चार सालों बाद लोकायुक्त व सरकार की बदली धारणा पर सवाल
लगातार चार सालों तक उदासीनता के साए में दिन काटने वाले लोकायुक्त न्यायमूर्ति एनके मेहरोत्रा के चेहरे पर अचानक तैरने वाली विजयी मुस्कान जितनी चमक रही है ठीक उतनी ही बसपानेत्री की सरकार भी चहक रही है। चार साल तक बेदाग घूम रहे मंत्रियों को दागी घोषित कर लोकायुक्त वाहवाही लूट रहे हैं तो वहीं सरकार भी अपना दागदार चेहरा बेदाग करने में जुटी है। महज मुठ्ठीभर भ्रष्ट मंत्रियों को किनारे लगा कर न तो सरकार भ्रष्टाचार की कालिख से बच सकती है और न ही अपने दो-चार फैसलों से फूलकर कुप्पा हो रहे लोकायुक्त कोई भ्रष्टाचार मुक्त उत्तर प्रदेश की बुनियाद ही रखने जा रहे हैं। अगर ऐसा होता तो नौकरशाहों के विरुद्ध भ्रष्टाचार की शिकायतों को न्यायमूर्ति मेहरोत्रा गंभीरता से लेते और सरकार उनकी सिफारिशों पर तत्परता से कार्रवाई करती।सत्ता के गलियारों में इस बात की जबरदस्त चर्चा है कि जिस तरह और जिस अतिवेग से भ्रष्टाचार में लिप्त मंत्रियों को उनके पद से हटाने की सिफारिश लोकायुक्त कर रहे हैं उससे तो यही लगता है कि उन पर समाजसेवी अन्ना का इफेक्ट कम बल्कि माया का इफेक्ट कुछ ज्यादा ही दिखाई दे रहा है। वरना यह इफेक्ट पिछले चार सालों में भी लोकायुक्त और बसपा सरकार के बीच दिखना चाहिए था। लगता है कि लोकायुक्त ने 2010 के अपने वार्षिक प्रतिवेदन में जो सुझाव मुख्यमंत्री को दिए थे सरकार उसके पालन में आखिरकार जुट ही गई है। उन्होंने मुख्यमंत्री को भेजे अपने प्रतिवेदन में लिखा कि अब ऐसा समय आ गया है कि यदि किसी सरकार को आम जनता का विश्वास हासिल करना है और अपनी साख बचानी है तो उसे भ्रष्टाचार के खिलाफ तत्काल प्रभाव से कोई न कोई कठोर कार्रवाई करनी ही होगी। अब कोरी बयानबाजी पर्याप्त नहीं होगी। चार सालों बाद सरकार के बारे में लोकायुक्त की बदली धारणा और इसके ठीक विपरीत विधानसभा चुनाव के ऐन वक्त पर बसपा सरकार का बदला आचरण बड़ी सहजता के साथ समझा जा सकता है। सवाल यह उठता है कि सिर्फ भ्रष्ट मंत्रियों के ही खिलाफ लोकायुक्त और सरकार क्यों अत्यधिक सक्रिय हैं।
..मगर भ्रष्ट नौकरशाहों के प्रति दोनों के नजरिए में इस प्रकार की सक्रियता क्यों नहीं है? अगर ऐसा न होता तो लोकायुक्त द्वारा सरकार को भेजे गए 2007 में तत्कालीन प्रमुख सचिव समाज कल्याण, पूर्व प्रमुख सचिव आर रमणी, पूर्व प्रमुख सचिव आरसी श्रीवास्तव, पीसीएस रमाशंकर सिंह, 2007 में ही पीलीभीत के तत्कालीन जिलाधिकारी, आईएएस करनैल सिंह, 2008 में शाहजहांपुर के तत्कालीन जिलाधिकारी, निदेशक समाज कल्याण, 2009 में तत्कालीन वन विभाग के प्रमुख सचिव, 2010 में तत्कालीन प्रमुख सचिव समाज कल्याण, विशेष सचिव समाज कल्याण, राज्य म निषेध अधिकारी, चंदौली के तत्कालीन जिलाधिकारी, बांदा के तत्कालीन जिलाधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की जाती। नौकरशाहों के खिलाफ कार्रवाई पर लोकायुक्त ने डीएनए से कहा कि उनके विरुद्ध जांच में देर की जाने लगती है और मामला कोर्ट में जाने से कोई फैसला नहीं हो पाता है। मगर लोकायुक्त के पास ही नौकरशाहों के खिलाफ ढेरों शिकायतें जांच के लिए लम्बित पड़ी हैं।
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