Monday 25 July 2011

शशांक शेखर के अरमानों पर फिरा पानी


सुप्रीम कोर्ट के फैसले से नियुक्ति विभाग को झटका
सात पूर्व सैन्य अफसरों की पीसीएस में ज्येष्ठता पुनर्निर्धारित करने के आदेश

 पायलट से कैबिनेट सचिव बने शशांक शेखर बसपा सरकार की सरकारी मशीनरी को अपने हिसाब से हांक रहे हैं। उन्होंने खासकर आईएएस अफसरों को तो यह सबक सिखा ही दिया है कि उन्हें भी हैंडिल करना उनके बाएं हाथ का खेल है। लगता भी यही है कि नौकरशाही विशेषकर आईएएस लॉबी को मुंह चिढ़ाने की खातिर ही कैबिनेट सचिव साहब ने सेना से कमीशन प्राप्त पूर्व अधिकारियों को पीसीएस और पीपीएस में ज्येष्ठता प्रदान कर सीधे आईएएस व आईपीएस अफसर बना कर सबको हक्का-बक्का कर दिया है। सैन्य अफसरों को नियुक्ति विभाग के जरिए आईएएस का तमगा पहनाने में उन्होंने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की भी जरा सी परवाह नहीं की।

प्राप्त जानकारी के अनुसार कैबिनेट सचिव द्वारा नियुक्ति विभाग के जरिए आईएएस बनाने के इस खेल से न सिर्फ आईएएस-आईपीएस बल्कि पीसीएस और पीपीएस संवर्ग में भी हड़कम्प मचा हुआ है। मगर किसी में इतना साहस नहीं कि वह मुखर विरोध कर सके। कहने को तो नियुक्ति विभाग ने सेना से कमीशन प्राप्त अफसरों योगेन्द्र कुमार बहल, अरविंद कुमार द्विवेदी, सुशील कुमार यादव, संतोष कुमार द्विवेदी व सुधीर कुमार को पीसीएस में ज्येठता प्रदान कर आईएएस बना दिया है मगर इसके पीछे सीधे-सीधे कैबिनेट सचिव साहब की भूमिका की चर्चा पीसीएस संवर्ग में जोरों पर है। इसके साथ ही दो और अफसरों राजेन्द्र सिंह व अमिताभ प्रकाश का नाम भी ज्येष्ठता सूची में शामिल है जिन्हें आईएएस बनाने की योजना है। मगर उच्चतम न्यायालय ने बीते अपने पांच जुलाई के फैसले में नियुक्ति विभाग और उसके मार्गदर्शक कैबिनेट सचिव साहब को यह कह कर बड़ा सदमा पहुंचाया है कि आईएएस बने दिनकर प्रकाश दूबे, विशाल राय, योगेन्द्र कुमार बहल, अरविन्द कुमार द्विवेदी, सुशील कुमार यादव, संतोष कुमार द्विवेदी व सुधीर कुमार के साथ राजेन्द्र सिंह तथा अमिताभ प्रकाश की ज्येष्ठता फिर से निर्धारित की जाए क्योंकि जिस 1980 में बनी नियमावली का हवाला देकर सैन्य सेवा का सिविल सेवा में ज्येष्ठता का लाभ इन सभी को दिया गया है उसकी परिधि से ये सभी बाहर हैं। लिहाजा सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से राज्य सरकार और नियुक्ति विभाग को गहरा धक्का लगा है।

नियुक्ति विभाग की सूत्रों की मानें तो यह मामला काफी पुराना है जिसकी आड़ में कैबिनेट सचिव साहब ने आईएएस तबके को मुंह चिढ़ाने की खातिर सारा खेल खेला है। दरअसल सेना में कमीशन प्राप्त अफसरों के लिए 1973 में एक नियम बनाया गया था कि आपातकाल के दौरान जो वहां पांच साल की सर्विस करेंगे तो उन्हें आरक्षण के तौर पर पीसीएस एवं पीपीएस संर्वग की सेवा में आने पर पांच साल की अधिक ज्येष्ठता प्रदान कर दी जाएगी। इसके तहत ही सरकार ने 2003 में एक शासनादेश जारी कर सैन्य वियोजित अधिकारियों सुधीर कुमार एवं राजेन्द्र सिंह को यूपी सिविल सेवा में ज्येष्ठता निर्धारण का लाभ प्रदान कर दिया। इसके खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में तीन-तीन याचिकाएं दाखिल की गईं। हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने सरकार के शासनादेश को खंडित कर दिया तथा सुधीर कुमार व राजेन्द्र सिंह की ज्येष्ठता पुनर्निर्धारित किए जाने के आदेश दिए। वहीं इस आदेश के खिलाफ सुधीर कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की। इसी प्रकार पुलिस सेवा में कार्यरत सैन्य वियोजित अधिकारी राकेश कुमार जोली ने एक रिट हाईकोट में दायर की जिसमें उन्होंने सेना में की गई अपनी सेवा अवधि को पुलिस सेवा में वरिष्ठता निर्धारण के लिए प्रार्थना की थी। इस पर कोर्ट ने जोली को पुलिस सेवा में ज्येष्ठता निर्धारण का आदेश दे दिया।

हाईकोर्ट के इस निर्णय से क्षुब्ध पुलिस अफसर राजेन्द्र सिंह यादव व सुरेश्वर द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दो अलग-अलग याचिकाएं दायर की गईं। कोर्ट ने पुलिस अफसरों तथा पीसीएस अधिकारियों की चारों विशेष रिट एक साथ सम्बद्ध कर पांच जुलाई को फैसला सुनाया कि 1980 में बनी नियमावली के तहत उन्हीं पूर्व सैन्य अफसरों को ज्येष्ठता का लाभ मिलेगा जिन्होंने आपातकाल के दौरान सैन्य सेवा में कमीशन प्राप्त किया हो। उनके यूपी सिविल सेवा या पुलिस सेवा अथवा अन्य किसी अप्राविधिक सेवा में चयन की प्रक्रिया छह अगस्त 1978 से पूर्व सम्पन्न हो गई हो अथवा प्रारम्भ हो गई हो, को ही मानी जाएगी। इस आदेश से कैबिनेट सचिव द्वारा नियुक्ति विभाग के जरिए बनाए गए सातों आईएएस का कैडर खतरे में इसलिए पड़ गया है कि कोर्ट द्वारा निर्धारित तिथि छह अगस्त 1978 की परिधि से सभी सैन्य अफसरों की चयन प्रक्रिया बाहर है।

Saturday 23 July 2011

21 लाख हजम कर गए सीआईसी!


कम्प्यूटरीकरण के नाम पर मिले पैसों का आयोग नहीं दे रहा हिसाब

सीआईसी रणजीत सिंह पंकज की मनमानियां बदस्तूर जारी हैं। अब तो वह आयोग को मिलने वाले खर्चो का हिसाब-किताब भी देने से कतराने लगे हैं। केंद्र सरकार द्वारा कम्प्यूटरीकरण के नाम पर मिले 21 लाख रुपयों के खर्च होने का ब्यौरा देने से ही सूचना आयोग ने इनकार कर दिया है। सरकार के वफादार सिपाही की तरह वे अफसरों को बचाने के लिए अब अर्थदंड के मानदंड भी बदलने लगे हैं। आयोग की लीपापोती वाली कार्यशैली से तमाम विभागों के अफसर सूचना देने के नाम पर लाखों रुपए मांगने लगे हैं।

राज्य सूचना आयोग में कम्प्यूटरीकरण के नाम पर लाखों के वारे-न्यारे हो चुके हैं। मगर सूचना आयुक्तों द्वारा परित आदेशों को आयोग की वेबसाइट पर अपलोड करने की कार्यवाही अभी तक शुरू नहीं की जा सकी है। इस विफलता की कोई जिम्मेदारी इसलिए नहीं ले रहा है क्योंकि कम्प्यूटरीकरण के मद में मिले लाखों रुपयों का कहीं अता-पता ही नहीं है। आरटीआई ऐक्टिविस्ट उर्वशी शर्मा ने सूचना का अधिकार के तहत आयोग के जनसूचना अधिकारी से पूछा था कि राज्य सूचना आयोग के आदेशों को डिजिटल रूप में परिवर्तित कर संरक्षित करने के लिए केंद्र व राज्य सरकार ने कितना धन मुहैया कराया है? आयोग के आदेशों को वेबसाइट पर अपलोड न करने के लिए जिम्मेदार अधिकारी के नाम व पदनाम की सूचना प्रदान करें। जनसूचना अधिकारी माता प्रसाद ने उर्वशी शर्मा को भेजे जवाब में लिखा है कि सूचना आयोग में आयोग द्वारा धारित आदेशों को वेबसाइट पर अपलोड करने की कार्यवाही अभी तक प्रारम्भ नहीं हो पाई है। वेबसाइट पर अपलोड न करने के लिए किसी एक अधिकारी को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है। आयोग द्वारा पारित आदेशों को वेबसाइट पर अपलोड किए जाने की प्रकिया चल रही है। यह कितना हास्यास्पद है कि आयोग में ही सूचना के कानून की मंशा को रौंदा जा रहा है। केंद्र सरकार ने जिस मद के लिए पैसा भेजा था उस पर कितना काम हुआ और कितना पैसा खर्च हुआ तथा आयोग में कम्प्यूटरीकरण न होने के लिए कौन जिम्मेदार है, यह न बताना आयोग के लिए नितांत शर्मनाक है।

सबसे हैरत करने वाली बात तो यह है कि आयोग के पास सूचना आयुक्तों द्वारा पारित अंतरिम आदेशों का विवरण भी नहीं है। दूसरे मुख्य सूचना आयुक्त की कुर्सी पर बैठे रणजीत सिंह पंकज सरकार के खिलाफ सरकार के वफादार सिपाही जैसा काम करने का आरोप लगने लगा है। होमगार्डस मुख्यालय संबंधी एक मामले में आवेदनकर्ता सलीम बेग का कहना है कि पंकज आदेश लिखाते समय कहीं भी जिक्र नहीं करते कि जुर्माना 250 रुपए के हिसाब से कितने दिन का लगा रहे हैं? नियमानुसार 25 हजार रुपए जुर्माना है। बेग का कहना है कि अगर सूचना मांगने के दिन से विलंब 100 दिन का होता है तो 25 हजार रुपए जुर्माने की धनराशि वसूली जाती है।

Monday 18 July 2011

मुख्य सचिव के कठघरे में सरकार

छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति की नीति में किया संशोधन
कहा : यूपी के गरीब छात्रों को नहीं मिल रहा वजीफा
मुख्यमंत्री के पंसदीदा मुख्य सचिव अनूप मिश्र ही बसपा सरकार के कामकाज पर सवाल खड़ा कर रहे हैं। श्री मिश्र ने साफ-साफ शब्दों में सरकारी मशीनरी की असफलता उजागर करते हुए कहा है कि गरीब छात्रों को छात्रवृत्ति ही नहीं मिल रही है। गरीबों को सरकारी मदद न मिलने से मुख्य सचिव साहब इतने आहत हैं कि बाकायदा शैक्षिक सत्र 2011-12 में वितरित की जा रही समस्त छात्रवृत्तियों को तय समय में भेजने सम्बंधी संशोधित दिशा-निर्देश भी जारी कर दिया है।

श्री मिश्र की नाराजगी वाजिब भी है। मगर बसपा सरकार की मशीनरी को चुनौती देना कहीं उनके लिए महंगा न पड़ जाय। उन्होंने एक लिखित पत्र प्रमुख सचिव व सचिव बेसिक शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा, उच्च शिक्षा, प्राविधिक शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा, समाज कल्याण विभाग, पंचायतीराज विभाग, पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग तथा अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के साथ सभी मंडलायुक्तों व जिलाधिकारियों को भेजकर तल्ख शब्दों में नाराजगी प्रकट की है। उन्होंने लिखा है कि छात्रवृत्ति एवं शुल्क प्रतिपूर्ति वितरण प्रणाली की सम्पूर्ण प्रक्रिया का कम्प्यूटरीकरण किया जा चुका है किंतु पिछले वर्षो में यह अनुभव किया जा रहा है कि शासन द्वारा विस्तृत एवं स्पष्ट निर्देशों के बावजूद भी निर्धारित समय सीमा में अनेक शिक्षण संस्थाओं और वहां पढ़ रहे छात्रों से सम्बंधित डाटा विवरण की फीडिंग एवं उनकी अपलोडिंग तक नहीं की गई। इस कारण काफी बड़ी संख्या में छात्र-छात्राओं को छात्रवृत्ति एवं शुल्क प्रतिपूर्ति का लाभ या तो नहीं मिल सका या काफी विलम्ब से प्राप्त हुआ। छात्रवृत्ति एवं शुल्क प्रतिपूर्ति के वितरण सम्बंधित नई नीति निर्धारित करते हुए मुख्य सचिव ने अपने नए शासनादेश में कहा है कि अब विभिन्न शैक्षिक विभागों द्वारा अनुसूचिति जाति व जनजाति के छात्रों को देय शुल्क की धनराशि निर्धारित की गई है तथा जिसकी सूचना विभागों द्वारा वेबसाइट पर उपलब्ध करा दी गई है और यह धनराशि सम्बंधित मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्थानों के खाते में उपलब्ध कराई जाएगी क्योंकि इस श्रेणी के छात्रों को मुफ्त प्रवेश परीक्षा की सुविधा शासन द्वारा अनुमन्य है। इसी प्रकार अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक वर्ग एवं सामान्य वर्ग के गरीब अभिभावकों के आश्रित पात्र छात्र-छात्राओं को राजकीय संस्थानों के लिए निर्धारित शुल्क की धनराशि देय होती है जो सीधे सम्बंधित विभागों द्वारा छात्रों के बैंक खातों में उपलब्ध कराई जाएगी। श्री मिश्र ने कहा है कि शुल्क प्रतिपूर्ति की धनराशि उन्हीं मान्यता प्राप्त संस्थाओं के मान्यता प्राप्त पाठ्यक्रमों में अध्ययनरत छात्रों को देय होगी जिनका विवरण जिले के छात्रवृत्ति के मास्टर डाटा बेस में माध्यमिक शिक्षा, उच्च शिक्षा, प्राविधिक शिक्षा तथा चिकित्सा शिक्षा विभाग द्वारा सत्यापित कर अंकित कराया गया होगा। श्री मिश्र ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के छात्रों को छोड़कर शेष वर्गो के छात्रों की छात्रवृत्ति की प्राथमिकताएं भी निर्धारित करते हुए कहा है कि राजकीय एवं राजकीय सहायता प्राप्त संस्थाओं में अध्ययनरत छात्र-छात्राओं को सर्वप्रथम छात्रवृत्ति एवं शुल्क प्रतिपूर्ति की जाय। शेष संस्थाओं में अध्ययनरत छात्रों की उनके अभिभावकों की आय के आधार पर आरोही क्रम में सूची तैयार की जाय जिससे सबसे निर्धन छात्र को पहले छात्रवृत्ति दी जा सके। उन्होंने अन्य संस्थाओं को इस सुविधा से जोड़ने के लिए 31 अगस्त तक अंतिम तिथि निर्धारित भी कर दी है।छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति की नीति में किया संशोधन

Sunday 17 July 2011

11 साल का बच्चा बन गया सरकारी नौकर

पीडब्लूडी में डेढ़ दर्जन कम उम्र के कर्मचारियों को अफसरों ने कर दिया नियमित

पीडब्लूडी में भ्रष्टाचार कोई नई बात नहीं है। मगर भ्रष्टाचार का एक आश्चर्यजनक कारनामा सामने आया है। अधिशासी अभियंता प्रांतीय खंड लोक निर्माण विभाग सुलतानपुर ने अपनी जेबें भरने के लिए 11 साल से लेकर 16 साल के कर्मचारियों को सरकारी नौकरी दे दी। प्रांतीय खंड लोकनिर्माण विभाग सुलतानपुर के अधिशासी अभियंता ने 11 साल के रवीन्द्र कुमार को सरकारी नौकरी दे दी। वरिष्ठता सूची में क्रम संख्या 74 पर अंकित रवीन्द्र कुमार की जन्मतिथि 25 मार्च 1974 है। उनकी दैनिक वेतन भोगी के रूप में सेवा में आने की तिथि जून 1985 दर्शायी गई है। जिससे यह स्पष्ट होता है कि रवीन्द्र सेवा में आने के समय 11 वर्ष का था। इसी प्रकार वरिष्ठता सूची की क्रम संख्या 86 पर अशोक कुमार जिनकी जन्मतिथि 2 दिसम्बर 1970 है तथा दैनिक वेतन में आने की तिथि नवंबर 1986 है। यानी वे सेवा में आने के समय मात्र 16 साल के थे। वरिष्ठता सूची के क्रम संख्या 98 पर शिवनाथ की जन्मतिथि 1 जनवरी 1971 है। सेवा में आने की तिथि 1 मई 1987 है जो उनकी उम्र 16 साल बताती है। क्रम संख्या 106 पर दुर्विजय सिंह की जन्मतिथि 25 अगस्त 1971 है। सेवा में आने की तिथि 1 नवबर 1987 है। यह भी 16 साल का है। क्रम संख्या 107 पर राम अभिलाख की जन्मतिथि 8 मई 1970 है। सेवा में आने की तिथि 1 दिसंबर 1987 है। वह 17 साल का है। क्रम संख्या 122 पर अजय कुमार की जन्मतिथि 19 सितंबर 1975 है। सेवा में आने की तिथि 1 जनवरी 1979 है। सेवा में आने के समय वह 14 साल का था। इसी प्रकार सुलतानपुर के वकचार्ज ज्येष्ठता सूची के क्रम संख्या 130 पर सत्यनारायन, क्रम संख्या 131 पर जय नारायण, क्रम संख्या 132 पर कृष्ण स्वरूप, क्रम संख्या 133 पर राज नारायण, क्रम संख्या 136 पर हरिओम, क्रम संख्या 111 पर राम सुरोहित, क्रम संख्या 113 पर संतोष कुमार, क्रम संख्या 114 पर राजेन्द्र कुमार का नाम उन लोगों में है जिनकी जन्मतिथि और दैनिक वेतन में आने की तिथि व्यापक भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ करती है। अधिवक्ता त्रिभुवन कुमार गुप्ता ने लोक निर्माण विभाग के सचिव को लिखे शिकायती पत्र में प्रांतीय खंड फैजाबाद के तहत आने वाले सुलतानपुर जिले में हुई धांधली की जांच की मांग की है। उन्होंने कहा है कि वर्ष 2009 में जारी वरिष्ठता सूची से यह उजागर हो गया है कि बड़े अफसरों व इंजीनियरों के संरक्षण में किस तरह भ्रष्टाचार को अंजाम दिया जा रहा है। श्री गुप्त ने डीएनए को बताया कि कम उम्र के कर्मचारियों से मोटी रकम लेकर वरिष्ठता सूची में शामिल करने की शिकायत उन्हें मिली थी। इस सम्बंध में उन्होंने आरटीआई के तहत प्रांतीय खंड सुलतानपुर से सूचना भी मांगी है। कम उम्र में कर्मचारियों को लोनिवि अफसरों व इंजीनयिरों द्वारा नियमित किए जाने का मामला लेबर एक्ट के साथ चतुर्थ श्रेणी विनियमितीकरण नियम 2001 का खुला उल्लंघन है।

Friday 8 July 2011

कुबरा की क्वालीफिकेशन क्या है मैडम

हाईकोर्ट के अधिवक्ता ने आरटीआई के तहत मुख्यमंत्री दफ्तर से मांगी सूचना

 मुख्यमंत्री मायावती के सूचना सलाहकार जमील अख्तर की पत्नी खजीअतुल कुबरा को सूचना आयुक्त बनाए जाने पर सवाल खड़ा होने लगा है। हर बार की तरह इस बार भी बगैर नेता विरोधी दल की सहमति के सूबे की मुखिया द्वारा एक पक्षीय निर्णय के मामले ने तूल पकड़ना शुरू कर दिया है। मुख्यमंत्री दफ्तर से यह पूछा भी जाने लगा है कि श्रीमती कुबरा किस क्षेत्र में विशेष योग्यता रखती हैं? क्या उन्हें इसलिए सूचना आयुक्त बना दिया गया कि वह मायावती की सूचना सलाहकार की पत्नी हैं?

दरअसल मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में गठित समिति द्वारा श्रीमती कुबरा को सूचना आयुक्त बनाए जाने की एक पक्षीय फैसला पहली बार नहीं हुआ है। इसके पहले सूचना आयुक्त ज्ञान प्रकाश मौर्य की नियुक्ति के मामले में भी समिति ने नेता विरोधी दल की सहमति को दर किनार रखते हुए एक तरफा निर्णय लिया था। मगर इस बार हाईकोर्ट के अधिवक्ता त्रिभुवन कुमार गुप्ता ने तो बाकायदा मुख्यमंत्री के जनसूचना अधिकारी से आरटीआई के तहत ही वे सारे अभिलेखीय साक्ष्य सहित सूचना देने की मांग की है कि आखिर श्रीमती कुबरा किस क्षेत्र में विशेष योग्यता रखती हैं? उनकी नियुक्ति से सम्बंधित पत्रावलियों, तथा उनकी क्वालीफिकेशन क्या है, की सूचना मुख्यमंत्री दफ्तर दे। इसके साथ ही अधिवक्ता ने मुख्यमंत्री से इस नियुक्ति के सम्बंध में सूचना मांगी है कि क्या सूचना आयुक्त की रिक्ति के विरुद्ध सरकार द्वारा शासकीय गजट में अधिसूचना प्रकाशित की गई थी? मुख्यमंत्री के सूचना सलाहकार की पत्नी की नियुक्ति सम्बंधी पत्रावली में नेता विरोधी दल ने क्या टिप्पणी की है? मुख्यमंत्री दफ्तर उसकी छाया प्रति उपलब्ध कराए।

उल्लेखनीय है कि हाईकोर्ट के इस अधिवक्ता ने भी सूचना आयुक्त बनने के लिए ज्ञानेन्द्र शर्मा के सेवानिवृत्ति के बाद सूचना आयुक्तों के नियुक्ति सम्बंधी समिति की अध्यक्ष व मुख्यमंत्री तथा राज्यपाल बीएल जोशी को एक आवेदन 12 जनवरी को भेजा था।

Tuesday 5 July 2011

जौहर का जिन्न फिर बाहर

आजम ने कहा : मुसलमानों से इतनी दुश्मनी क्यों
सूचना आयोग ने विश्वविालय से संबंधित सारे रिकॉर्ड तलब किए

सियासी मुसीबतों का सामना कर रही माया सरकार के सामने उसके पसंदीदा अफसर ही आए दिन कोई न कोई नए संकट खड़े कर रहे हैं। मौलाना जौहर अली विश्वविालय का जिन्न फिर बोतल से बाहर आ गया है। बसपा सरकार के पसंदीदा अफसर ही न सिर्फ जौहर विवि जैसे मुद्दे को तूल देकर विरोधी दल सपा को हावी होने का मौका दे रहे हैं बल्कि मुख्यमंत्री पर नई मुसीबतें थोप रहे हैं। रामपुर स्थित मौलाना मुहम्मद अली जौहर विश्वविालय को अनापत्ति प्रमाण पत्र न दिए जाने समेत तमाम मुद्दों को लेकर राज्य सूचना आयोग ने उच्च शिक्षा विभाग के जनसूचना अधिकारी को विश्वविालय सम्बंधी समस्त रिकॉर्ड के साथ आयोग तलब किया है।

उल्लेखनीय है कि पूर्ववर्ती सपा सरकार के दौरान काबीना मंत्री मोहम्मद आजम खान की पहल से रामपुर में जौहर विश्वविालय की स्थापना की गई थी। मगर बसपा सरकार के सत्तारूढ़ होते ही विवि सम्बंधी समस्त गतिविधियां अचानक थम सी गईं। सरकार ने राजनीतिक विरोध के चलते विश्वविालय को अनापत्ति प्रमाण पत्र देने से मना कर दिया। मुरादाबाद निवासी सलीम बेग ने राज्यपाल के जनसूचना अधिकारी को एक आवेदन देकर पूछा था कि राज्य सरकार जौहर विश्वविालय को कितने दिनों में अनापत्ति प्रमाण पत्र प्रदान कर देगी? सूचना का अधिकार के तहत मांगी गई इस जानकारी सम्बंधी पत्र को राज्यपाल के जनसूचना अधिकारी ने उच्च शिक्षा विभाग के सचिव को अंतरित कर दिया। मगर विभाग द्वारा समय बीत जाने के बाद भी कोई जानकारी नहीं दी गई। मगर यह मामला सूचना आयोग में जाने पर बसपा सरकार के पसंदीदा अफसर रहे और आयोग का नेतृत्व कर रहे मुख्य सूचना आयुक्त रणजीत सिंह पंकज के करीबी राज्य सूचना आयुक्त राम हरि विजय त्रिपाठी ने उच्च शिक्षा विभाग के अफसरों की उदासीनता को लेकर न सिर्फ फटकार लगाई बल्कि विभाग के जनसूचना अधिकारी को विवि सम्बंधी सारे रिकॉर्ड आयोग में 26 जुलाई को तलब करने का आदेश सुनाया है। राज्य सूचना आयोग के इस निर्णय से समाजवादी पार्टी व उसके वरिष्ठ नेता आजम खान को सरकार पर हमले का पूरा मौका मिल गया है। मुख्यमंत्री मायावती और बसपाइयों पर हमला बोलते हुए आजम ने कहा कि सरकार को डर पैदा हो गया है। गर्वनर ने तो अपना काम कर दिया है। जौहर विवि को अनापत्ति प्रमाण पत्र तो उच्च शिक्षा विभाग का बाबू ही दे देगा। पता नहीं मायावती को मुसलमानों से इतनी दुश्मनी क्यों है? उन्होंने कहा कि जौहर विवि नोटिफिकेशन की तीनों शर्ते पूर्ण करता है। विवि के पास 250 एकड़ जमीन है। 24 हजार स्क्वायर मीटर के बजाय 40 हजार स्क्वायर मीटर में विवि के भवन बनकर तैयार हैं तथा सिक्योरिटी फीस के रूप में 10 लाख रुपए पिछले पांच सालों से जमा हैं। मगर मायावती को जौहर विवि पर सिर्फ बुलडोजर चलाने की याद आती है। सरकार में बैठे लोगों के अनुयायी तो लाखों रुपए की लोहे की छड़ उठा ले गए। विवि के लाखों के अन्य सामान डकैती कर ले गए। हम फिर भी चाहते हैं कि मायावती कृपा कर दें तो बच्चे शिक्षा ग्रहण करने लगें। अब तक तो पांच हजार बच्चे डिग्रियां लेकर निकल गए होते।

डायरी में कैद है 21 करोड़ की बंदरबांट!

अधिशासी अभियंता ने डायरी वापस करने के लिए की दो लाख की पेशकश
डायरी में तीन विशेष सचिवों के नाम से हड़कंप 


स्थान जनपथ मार्केट हजरतगंज, दिनांक 27 मई को एक डायरी पड़ी मिली। डायरी के पन्नों में कैद है भ्रष्टाचार के करोड़ों व लाखों रुपयों के बंदरबाट की कहानी। 27 मई को जनपथ सचिवालय से गुजर रहे त्रिभुवन कुमार गुप्ता नाम के एक वकील साहब को संयोग से वह डायरी हाथ लग गई। उन्होंने एक अखबार के जरिए डायरी के पाने की सूचना छपवाई। डायरी मालिक ने जब इसका संज्ञान नहीं लिया तो वकील साहब ने लाखों-करोड़ों की पोल खोलने वाली इस डायरी की इत्तिला मुख्य सचिव व पीडब्लूडी के प्रमुख सचिव रवीन्द्र सिंह को दी। पूरे विभाग में हड़कम्प सा मच गया। विभाग में मची अफरातफरी से घबराए डायरी मालिक ने वकील साहब को डायरी देने के बदले में दो लाख रुपए की पेशकश भी कर डाली। मगर वहीं मामले को तूल पकड़ता देख वकील साहब ने डायरी को लिफाफे में बद कर हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को भेज दिया। जिस डायरी ने पीडब्लूडी के अफसरों व इंजीनियरों की नींद उड़ा दी वह डायरी है आगरा प्रांतीय खंड के अधिशासी अभियंता पीके मित्तल की। अधिवक्ता त्रिभुवन कुमार गुप्ता ने डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट को बताया कि मित्तल के नाम लिखी डायरी उनको हजरतगंज के जनपथ मार्केट में पड़ी मिली थी। डायरी के कुछ पन्नों पर विभाग के विशेष सचिवों, अधिकारियों व कर्मचारियों से लेकर विभागीय कामकाज के मद में लेन-देन का उल्लेख है। किसी केएनबीजी के उल्लेख में 11 किलो मीटर तथा जिसका खर्च 21 करोड़ रुपए डायरी में दर्ज है और वह प्रमुख अभियंता कार्यालय से सम्बंधित डिवीजन को वापस जाना दर्शाया गया है। इससे डायरी प्रथम दृष्टया महत्वपूर्ण प्रतीत होती है जो रुपयों के अवैध लेन देन से सम्बंधित है। श्री गुप्त ने मुख्य सचिव अनूप मिश्र को लिखे पत्र में कहा है कि ऐसा लगता है कि डायरी में अंकित रुपयों का लेन-देन अवैध तरीके से हुआ है। डायरी में इन्दु प्रकाश सिंह, संजीव, रिजवी, सोनी, वी सिंह, राजेन्द्र सिंह, रमा शंकर चौधरी, आई राय के नाम के सामने रुपयों के लेन-देन का उल्लेख किया गया है। उन्होंने बताया कि इसमें से इष्टदेव राय, हेमंतराज सिंह चौहान व एएम रिजवी विभाग के विशेष सचिव हैं। डायरी में विशेष सचिव इष्टदेव राय के नाम के सामने एक लाख रुपए, विशेष सचिव हेमंत राज सिंह चौहान के नाम के सामने 50 हजार, विशेष सचिव रिजवी के नाम के सामने 25 हजार रुपए समेत संजीव 50 हजार, संतराम 20 हजार रुपए, संतोष 10 हजार रुपए, जसवीर 10 हजार रुपए, सोनी 10 हजार रुपए, वी सिंह 10 हजार रुपए, राजेन्द्र सिंह के नाम के सामने 25 हजार रुपए अंकित है। इस प्रकार डायरी में पीएफएडी बृजेश करके लिखा गया है और उसके सामने 8 हजार रुपए तथा प्यून के सामने 25 हजार रुपए के लेन-देन के विवरण के साथ कुछ ऐसे भी नाम अंकित हैं जो अस्पष्ट हैं और जिनके सामने क्रमश: पांच लाख, दो लाख व कोर्ट क्लर्क राजकुमार के नाम के सामने आठ हजार रुपए दर्शाया गया है। बहरहाल अधिवक्ता त्रिभुवन कुमार गुप्ता ने डायरी इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को भेज दिया है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि अधिशासी अभियंता पीके मित्तल ने उसे डायरी वापस करने के एवज में दो लाख रुपए देने की पेशकश भी की थी। विभाग के एक क्लर्क राजकुमार ने भी फोन से डायरी वापस करने को कहा तथा यह भी कहा कि आप डायरी नहीं देंगे तो साहब मुझे सस्पेंड कर देंगे। पीडब्लूडी में यह चर्चा है कि डायरी में जिस 21 करोड़ के केएनबीजी का उल्लेख है शायद उसी के यह बंदरबाट की कहानी है। इस पूरे मामले को लेकर डीएनए संवाददाता ने जब विभाग के प्रमुख सचिव रवीन्द्र सिंह के मोबाइल नंबर 9839173644 पर सम्पर्क कर प्रतिक्रिया जाननी चाही तो उन्होंने न ही फोन उठाया और न ही मैसेज द्वारा सूचित किए जाने के बाद भी कोई उत्तर दिया। इस प्रकार दो विशेष सचिवों क्रमश: इष्टदेव प्रसाद राय और एएम रिजवी ने भी फोन नहीं उठाया।