जवाहर लाल जायसवाल ने जवाहर होटल से बना लिया होटल इंडिया अवध
अवैध होटलों, बेशकीमती दुकानों व व्यावसायिक काम्प्लेक्सों पर छह साल से लटकी है तलवार
अवैध होटलों, बेशकीमती दुकानों व व्यावसायिक काम्प्लेक्सों पर छह साल से लटकी है तलवार
पुरातत्व विभाग को जब तक पैसे नहीं मिलते हैं तब तक वह केन्द्रीय संरक्षित स्मारक की प्रतिबंधित सीमा में बने अवैध निर्माणधारकों पर कार्रवाई की तलवार लटकाए रहता है। संरक्षित स्मारक शाहनजफ इमामबाड़ा व चिरैया झील के 100 मीटर के अंदर बने अवैध बेशकीमती दुकानों, होटलों और करोड़ों की लागत वाले आवासों पर पुरातत्व विभाग बीते कई वर्षो से तलवार लटकाए है। उसने तकरीबन 70 से अधिक अवैध निर्माणधारकों को नोटिस भी जारी किया है तथा कुछेक के विरुद्ध एफआईआर भी दर्ज करा रखी है। पता चला है कि इन नोटिस की आड़ में पुरातत्व विभाग के अफसरों की दुकानें खूब फल-फूल रही हैं।
पुरातत्व विभाग ने सप्रू मार्ग स्थित जवाहर लाल जायसवाल द्वारा निर्मित अवैध निर्माण को भी नोटिस जारी किया है। 14 अगस्त 2005 को जारी नोटिस में विभाग के अधीक्षण पुरातत्वविद ने कहा है कि जवाहर लाल द्वारा कराया गया निर्माण संरक्षित स्मारक सिमेट्री चिरैया झील के प्रतिबंधित क्षेत्र में आता है। जो प्राचीन स्मारक एवं पुरास्थल व अवशेष 1959 के नियम 33 के प्राविधानों के विपरीत है। गौरतलब है कि पुरातत्व विभाग ने यह नोटिस जवाहर जायसवाल को छह साल पहले जारी की थी। विभाग के सूत्रों का कहना है कि जब नोटिस से जुड़े पक्षों द्वारा अधिकारियों की मिजाजपुर्सी में कमी की शिकायत आने लगती है तो अफसर अपना शिकंजा और कसने लगता है। ठीक इसी प्रकार का हथकंडा अफसरों ने जवाहर जायसवाल के विरुद्ध अपनाया तो मामला हाईकोर्ट ले जाना पड़ा। विभाग ने जब कोर्ट का रास्ता दिखाया तो जवाहर जायसवाल भी सीधे रास्ते पर आ गए। वर्ष 2009 में कोर्ट ने यथास्थिति का आदेश जारी कर दिया। मगर इसके बावजूद ऐसा खेल रचा गया कि कोर्ट का आदेश धरा का धरा ही रह गया। मसलन पुरातत्व विभाग ने जवाहर होटल के नाम से बने जिस अवैध निर्माण के खिलाफ नोटिस जारी की तथा अदालत तक मामला गया, उसी होटल का नाम विभागीय अफसरों की सांठ-गांठ के चलते होटल इंडिया अवध हो गया। इस होटल को बीते नवरात्र में चालू भी कर दिया गया। यही नहीं मेसर्स हिन्दुस्तान मोटर्स, श्रवण प्लाजा, तेज कुमार, अशोक टावर, सप्रू मार्ग स्थित महिन्द्रा शो रूम के मालिक मेसर्स नारायण आटोमोबाइल जैसे अवैध निर्माणकर्ता हों तो पुरातत्व विभाग के अफसरों की दुकानें खूब फलेंगी भी और फूलेंगी भी। विभाग के अधीक्षण पुरातत्वविद ने इन सभी को नोटिस जारी करते हुए कहा है कि उनके द्वारा कराया गया अवैध निर्माण संरक्षित स्मारक सिमेट्री चिरैया झील के प्रतिबंधित क्षेत्र में आता है जो प्राचीन स्मारक एवं पुरास्थल व अवशेष नियम 1959 के नियम 33 क के प्राविधानों के विपरीत है। विभाग ने नोटिस में विधिवत स्पष्ट किया है कि इसके उल्लंघन के दोषी को तीन महीने के कारावास अथवा पांच हजार रुपए तक अथवा दोनों दंड दिए जाने का प्रावधान है।
आरटीआई ऐक्टिविस्ट व अधिवक्ता एसपी मिश्र का कहना है कि सहारागंज माल के अलावा 70 से अधिक अवैध निर्माणधारक हैं जिसमें होटल से लेकर बड़ी-बड़ी बेशकीमती दुकानें तथा करोड़ों की लागत से बने लोगों के आवास हैं। पुरातत्व विभाग को जब तक पैसे नहीं मिलता है तब तक वह कार्रवाई की तलवार अवैध इमारतों पर लटकाए रहता है। मसलन इस क्रम में विभाग द्वारा जारी की गई 70 से अधिक नोटिस से पता चलता है कि वह अपनी जिम्मेदारियों को इससे ज्यादा नहीं निभा सकता है। उप अधीक्षण पुरातत्वविद इंदु प्रकाश ने डीएनए को बताया कि विभाग ने संरक्षित स्मारक के प्रतिबंधित क्षेत्र में बने अवैध निर्माणधारकों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज कराया है। सिर्फ प्राथमिक रिपोर्ट दर्ज कराना पर्याप्त है, के सवाल पर वह कहते हैं कि हमारी अपनी सीमाएं हैं। विभाग के पास स्टाफ नहीं है। कमिश्नर, डीएम, नगर आयुक्त व डीआईजी समेत सभी को 2005 में ही सूचित किया गया था। यहां तक अवैध निर्माण को भी गिराने का आदेश जारी किया गया है। मगर यह काम मेरा नहीं है।
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