वारा अधिकारियों की मिजाजपुर्सी में कमी की शिकायत आने लगती है तो अफसर अपना शिकंजा और कसने लगता है। ठीक इसी प्रकार का हथकंडा अफसरों ने जवाहर जायसवाल के विरुद्ध अपनाया तो मामला हाईकोर्ट ले जाना पड़ा। विभाग ने जब कोर्ट का रास्ता दिखाया तो जवाहर जायसवाल भी सीधे रास्ते पर आ गए। वर्ष 2009 में कोर्ट ने यथास्थिति का आदेश जारी कर दिया। मगर इसके बावजूद ऐसा खेल रचा गया कि कोर्ट का आदेश धरा का धरा ही रह गया। मसलन पुरातत्व विभाग ने जवाहर होटल के नाम से बने जिस अवैध निर्माण के खिलाफ नोटिस जारी की तथा अदालत तक मामला गया, उसी होटल का नाम विभागीय अफसरों की सांठ-गांठ के चलते होटल इंडिया अवध हो गया। इस होटल को बीते नवरात्र में चालू भी कर दिया गया। यही नहीं मेसर्स हिन्दुस्तान मोटर्स, श्रवण प्लाजा, तेज कुमार, अशोक टावर, सप्रू मार्ग स्थित महिन्द्रा शो रूम के मालिक मेसर्स नारायण आटोमोबाइल जैसे अवैध निर्माणकर्ता हों तो पुरातत्व विभाग के अफसरों की दुकानें खूब फलेंगी भी और फूलेंगी भी। विभाग के अधीक्षण पुरातत्वविद ने इन सभी को नोटिस जारी करते हुए कहा है कि उनके द्वारा कराया गया अवैध निर्माण संरक्षित स्मारक सिमेट्री चिरैया झील के प्रतिबंधित क्षेत्र में आता है जो प्राचीन स्मारक एवं पुरास्थल व अवशेष नियम 1959 के नियम 33 क के प्राविधानों के विपरीत है। विभाग ने नोटिस में विधिवत स्पष्ट किया है कि इसके उल्लंघन के दोषी को तीन महीने के कारावास अथवा पांच हजार रुपए तक अथवा दोनों दंड दिए जाने का प्रावधान है।

आरटीआई ऐक्टिविस्ट व अधिवक्ता एसपी मिश्र का कहना है कि सहारागंज माल के अलावा 70 से अधिक अवैध निर्माणधारक हैं जिसमें होटल से लेकर बड़ी-बड़ी बेशकीमती दुकानें तथा करोड़ों की लागत से बने लोगों के आवास हैं। पुरातत्व विभाग को जब तक पैसे नहीं मिलता है तब तक वह कार्रवाई की तलवार अवैध इमारतों पर लटकाए रहता है। मसलन इस क्रम में विभाग द्वारा जारी की गई 70 से अधिक नोटिस से पता चलता है कि वह अपनी जिम्मेदारियों को इससे ज्यादा नहीं निभा सकता है। उप अधीक्षण पुरातत्वविद इंदु प्रकाश ने डीएनए को बताया कि विभाग ने संरक्षित स्मारक के प्रतिबंधित क्षेत्र में बने अवैध निर्माणधारकों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज कराया है। सिर्फ प्राथमिक रिपोर्ट दर्ज कराना पर्याप्त है, के सवाल पर वह कहते हैं कि हमारी अपनी सीमाएं हैं। विभाग के पास स्टाफ नहीं है। कमिश्नर, डीएम, नगर आयुक्त व डीआईजी समेत सभी को 2005 में ही सूचित किया गया था। यहां तक अवैध निर्माण को भी गिराने का आदेश जारी किया गया है। मगर यह काम मेरा नहीं है।

Tuesday 11 October 2011

वाह! झूठ और फरेब का ‘सहारा’

संरक्षित शाहनजफ इमामबाड़ा और चिरैया झील का बदल डाला मानचित्र
सहारागंज मॉल को मिले अनापत्ति प्रमाण पत्र पर खड़ा हुआ विवाद
पैसों के चक्कर में सरकारी अफसर नियम-कानून को खूंटी पर टांग देते हैं। सही को गलत और गलत को सही ठहराने में जुट जाते हैं। यदि पैसे हैं तो पैसों के बल पर झूठ और फरेब करना कितना आसान हो जाता है इसका उदाहरण लखनऊ शहर में बने सबसे आलीशान मार्केट सहारागंज मॉल को देखने और उसकी सच्चाई जानने के बाद पता चल जाता है। सहारागंज मॉल की बुनियाद रखने में पैसों ने इतना कमाल दिखाया कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने आस-पास का मानचित्र ही बदल कर रख दिया। सहारागंज मॉल से केन्द्रीय संरक्षित स्मारक शाहनजफ इमामबाड़ा की दूरी 102 मीटर और चिरैया झील की दूरी 69 मीटर बताकर खुद ही नए विवाद को जन्म दे दिया है। अब तो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के निदेशक द्वारा कार्टन होटल के मालिक और सहारागंज के निर्माण को दिए गए अनापत्ति प्रमाण पत्र पर भी सवाल खड़े हो गए हैं। इसके साथ ही पुरातत्व विभाग का दोहरा मापदंड भी सामने खुलकर आ गया है कि उसने केन्द्रीय संरक्षित स्मारक के आस-पास बने दूसरे अवैध निर्माण को तो नोटिस जारी कर दिया मगर सहारागंज मॉल के निर्माण पर विभागीय अफसर मुंह खोलने तक तैयार नहीं हैं।

सहारागंज मॉल के निर्माण को लेकर भारतीय पुरातत्व विभाग कटघरे में खड़ा हो गया है। अधिवक्ता व आरटीआई ऐक्टिविस्ट एसपी मिश्र ने विभाग के जनसूचना अधिकारी से संरक्षित इमारत शाहनजफ इमामबाड़ा और संरक्षित चिरैया झील से सहारागंज मॉल की दूरी, संरक्षित इमारत का दायरा व चारों ओर प्रतिबंधित क्षेत्र, सहारागंज मॉल निर्माण को अनापत्ति प्रमाण पत्र देने की प्रक्रिया व अधिकारी आदि का नाम बताने समेत अन्य अवैध निर्माण की जानकारी मांगी थी। श्री मिश्र का कहना है कि जो जानकारी पुरातत्व विभाग ने मुहैया कराई है वह बेहद चौकाने वाली है। लगता है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक ने 21 जून 2002 को अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करते समय सारे नियम व कानून ताक पर रख दिए। सिर्फ सहारागंज मॉल के निर्माण की ऊंचाई 22.50 मीटर तक प्रतिबंधित करते हुए अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी कर दिया। अधिवक्ता का कहना है कि पुरातत्व विभाग के केन्द्रीय महानिदेशक को यह अनापत्ति प्रमाण पत्र तो जारी ही नहीं करना चाहिए था। चूंकि यह लखनऊ मंडल का मामला है इसलिए मंडल के अधीक्षण पुरातत्वविद को ही अधिकार है कि वह अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करे। मगर उन्होंने दबाव के चलते स्थानीय अफसरों के अधिकारों को छीनते हुए इसलिए अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी कर दिया कि अगर कहीं मंडल स्तर पर संरक्षित इमारत के आस-पास की दूरी की नाप-जोख की जाएगी तो आलीशान मॉल की योजना खटाई में पड़ जाएगी।

श्री मिश्र ने पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित चिरैया झील व शाहनजफ इमामबाड़े से सहारागंज माल की दूरी क्रमश: 69 मीटर व 102 मीटर बताए जाने पर कड़ी आपत्ति व्यक्त करते हुए कहा है कि विभाग द्वारा दोनों की दूरियां जान-बूझ कर ज्यादा दर्शाई गई हैं। इससे लगता है कि बड़ा खेल खेला गया है। आरटीआई द्वारा दिए जवाब में पुरातत्व विभाग के केन्द्रीय महानिदेशक द्वारा जो अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी किया गया है उसमें सहारागंज मॉल या उसके मालिक का कहीं जिक्र तक नहीं है। प्रमाण पत्र में कार्टन होटल व उसके मालिक के नाम का उल्लेख किया गया है। विभाग की इस पूरी प्रक्रिया पर इसलिए भी संदेह हो रहा है कि अगर संरक्षित इमारत के चारों तरफ 100 मीटर का क्षेत्र प्रतिबंधित है और चिरैया झील से सहारागंज माल की दूरी सिर्फ 69 मीटर ही (जैसा कि विभाग ने गूगल सर्च और विभागीय नाप-जोख के आधार पर दूरी दर्शाई है) है तो चिरैया झील की दूरी को क्यों नजरअंदाज कर दिया गया? डीएनए ने जब लखनऊ मंडल के उप अधीक्षण पुरातत्वविद् इंदू प्रकाश से यही सवाल किया तो वे चुप्पी साध गए। उन्होंने कहा कि यह सवाल आप केन्द्रीय महानिदेशक से पूछिए। मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकता हूं। यह अनापत्ति प्रमाण पत्र दिल्ली से जारी किया गया है।