Thursday 26 May 2011

लाशों के ढेर पर सरकार

35,256 लाशों को लावारिस बताकर पल्ला झाड़ा
यूपी में बगैर चीरफाड़ के लावारिस लाशों का फर्जी पोस्टमार्टम



यूपी में लाशों के ढेर ने सनसनी पैदा कर रखी है। सरकार और पुलिस महकमा इन लाशों को लावारिस बता कर पल्ला झाड़ लेता है तो प्रदेश में लाशों का धंधा करने वाले डॉक्टरों के गिरोह भी सक्रिय हैं जो चीरफाड़ किए बिना ही लावारिस लाशों की फर्जी पोस्टमार्टम रिपोर्ट तैयार कर देते हैं। पिछले 10 सालों में 35,256 लाशों (ये सरकारी आंकड़े हैं जो विश्वास की कसौटी पर खरे नहीं उतरते हैं) को राज्य अपराध अभिलेख ब्यूरो लावारिस बता रहा है। ये लाशें किसकी थीं? लावारिस लाशों की चीरफाड़ किए बिना ही फर्जी पोस्टमार्टम क्यों किया जा रहा है? इन सवालों ने सरकार और पुलिस के आला अफसरों को कटघरे में खड़ा कर दिया है।

आरटीआई ऐक्टिविस्ट सलीम बेग द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गई सूचना में राज्य अपराध अभिलेख ब्यूरो ने जो जानकारी उपलब्ध कराई है उससे तो कई सवाल खड़े हो गए हैं। ऐक्टिविस्ट ने पुलिस महानिदेशक से पूछा था कि पिछले 10 वर्षो में यूपी के सभी थाना क्षेत्रों में कितनी लावारिस लाशें पाई गईं? उनके पोस्टमार्टम की तिथि थाना व वर्षवार उपलब्ध कराएं। लावारिस लाशों से सम्बंधित मुकदमा, अपराध संख्या एवं उनका अंतिम संस्कार करने वाले व्यक्तियों व संस्थाओं के पते, सरकार किस मद से लावारिस लाशों के क्रियाकर्म के लिए धन उपलब्ध कराती है समेत आदि जानकारियां मांगी थीं? राज्य अपराध अभिलेख ब्यूरो के पुलिस अधीक्षक ने पुलिस महानिदेशक के जनसूचना अधिकारी को पत्र लिख कर बताया है कि ब्यूरो मात्र अज्ञात शवों की पहचान के लिए कार्रवाई कराता है। पोस्टमार्टम करने का दिनांक , जिला, थाना एवं वर्षवार की जानकारी का वह संकलन नहीं करता है। हैरान करने वाली बात यह है कि इस तथ्य को न तो राज्य अपराध अभिलेख ब्यूरो स्पष्ट कर पा रहा है और न ही पुलिस महानिदेशक का कार्यालय। इससे तो लावारिस लाशों को लेकर तमाम संदेह उत्पन्न होने लगे हैं। आखिर दो जिम्मेदार विभाग पल्ला क्यों झाड़ रहे हैं? इनकी जानकारी कौन देगा?

राज्य अपराध अभिलेख ब्यूरो ने बताया है कि वर्ष 2001 में 5310, 2002 में 4081, 2003 में 4327, 2004 में 3804, 2005 में 3580, 2006 में 3447, 2007 में 3482, 2008 में 2126, 2009 में 3297 तथा 2010 में एकदम से गिर कर 1802 लावारिश लाशें बरामद की गईं। सरकारी आंकड़े जब इतनी तादात बता रहे हैं तो इन लाशों की वास्तविक संख्या का सहज अनुमान लगाया जा सकता है। सिर्फ लाशों की संख्या में ही सरकारी स्तर पर खेल नहीं होता है बल्कि अब तो लाशों का धंधा भी जोरों पर चल रहा है। अभी मुरादाबाद में फर्जी पोस्टमार्टम के मामले में केन्द्रीय पुलिस अस्पताल के नेत्र सर्जन और फार्मासिस्ट समेत तीन लोगों का गिरोह प्रकाश में आया है। इन लोगों के पास से एक स्ट्रेचर पर बंधी दो साबुत लावारिस लाशें बरामद की गईं है। ये दोनों लावारिश लाशें जीआरपी से आईं थी जिन्हें बिना चीरेफाड़े के ही डॉक्टर और पोस्टमार्टम स्टाफ ने उनकी फर्जी पोस्टमार्टम रिपोर्ट बनाकर जीआरपी को भेज दी थी। इधर चर्चा यह भी है कि प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में मानव शरीर पर शोध के लिए जो लाशें मानक के अनुसार उपलब्ध कराई जानी चाहिए वह भी नहीं दी जाती हैं बल्कि इन मेडिकल कॉलेजों की सीधी सेटिंग अस्पतालों की मरचरी से होती है।

Wednesday 25 May 2011

बड़े तीस मार खां निकले जज साहब!

सूचना आयुक्त ने हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार बजट से पूछा, जांच में कितना समय लगेगा
विशेष सचिव न्याय नरेन्द्र सिंह रावल की सेवा पुस्तिका से अर्हता व जाति सर्टिफिकेट गायब

 सूबे में एक जज साहब जो विशेष सचिव भी हैं उनके खिलाफ शिकायत है कि उन्होंने फर्जी जाति प्रमाण पत्र लगा कर 23 दिसंबर 1979 में मुंसिफ मजिस्ट्रेट की नौकरी हासिल कर ली। सालों बाद जज साहब के फर्जीफिकेशन का मामला उजागर हुआ। इतने साल नौकरी करते-करते साहब का रसूख इतना पावरदार हो गया कि हाईकोर्ट से लेकर सूचना आयोग तक हर जगह उनकी शिकायत हुई मगर उनकी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। अलबत्ता जिसने मुख्यमंत्री मायावती तक साहब के विरुद्ध शिकायत की वह भी उन्हें टश से मश नहीं कर पाया। जज साहब के विरुद्ध राज्य सूचना आयोग ने जब उनकी जाति का सर्टिफिकेट मांगा तो उन्होंने सूचना आयुक्त को ही कटघरे में खड़ा कर दिया है।

बताते चलें कि वह जज साहब हैं विशेष सचिव न्याय नरेन्द्र सिंह रावल और उनके खिलाफ मोर्चा खोल रखा है बसपा के ही वरिष्ठ नेता अजय कुमार पोइया ने। बसपा नेता ने वर्ष 2009 में ही मुख्यमंत्री मायावती को पत्र लिखकर विशेष सचिव के खिलाफ कार्रवाई किए जाने की मांग की थी। पोइया ने आरोप लगाया है कि नरेन्द्र सिंह रावल सामान्य जाति अहेरिया से ताल्लुक रखते हैं और उन्होंने अनुसूचित जाति का फर्जी प्रमाण पत्र लगाकर मुंसिफ मजिस्ट्रेट की नौकरी हासिल कर ली थी। पिछले 20 सालों से वे सरकारी सुख-सुविधाओं का लुत्फ उठा रहे हैं। यह मामला हाईकोर्ट में भी चल रहा है। शिकायतकर्ता बसपा नेता ने जब आरटीआई का सहारा लिया और हाईकोर्ट के जनसूचना अधिकारी से जज साहब का जाति प्रमाण पत्र और अर्हता सम्बंधी अभिलेख मांगा तो प्रतिवादी हाईकोर्ट के जनसूचना अधिकारी की ओर से सूचना आयोग में उपस्थित सीपीआईओ अजय कुमार ने कहा कि रावल की सेवा पुस्तिका से उनकी अर्हता एवं जाति सर्टिफिकेट अभिलेख गायब हैं। इस सम्बंध में उन्होंने सम्बंधित अधिकारियों को पत्र लिखा है। सूचना आयोग में 18 अप्रैल को हुई इस मामले की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट के जनसूचना अधिकारी के प्रतिनिधि ने बताया कि नरेन्द्र सिंह रावल को भी पत्र लिखा गया है परन्तु उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया है। सीपीआईओ ने बताया कि इस प्रकरण में रजिस्ट्रार आके तिवारी ने 27 मई 2010 को जांच के लिए एक पत्र हाईकोर्ट के महानिबंधक के समक्ष प्रस्तुत किया था। जिस पर महानिबंधक ने आरके तिवारी को जांच अधिकारी नियुक्त किया है। राज्य सूचना आयुक्त वीरेन्द्र सक्सेना ने पूरे मामले की सुनवाई के बाद अपने आदेश में कहा कि लगभग 10 महीने पूरे होने जा रहे हैं परन्तु कोई जांच रिपोर्ट प्रतिवादी को प्राप्त नहीं हुई है। सूचना आयुक्त ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि यह भी आश्चर्य की बात है कि नरेन्द्र सिंह रावल लगभग पिछले दो दशक से बिना अर्हता व जाति प्रमाण पत्र के सेवा में कार्यरत हैं। उनके विरुद्ध अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। सूचना आयुक्त ने हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार बजट से पूछा है कि यह जांच पूरी करने में अभी कितना और समय लगेगा? उन्होंने इस आदेश की प्रति मुख्य न्यायाधीश एफआई रिबेलो को भेजने को कहा। उधर जज साहब ने अपने को चारो ओर से घिरते देख दलित संगठनों को आगे कर दिया है। पता चला है कि विशेष सचिव न्याय ने अखिल भारतीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति कर्मचारी कल्याण संघ के जरिए सूचना आयुक्त को ही यह कहते हुए कटघरे में खड़ा कर दिया है कि वे किन्हीं कारणों से नरेन्द्र सिंह रावल को जानबूझ कर प्रताड़ित करना चाहते हैं।

Tuesday 24 May 2011

आठ साल से गिरवी हैं बाबा साहब!

सरकार के पास बुतों के पैसे देने का बूता नहीं, 

भाजपा के आदर्श दीनदयाल उपाध्याय भी मूर्तिकारों के बंधक



बुतों के बलबूते पिछले चार साल से लगातार सुर्खियों में रहीं माया मैडम ने अब बाबा साहब भीमराव अंबेडकर से भी किनारा कर लिया है। बसपा सरकार ने बाबा साहब की तैयार मूर्ति को मूर्तिकार के पास आठ साल से गिरवी रख रखा है। सरकार मूर्तिकार को पूरे पैसे का भुगतान ही नहीं कर रही है, जबकि 6,60,000 रुपए की कीमत वाली अंबेडकर की 15 फिट ऊंची कांस्य प्रतिमा मूर्तिकार पी राजीव नयन के पास बनी रखी है। न तो संस्कृति विभाग के पास फुर्सत है और न ही अंबेडकर के नाम पर सत्ता में आई माया सरकार के पास इतना पैसा है कि वह मूर्तिकार से मूर्ति लेकर उचित स्थान पर स्थापित कर दे।

लगता है कि मुख्यमंत्री मायावती का भी मूर्तियों से दिल भर गया है। अब उन्होंने बाबा साहब भीमराव अंबेडकर, मान्यवर कांशीराम समेत अन्य बहुजन समाज से जुड़े प्रेरक महापुरुषों के बुत जगह-जगह खड़े करने से किनारा कस लिया है। अधिवक्ता एसपी मिश्र द्वारा आरटीआई के तहत पूछे गए एक सवाल के जवाब में संस्कृति विभाग की जनसूचना अधिकारी अनुराधा गोयल ने 18 मई को लिखित रूप से बताया है कि डॉ. भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा मूर्तिकार के पास बनी रखी है। विभाग ने सिर्फ 75 प्रतिशत यानि 4,40,000 रुपए ही भुगतान किया है, अभी मूर्तिकार को 2,20,000 रुपए भुगतान करना बाकी है।

सिर्फ बहुजन समाज की विचारधारा से ताल्लुक रखने वाले विचारक और उत्प्रेरक महापुरुषों की प्रतिमाएं ही मूर्तिकारों के पास बंधक नहीं हैं बल्कि समाजवादी राजनीति के पुरोधा रहे राज नारायण तथा कपरूरी ठाकुर की प्रतिमाएं भी मूर्तिकारों के पास बनी रखी हैं। नौ फिट ऊंची सीमेंट व कंक्रीट की 1 लाख 70 हजार रुपए की कीमत वाली स्व. कपरूरी ठाकुर की प्रतिमा के लिए संस्कृति विभाग ने अभी तक 1,27,500 रुपए का ही मूर्तिकार को भुगतान किया है। 42,500 रुपए मूर्तिकार को देने बाकी हैं। समाजवादी नेता स्व. राज नारायण की 2 लाख 75 हजार रुपए की कीमत वाली सात फिट ऊंची प्रतिमा भी मूर्तिकार डीआर सिंह सीपाल के पास बनी रखी है। विभाग ने 206250 रुपए ही भुगतान किए हैं। इसी प्रकार भाजपाइयों के राजनीतिक आदर्श पंडित दीन दयाल उपाध्याय की महज 35 हजार रुपए की कीमत वाली प्रतिमा भी मूर्तिकार ललित कुमार गुप्ता के पास बंधक है। वर्ष 2001 में ही तत्कालीन भाजपा सरकार ने दीन दयाल की इस प्रतिमा को बनाने का आदेश दिया था। संस्कृति विभाग ने 35 हजार में से 26250 रुपए का ही मूर्तिकार को भुगतान किया। भाजपा सरकार ने वर्ष 2001 में ही रानी अहिल्या बाई होलकर, महारानी दुर्गावती, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मंगल पांडेय और सरदार वल्लभ भाई पटेल की प्रतिमाएं बनाए जाने का आदेश दिया था। इन सभी की प्रतिमाएं मूर्तिकारों के पास बंधक के रूप में रखी हैं।

इसके साथ ही मूर्तिकारों के पास सम्राट चन्द्रगुप्त, स्व. चन्द्रभान गुप्ता, गणेश शंकर विार्थी, वीर लाखा बंजारा, राहुल सांस्कृत्यायन, महाराणा प्रताप की तीन प्रतिमाएं समेत स्व. नरायण सिंह, डॉ. काशी प्रसाद जायसवाल, पं. ब्रजभूषण मिश्र, राम कृष्ण खत्री, सी वाई चिंतामणि, स्व. सालिग राम जायसवाल, श्राज नरायण व गौरी भइया की मूर्तियां मूर्तिकारों के पास बनी रखी हैं। संस्कृति विभाग के अनुसार मार्च 2011 तक डॉ. भीमराव अंबेडकर, कपरूरी ठाकुर, झलकारी बाई, महराजा अग्रसेन व चौधरी चरण सिंह की मूर्तियां स्थापित करवा दीं और शेष पैसे मूर्तिकारों को नहीं दिए।

Monday 23 May 2011

15 रुपये में महिलाएं बन रहीं ममता और जयललिता!

बाहुबलियों ने एनजीओ के जरिए पैसा कमाने का शुरू किया नया धंधा
जिला कोऑर्डिनेटर को एनजीओ के बारे में जानकारी नहीं

चौंकिए नहीं! चर्चा यही है। बिहार के बाहुबली और माफिया पूर्वाचल में महिला सशक्तीकरण अभियान के नाम पर 15 रुपए में महिलाओं को ममता बनर्जी और जयललिता बनाने का सब्जबाग दिखा रहे हैं। वे महिलाओं में राजनीतिक, कानूनी और लिव इन रिलेशनशिप से जुड़े अधिकारों के खयाली पुलाव पका रहे हैं। उनके निशाने पर हैं पूर्वाचल की कम पढ़ी-लिखी तथा शिक्षित बेरोजगार महिलाएं।

पता चला है कि जौनपुर में एनजीओ के कर्ताधर्ताओं ने लाखों महिलाओं को अपनी झूठी और फरेबी बातों से आत्म निर्भर व सशक्त बनाने के बहाने उनसे 15-15 रुपए वसूले और फरार हो गए। जिले के हेडक्वार्टर से लेकर न्याय पंचायत स्तर तक सर्वेयर नियुक्त कर महिलाओं से फार्म भरवाए और 15 रुपए के बदले में उन्हें महिला आरक्षण, घरेलू हिंसा, दहेज प्रथा तथा ब्यूटी टिप्स की हैंडबुक बांट कर चलते बने। दरअसल बिहार में मुख्यमंत्री नितीश कुमार द्वारा शिकंजा कसने से घबराए बड़े-बड़े बाहुबली और माफियाओं ने एनजीओ के जरिए पैसा कमाने का धंधा शुरू किया है। उन्होंने पूर्वाचल के पिछड़े जिलों को अपना निशाना बनाया है जहां केन्द्र व राज्य सरकार विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं पर अरबों खर्च कर रही है। ये योजनाएं ज्यादातर एनजीओ के जरिए ही संचालित होती हैं। पिछले चार महीनों में महिला सशक्तीकरण अभियान के तहत जौनपुर, वाराणसी, गाजीपुर, मिर्जापुर समेत अनेक जिलों में महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वालम्बी बनाने के लिए एक-एक न्यायपंचायत से हजारों की तादात में बेरोजगार महिलाओं से लाखों रुपए वसूल कर एनजीओ के मुख्य कर्ता-धर्ताओं के फरार होने की शिकायतें आई हैं।

बिहार की जो एनजीओ पूर्वाचल में महिलाओं को सशक्त बनाने के बदले लाखों रुपए वसूल कर चम्पत हो गई, उसकी सत्यता जानने के लिए डीएनए संवाददाता ने जौनपुर जनपद स्थित सुजानगंज ब्लॉक के विभिन्न गांवों में जा कर पड़ताल की तो पता चला कि एनजीओ ने जिले में जिन्हें अपना सर्वेयर नियुक्त किया था वे भी अपने को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। बसरही न्याय पंचायत की श्रीमती रागिनी तिवारी को एनजीओ ने सर्वेयर नियुक्त किया था। उन्होंने बताया कि इच्छुक महिलाओं से तकरीबन पांच महीने पहले 15-15 रुपए लेकर फार्म भरवाए गए थे। सिर्फ बसरही न्याय पंचायत में 800 महिलाओं ने 15 रुपए देकर फार्म भरे थे। रागिनी ने बताया कि ये पैसा ब्लाक स्तर के कोऑर्डिनेटर के जरिए जिला कोऑर्डिनेटर व मंडल स्तर के कोऑर्डिनेटर तक गया था। एनजीओ ने इसके बदले महिलाओं को स्वालम्बी बनाने के लिए विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण चलाए जाने तथा सिलाई-कढ़ाई व अन्य प्रकार की मशीनें मुफ्त देने की बात कही थी। लेकिन पैसा लेने के बाद आज तक कोई दिखाई नहीं पड़ा।

डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट ने जौनपुर जिले के एनजीओ के जिला कोऑर्डिनेटर पदमनाथ दुबे के मोबाइल नम्बर 9450508127 पर सम्पर्क किया तो उसके भाई ने फोन उठाया और बात करने पर सारी सच्चाई उगल कर रख दी। उसने बताया कि एनजीओ द्वारा महिला सशक्तीकरण का अभियान बहुत पहले ही बंद हो गया है। हम तो इसमें नौकरी करते हैं। एनजीओ का संचालक बिहार का अंगद पांडेय है। अभी हम लोगों ने अंगद के खिलाफ 10-12 दिन पहले लीगल नोटिस भिजवाया है। वह मेरे भी चार लाख रुपए लेकर फरार हो गया है। इसके ठीक विपरीत पदमनाथ दुबे ने डीएनए संवाददाता को सायं चार बजकर 26 मिनट और 36 सेकेंड पर फोन कर अपने भाई द्वारा एनजीओ के विरुद्ध लगाए आरोपों को डर के मारे मानने से इनकार कर दिया।

Wednesday 11 May 2011

योजना एक, साहब अनेक

योजना एक, उस पर नजर रखने वाले अनेक। केन्द्र सरकार यह कौन सी योजना बनाने जा रही है जिसकी रखवाली मुख्य सचिव व कृषि उत्पादन आयुक्त से लेकर 13 प्रमुख सचिव, 5 विशेष सचिव, दो निदेशक स्तर के अफसर एक कमिश्नर स्तर का अधिकारी तथा भारतीय रिजर्व बैंक के राज्य स्तरीय प्रतिनिधि तक उस पर नजर रखेंगे। यही नहीं इस योजना को लेकर केन्द्र सरकार इतनी चौकन्नी है कि उसके क्रियान्वयन के लिए एक गवर्निग बाडी और दूसरी एक्जीक्यूटिव बाडी बनाने का प्रस्ताव तैयार किया है। योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए यूपी में एक कोर ग्रुप का गठन भी कर दिया गया है। यूपी समेत अन्य राज्यों में केन्द्रीय योजनाओं के पैसों के दुरुपयोग को देखते हुए केन्द्र सरकार ने अब योजनाओं की अदला-बदली का खेल शुरू कर दिया है। एसजीएसवाई यानि स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना राष्ट्रीय स्तर पर जल्द ही एनआरएलएम अर्थात नेशनल रूरल लाइवलीहुड मिशन योजना में तब्दील हो जाएगी। योजना जब दूसरे नाम से जानी जाएगी तो इसे संचालित करने वाला प्रशासनिक ढांचा भी बदलेगा। नई योजना के मुताबिक रूरल डेवलपमेंट कमिश्नर यानि ग्राम्य विकास आयुक्त स्टेट मिशन डाइरेक्टर के रूप में जाना जाएगा। दरसल केन्द्र सरकार ने स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना को बदलने की तैयारी 2010 में ही कर ली थी। सरकारी सूत्रों के मुताबिक केन्द्र सरकार द्वारा जारी एक विस्तृत मार्गदर्शिका में आयुक्त ग्राम्य विकास को नई योजना का स्टेट मिशन डाइरेक्टर नामित किया गया है। राज्य स्तर पर इस योजना का नाम प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन रखा गया है जिसके तहत एक सोसाइटी का गठन किया जाएगा जिसे एसआरएलएम कहा जाएगा। केन्द्र द्वारा इस योजना को संचालित करने की जो गवर्निग बाडी तैयार की गई है उसके अध्यक्ष मुख्य सचिव तथा उपाध्यक्ष कृषि उत्पादन आयुक्त होंगे। प्रमुख सचिव ग्राम्य विकास सदस्य सचिव, आयुक्त सदस्य सह सचिव तथा प्रमुख सचिव कृषि, प्रमुख सचिव पंचायतीराज, प्रमुख सचिव पशुपालन, प्रमुख सचिव भूमि विकास एवं जल संसाधन, प्रमुख सचिव समाज कल्याण, प्रमुख सचिव श्रम, प्रमुख सचिव शिक्षा, प्रमुख सचिव महिला विकास, प्रमुख सचिव लघु उोग, प्रमुख सचिव वित्त, प्रमुख सचिव स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण एवं प्रमुख सचिव संस्थागत वित्त सदस्य होंगे।

Monday 9 May 2011

महिलाएं लाचार बहरी सरकार

घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम सिर्फ कागजों पर
विधानमंडल महिला एवं बाल विकास संयुक्त समिति की बैठक13 को
महिला मुख्यमंत्री को न तो मजबूर और लाचार महिलाओं की सिसकियां सुनाई पड़ रही हैं तथा न ही उनके पास तंगहाल महिलाओं के जीवन में रोशनी फैलाने के लिए कोई ठोस पहल करने वाली योजना है। यह पहली दफा है जब सीधे-सीधे महिलाओं को विकास की मुख्यधारा से अलग-थलग कर दिया गया है। पिछले चार साल में सूबे की मौजूदा निजाम ने महिलाओं को राहत पहुंचाने के नाम पर कोई घोषणा भी नहीं की। पुरानी योजनाओं के भरोसे मदद की आस लगाए बैठी महिलाएं अब सहारे की सारी उम्मीदें खो चुकी हैं। उत्तर प्रदेश विधानमंडल की महिला एवं बाल विकास सम्बंधी संयुक्त समिति की बैठक 13 मई को होने जा रही है। यह बैठक विधान भवन में होगी। 3 मई को शासन के उपसचिव सर्वोदय कुमार गुप्ता ने महिला कल्याण विभाग तथा महिला व बाल विकास विभाग को लिखे पत्र में साफ-साफ कहा है कि बैठक में समिति बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार विभाग तथा महिला कल्याण विभाग की लखनऊ व बाराबंकी सहित प्रदेश में आंगनबाड़ी केन्द्रों के समय से न खुलने, पोषाहार की खराबी, निराश्रित विधवा पेंशन व बाल संरक्षण गृहों में व्याप्त भ्रष्टाचार से सम्बंधित प्राप्त गंभीर शिकायतों के सम्बंध में प्रमुख सचिव दोनों विभागों से विचार-विमर्श करेंगे। यह महिला कल्याण विभाग द्वारा चलाए जा रहे कल्याणकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार की सरकारी स्वीकारोक्ति है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि पिछले चार सालों में किस कदर महिलाओं की उपेक्षा की गई है।

वर्ष 2005 में घरेलू हिंसा से महिला का संरक्षण अधिनियम बनाया गया था। यूपी में यह कागजों पर ही 2006 में लागू हुआ और कागजों पर ही चल रहा है। अभी तक प्रदेश के मुख्यालय स्तर पर अधिनियम के क्रियान्वयन एवं अनुश्रवण करने के लिए सरकार प्रकोष्ठ तक गठित नहीं कर पाई है। जिलों में घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं की व्यथा सुनने के लिए जिला प्रोबेशन अधिकारियों के पास फुर्सत ही नहीं है और न ही प्रदेश के किसी भी जिले में महिलाओं की बात सुनने के लिए कोई एक दफ्तर तक बन पाया है। 2006 में बाल विवाह रोकने के लिए बाल विवाह निरोधक अधिनियम 2006 लागू किया गया था। इस अधिनियम की क्या स्थिति है यह महिला कल्याण अधिकारियों को भी पता नहीं है। सूबे की मौजूदा निजाम महिलाओं के प्रति कितना संवेदनशील है इस बात से पता चलता है कि पति की मृत्यु के उपरांत निराश्रित महिलाओं की पुत्रियों के विवाह के लिए 2007-08 के बाद उसने एक धेला तक नहीं दिया है। यही हाल पति की मृत्यु के उपरांत निराश्रित महिलाओं के पुनर्विवाह करने पर दम्पत्ति को पुरस्कार देने के मामले में भी है। दहेज से पीड़ित महिलाओं की उपेक्षा समेत तमाम पुरानी योजनाएं पैसों के अभाव में फाइलों में गुम पड़ी हैं। महिला कल्याण निगम केन्द्र सरकार द्वारा वित्त पोषित स्वयंसिद्धा परियोजना चलाता है। इस योजना में स्वैच्छिक संगठनों के माध्यम से महिलाओं को शिक्षण, आय सृजक गतिविधियां, जागरूकता, बैंक लिंकेज इत्यादि का काम करती हैं। यह परियोजना 2007 में ही समाप्त हो चुकी है। यूपी सरकार के पास समय नहीं है कि केन्द्र से पहल करके इसे चालू करवाए। राष्ट्रीय महिला कोष की स्थापना के लिए भी राज्य सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है।

Saturday 7 May 2011

वाह! मैडम आपने कोई महिला नीति ही नहीं बनाई

सीडा रिपोर्ट के लिए सरकार ने मुलायम सरकार की महिला नीति अपनाई

सूबे में बसपा सरकार की कोई महिला नीति ही नहीं है! जी हां यह सही है और बिलकुल सही है। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा महिलाओं से भेदभाव समाप्त करने वाले प्रस्ताव सम्बंधी सीडा रिपोर्ट (कनवेंशन फॉर द इलीमिनेशन ऑफ डिसक्रिमिनेशन अगेंस्ट वूमेन) के लिए राज्य सरकार ने जो जवाब तैयार किया है, वह पूर्ववर्ती सपा सरकार की बनाई गई महिला नीति को ही हू-बहू ग्रहण कर ली गई है। मतलब बिलकुल साफ यह है कि महिला मुख्यमंत्री के राज में महिलाओं के लिए अपनी कोई महिला नीति नहीं है।

मालूम हो कि 1979 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा महिलाओं से भेदभाव समाप्त करने का प्रस्ताव रखा गया था। महासंघ द्वारा हर वर्ष हर देशों और हर प्रांतों से महिला सम्बंधी नीति तथा महिलाओं के अधिकारों से सम्बंधित सरकार द्वारा उठाए गए कदम की जानकारी मांगता है। इस वर्ष महासभा ने यूपी की सरकार से उसने महिलाओं के अधिकारों को बढ़ावा देने, महिला नीति को क्रियान्वित करने वाले विभाग, एजेंसी, महिलाओं से सम्बंधित राहतकारी योजनाएं, महिलाओं के कल्याण सम्बंधी पैसों के dोत, दहेज, घरेलू हिंसा को रोकने के नियम, अस्पताल, शरणालय तथा पीड़ित महिलाओं को जल्दी राहत दिलाने सम्बंधी आयोगों के बारे में ढेरों जानकारियां मांगी है। सीडा रिपोर्ट के लिए महिला कल्याण विभाग व महिला एवं बाल विकास विभाग जिस रिपोर्ट को वह भेजने जा रहा है वह पूर्ववर्ती सपा सरकार के कार्यकाल में बनी उत्तर प्रदेश महिला नीति 2006 है।

आइए देखें कि राज्य की मायावती सरकार संयुक्त राष्ट्र महासंघ की सीडा रिपोर्ट के तहत मांगी गई सूचना में क्या बताने जा रही है : महिला नीति के लक्ष्य बताते हुए महिला कल्याण विभाग का कहना है कि महिलाओं के मामले में समाज के रवैये में परिवर्तन लाना और उसे संवेदनशील बनाना। संविधान एवं विधायन के तहत महिलाओं को दिए गए अधिकारों एवं संरक्षण का प्रभावी ढंग से अनुपालन किया जा रहा है। सरकार नारी जीवन के अस्तित्व और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने में लगी है। समाज में महिलाओं की सहभागिता और निर्णय लेने की उसकी भूमिका को सशक्त बना रही है। सरकार महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार और हिंसा की रोकथाम समेत आदि-आदि कदम उठा रही है। अगर पिछले छह महीने में महिलाओं के साथ हुए बलात्कार एवं अन्य प्रकार के अत्याचार पर नजर डालें तो शायद सरकार के ये उठाए गए तमाम कदम के पोल स्वत: खुल जाएंगे।

यूपी में महिलाओं से सम्बंधित अनैतिक देह व्यापार अधिनियम के तहत चलने वाली संस्थाएं काम करना बंद कर चुकी हैं। इतने बड़े प्रदेश में सिर्फ छह जिला शरणालय है। बसपा सरकार ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है। आज के 20 साल पहले बने छह संरक्षण गृह ही संवासिनियों के लिए हैं। इसमें भी कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई है। इसके अलावा प्रदेश में सिर्फ पांच दत्तक ग्रहण इकाइयां हैं जहां 0 से छह वर्ष तक के शिशुओं के कल्याणार्थ दत्तक ग्रहण व पोषण सेवा की सुविधा है। पति की मृत्यु के बाद निराश्रित महिलाओं को इतने कम पैसे दिए जाते हैं कि वे महीने में एक दिन भी गुजारा नहीं कर सकती हैं। 19,884 ग्रामीण व 25,546 शहरी निराश्रित महिलाओं को सहायक अनुदान का आंकड़ा सरकार की महिला नीति को मुंह चिढ़ाने वाला जैसा है। देहज से पीड़ित महिलाओं को इस सरकार ने एक पैसा ही नहीं दिया है।

Tuesday 3 May 2011

शकुंतला विश्वविद्यालय पर सरकार मेहरबान

आबादी वाले गांव की जमीन भी दी गई विश्वविद्यालय को
71.471 एकड़ जमीन मुफ्त में स्थानान्तरित

प्रदेश सरकार विकलांगों के शैक्षणिक, सामाजिक तथा उनके उत्थान के लिए तो और कोई कारगर कदम भले ही नहीं उठा पा रही हो मगर डॉ. शकुन्तला मिश्रा पुनर्वास विश्वविालय पर जरूर मेहरबानियां बरसा रही है। इस विश्वविद्यालय में विभिन्न श्रेणी के विकलांगजन को उच्च शिक्षा देने के नाम पर न सिर्फ गांव के गांव उजाड़ दिए गए बल्कि विवि की भवन के लिए ग्राम सरोसा-भरोसा एवं सलेमपुर पतौरा की कुल 71.471 एकड़ भूमि को मुफ्त में विकलांग कल्याण विभाग के पक्ष में स्थानान्तरित कर दी गई। यह जानकारी विकलांग कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव द्वारा राजस्व विभाग के प्रमुख सचिव को लिखे पत्र से उजागर हुई है। मालूम हो कि वर्ष 2007-08 में डॉ. शकुंतला मिश्रा पुनर्वास विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी। लखनऊ स्थित विश्वविालय के भवन को अतिरिक्त भूमि की आवश्यकता को देखते हुए सरोसा-भरोसा एवं ग्राम पतौरा की कुल 71.471 एकड़ भूमि लिए जाने का निर्णय सरकार ने लिया था। इस पूरी जमीन को लखनऊ सदर के तहसीलदार के माध्यम से विवि को उपलब्ध कराया गया। मगर इस भूमि को विकलांग कल्याण विभाग के नाम स्थानान्तरित करने के लिए प्रमुख सचिव शैलेष कृष्ण ने प्रमुख सचिव राजस्व को पत्र लिखा कि इसे बिना पैसे के ही स्थानान्तरित किया जाय। प्रमुख सचिव शैलेष कृष्ण के पत्र के मुताबिक ग्राम सलेमपुर पतौरा की 8.19 हेक्टेयर भूमि तथा ग्राम सरोसा-भरोसा की 20.017 हेक्टेयर भूमि अर्थात कुल 28.936 हेक्टेयर यानि 71.471 एकड़ जमीन विकलांग कल्याण के पक्ष में करने के लिए बाकायदा शासनादेश जारी किया गया। ग्राम सलेमपुर पतौरा स्थित भूमि जो विश्वविालय के प्रयोग में लाई जानी प्रस्तावित है, पर राजस्व अभिलेखों में आबादी दर्ज है। प्रमुख सचिव के पत्र से यह भी उजागर हुआ है कि न सिर्फ आबादी वाले गांवों की जमीन विश्वविद्यालय को दी गई है बल्कि ग्राम सलेमपुर पतौरा स्थित भूमि जो खसरे में उोग विभाग की है उसे भी दे दिया गया। प्रमुख सचिव ने इसके पीछे यह तर्क दिया है कि यह भूमि रिक्त पड़ी है तथा विश्वविालय के लिए उपलब्ध भूमि से सटी हुई है। इसलिए विवि के प्रयोग के लिए उपयोगी है। लखनऊ के जिलाधिकारी स्तर से जो जमीनें विश्वविालय के प्रयोगार्थ प्रस्तावित की गई हैं उनमें यह दिखाने की कोशिश की है कि इनमें ज्यादातर सरकारी जमीनें हैं। इसमें ग्राम सरोसा-भरोसा की खसरा संख्या 1473 की 0.849 हेक्टेयर जमीन शारदा नहर की भी है। यही नहीं खातेदार राजाराम एवं रामू पुत्र प्रताप सिंह निवासी भातू कालोनी ग्राम पारा की 0.501 एकड़ भूमि विश्वविालय के प्रयोगार्थ ले ली गई।

प्रदेश सरकार जिस मनोयोग से इस विश्वविद्यालय के संचालन के लिए हर संभव मदद कर रही है शायद दूसरे विकलांगजन के स्कूलों, जिन्हें वह प्राथमिक स्तर पर शिक्षा देने की जरूरत भी नहीं समझती है। प्रदेशभर के विकलांगजन के बच्चों के लिए खुले बचपन डे केयर सेंटर की चिंता भी सरकार को नहीं है। यहां बच्चों का हालचाल लेने तक कोई अफसर नहीं जाता है। बच्चों के लिए वाहन तक की सुविधा नहीं है। मोहान रोड लखनऊ स्थित राजकीय कौशल विकास केन्द्र में काम करने वाले कर्मचारियों को मार्च महीने का वेतन नहीं मिला है।

Monday 2 May 2011

कुलसचिव साहब आप किसके रिश्तेदार हैं!

भ्रामक रिश्तेदारियां जोड़ पांच साल से यूपीटीयू में जमे हैं तोमर
पीसीएस अफसर भी नहीं हैं कुलसचिव

यूपीटीयू के कुलसचिव यूएस तोमर की अराजकता इन दिनों सिर चढ़ कर बोल रही है। हर सरकार में मुख्यमंत्री के एक सबसे करीबी अफसर की रिश्तेदारी का भ्रम फैलाकर रौब गांठने वाले तोमर न सिर्फ सत्ता के गलियारों में अपनी धमक बनाए रखते हैं बल्कि प्राविधिक विवि से सम्बद्ध निजी इंजीनियरिंग कालेजों पर भी धौंस दिखाते रहते हैं। इसी धौंस-पट्टी के सहारे वे आजकल आरटीआई के तहत मांगे जानी वाली सूचनाओं को भी नजर अंदाज करने लगे हैं। एमआईटी मुरादाबाद की एक पूर्व छात्रा रही संगीता रानी द्वारा जब वर्ष 2007-08 की उत्तर पुस्तिकाएं दिखाए जाने को कहा तो उन्होंने सभी उत्तर पुस्तिकाएं नष्ट करवा डालीं।

मालूम हो कि यूपीटीयू के कुलसचिव यूएस तोमर की सत्ता में रसूख की भ्रामक खबरें सूचना आयोग में भी चर्चा का विषय बनी हुई हैं। भ्रामक खबरों के मुताबिक तोमर अपने को मुख्यमंत्री मायावती के करीबी व प्रदेश के कैबिनेट सचिव शशांक शेखर का रिश्तेदार बताते हैं। यूपीटीयू के सूत्र बताते हैं कि कुलसचिव साहब सत्ता में पैठ बनाने के लिए इस प्रकार के हथकंडे अपनाते रहते हैं। यह कोई नई बात नहीं है। इसी के बलबूते तोमर सत्ता में हनक पैदा कर पिछले पांच सालों से अधिक समय से यूपीटीयू के कुलसचिव पद पर बैठे हुए हैं। विश्वविालय के सूत्रों का कहना है कि पिछली सपा की सरकार में भी कुलसचिव साहब ने यह भ्रम फैला रखा था कि वे वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अनीता सिंह के रिश्तेदार हैं। महिला अफसर से रिश्तेदारी की गूंज न सिर्फ यूपीटीयू में अलबत्ता शासन-प्रशासन के गलियारों समेत सभी इंजीनियरिंग कालेजों में थी। इस प्रकार की चर्चा है कि तोमर इसी तथाकथित रसूख के चलते निजी इंजीनियिरिंग कालेजों पर अपना दबदबा बनाए रखते हैं। जानकारी के अनुसार तोमर की कुलसचिव के पद पर तैनाती 2002 में हुई थी। इसके ठीक एक साल बाद उन्हें हटाकर अनिल कुमार दमेले की तैनाती की गई।

मगर यूएस तोमर मानने वाले कहां थे। उन्होंने भ्रम का रागमाला फैलाकर 2005 में प्राविधिक विश्वविालय में दोबारा तीन साल के लिए तैनाती करवा ली। बताया जाता है तब उन्होंने आईएएस अफसर अनीता सिंह से अपनी रिश्तेदारी का भ्रम फैलाकर कुलसचिव के पद पर काबिज हुए थे। प्राविधिक शिक्षा विभाग के सूत्रों के मुताबिक यूएस तोमर की नियुक्ति पर कई सवाल भी खड़े किए गए थे मगर वे नक्कारखाने में तूती की आवाज बन कर ही रह गई। कुलसचिव के पद पर नियुक्त होने वाला व्यक्ति सरकारी राजाज्ञा के प्रस्तर चार के अनुसार पीसीएस संवर्ग से प्रतिनियुक्ति पर भरे जाने का प्राविधान है। सबसे आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि तोमर न तो पीसीएस हैं और न ही वित्त विभाग की सहमति से गैर पीसीएस संवर्ग की नियुक्ति विषयक राजाज्ञा में कोई संशोधन ही किया गया था। सबसे चौंकाने वाला तथ्य तो यह भी है कि तोमर के भ्रामक रसूख के चलते ही उन्हें प्राविधिक शिक्षा विभाग के नियंत्रण में आईआईटी स्तर की एक संस्था मान्यवर कांशीराम उत्तर प्रदेश इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी तथा आईआईएसई पैटर्न पर एक संस्था महामाया यूपी स्टेट इंस्टीट्यूट आफ साइंस ग्रेटर नोएडा की स्थापना एवं निर्माण के नीति निर्धारण के लिए गठित की जाने वाली स्टीयरिंग कमेटी के सहायतार्थ प्रोजेक्ट एक्जीक्यूशन यूनिट के तहत अतिरिक्त प्रोजेक्ट एडमिनिस्ट्रेटर नामित कर दिया गया। इन सारे विवादों के सम्बंध में डीएनए ने जब उनके विभिन्न टेलीफोन नम्बरों क्रमश: 2732199, 9335035187, 9415127780 और 9839226221 पर प्रतिक्रिया जानने की कोशिश की तो कुलसचिव ने फोन ही नहीं रिसीव किया।