Thursday 25 August 2011

खेल में भी भ्रष्टाचार का खेल

स्टेडियम में न चौकीदार न ग्राउंडमैन और न ही प्रशिक्षक
ग्रामीण क्षेत्रों में बने खेल स्टेडियमों पर खर्च 18.31 करोड़ पानी में

यूपी के हर सरकारी विभागों की तरह ग्रामीण खेलकूद विभाग भी भ्रष्टाचार के खेल का शिकार हुआ। 50 खेल स्टेडियमों के निर्माण में खर्च 18.31 करोड़ रुपए पानी में पड़ गया। बेसुध सोई सरकार करोड़ों की लागत से बने स्टेडियम विभाग को सौंप नहीं पाई। महज स्टेडियम का ढांचा भर खड़ा कर फर्ज अदायगी कर छुट्टी पा ली। न वहां चौकीदार, न ही ग्राउंडमैन तैनात किए गए। यही नहीं 18.27 लाख रुपए के खरीदे गए खेल के सामान भी खिलाड़ियों को नहीं मिले। और तो और युवाओं को खेल से जोड़ने के लिए प्रशिक्षकों की कोई व्यवस्था ही नहीं की गई।

यह हाल है ग्रामीण क्षेत्रों के उत्कृष्ट खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देने के उद्देश्य से बनी योजना का। जहां स्टेडियम, प्रशिक्षक, खेल सामग्री तथा खेल से जुड़ी जरूरी चीजें सरकार की समझ में नहीं आती हैं तो वहां यह कल्पना करना कि उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय स्तर पर खिलाड़ी पैदा करेगा, यह समझ से परे है। मगर भ्रष्टाचार के खेल ने खेल को भी अपने साथ जमकर जकड़ कर रखा है। युवा कल्याण विभाग की जानकारी के मुताबिक तत्कालीन प्रदेश सरकार ने 1995 में ग्रामीण क्षेत्रों में स्टेडियम स्थापित करने की योजना शुरू की थी। वर्ष 2004 से 2009 की अवधि में विभिन्न सरकारों द्वारा 26 जिलों में 50 मिनी स्टेडियम के निर्माण के लिए 18.31 करोड़ रुपए स्वीकृत किए गए। प्रत्येक स्टेडियम के निर्माण कार्य को पूरे करने के लिए तीन कार्यदायी संस्थाओं को धन भी स्वीकृत कर दिया गया। इसमें कंस्ट्रक्शन एण्ड डिजाइन सर्विस, जल निगम, पैक्सफेड तथा प्रोजेक्ट कॉरपोरेशन शामिल हैं। नामित कार्यदायी संस्थाओं को 2006-07 में तीन, 2007-08 में चार, 2008-09 में आठ तथा 2009-10 में 16 स्टेडियम बनाने थे। ये स्टेडियम सोनभद्र में दो, गोंडा में एक, कानपुर देहात में एक, मेरठ में दो, रायबरेली में तीन, हरदोई में चार, मऊ में तीन, उन्नाव में तीन, बाराबंकी में तीन, फिरोजाबाद में तीन, लखनऊ में एक, कौशाम्बी में दो, कानपुर नगर में एक, आजमगढ़ में एक, एटा में दो, फैजाबाद में दो, बुलंदशहर में दो, बरेली में एक, खीरी में एक, बहराइच में दो, मैनपुरी में एक, शाहजहांपुर में एक, गाजीपुर में छह, बलिया में एक और गाजियाबाद में एक स्टेडियम बनाया गया है।

कैग की रिपोर्ट के मुताबिक महानिदेशक प्रांतीय रक्षा दल, विकास दल एवं युवा कल्याण के जब दस्तावेजों की जांच की गई तो जनवरी 2010 यानि मौजूदा सरकार के कार्यकाल में यह पाया गया कि 50 में से 19 स्टेडियम विभाग को हस्तांतरित ही नहीं किए गए। इसमें तमाम प्रकार की लापरवाहियां सामने आईं मसलन चल सम्पत्ति का विवरण न होना, चहर दिवारी न बनना और विुतीकरण शामिल थी। महानिदेशक ने तो इन स्टेडियम को उपयोग में लाने के लिए राज्य सरकार को प्रशिक्षकों, ग्राउंड मैन एवं चौकीदार की नियुक्ति के लिए एक प्रस्ताव किया था जिसे 2010 तक स्वीकृत नहीं किया गया। इस प्रकार विभाग को स्टेडियमों को विलंब से हस्तांतरित करने एवं प्रशिक्षकों, ग्राउंड मैन तथा चौकीदारों की नियुक्ति न किए जाने से स्टेडियम के निर्माण पर किया गया 18.13 करोड़ व खेल सामग्री की खरीद पर 18.27 लाख रुपए का व्यय किसी काम नहीं आया। यही नहीं लखनऊ जनपद में युवा छात्रावासों के निर्माण पर किया गया 1.39 करोड़ रुपए का खर्च भी व्यर्थ गया क्योंकि वहां वार्डन और सहायक वार्डन की तैनाती ही नहीं की गई। सरकार सिर्फ कागजों पर पैसे दिखाकर भ्रष्टाचार का खेल करती रही। छात्रावास तो काम नहीं कर रहे मगर सरकार ने कागजों पर छात्रावास के बने भवन की देखभाल के लिए 1.88 लाख रुपए जरूर खर्च कर डाले।

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