Tuesday, 23 August 2011

माननीयों को लैपटॉप का नया चस्का


विधायकों ने की खूब मनमानियां
सूबे के माननीयों ने भी विधायक निधि से खूब मनमानियां कीं। अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों में कोई कारगर काम तो जनता के लिए किया नहीं अलबत्ता स्कूलों, कॉलेजों पर पैसे खर्च कर अपना उल्लू जरूर सीधा किया है। ज्यादातर माननीय सियासत में इतने मशगूल रहे कि अपने ही निधि के पैसों को खर्च करने के लिए वक्त ही नहीं निकाल पाए। लिहाजा 385.58 करोड़ रुपए तो जस का तस पड़ा रहा। पांच जिलों ने अपने अधिकार सीमा से परे हटकर लैपटॉप पसंद माननीयों के शौक पर लाखों रुपए लुटा दिए। मगर देखने वाली बात यह रही कि यूपी के ये लैपटॉप पसंद माननीयों ने स्वास्थ्य और पीने के पानी पर खर्च करना मुनासिब नहीं समझा।
कैग की रिपोर्ट ने सूबे के माननीयों के मंसूबे और उनकी जनता के प्रति गंभीरता की कलई खोल कर रख दी है। स्कूलों पर दिल खोल कर विधायक निधि का पैसा खर्च करने में माननीयों में जबरदस्त होड़ रही। 11 जिलों के 48 विधानसभा क्षेत्रों में निधि के वार्षिक आवंटन का 40 प्रतिशत से 70 प्रतिशत तक और आठ जिलों की 25 विधानसभा क्षेत्रों में 71 से 100 प्रतिशत तक धनराशि स्कूल भवनों के निर्माण पर माननीयों ने खर्च किए। कैग ने इन विधायकों को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा है कि स्थानीय जरूरतों से परे जाकर पैसे खर्च करना इस योजना के साथ खिलवाड़ है। माननीयों ने आम आदमी की सेहत और पीने के पानी की जरूरतों को नजरअंदाज करते हुए सड़क और स्कूलों पर 82 प्रतिशत धन खर्च कर दिया। सड़कों और स्कूलों पर धन खर्च करने के पीछे मोटे कमीशन ऐंठने की ज्यादातर शिकायतें पूरे प्रदेश से प्राप्त हुई हैं।
माननीयों ने मनमानियों के सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए ऐसे काम कराए जो किसी भी दशा में मान्य नहीं थे। अनियमित तरीके अपनाकर अस्थाई काम करवाए ताकि पैसे उनकी जेबों में आते रहें। इस तरह विधायकों ने 5.20 करोड़ रुपए अनाप-शनाप खर्च कर दिए। नई सड़कें नहीं बनाई। सिर्फ सड़कों की मरम्मत में कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी दिखाई। तकरीबन 111.62 लाख रुपए गड्ढे भरने में खपा दिए। विकास कार्यो को कराने के लिए जिलों में तमाम सीडीओ को तकनीकी सलाह न मिलने से गलत कार्यदायी संस्थाएं चुनी गईं। आठ जिलों में तो 35.33 करोड़ रुपए का काम छह संस्थाओं को आवंटित कर दिया गया। इसमें अभी भी 10.98 करोड़ के काम अधूरे छूटे हुए हैं।
सबसे हैरानी वाली बात यह है कि माननीयों ने बिना मॉडल ड्राइंग के बारात घर, रैन बसेरों का निर्माण करा दिया। कई जिलों में बनाए गए प्रतीक्षालय खंडहर के रूप में खड़े हैं। उसका इस्तेमाल जानवर कर रहे हैं। इस तरह करोड़ो रुपए बारात घरों और रैन बसेरों पर बर्बाद कर दिए गए। यहीं नहीं माननीयों ने सारे कार्य बेतरतीब और बेढंगे तरीके से कराए। 9.21 करोड़ रुपए हाई मास्ट लाइटों पर तो खर्च कर दिए मगर उनको बिजली से नहीं जोड़ पाए और वे सारी लाइटें धूल खा रही हैं।
लैपटॉप पसंद माननीयों ने जिलों में दबाव डालकर अपने लिए लैपटॉप नियम विरुद्ध खरीदवा लिए। पांच जिलों में 42.56 लाख रुपए की कीमत वाले 38 लैपटॉप विधायकों ने खरीदे। मगर कार्यदायी संस्था उत्तर प्रदेश इलेक्ट्रानिक्स को सिर्फ 2.78 लाख रुपए ही भुगतान किया गया। विभागीय सचिव को माननीयों से शेष धनराशि वसूलनी है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि प्रदेश के माननीय विकास कार्यो के प्रति सजग इतना रहे कि 385.58 करोड़ खर्च ही नहीं कर पाए। खर्च वहीं किए जहां विधायक निधि का कायदे से दोहन कर सकते थे। इस प्रकार की शिकायतें कैग रिपोर्ट से उजागर हुई हैं।

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