Friday 29 April 2011

अफसर मनमाने ढूंढ रहे बहाने

पैसों के डाइवर्जन के तहत राष्ट्रीय ग्राम स्वरोजगार योजना के 93916 लाख रुपए से होगा क्षेत्र पंचायतों का कम्प्यूटरीकरण

 पंचायतीराज विभाग केंद्र सरकार से मिल रहे अरबों रुपए को मनमाने तरीके से खर्च करने का बहाना ढूंढता रहता है। पैसों के डाइवर्जन में लगी सूबे की सरकार के इशारे पर चल रहे अफसर कागजों पर नित नई तरकीबों को इजाद करते रहते हैं। पंचायतों के कम्प्यूटरीकरण के लिए मिले 62 करोड़ रुपए शुद्ध पेयजल व अन्य मद में खर्च करने का बहाना बनाया गया तो अब क्षेत्र पंचायतों को कम्प्यूटरीकृत बनाने के लिए राष्ट्रीय ग्राम स्वरोजगार योजना के करोड़ों रुपयों में हेरफेर का तानाबाना अफसरों ने तैयार कर लिया है।

विभागीय अफसरों ने क्षेत्र पंचायतों में स्थापित सहायक विकास अधिकारियों के कार्यालय को क्षेत्र रिसोर्स सेंटर के रूप में क्रियाशील करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। राष्ट्रीय ग्राम स्वरोजगार योजना वाले 38 जिलों के 399 क्षेत्र पंचायतों को हाईटेक बनाने के लिए प्रति क्षेत्र पंचायत में 33440 रुपए की लागत से डेस्कटॉप प्री लोडेड सिस्टम, 11606 रुपए की लागत से लेजर प्रिंटर, 45370 रुपए की लागत से ऑन लाइन यूपीएस तथा 3500 की लागत से इंटरनेट कनेक्शन के लिए एकमुश्त धनराशि की स्वीकृति दे दी गई है। कम्प्यूटरीकरण के लिए यह पैसे इस योजना से खर्च किए जाएंगे। जबकि 12 वें वित्त आयोग से पंचायतों के कम्प्यूटरीकरण के लिए 62 करोड़ रुपए से अधिक की धनराशि विभाग को मिली थी। इन पैसों को अफसरों ने पेयजल तथा अन्य कामों पर खर्च दिखा दिया। जब कम्प्यूटरीकरण करना ही थी तो राष्ट्रीय ग्राम स्वरोजगार के पैसों को क्यों खर्च किया जा रहा है? यह सवाल अफसरों को कटघरे में खड़ा करता है। इससे केंद्र के पैसों को इधर से उधर खर्च करने के बहाने के पीछे का मतलब साफ नजर आता है।

बीते मार्च महीने में पंचायतीराज विभाग के पूर्व सचिव आलोक कुमार राष्ट्रीय ग्राम रोजगार के धन को कम्प्यूटरीकरण के मद में खर्च करने का आदेश तो कर गए मगर असली खेल कम्प्यूटरीकरण के नाम पर सामानों की खरीद-फरोख्त में शुरू हो गया है जहां लाखों के हेरफेर का तानाबाना बुना जाएगा। अब देखना यह है कि अधिकारी क्रय निर्माता कम्पनी के अधिकृत डीलर से खरीदते हैं या कुछ और सब्जबाग तैयार करते हैं। विभागीय अफसरों ने राष्ट्रीय ग्राम स्वरोजगार योजना वाले जिलों के क्षेत्र पंचायतों में स्थापित सहायक विकास अधिकारियों के कार्यालय को क्षेत्र पंचायत रिसोर्स सेंटर के रूप में चालू कर दिया है। यही नहीं विभाग ने इसमें एक और गड़बड़झाला पैदा कर दिया है कि राष्ट्रीय ग्राम स्वरोजगार योजना वाले जिलों में बीआरजीएफ की प्रबंध इकाई यानि डीपीएमयू गठित हो गई है। डीपीएमयू रिसोर्स सेंटर में बैठे अफसरों को बाकायदा प्रशिक्षण देने के बहाने पैसों का वारा न्यारा करेगा। योजनाओं के जरिए झोल फैला रहा पंचायतीराज विभाग किसी भी एक योजना को सुचारु रूप से चलने नहीं दे रहा है। बीआरजीएफ एक अलग बड़ी योजना है और केंद्र सरकार अरबों रुपए विकास के लिए पिछड़े जिलों में देती है।

Thursday 28 April 2011

मुझे बृजलाल से बचाओ

आपराधिक पृष्ठिभूमि का है सुभाष दूबे : एडीजी
रेलकर्मी ने राष्ट्रपति, पीएम व सीएम से लगाई गुहार

पूर्वोत्तर रेलवे कर्मचारी संघ का महामंत्री सुभाष दूबे राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री मायावती से अपने प्राण रक्षा की गुहार लगा रहा है। उसे प्रदेश के अपर पुलिस महानिदेशक कानून व्यवस्था बृजलाल से जान का खतरा है। उसने एडीजी पर आरोप लगाया है कि वे गोरखपुर के स्थानीय पुलिस प्रशासन पर दबाव डालकर फर्जी मुकदमे लगवा रहे हैं व गोरखपुर के ही अपराधी और माफिया ठेकेदारों से उसकी हत्या करा सकते हैं। एडीजी से भयभीत दूबे ने राष्ट्रपति से यहां तक कहा है कि फर्जी मुकदमों व अपराधियों के हाथों मरने के बजाय उसे इच्छा मृत्यु की अनुमति दे दी जाय। रेलवे कर्मचारी नेता ने डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट को बताया कि बृजलाल जब 1996 से लेकर 2003 तक रेलवे में मुख्य सुरक्षा आयुक्त थे तब उसने पूर्वोत्तर रेलवे में बसों की आपूर्ति के ठेकों में करोड़ों का घोटाला, पूर्वोत्तर रेलवे के महाप्रबंधक द्वारा मुकदमों की पैरवी में 10 लाख रुपए से ज्यादा खर्च करना तथा लखनऊ में भर्ती बोर्ड खोलने जैसे फिजूल खर्ची के विरुद्ध आवाज उठाई थी। उस समय बृजलाल ने महाप्रबंधक सोमनाथ पांडेय पर अपना वर्चस्व कायम करने के लिए उसके खिलाफ लगातार फर्जी मुकदमे लगवाए। थाने का हिस्ट्रीशीटर व गैंगेस्टर बनवा दिया। पुलिस ने उसे राजन तिवारी गिरोह का सदस्य बना दिया। जिन गिरोहों की बात पुलिस कर रही है मेरे खिलाफ एक भी मुकदमा दर्ज नहीं है। क्या इतने बड़े गिरोह से जुड़ने के बाद मेरे अपराध का कार्यक्षेत्र गोरखपुर स्थित शाहपुर थाना तक ही सीमित है? मेरे खिलाफ अधिकांश मुकदमों में वादी सिर्फ पुलिस ही क्यों है? अगर मैं या मेरे परिवार में कोई ठेकेदार है या मैं किसी ठेकेदार के लिए कार्य करता हूं तो प्रशासन इसे साबित क्यों नहीं करता? मेरी गलती इतनी है कि मैं रेलवे के उन भ्रष्ट अफसरों के सामने नहीं झुका जो रेल विभाग को अपनी जागीर समझते हैं। तत्कालीन मुख्य सुरक्षा आयुक्त बृजलाल अपने निजी स्वार्थ व अनैतिक लाभ तथा महाप्रबंधक सोमनाथ पांडेय को प्रभाव में लेने के लिए अधिकारों का दुरुपयोग करते रहे। मेरे साथियों का ट्रांसफर करा दिया। हत्या करवाने की साजिश के तहत मुझे सितंबर 2000 में फर्जी मुठभेड़ में गिरफ्तार दिखाकर जेल भेज दिया। बृजलाल से तंग आकर सुभाष दूबे 18 जनवरी 2001 को विधानसभा के सामने आत्मदाह करने की कोशिश भी कर चुका है। यही नहीं रेलवे के तत्कालीन मुख्य सुरक्षा आयुक्त ने 1997 में उसका ट्रांसफर समस्तीपुर डिवीजन में करवा दिया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उसके ट्रांसफर आदेश पर रोक लगा दी थी जिससे वे और नाराज हो गए। बृजलाल ने सुभाष को गोरखपुर में कार्यालय अधीक्षक के पद पर कार्यभार भी ग्रहण नहीं करने दिया था। दूबे ने बताया कि बृजलाल के मुख्य सुरक्षा आयुक्त के कार्यकाल में 10 मुकदमे दर्ज कराए गए थे जिसमें आठ में पुलिस वादी है। सभी मुकदमे समाप्त हो चुके हैं। दूबे के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए एडीजी बृजलाल ने डीएनए को बताया कि वह आपराधिक पृष्ठिभूमि से जुड़ा है। उसके खिलाफ 45 क्रिमिनल के मामले हैं। एडीजी ने कहा कि वे जब मुख्य सुरक्षा आयुक्त हुआ करते थे तब यह सामान्य सा क्लर्क बड़े-बड़े अफसरों को पीट दिया करता था। उसने अपनी आपराधिक पृष्ठभूमि छिपाकर रिवॉल्वर समेत तीन अन्य शस्त्रों का लाइसेंस प्राप्त कर लिया था। इसके पास करोड़ों की सम्पत्ति है। सुभाष दूबे के खिलाफ एक मुकदमा चेन्नई में भी दर्ज हुआ है। मेरी इससे कोई दुश्मनी नहीं है। यह मेरे स्तर का ही नहीं है।

Sunday 24 April 2011

साहब, अब बुतों की दुकान खोलिए

लोन देने जा रही है सरकार
बसपा के राज में दुकानदारों की चांदी

अगर आप बेरोजगार हैं और कमाई का जरिया ढूंढ रहे हैं तो सरकार आपको घर बैठे पैसा देने जा रही है। जिन मूर्तियों को लेकर माया सरकार को तमाम आलोचनाओं का सामना करना पड़ा अब उसकी ही दुकान खोलने के लिए वह लोन देने जा रही है। कम से कम बसपा सरकार के रहते मूर्तियों की दुकान खोलने वालों की चांदी तो रहेगी ही। चार सालों तक पत्थरों पर विकास की इबारत लिखने वाली सरकार चुनावी साल में गरीबों के लिए पंचर बनाने, सैलून खोलने, पनीर, खोया, मक्खन निकालने, दर्जी व किराना की दुकान, ढाबा खोलने समेत बहुत सारे कामों के लिए लोन दे रही है।

यूपी में सरकार अब छोटे तबके को लॉलीपाप देने की तैयारी में है। उसे फुसलाने के इरादे से ही माया मेमसाहब ने अफसरों को सक्रिय कर दिया है। सरकार के कई विभागों मसलन ग्राम्य विकास विभाग, नियोजन एवं समन्वय विभाग, समाज कल्याण विभाग, उोग विभाग, वित्त विभाग, खादी ग्रामोोग विभाग ने मिलकर जो मसौदा छोटे तबके को रोजगार देने के लिए तैयार किया है उसमें खासकर अन्य रोजगारों में मूर्ति निर्माण के लिए भी लोन देने की सूची में शामिल किया गया है। सूत्रों का कहना है कि मूर्तिकारों तथा इस पेशे से जुड़े लोगों को फायदा मिलेगा। अब तक उन्हें इस मद में सरकारी मदद नहीं मिलती थी। इलेक्ट्रानिक्स, मोबाइल रिपेयरिंग, रेडीमेड गारमेंट्स, टेलरिंग, भवन निर्माण सामग्री, फर्नीचर का कार्य, ढाबा, फोटोग्राफी, जनरल स्टोर, स्टील बर्तन, दोना पत्तल, मूर्ति निर्माण, बेकरी, डेरी कार्य, दुग्ध उत्पाद आधारित क्रीम, मक्खन, पनीर व खोया, ट्रैक्टर व पम्पिंग सेट मरम्मत, कम्प्रेशर, पंचर बनाना, हेयर कटिंग, सैलून, ब्यूटीशियन एवं लांड्री आदि कार्यो पर रोजगार स्थापित करने के लिए सरकार ऋण देगी। ग्राम्य विकास विभाग द्वारा बनाए गए प्रस्ताव के मुताबिक रोजगार की लागत उसके स्वभाव के अनुरूप तय की जाएगी। मगर यह लागत कम से कम 45 हजार रुपए तक होगी। सरकार इसमें यह सुनिश्चित करेगी कि औसत इकाई लागत 70 हजार रुपए अवश्य हो। औसत इकाई लागत में 45 हजार रुपए परिसम्पत्ति, मशीन व उपकरण आदि के लिए बैंक से ऋण के रूप में तथा 7500 रुपए कच्चा माल के लिए, रिवाल्विंग फंड के लिए 7500, सामान्य के लिए 10,000, स्पेशल कम्पोनेंट मद के तहत लाभार्थियों को राजकीय सहायता के रूप में 17,500 तथा शेष को 15,000 रुपए दिए जाएंगे।

दरअसल सरकार इस पूरी योजना को प्रधानमंत्री के नाम से चलने वाली राष्ट्रीय रोजगार योजना के तर्ज पर गांवों व कस्बों में ले जाने की तैयारी में है। सरकारी सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री ने इस योजना के लिए बड़े ही सख्त लहजे में कहा है कि अंबेडकर विशेष रोजगार योजना में स्थापित होने वाली रोजगार इकाइयों में प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम के लाभार्थी चिन्हित न किए जाएं। इसमें किसी भी प्रकार की डुप्लीकेसी बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

Friday 22 April 2011

ट्रेनिंग के नाम चहेतों को इनाम

व्यावसायिक प्रशिक्षण एवं कौशल सुधार योजना में लाखों का वारा न्यारा
अल्पसंख्यक वित्तीय एवं विकास निगम के अफसर किसी भी योजना में अपना हाथ दिखाने से नहीं चूकते हैं। अल्पसंख्यक वर्ग के अफसर जरूरतमंदों के नाम पर मिलने वाले पैसों को चट करने का पूरा खाका पहले से ही तैयार रखते हैं। अफसरों के रवैए को देखते हुए राज्य सरकार ने भी अब अपना हाथ पीछे खींच लिया है। मगर सरकार द्वारा दिए गिने-चुने पैसों पर भी अफसर हाथ साफ कर ही देते हैं। व्यावसायिक प्रशिक्षण एवं कौशल सुधार योजना में अफसरों ने अपनी चहेती प्रशिक्षण संस्थाओं को काम देकर 13 लाख 27 हजार का आखिरकार वारा-न्यारा कर ही डाला।




निगम सूत्रों के मुताबिक अफसरों ने प्रशिक्षण संस्थाओं को चुनने में न तो स्थापित मानकों का पालन किया और न ही योजना के उद्देश्य के मुताबिक जरूरतमंद प्रशिक्षणार्थियों की खोजबीन की खानापूर्ति की। निगम में यह चर्चा आम है कि अफसरों की चहेती प्रशिक्षण संस्थाओं को तय कमीशन के आधार पर धन आवंटित करवा लिया गया। इसमें इलाहाबाद के कायनात ब्यूटी पार्लर में ब्यूटीशियन के 10 प्रशिक्षणार्थियों के लिए 24 हजार रुपए, बाराबंकी की शिल्प श्री महिला सेवा समिति को सिलाई कटाई के लिए 18 हजार रुपए, बस्ती के सुमन ग्रामीण विकास सेवा संस्थान को सिलाई कटाई प्रशिक्षण के लिए 18 हजार, कुशीनगर के लोक जनकल्याण समिति को सिलाई कटाई के लिए 18 हजार, कुशीनगर की ही स्व. श्रीमती रामझारी देवी महिला उत्थान समाजसेवी संस्थान को भी सिलाई कटाई के लिए 18 हजार, मुजफ्फरनगर की आस्था युवा समिति को सिलाई कटाई के लिए 18 हजार, महराजगंज के अलहुदा वेलफेयर एसोसिएशन को सिलाई कटाई के लिए 18 हजार, हरदोई के आलिया बी प्रशिक्षण केन्द्र को 18 हजार, पीलीभीत के सेक्रेड एजूकेशनल एंड वेलफेयर सोसायटी को कम्प्यूटर में प्रशिक्षण के लिए 1 लाख 25 हजार रुपए, पीलीभीत के ही मॉनार्च इंजीनियर्स को कम्प्यूटर प्रशिक्षण के लिए 50 हजार रुपए, मिर्जापुर के सोशल वेलफेयर अपलिफ्टमेंट को सिलाई कटाई में प्रशिक्षण के लिए 24 हजार रुपए, अंबेडकर नगर में पूरन एजूकेशनल सोसाइटी को सिलाई कटाई के लिए 18 हजार, कानपुर देहात में ग्रामीण हस्तकला विकास समिति को सिलाई कटाई के लिए 18 हजार, रायबरेली में मीर वाजिद अली बाल जगत स्वयं सेवा समिति को ब्यूटीशियन के लिए 24 हजार, सुलतानपुर में मॉर्डन ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट को कम्प्यूटर प्रशिक्षण के लिए 50 हजार, संत कबीरनगर में अंबेडकर शिक्षण एवं प्रशिक्षण केंद्र को सिलाई कटाई के लिए 18 हजार तथा वाराणसी में माइकाजेनिथ कम्प्यूटर सोसाइटी को कम्प्यूटर प्रशिक्षण के लिए 75 हजार दिया गया है।


गोरखपुर में कृष्णा टेक्निकल एण्ड एजूकेशनल इंस्टीट्यूट को मोबाइल रिपेयरिंग के लिए 30 हजार, गोरखपुर के ही महिला सिलाई कढ़ाई बुनाई प्रशिक्षण केन्द्र को फैशन डिजायनिंग के लिए 30 हजार, लखनऊ के रफत फाउंडेशन को फैशन डिजायनिंग के लिए 30 हजार तथा लखनऊ के ही पायनियर फाउंडेशन को ब्यूटीशियन के लिए 24 हजार, सेक्रेड एजूकेशनल एण्ड वेलफेयर सोसाइटी को कम्प्यूटर में प्रशिक्षण के लिए 1 लाख 25 हजार, हजरत अली एजूकेशन सोसाइटी को ब्यूटीशियन के लिए 24 हजार, एशियन टीवी न्यूज एण्ड एशियन टीवी प्रोडक्शन हाउस को मास कम्यूनिकेशन में प्रशिक्षण के लिए 40 हजार, निब्बल कम्प्यूटर एण्ड डिजायनिंग इंस्टीट्यूट को कम्प्यूटर के लिए 50 हजार, मेसर्स फ्यूचर को कम्प्यूटर के लिए 50 हजार, हिन्द कम्प्यूटर्स को भी 50 हजार, नवचेतना महिला कल्याण समिति को मोबाइल रिपेयरिंग के लिए 30 हजार, सरस्वती देवी जन कल्याण संस्थान को कटाई सिलाई के लिए 18 हजार, अलफता स्टेडेंट सोसाइटी को कम्प्यूटर में प्रशिक्षण के लिए 50 हजार तथा अंसारी सेवा संस्थान को सिलाई कटाई के लिए 18 हजार रुपए प्रशिक्षण के लिए दिया गया है।

अफसरों ने लखनऊ के ही ज्यादातर प्रशिक्षण संस्थाओं को तवज्जो दिया है जिसमें से कुछ संस्थाएं तो दूसरे जिलों में भी काम कर रही हैं। इसी प्रकार गाजीपुर जिले के एमएचडब्लूएच कम्प्यूटर एजूकेशन सोसाइटी को कम्प्यूटर में प्रशिक्षण के लिए 1 लाख 25 हजार, प्रतापगढ़ में मेसर्स सृजन को मोबाइल रिपेयरिंग के लिए 30 हजार तथा फैजाबाद के रायल एजूकेशन एण्ड सोशल वेलफेयर सोसाइटी को 75 हजार रुपए दिया गया है। चेहते संस्थाओं को दिए पैसों व अन्य अनियमितताओं पर डीएनए संवाददाता ने निगम के महाप्रबंधक मसऊद अख्तर से उनकी प्रतिक्रिया जाननी चाही तो उन्होंने फोन ही काट दिया।

Thursday 21 April 2011

सवालों के घेरे में विशेष सचिव


कम्प्यूटराइजेशन का 62 करोड़ व 292 करोड़ का डाइवर्जन क्यों किया

बारहवें वित्त आयोग से मिले अरबों रुपयों को लेकर पंचायतीराज विभाग सवालों के घेरे में खड़ा हो गया है। मौजूदा विशेष सचिव व निदेशक पंचायतीराज तथा प्रमुख सचिव रहे आरके शर्मा द्वारा 12 वें वित्त आयोग के पैसों को अनाप-शनाप तरीके से खर्च किए जाने पर भारतीय लेखा तथा लेखा परीक्षा विभाग ने कड़ी आपत्ति जताई है और विशेष सचिव डीएस श्रीवास्तव से स्पष्टीकरण मांगा है। प्रधान महालेखाकार ने 292.80 करोड़ तथा पंचायतों के कम्प्यूटरीकरण के लिए खर्च होने वाले 62.37 करोड़ रुपए को पेयजल व स्वच्छता के मद में किए गए एक-एक पैसों का हिसाब देने को कहा है।

प्रधान महालेखाकर द्वारा बीते 23 मार्च को भेजे एक पत्र ने पंचायतीराज विभाग में हड़कम्प मचा दिया है। जब से यह पत्र विभाग में आया है तब से अफसरों को पसीना आ रहा है। प्रधान महालेखाकार ने पंचायतीराज विभाग के विशेष सचिव व निदेशक डीएस श्रीवास्तव से पूछा है कि बारहवें वित्त आयोग में कौन सी धनराशि किस मद में व्यय की जानी है? इसका निर्धारण केन्द्र करता है या फिर राज्य सरकार करती है। यदि यह राज्य सरकार द्वारा किया जाता है तो क्या इसकी स्वीकृति केन्द्र सरकार से प्राप्त की जाती है? दरअसल भारतीय लेखा तथा लेखा परीक्षा विभाग सवाल पर सवाल इसलिए कर रहा है कि यूपी में जितनी तादात में पैसों का डाइवर्जन किया गया है शायद ही दूसरे प्रदशों में ऐसी शिकायतें हों। प्रधान महालेखाकार ने पहले तो पंचायतों के कम्प्यूटरीकरण को लेकर मिले 62.37 करोड़ रुपए को पेयजल व स्वच्छता के मद में खर्च किए जाने को लेकर विशेष सचिव को कटघरे में खड़ा कर दिया है। उन्होंने बड़े सख्त लहजे में पूछा है कि बारहवें वित्त आयोग के लिए निर्धारित 62.37 करोड़ की धनराशि तीनों पंचायतों के कम्प्यूटराइजेशन के स्थान पर पेयजल एवं स्वच्छता कार्यक्रम के रखरखाव पर खर्च करने के लिए केन्द्र सरकार से स्वीकृति ली गई थी। इसका एक-एक हिसाब लेखा परीक्षा विभाग को तत्काल भेजा जाय।

यही नहीं प्रधान महालेखाकार ने बारहवें वित्त आयोग की प्रथम किस्त 292.80 करोड़ रुपए खर्च किए जाने को लेकर भी पंचायतीराज विभाग को कटघरे में खड़ा कर दिया है। उन्होंने कहा है कि इसका भी एक-एक हिसाब विशेष सचिव लेखा परीक्षा विभाग को दे दें। महालेखाकार ने विशेष सचिव की लेटलतीफी पर भी करारी चोट की है। उन्होंने कहा कि बारहवें वित्त आयोग की धनराशि जिलों में 15 दिन के अन्दर निर्गत की जानी थी। पंचायतों के कम्प्यूटराइजेशन के 62.37 करोड़ रुपए 20 महीनों तक जिलों में नहीं पहुंचे। सबसे बड़ा सवाल महालेखाकार ने यह किया है कि वर्ष 2009-10 में तथा 2010-11 में पेयजल व स्वच्छता कार्यक्रमों के रखरखाव के लिए बारहवें वित्त आयोग एवं पंचायतीराज विभाग की विभिन्न योजनाओं से कुल कितनी धनराशि स्वीकृति की गई और कितने जिलों को पैसा दिया गया? प्रधान महालेखाकार ने शायद यह सवाल विशेष सचिव से इसलिए किया है कि अगर पेयजल एवं स्वच्छता कार्यक्रमों के रखरखाव के लिए पैसा दिया गया तो फिर कम्प्यूटराजेशन का 62.37 करोड़ रुपए इस पर क्यों खर्च कर दिया गया। इन सवालों से घबराए विशेष सचिव ने डीएनए से कहा कि 62.37 करोड़ में 55 करोड़ रुपए पेयजल एवं स्वच्छता पर खर्च किया गया है। तीन लाख रुपए कानपुर आईआईटी को तथा बाकी धन जिला पंचायतों को दिया गया है। पैसों के डावर्जन पर उन्होंने कहा कि गाइडलाइन के अनुसार पैसों को एक मद से दूसरे मद में खर्च किया गया है।

Wednesday 20 April 2011

वसूली का फंडा, अफसरों पर डंडा


बकाया मनोरंजन कर पर समाधान योजना का शासनादेश जारी
जैसे-जैसे सरकार के दिन गिनती के बच रहे हैं टैक्स वसूली वाले विभागों का गला सरकारी फरमानों से और कसता चला जा रहा है। बीते चार सालों में राज्य सरकार मनोरंजन के क्षेत्र में भले ही कोई उपलब्धि हासिल न कर पाई हो मगर वह हर साल मनोरंजन कर विभाग का गला कसने में कोई कोताही नहीं बरती।
 
अब जाते-जाते 286 करोड़ की वसूली का फरमान यह कहते हुए सरकार ने जारी किया है कि इस लक्ष्य का फिर से पुनर्निधारण किया जा सकता है। सरकार की ओर से मनोरंजन कर आयुक्त कैप्टन एसके द्विवेदी ने अफसरों को सचेत कर दिया है कि सरकार के फंडे पर अफसर काम नहीं करेंगे तो उनके ऊपर डंडे चलेंगे। मनोरंजन कर आयुक्त कैप्टन एसके द्विवेदी ने मनोरंजन कर अधिकारियों से कहा है कि केबिल नेटवर्क पर वर्ष 2003-04 से वर्ष 2009-10 तक उनके केन्द्रों व आपरेटरों द्वारा यदि बकाया मनोरंजन कर पर नियमानुसार देय ब्याज का 50 प्रतिशत अधिरोपित मनोरंजन कर एवं शास्ति की धनराशि एकमुश्त रूप में समाधान योजना का शासनादेश के जारी होने के 90 दिन के अन्दर जमा कर दी जाती है तो अवशेष 50 प्रतिशत ब्याज माफ कर दिया जाएगा। आयुक्त ने अधिकारियों से साफ-साफ कह दिया है कि बकाया वसूली के लिए सभी केबिल आपरेटरों से तत्काल वसूली का कार्य किया जाय। इसके साथ ही तीन करोड़ रुपए के राजस्व लक्ष्य से अधिक लक्ष्य वाले जिलों में जहां संयोजनों की संख्या उस जनपद की जनसंख्या के अनुरूप ज्यादा होनी चाहिए वहां कनेक्शनों की संख्या कम कर दर्शायी जा रही है। इसलिए अधिकारी केबिल आपरेटरों का चक्कर लगाना शुरू कर दें तथा अभियान चलाकर कनेक्शनों की गणना करें।

उन्होंने जिला मनोरंजन कर अधिकारियों को सचेत करते हुए कहा है कि वे यह न समझें कि यह कह कर हम शांत बैठ जाएंगे। मुख्यालय स्तर से अधिकारियों की टीम जिलों में जाकर औचक निरीक्षण करेगी। कैप्टन द्विवेदी ने आठ अप्रैल को विभागीय समीक्षा बैठक में शासन द्वारा इस वर्ष का राजस्व लक्ष्य 286 करोड़ रुपए तय करने का फरमान भी जिला मनोरंजन कर अधिकारियों को सुनाया है।

इसके साथ यह भी कहा है कि अगर सरकार को यह लक्ष्य कम लगा तो इसे बढ़ाया भी जा सकता है। मनोरंजन कर विभाग ने केबिल टीवी, वीडियो गेम, मनोरंजन वाटर पार्क तथा केबिल टीवी में देय ब्याज की वसूली के लिए समाधान योजना का लालीपाप दिया है। मगर लगता है कि विभाग केबिल टीवी आपरेटरों की नकेल कसने की एक बार फिर से तैयारी कर ली है। मनोरंजन कर आयुक्त ने इस सम्बंध में कहा है कि सभी जिला स्तरीय अधिकारी यह सुनिश्चित कर लें कि बीते वर्ष जो केबिल टीवी आपरेटर समाधान योजना का विकल्प अपनाए हैं इसके सापेक्ष इस वर्ष समाधान अपनाने वाले केबिल आपरेटरों की संख्या में कमी न आने पाए। उन्होंने कहा है कि जहां समाधान की संख्या कम होगी तो माना जाएगा कि जिलों के अधिकारियों की वजह से यह कमी आई है। अब अफसरों की मजबूरी है कि जो लक्ष्य सरकार ने मनोरंजन कर वसूली का तय किया है उसे हर हालत में करना ही करना है, नहीं तो मनोरंजन कर आयुक्त का डंडा चलना ही चलना है।

Tuesday 19 April 2011

चौधरी की थाली गठबंधन से खाली


कहा : एक हाथ से कैसे बजे ताली
कल तक सपा और कांग्रेस से गठबंधन की संभावनाएं तलाश रहे चौधरी अजित सिंह सोमवार को आखिरकार कह ही बैठे कि ताली दोनों हाथों से बजती है। लगता है कि समाजवादी पार्टी द्वारा प्रत्याशियों की पहली सूची जारी करने तथा कांग्रेस की ओर जाने वाले गठबंधन के रास्ते बंद देख चौधरी साहब की ताली बजाने के इरादे कहीं खाली-खाली ही तो नहीं रह जाएंगे।

सपा और कांग्रेस से सियासी जुगलबंदी हो या न हो चौधरी साहब ने पत्रकारों से आज यह भी कह ही दिया कि वे अब हफ्ते में दो या तीन बार लखनऊ आ जाया करेंगे। मतलब बिलकुल साफ है कि दोनों पार्टिया अभी भले ही झिड़क रही हों किसी न किसी दिन तो उनकी जरूरत जरूर समझ में आएगी। लिहाजा किसान नेता अपनी अहमियत बढ़ाने के लिए सियासी जमीन मजबूत करने में जुट गए हैं। पिछले दो महीनों में लखनऊ की तकरीबन एक दर्जन बार यात्रा कर चुके अजित सिंह अपने मोर्चे को सशक्त बनाने के लिए कमर कसे हुए हैं। उन्हें लगता है कि मोर्चे के घटक दल पीस पार्टी, इंडियन जस्टिस पार्टी, जनवादी संगठन समेत अगर उनके साथ विधानसभा चुनाव तक गांठ बांधे रहे तो यही सपा और कांग्रेस के नेता उनके पास दौड़ कर आएंगे।

पार्टी दफ्तर में पत्रकारों से रूबरू हुए रालोद नेता ने अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से बात शुरू की। मगर जनलोकपाल बिल पर अन्ना के समर्थन करने के पीछे उनका सपा विरोधी गुस्सा जाहिर हो ही गया। खासतौर पर मुलायम और कांग्रेस को लेकर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि अन्ना के आंदोलन से सरकार बैकफुट पर जाने के लिए मजबूर हो गई। हालांकि बहुत सी आवाजें उठ रही हैं मगर उसका कोई मतलब नहीं है। लेकिन जन लोकपाल बिल पर सपा मुखिया का स्टैंड निश्चिततौर रूप से अटपटा लगने वाला है तथा इसे फासिज्म करार देना कहां की बुद्धिमानी है। चौधरी ने मुलायम पर हमलावर अंदाज में तर्को का धार तेज करते हुए कहा कि आखिर वे मायावती के भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई किस आधार पर लड़ रहे हैं? सपा नेता भ्रष्टाचार के विरोध में सरकारी ताले तक अभी पिछले महीने डलवा दिए। लोहिया के चेले को अपने गुरू के ही सिद्धांत पर चलना चाहिए जिसमें उन्होंने कहा था कि किसी भी बुराई को खत्म करने के लिए पांच साल का इंतजार नहीं करना चाहिए।

चौधरी साहब का गुस्सा कांग्रेस पर भी उतरा कहा अन्ना के चलते यूपीए सरकार भले ही बैकफुट पर हो मगर अभी तक कांग्रेसी जन लोकपाल बिल पर अलग-अलग राग अलाप रहे हैं। कांग्रेस को धौंस दिखाते हुए रालोद मुखिया ने कहा कि वो तो संसद में इस बिल का बिलकुल समर्थन करेंगे। चौधरी साहब की यह धौंस कांग्रेसी नेता समझेंगे या नहीं, या फिर सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव इतने बड़े विरोध के बाद उनका इशारा समझेंगे कि नहीं, मगर चौधरी गठबंधन का इशारा नजरअंदाज किए जाने से खफा-खफा जरूर हैं।

Monday 18 April 2011

455 करोड़ पार कर देते अफसर

 60 जिलों के डीपीआरओ का कारनामा
दूसरे प्रदेशों में थी पैसे भेजने की तैयारी
 
यूपी में केंद्र सरकार द्वारा भेजे 455.6361 करोड़ रुपए को हड़पने के लिए जिलों के अफसरों में होड़ मची है। इन पैसों पर हाथ साफ करने के लिए जिला पंचायतराज अधिकारियों ने गलत खाते विभिन्न लीड बैंकों को भेज दिए। अफसरों ने विभिन्न पंचायतों के खातों का ब्यौरा भेजने के बजाय व्यक्तिगत खातों का विवरण भेज दिया है। सबसे चौकाने वाली बात तो यह है कि इतनी बड़ी रकम को अफसर बैंक खातों के जरिए दूसरे प्रदेशों में ठिकाने लगाने के षड्यंत्र रच रहे थे।

लगता है सरकारी अफसरों पर सूबे की मुखिया की लगाम ढीली पड़ चुकी है। सरकारी सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक 13 वें वित्त आयोग की संस्तुतियों के तहत वर्ष 2010-11 में भारत सरकार से 455.6361 करोड़ रुपए इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसफर द्वारा पंचायतीराज संस्थाओं के बैंक खातों में पांच दिन के अन्दर हस्तांतरित की जानी थी। इस धन को ठिकाने लगाने के उद्देश्य से ही पंचायतों के खातों में हस्तांतरित करने के लिए जिला पंचायतराज अफसरों द्वारा उपलब्ध कराए गए ग्राम पंचायतों, क्षेत्र पंचायतों एवं जिला पंचायतों के बैंक खातों का गलत व भ्रामक विवरण लीड बैंकों को भेज दिया गया। लीड बैंकों ने जब अधिक संख्या में गलत खातों का विवरण देखा तो वे सन्न रह गए। बैंकों ने खातों को सही कराने के लिए सारे ब्यौरे जिलों में वापस भेज दिए हैं। सरकारी सूत्रों का कहना है कि बगैर ऊंचे पदों पर बैठे अफसरों की मिलीभगत से जिला पंचायतराज अधिकारी इस तरह की गड़बड़ी का दुस्साहस नहीं कर सकते हैं। इसमें निश्चित रूप से बड़े अफसरों का हाथ है। सूत्रों का कहना है कि जिला पंचायतराज अफसरों ने तीनों पंचायतों के जो खाते उपलब्ध कराए हैं उसमें ज्यादातर व्यक्तिगत खाते हैं। और तो और कुछ खाते तो अन्य प्रदेशों के हैं। इतनी भारी तादात में गड़बड़ी के पीछे की मंशा साफ है। बैंक अगर समय रहते इन खातों की पड़ताल न करते तो अरबों रुपए भ्रष्ट अफसरों की जेब में चले जाते। जानकारी के अनुसार लीड बैंकों ने जिलों के जिन गलत खातों की संख्या का ब्यौरा दिया है उनमें गाजियाबाद से 77, मुरादाबाद से 103, मथुरा से 31, गौतमबुद्धनगर से 41, बागपत से 73, मेरठ से 73, छत्रपति शाहूजी महराजनगर से 207, शाहजहांपुर से 60, सिद्धार्थनगर से 11, फतेहपुर से 16, अंबेडकरनगर से 78, फैजाबाद से 167, बरेली से 504, रामपुर से 6, प्रतापगढ़ से 238, महाराजगंज से 61, पीलीभीत से 34, सुलतानपुर से 235, इलाहाबाद से 60, बिजनौर से 47, झांसी से 18, मुजफ्फरनगर से 115, सहारनपुर से 62, बुलंदशहर से 3, ललितपुर से 42, बदायूं से 12, बहराइच से 2, बस्ती से 41, बलरामपुर से 6, कानपुर से 416, मऊ से 11, महामायानगर से 23, मिर्जापुर से 88, हमीरपुर से 3, हरदोई से 30, संतकबीरनगर से 206, सोनभद्र से 56, उन्नाव से 69, वाराणसी से 19, फरुखाबाद से 1, जेपीनगर से 46, जालौन से 28, आजमगढ़ से 90, आगरा से 34, अलीगढ़ से 36, गोंडा से 20, गोरखपुर से 73, चंदौली से 270, जौनपुर से 40, गाजीपुर से 61, कांशीरामनगर से 110, एटा से 4, खीरी से 7, बलिया से 6, बहराइच से 13, बांदा से 2, महोबा से 24, चित्रकूट से 4, श्रावस्ती से 4 व सीतापुर से 1 गलत खाता भेजा गया था। अफसर दबी जुबान में कह रहे हैं कि जिलों से भेजे गए गलत खातों से यह स्पष्ट है कि जिला पंचायतराज अफसरों द्वारा जनपद स्तर पर खातों का विवरण तैयार करने में घोर शिथिलता व लापरवाही बरती गई है। मगर पंचायतीराज निदेशक व विशेष सचिव डीएस श्रीवास्तव ने कहा कि सारी गलती बैंकों की है।

Sunday 17 April 2011

ताकि कोई और न बने पीएल पुनिया

खदेड़े गए आईएएस की तैयारी कर रहे दलित छात्र

 ...तो  कोई और दलित छात्र आईएएस न बने! वह पीएल पुनिया बनकर दलित सरकार की जड़ में मठ्ठा न डालने लगे। इसीलिए शायद दलितों के नाम पर बनी सरकार दलित छात्रों के अरमानों का गला घोटने पर तुली है। दलित आईएएस और पीसीएस पैदा करने वाले इलाहाबाद विश्वविालय के पंत हास्टल से दलित छात्रों को खदेड़ा जा रहा है और वहां विवि के कुलपति द्वारा मेहमानों को रहने व बारात ठहराने से लेकर अफगान छात्रों को रहने के नाम पर व्यावसायिक गतिविधियों को अंजाम दिया जा है।

आईएएस मुख्य परीक्षा की तैयारी कर रहे दलित छात्र श्याम चन्द्र समेत अनेकों दलित व पिछड़े वर्ग के छात्रों ने राष्ट्रपति से लेकर इलाहाबाद के जिलाधिकारी तक इंसाफ की गुहार लगाई मगर कोई सुनने तक तैयार नहीं। यहां तक कि केन्द्रीय अनुसूचित जाति जनजाति आयोग से लेकर राज्य के अनुसूचित जाति जनजाति आयोग में भी आईएएस की तैयारी कर रहे छात्रों ने दस्तक दी मगर हर जगह नक्कारखाने में तूती की आवाज ही साबित हो रहा है। दलित छात्रों ने बताया कि इलाहाबाद विश्वविालय प्रशासन द्वारा आल इंडिया सर्विसेज प्रि एक्जामिनेशन ट्रेनिंग सेंटर यानि पंत हास्टल में सिविल सेवा की तैयारी कर रहे दलित व पिछड़े वर्ग के छात्रों को हास्टल से खदेड़ा जा रहा है। प्रतिभाशाली सिविल सेवा प्रतियोगी छात्रों पर अत्याचार किया जा रहा है। छात्रों ने बताया कि पंत हास्टल में 100 दलित व पिछड़े छात्रों, जिसमें 70 दलित व 30 पिछड़े छात्रों को रहने की व्यवस्था है, वहां अब 36 छात्र ही रह गए हैं और शेष छात्रों को विश्वविालय प्रशासन व हास्टल के प्राचार्य मानवेन्द्र नाथ वर्मा ने खदेड़ दिया है। मालूम हो कि भावी दलित आईएएस अफसरों को प्रोत्साहित करने पहुंचे दलित आईएएस अफसर पीएल पुनिया भी सिर्फ ढांढस दे कर लौट आए।


हालांकि वे वहां राष्ट्रीय अनुसूचित जाति जनजाति आयोग अध्यक्ष की हैसियत से गए थे इसलिए भी उनकी मौजूदगी से भन्नाई राज्य सरकार ने दलित छात्रों की समस्याओं की तरफ से मुंह मोड़ लिया। पीएल पुनिया 21 जनवरी को प्रताड़ित किए जा रहे दलित छात्रों से उनकी समस्याएं जानने पहुंचे थे। दलित छात्र श्याम चन्द्र ने बताया कि आईएएस मुख्य परीक्षा की तैयारी कर रहे 40 छात्रों को इलाहाबाद विश्वविालय प्रशासन ने 30 अगस्त 2010 को बाहर निकाल दिया था। छात्र ने बताया कि पीएसी लगाकर दलित छात्रों को हास्टल से खदेड़ा गया। दलित छात्रों ने आरोप लगाया है कि पंत हास्टल के प्राचार्य पिछले तीन वर्षो से छात्रों को मैगजीन, पुस्तकीय सहायता से वंचित कर रहे हैं। हास्टल में बाहरी छात्रों को रखा जा रहा है। हास्टल का उपयोग विश्वविालय के अध्यापकों के अतिथियों को रखा जाता है। बारात ठहराकर पैसे वसूल किए जाते हैं। उल्लेखनीय है कि वर्ष 1958 में स्थापित पंत हास्टल का गौरवमयी इतिहास रहा है। इस हास्टल ने 2005 तक 477 दलित व पिछड़े आईएएस तथा 2000 से अधिक प्रांतीय सिविल सेवा के अफसर पैदा किए हैं। राज्य सरकार की दुर्भावना व विश्वविालय प्रशासन की उपेक्षा के चलते 2005 के बाद से संस्थान कोई परिणाम देने में सक्षम नहीं रहा। वहीं संस्थान के प्राचार्य ने डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट को बताया कि सारे आरोप बेबुनियाद हैं। सामाजिक कल्याण मंत्रालय के नियमों का हवाला देते हुए कहा कि छात्रों को पांच महीने बाद हास्टल से निकाल दिया जाता है। बारात ठहराने जैसे आरोप पर श्री वर्मा ने कहा कि वर्किंग प्रोफेसर के अतिथियों को कभी-कभार चाय-पानी पिलवा दिए जाने को तूल दिया जा रहा है।

Thursday 14 April 2011

तेरा तुझको अर्पण

सरकार दे रही कंजूसी का खिताब
मार्च में पैसों के समर्पण का चला खेल


यूपी में सरकार का भय सरकारी विभागों पर इस कदर सिर चढ़ कर बोल रहा है कि विभिन्न विभागों के अफसरों में सबसे बड़ा कंजूस कौन की मानो प्रतियोगिता सी चल रही हो। मार्च महीने में तो इस बात की होड़ लगी थी कि कौन सा विभाग अपने खर्चे में कटौती कर सरकार को सबसे ज्यादा पैसे समर्पण करता है। विकलांग कल्याण विभाग जो पूरी तरीके से सरकारी अनुदान पर आश्रित है, उससे भी सारे पैसे सरकार ने समर्पण करा लिए और उसे कंजूसी करने में अव्वल का सर्टिफिकेट थमा दिया।

विकलांग कल्याण विभाग के सूत्र बताते हैं कि यह एक ऐसा विभाग है जहां सारी की सारी प्रक्रिया सरकार से मिले धन पर ही चलती है। विभाग के पास खुद का कोई कमाई का जरिया नहीं है। यूपी जैसे विशाल प्रदेश में विकलांगों के कल्याण के लिए बने इस विभाग के पास अगर धन नहीं होगा तो कमजोर और लाचार लोगों के लिए क्या काम कर पाएंगे। सरकार वैसे भी विकलांगों के कल्याण के लिए पैसे नापतोल कर देती है। विभाग के एक अधिकारी ने अपना नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि शासन में बैठे अफसर दबाव बनाते रहे कि पैसे कम खर्च करो और साल के अंत में ज्यादा से ज्यादा पैसे सरकारी खजाने में वापस करो। सूत्रों ने बताया कि वित्तीय वर्ष 2010-11 में कार्यालय व्यय के लिए 27,429 में से 15,301 वापस कराए। लेखन सामग्री के मद में मिले 35,600 रुपयों में से 23,395 रुपए, टेलीफोन के 15,000 में से 904 रुपए, कम्प्यूटर व स्टेशनरी को मिले 29,480 में से 14,850 रुपए तथा कार्यालय फर्नीचर पर मिले 12,000 रुपए में से 6,945 रुपए समर्पित करवा लिए।

यही नहीं, शासन में बैठे बड़े अधिकारियों ने सरकारी कर्मचारियों के वेतन मद में मिले धन को भी सरेंडर करवा लिया। विकलांग कल्याण विभाग के कर्मचारियों को वेतन के मद में 10 लाख, 40 हजार रुपयों में से 1,45,535 रुपए समर्पित करा लिए गए। कर्मचारियों को महंगाई मद में मिले 3,80,000 रुपयों में से 22,525 रुपए विभाग ने सरकार को समर्पित कर दिए। इसी प्रकार यात्रा भत्ता में मिले 11,000 रुपयों में से 5,113 रुपए विभाग को वापस करने पड़े। अन्य भत्ते के रूप में मिले 1,60,000 में 47 हजार रुपए भी वापस हो गए। सरकार ने कर्मचारियों को 40 प्रतिशत एरियर भुगतान के लिए 2,80,000 रुपए आवंटित किए थे।

मगर उसमें से भी 63,201 रुपए समर्पित करा लिए। प्रदेश में तकरीबन 40 लाख विकलांगजन हैं। मगर अभी तक विकलांग कल्याण विभाग अपने मुख्य दायित्वों को पूरा करने में नाकारा ही साबित हुआ है। यूपी में ही विकलांगों के सम्बंध में बनी राष्ट्रीय नीति का पालन ईमानदारी के साथ आज तक नहीं किया गया और न ही राज्य में बनने वाली किसी भी सरकार ने इसमें कोई रुचि ली है। विकलांगों से सम्बंधित सामाजिक, शैक्षणिक एवं आर्थिक विकास की योजनाएं सिर्फ कागजों पर बनती और बिगड़ती रहती हैं। मुक व बधिरों की शिक्षा एवं पुनर्वास के लिए बने विालय सिर्फ नाम के चल रहे हैं। पुनर्वास के लिए या तो सरकार धन नहीं देती है या फिर उन पैसों को अफसर डकार जाते हैं। अब तो हालात यहां तक आ गए हैं कि विभाग चलाने के लिए मिले पैसों में भी सरकार कटौती करने लगी है।

Wednesday 13 April 2011

सीएमओ से बड़े-बड़े अफसरों ने मानी हार


बेरोजगारों से 50-50 रुपए वसूलवाने के चक्कर में 
धकेले गए देवरिया से लखनऊ

यूपी के हर जिले में सीएमओ और उनके मातहत अफसर अराजकता फैलाए हैं। 15 दिन पहले तक देवरिया के सीएमओ रहे राम कृत राम की दबंगई के सामने प्रमुख सचिव से लेकर गोरखपुर मंडल के कमिश्नर तक हार मान गए। अंत में सीएमओ साहब की हेकड़ी उस दिन गायब हो गई जब देवरिया के उप जिलाधिकारी ने बेरोजगारों से मेडिकल सर्टिफिकेट के नाम पर 50-50 रुपए लेते हुए बाबू को रंगे हाथ पकड़ा। बेरोजगार छात्रों की शिकायत पर छापा मारने गए उप जिलाधिकारी के सामने बाबू ने कबूला कि सीएमओ साहब के कहने पर ही 35 रुपए के बजाय 50-50 रुपए मेडिकल सर्टिफिकेट बनाने के लिए वसूले जा रहे हैं।

तकरीबन 15 दिन पहले देवरिया में सीएमओ रहे आरके राम की तूती बोल रही थी। बड़े-बड़े आईएएस और दिग्गज अफसरों तक को वह नचाते थे। आरके जो कह देते थे वही होता था। जानकारी के अनुसार देवरिया का उप मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. डीवी शाही इसी जिले का ही रहने वाला है और वह ठाट से नौकरी इसलिए कर रहा है कि उसके ऊपर आरके राम का हाथ है। प्रमुख सचिव ने डीवी शाही के खिलाफ प्राप्त शिकायतों की जांच निदेशक, चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण गोरखपुर मंडल से कराई थी। जांच अधिकारी की रिपोर्ट पर प्रमुख सचिव ने उसे देवरिया से हटा कर कन्नौज के मुख्य चिकित्साधिकारी के अधीन तैनात करने का आदेश जारी किया था। मगर तत्कालीन देवरिया जिले के सीएमओ की ऊंची पहुंच के चलते प्रमुख सचिव का आदेश भी काम नहीं आया। आरके राम ने 12 फरवरी 2010 को एक आदेश पारित करते हुए लिखा कि डॉ. डीवी शाही उप मुख्य चिकित्सा अधिकारी के पद पर बने रहेंगे। उन्होंने प्रमुख सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य से फोन पर बात कर ली है। आरके राम का दबदबा यही नहीं रहा, गोरखपुर के कमिश्नर पीके महान्ति के एक आदेश को भी उन्होंने खूंटी पर टांग दिया था जिसमें कमिश्नर ने देवरिया जिले के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र मझगांवा में आशा के पद पर कार्यरत कुसमावती को जननी सुरक्षा योजना में कराए प्रसव की धनराशि का भुगतान करने को कहा था। तत्कालीन सीएमओ साहब के अधीनस्थ कार्य करने वाला कनिष्ठ लिपिक अखिलेश कुमार जायसवाल ने पैसे को अवैध रूप से यह कहते हुए रोक दिया था कि जब तक मैं यहां रहूंगा पैसे का भुगतान नहीं करूंगा।

आखिरकार भ्रष्टाचार का मकड़जाल फैलाने वाले आरके राम एक दिन अपने ही फैलाए तानेबाने में बड़ी बुरी तरह फंस गए। उनके कहने पर ही सीएमओ दफ्तर का बाबू बेरोजगार छात्रों से मेडिकल सर्टिफिकेट बनाने के नाम पर 50-50 रुपए वसूल रहा था। छात्रों ने एक दिन डीएम से शिकायत की तो उपजिलाधिकारी दफ्तर में छापा मारने पहुंच गए। उन्होंने बाबू को 50 रुपए लेते हुए रंगे हाथ पकड़ा। बाबू ने उपजिलाधिकारी के समक्ष स्वीकार किया कि सीएमओ के कहने पर ही 35 रुपए के बजाय 50-50 रुपए वसूला जा रहा है। डीएम ने जब इस बाबत सख्ती की तो आरके राम ने बाबू अरविंद सिंह को निलम्बित कर दिया। इस मुद्दे पर देवरिया के पूर्व सीएमओ आरके राम ने सफाई देते हुए डीएनए से कहा कि मैंने बाबू से नहीं कहा था कि वो 50-50 रुपए वसूले। हम क्यों कहेंगे? प्रमुख सचिव व गोरखपुर के कमिश्नर के आदेशों की अवहेलना के सवाल पर भी आरके राम पल्ला झाड़ गए और कहा कि मैं कौन होता हूं बड़े अफसरों की बात न मानने वाला। आप तो नाहक पुराने मुद्दे उठा रहे हैं।

Tuesday 12 April 2011

हिसाब लाओ, पैसा ले जाओ

पिछले वर्ष के खर्च का ब्यौरा नहीं
32 करोड़ 75 लाख की सशर्त स्वीकृति

 राज्य सरकार गरीबों की सेहत को लेकर अब तक सिर्फ जुगाली करती रही है। दवाओं के मद में मिलने वाला पैसा मंत्रियों, अफसरों, डॉक्टरों और दवा माफियाओं की जेब में जाता रहा है। लखनऊ में दो-दो सीएमओ की हत्या से उपजे हालात व इस हत्याकांड को लेकर कटघरे में खड़े दो-दो मंत्रियों के बाद से तो सरकार और चौकन्नी हो गई है। गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले असंगठित क्षेत्र के परिवारों की चिकित्सा स्वास्थ्य बीमा योजना के लिए राज्य सरकार ने 32 करोड़ 75 लाख रुपए इस शर्त पर स्वीकृत किया है कि पहले पिछले साल वाला हिसाब दिखाओ फिर यह पैसा ले जाओ।

ग्राम्य विकास विभाग के प्रमुख सचिव मुकुल सिंहल ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना की क्रियान्वयन के लिए राज्य के कोटे का पैसा जारी करते हुए कहा है कि अप्रैल से जून तक का 32 करोड़ 75 लाख रुपए स्वीकृत कर दिया गया है। अफसरों को खबरदार करते हुए श्री सिंहल ने कहा है कि इन पैसों को खर्च करने में जल्दबाजी बिलकुल भी न दिखाएं नहीं तो एक-एक पाई का हिसाब लिया जाएगा। इतना चौकन्नापन शायद लखनऊ में हुए सीएमओ हत्याकांड और दवा बजट में हुई वित्तीय अनियमिताताओं के मद्देनजर दिख रहा है। गरीबों के इलाज का ढोल पीटने वाली सरकार में ही सबसे ज्यादा अनियमितताओं की शिकायतें आई हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना में हर बार की तरह इस बार भी असंगठित क्षेत्र के मजदूरों और उनके परिवार के पांच सदस्यों के इलाज की कागजी जुगाली की गई है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के प्रथम चरण की बात करें तो 15 जिलों में 8,34,871 स्मार्ट कार्ड बांटे गए थे जिनमें से सिर्फ 63,741 गरीबों को ही इलाज की सुविधा मयस्सर हो पाई। इसमें 259 निजी अस्पतालों ने अफसरों से साठगाठ कर अपना उल्लू सीधा किया। योजना के आंकड़े बताते हैं कि द्वितीय चरण में प्रदेशभर में तकरीबन 1000 से ज्यादा निजी अस्पतालों को गरीबों के पैसों पर डाका डालने के लिए छूट दे दी गई। अफसरों की हीलाहवाली की ही वजह से ही बीमा कम्पनियों के पास भुगतान के लिए अभी भी 1525.53 लाख रुपए लंबित हैं। जबकि इसके ठीक विपरीत बीमा कम्पनियों को 2138.70 लाख रुपए का दावा अस्पतालों द्वारा किया गया था। सरकारी सूत्रों का कहना है कि प्रदेश के 71 जिलों के 9,953,905 बीपीएल परिवार तथा ग्रामीण क्षेत्रों के 887,845 बीपीएल परिवारों को सरकार स्मार्ट कार्ड ही नहीं दे पाई। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तृतीय चरण का भी हाल बुरा रहा है। अब जबकि राज्य सरकार गरीबों के इलाज के लिए जो पैसे दे रही है तो उसे पहले से ही क्यों दुरुपयोग की आशंका सता रही है? ऐसा न होता तो प्रमुख सचिव अपने शासनादेश में यह न लिखते कि पैसे तो सरकार दे रही है मगर फिर भी धन के आहरण आवश्यकता होने पर ही किया जाएगा। वित्तीय स्वीकृति के सापेक्ष एकमुश्त पैसे नहीं मिलेंगे। तीन महीने में से सिर्फ दो महीने के खर्च के लिए ही धन मिलेगा। दरअसल सरकार इसलिए डर रही है कि पहले दिए पैसों का हिसाब-किताब जिलों के अफसरों ने नहीं दिया है। इस बात का जिक्र करते हुए प्रमुख सचिव ने विभिन्न अफसरों को कड़ा निर्देश जारी करते हुए कहा है कि 32 करोड़ 75 लाख रुपए इस प्रतिबंध के अधीन स्वीकृत किए जा रहे हैं कि पिछले वर्ष की स्वीकृत धनराशि के उपभोग की सूचना को प्रत्येक दशा में वे उपलब्ध करा देंगे।

Monday 11 April 2011

अब जादूगरों से भी मनोरंजन कर!


कहा, पार्लर, साइबर कैफे कर के दायरे में हों
होटल व बारात घरों में संगीत पर भी लगे कर

प्रदेश सरकार अब परम्परागत जादू कला पर भी मनोरंजन कर वसूलने का इंतजाम बना रही है। इसके साथ ही सरकार की नजरें सूचना प्रौोगिकी के क्षेत्र में निरंतर हो रहे विस्तार एवं प्रगति पर भी हैं जहां उसे मनोरंजन कर वसूलने के पर्याप्त dोत दूर से ही दिखाई पड़ रहे हैं। लिहाजा सरकार कम्प्यूटर व इंटरनेट से आडियो-वीडियो गानों तथा फिल्म्स की डाउन लोडिंग करने वाले पार्लरों एवं साइबर कैफे को भी मनोरंजन कर के दायरे में घसीटने की तैयारी कर रही है।

सरकार की नजरें इन दिनों कमाई करने वाले विभागों पर हैं। कहां से कितना पैसा टैक्स के रूप में और निकाला जा सकता है, इसके लिए सभी विभागों के प्रमुख सचिवों और विभागीय मंत्रियों को लगा दिया गया है। मार्च महीने में मनोरंजन कर मंत्री नकुल दुबे ने समीक्षा बैठक के दौरान ही कह दिया था कि अफसर आमोद के नए dोत तलाशें जिससे राजस्व वसूली का दायरा और बढ़ाया जाय। विभागीय सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक कई सहायक आयुक्तों ने प्रमुख सचिव को मनोरंजन कर वसूलने के जो सुझाव दिए हैं, कई एक तो बेहद चौकाने वाले हैं। आगरा के एक सहायक आयुक्त ने तो जादू प्रदर्शनों पर मनोरंजन कर लगाए जाने का सुझाव सरकार को दिया है। प्रमुख सचिव को लिखे पत्र में सहायक मनोरंजन कर आयुक्त ने कहा है कि जादू पर मनोरंजन कर देय नहीं है। वर्तमान में ओपी शर्मा जैसे जादूगर बड़े स्तर पर जादू प्रदर्शनों का आयोजन करते हैं। ये टिकट दर बहुत ऊंची दामों पर रखते हैं। आगरा में जादूगर द्वारा लगभग 50 लाख की अनुमानित आय हुई है। यदि इस पर कम से कम 25 प्रतिशत की दर से मनोरंजन देय होता तो भी लगभग 12.50 लाख रुपए की राजस्व प्राप्ति हो सकती थी। मालूम हो कि जादू जैसे परम्परागत मनोरंजन प्रदान करने वाली कलाएं आज लुप्त होती जा रही हैं। सरकार को इन्हें प्रोत्साहन व संरक्षण देने के बजाय मनोरंजन कर के दायरे में घसीटने से जादूगर जैसी प्रतिभाएं प्रभावित होंगी। अब होटल व बारात घरों में बजने वाले डीजे सिस्टम एवं वीडियो स्क्रीन लगाने पर भी मनोरंजन कर वसूलने की तैयारी सरकार कर रही है। चूंकि आजकल होटल्स और बारात घरों में शादी-विवाह का प्रचलन है। इन आयोजनों के लिए होटल स्वामी व बारात घर संचालक अच्छी आमदनी कर रहे हैं। इसलिए मनोरंजन कर अधिकारी यह कह रहे हैं कि इनसे शादी-विवाह के आयोजनों के लिए वसूल की जा रही राशि के अनुसार एकमुश्त मनोरंजन कर निर्धारित किए जाने से राजस्व की अतिरिक्त आय बढ़ जाएगी। राज्य सरकार मल्टीप्लेक्स सिनेमा घरों के लिए निर्धारित लाइसेंस फीस सिंगल स्क्रीन सिनेमाओं की अपेक्षा अधिक करने जा रही है। इसके लिए कई मनोरंजन कर अधिकारियों ने सरकार को सुझाव भी सुझाए हैं।

अधिकारिक सूत्रों का कहना है कि मल्टीप्लेक्स सिनेमाओं के लिए सालाना लाइसेंस फीस अन्य सिनेमाओं से पांच गुनी किए जाने से अच्छी राजस्व की आय सरकार को प्राप्त होगी। इसके साथ ही सरकार होटलों में केबिल ऑपरेटरों की सेवाओं का मनोरंजन कर होटलों से ही वसूल करेगी। अभी तक कई होटलों के मालिक यह कहते रहें हैं कि होटल में केबिल सुविधा के लिए देय मनोरंजन कर केबिल आपरेटरों से वसूलना चाहिए। यही नहीं विभागीय अधिकारियों ने सरकार से आबकारी विभाग की तरह कर निर्धारण, पेनाल्टी, अपराध व शमन आदि मामलों में मनोरंजन कर अधिकारियों को और अधिकार दिए जाने की मांग की है।

Sunday 10 April 2011

दहशत में हैं नए नवेले प्रमुख सचिव


मनरेगा के 125 करोड़ हिसाब से खर्च करने की दे रहे हिदायत

ग्राम्य विकास विभाग के नए-नए प्रमुख सचिव बने मुकुल सिंहल सरकार से इतने दहशत में हैं कि वे अपने नीचे के अफसरों को फूंक-फूंक कर चलने की हिदायत दे रहे हैं। और कह रहे हैं कि मनरेगा में राज्य के कोटे के पैसों को अधिकारी तभी खर्च करें जब उसकी जरूरत हो। मनरेगा में मिलने वाले केंद्र के पैसे को मटियामेट करने वाली राज्य सरकार अपने हिस्से वाले पैसे का कितना वजन समझती है? सरकार ने छह अप्रैल को मनरेगा में अपने कोटे से 125 करोड़ रुपए स्वीकृत किए हैं जरूर मगर जिस प्रकार प्रमुख सचिव ने उसे खर्च करने के तरीके बताए हैं, उससे तो नहीं लगता कि अफसर इसे खर्च करने का दुस्साहस भी जुटा पाएंगे।

प्रमुख सचिव मुकुल सिंहल ने ग्राम्य विकास आयुक्त समेत सभी अफसरों को एक पत्र लिखकर अवगत कराया है कि राज्य सरकार ने वित्तीय वर्ष 2011-12 में मनरेगा में अप्रैल से जून तक के खर्च के लिए 125 करोड़ रुपए की स्वीकृति दे दी है। यह तभी मिलेगा जब केंद्र का पैसा आ जाएगा। प्रमुख सचिव के यह कहने का मतलब बिलकुल साफ है कि जब केंद्र पैसा दे ही देगा तो इसके खर्च करने की जरूरत नहीं पड़ेगी और यह कहने को हो जाएगा कि राज्य सरकार अपने कोटे के पैसे देने से नहीं चूकी। उन्होंने कहा कि 125 करोड़ के आहरण की आवश्यकता होने पर ही यह राशि दी जाएगी। वह भी एकमुश्त नहीं मिलेगी। कोषागार से धन निकालने का तरीका भी बिलकुल अलग होगा। यह कई चरणों में निकाला जाएगा। दो महीने की आवश्यकता से अधिक पैसा नहीं निकलेगा।

गौरतलब है कि मनरेगा अधिनियम के तहत यदि किसी को रोजगार नहीं मिलता तो उसे बेरोजगारी भत्ता, मनरेगा के पैसों से हो रहे निर्माण में प्रयुक्त सामग्री अंश का 25 प्रतिशत तथा राज्य रोजगार गारंटी परिषद पर होने वाले व्यय को राज्य सरकार अपनी तरफ से पैसे देती है। इतनी मदों पर पैसे देने में राज्य सरकार कोताही बरतती है। जिस 125 करोड़ रुपए को खर्च करने के सरकार अनेकों इंतजाम बता रही है उसमें समय-समय पर जारी मितव्ययिता संबंधी शासनादेश व वित्तीय नियमों के पालन का हवाला भी दिया है। प्रमुख सचिव ने अधिकारियों से यह भी कहा है कि 125 करोड़ रुपए को वह राज्य सरकार द्वारा वहन किए जाने वाली मदों पर ही खर्च करेंगे। कितना आश्चर्यजनक है कि राज्य सरकार केंद्र का पैसा अपने मद में खर्च करे तो ठीक मगर वह केंद्र के मद में करे तो ठीक नहीं। मालूम हो कि राज्य सरकार की ज्यादातर मद वाली योजनाओं में मनरेगा के पैसों से ही काम चलाया जा रहा है। सिंचाई, सड़क, पानी, वर्षा जल संचय तथा ग्रामसभा सचिवालय से लेकर तमाम ग्रामीण क्षेत्र की योजनाएं मनरेगा के पैसों से ही चलाई जा रही हैं। प्रमुख सचिव ने राज्य सरकार के पैसों को खर्च करने के लिए यह भी हिदायत दी है कि यदि कोई धनराशि बचती है तो उसे नियमानुसार वित्त विभाग को समर्पित किया जाएगा। उन्होंने वित्तीय नियमों के पालन करने की जिम्मेदारी वित्त नियंत्रक व अपर आयुक्त लेखा ग्राम्य विकास पर थोपी है।

Friday 8 April 2011

घोटालों की महारानी मायावती : भाजपा

पार्टी ने 100 घोटालों का आरोपपत्र जारी किया


भाजपा ने यूपी में अब दिमागी खेल खेलना शुरू कर दिया है। पार्टी हाईकमान दिल्ली में अन्ना हजारे द्वारा शुरू भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम को उत्तर प्रदेश की ओर मोड़ने के फिराक में है। प्रदेश में भाजपा के अनुकूल माहौल पैदा करने के उद्देश्य से ही पार्टी के राष्ट्रीय मंत्री और चार्टड एकाउंटेंट डॉ. किरीट सौमय्या ने गुरुवार को लखनऊ में माया के 100 घोटाले की फेहरिस्त तैयार कर यह कहने की पुरजोर कोशिश की कि अंधेर नगरी कायम कर माया महारानी पूरे प्रदेश को चौपट कर चुकी हैं। उन्होंने राजकोष को एटीएम मशीन की तरह इस्तेमाल कर भ्रष्टाचार के मामले में केंद्र की कांग्रेस सरकार को भी पछाड़ दिया है।

डॉ. किरीट सोमय्या ने गुरुवार को पार्टी दफ्तर में जिस तरह मायावती के 100 घोटालों की फेहरिस्त एक-एक कर मीडिया के सामने पेश की, वह माया मेमसाहब के रणनीतिकारों को जरूर हैरान कर देने वाला है। अगर कहीं अन्ना हजारे के आंदोलन का रुख दिल्ली से लखनऊ की ओर वास्तव में घूम गया तो यूपी की महारानी जरूर परेशानी में पड़ जाएंगी। भ्रष्टाचार के नाम पर भाजपा सिर्फ केंद्र सरकार को ही हिलते नहीं देखना चाहती बल्कि इसी बयार में वह माया सरकार को भी उड़ाने की हरचंद कोशिश में है। सोमय्या ने आरोप लगाया कि मायावती के सिर्फ दो वर्ष के कार्यकाल में दो लाख 54 हजार करोड़ का घोटाला हुआ है जो केंद्र के टूजी स्पेक्ट्रम और सीडब्लूसी घोटाले के बराबर है। भाजपा 12 जून को घोटालों की इस फेहरिस्त को देश के राष्ट्रपति को सौंपेगी। पार्टी ने घोटालों पर माया की मेहरबानियों का सिलसिलेवार वर्णन किया है जो इस प्रकार है:

माया गैंग - सरकार की चुनिंदा कारपोरेट हस्तियों ने बल प्रयोग कर 40 हजार करोड़ की जमीन कब्जा कर ली।

माया का उपहार- मुख्यमंत्री ने अपने कारपोरेट हस्तियों को नोएडा में एक लाख करोड़ की कीमती जमीन उपहार में दे दी।

माया की चीनी - माया के इशारे पर प्रदेश के 25 हजार करोड़ के चीनी कारखानों को औने-पौने दामों पर पौंटी चड्ढा व अन्य को दे दिया गया।

माया की सत्ता - संदिग्ध तरीके से ऊर्जा प्रोजेक्ट दिए गए जिसके कारण 20 हजार करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा।

माया का पावर - आगरा के बिजली उपभोक्ताओं के हितों को ताक पर रखकर टोरेंट पावर कम्पनी को वितरण की फ्रेंचाइजी दे दी गई। इससे सरकार को 25 हजार करोड़ का नुकसान हुआ है।

माया धन की खान - चूना, रेत व पत्थरों की खानें अनाप-शनाफ तरीके से बसपा नेताओं के कहने पर दी गईं जिसमें 15 हजार करोड़ रुपए का हेरफेर किया गया है।

माया टैक्स - अवैध कर, हफ्ता वसूली, यूपी में इसे माया टैक्स कहा जाता है। शराब बेचने वाली हर दुकान में प्रति बोतल या प्रति पैग पर पांच से 10 रुपए का माया टैक्स वसूल कर 10 हजार करोड़ अंदर किया गया।

माया स्मारक - एससी/एसटी की गरीबी दूर करने व सामाजिक कल्याण के नाम पर करोड़ो रुपए बहाए जाते हैं स्मारकों के लिए पत्थरों में करोड़ो का घोटाला किया गया। स्मारकों के निर्माण के जरिए 5 हजार करोड़ का घोटाला किया गया है। इस प्रकार कुल दो लाख 54 हजार रुपए करोड़ रुपए का घोटाला किया गया है।

Thursday 7 April 2011

ये भ्रष्टाचार तो शिष्टाचार बन गया

भ्रष्टाचार के मूल में जाए बिना निराकरण नहीं
यूपी में ही भ्रष्टाचारियों की लंबी जमात

 देश में व्याप्त भ्रष्टाचार ने शिष्टाचार का रूप धारण कर लिया है। संभव है कि प्रसिद्ध समाज सेवी अन्ना हजारे के आमरण अनशन से केंद्र सरकार जागे और जन लोकपाल विधेयक संसद में लाकर भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग का एलान करे। राजनेता, नौकरशाह और बड़े-बड़े व्यापारियों का गठजोड़ इतना मजबूत है कि इतने आसानी से भ्रष्टाचार के खिलाफ विधेयक का पारित हो जाना बड़ा मुश्किल है। लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री तथा लोकायुक्त की परिधि में मुख्यमंत्रियों को घसीटना तो और भी चुनौतीपूर्ण है।

डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट ने भ्रष्टाचार के सवाल पर जब प्रसिद्ध चिंतक गोविंदाचार्य से पूछा तो उन्होंने कहा कि एक तरफ जहां देश की आधी आबादी आर्थिक अभावों में जिंदगी घिसट रही है वहीं देश के भ्रष्ट राजनेताओं, नौकरशाहों और बड़े व्यापारियों के लाखों करोड़ रुपए विदेशी बैंकों में जमा हैं। मगर भ्रष्टाचार के मूल में जाए बिना उस पर नियंत्रण संभव नहीं। उन्होंने कहा कि अफसर घूस लेने से चूकेगा नहीं और राजनेता राजकोष का अपहरण करेगा जरूर।

अभी बीते 9 व 10 अक्टूबर 2010 को भोपाल में सभी प्रदेशों के लोकायुक्तों का एक सम्मेलन हुआ था। सम्मेलन में दिल्ली के लोकायुक्त के नेतृत्व में तीन सदस्यीय एक उपसमिति गठित की गई थी कि वह राज्यों में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए मुख्य लोकायुक्त और लोकायुक्त विधेयक की रिपोर्ट तैयार करे। इस समिति में यूपी के लोकायुक्त न्यायमूर्ति एनके मेहरोत्रा और मध्यप्रदेश के उप लोकायुक्त भी शामिल थे। समिति ने विधेयक सम्बंधी अपनी रिपोर्ट भी केंद्रीय कानून मंत्री वीरप्पा मोइली को सौंप दी। इसे संसद के बीते सत्र में पेश किया जाना था मगर सदन के पटल पर नहीं रखा जा सका। भ्रष्टाचार में केंद्र सरकार के हाथ जितने सने हैं वही हाल यूपी में मौजूदा सरकार और यहां के भ्रष्ट अफसरों व राजनेताओं का है। लोकायुक्त ने वर्ष 2001 से 2010 तक की जितनी भी रिपोर्ट कार्रवाई के लिए राज्यपाल से लेकर मुख्य सचिव को भेजे हैं उनमें बड़े-बड़े मंत्रियों से लेकर नौकरशाही की बड़ी-बड़ी हस्तियां भ्रष्टाचार के दल-दल में हैं। यूपी की ही बात करें तो पूर्व खादी ग्रामोोग मंत्री राजाराम पांडेय, पूर्व ग्रामीण अभियंत्रण एवं लघु सिंचाई मंत्री मारकंडेय चन्द्र, पूर्व शिक्षा मंत्री डॉ. नैपाल सिंह, पूर्व महिला कल्याण मंत्री राजेन्द्र सिंह राणा तथा पूर्व मंत्री नरेन्द्र कुमार गौण के साथ मौजूदा मंत्री धर्म सिंह सैनी समेत कइयों के हाथ भ्रष्टाचार के कीचड़ से सने हैं। वर्ष 2007 में तत्कालीन विधायक शिशुपाल सिंह यादव व एमएलसी सुधाकर वर्मा, 2006 में पूर्व मंत्री अवधेश प्रसाद के साथ तत्कालीन प्रमुख सचिव समाज कल्याण, पूर्व प्रमुख सचिव आर रमणी व पूर्व प्रमुख सचिव आरसी श्रीवास्तव के खिलाफ लोकायुक्त ने विशेष प्रतिवेदन राज्यपाल व सरकार को भेजे थे। इसी प्रकार 2009 में तत्कालीन प्रमुख सचिव वन, 2008 में तत्कालीन प्रमुख सचिव समाज कल्याण, विशेष सचिव व निदेशक, 2004 में तत्कालीन अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक पावर कारपोरेशन, 2004 में तत्कालीन विधायक बृजेन्द्र पाल सिंह, 2002 में तत्कालीन आयुक्त ग्राम्य विकास, 2002 में ही तत्कालीन प्रमुख सचिव चिकित्सा, 2001 में तत्कालीन एलडीए उपाध्यक्ष दिवाकर त्रिपाठी, 2000 में तत्कालीन प्रमुख अभियंता सिंचाई के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगे। 2009 में तत्कालीन प्रमुख अभियंता डीएस सरावत व 2009 में बसपा सांसद कैसर जहां के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। लोकायुक्त न्यायमूर्ति एनके मेहरोत्रा ने यहां तक कहा कि यदि सरकार भ्रष्टाचार मुक्त प्रदेश बनाने के उद्देश्य की पूर्ति चाहती है तो लोकायुक्त द्वारा भेजे प्रतिवेदनों पर विचार किया जाना चाहिए।

Wednesday 6 April 2011

गरीबों को दांव भ्रष्टाचार में पांव

गरीबों के इलाज का 95.79 लाख नहीं दे रहीं बीमा कम्पनियां
526,819 में से सिर्फ 1684 बीपीएल परिवारों का इलाज


यूपी में भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रही कल्याणकारी योजनाओं का कोई पुरसाहाल नहीं है। खासकर केन्द्रीय योजनाओं में तो अफसर बिल्कुल बेपरवाह होकर खानापूर्ति करते हैं और फायदा दूसरे उठाते हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना का भी वही हाल है। पहले निजी अस्पतालों ने गरीबों के पैसों का बंटाढार किया अब बीमा कम्पनियां इस योजना को ठिकाने लगाने में जुटी हैं। योजना के तीसरे चरण में महज 14 जिलों में बीमा कम्पनियों ने करीब 96 लाख रुपए गरीबों के इलाज के पैसों का भुगतान नहीं किया है।

ग्राम्य विकास मंत्री हर महीने समीक्षा बैठक करते हैं और उनके सामने यह आंकड़े रखे जाते भी हैं। इस योजना में मंत्री अगर संजीदा होते तो सरकारी अस्पतालों को वरीयता देने के बजाय निजी अस्पतालों को गरीबों के इलाज का जिम्मा सौंप कर भ्रष्टाचार को बढ़ावा न देते। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तृतीय चरण की बात करें तो सिर्फ 14 जिलों में गरीबों का इलाज 180 निजी अस्पतालों को सौंप दिया गया। इसके ठीक विपरीत 91 सरकारी अस्पताल इस योजना से जोड़े गए। इससे भी ज्यादा हैरत वाली बात तो यह है कि 14 जिलों में 1684 बीपीएल धारक गरीबों ने ही इलाज कराया, जबकि इन जिलों में 526,819 स्मार्ट कार्ड बांटे गए थे। यह ऐसा इसलिए है कि गरीब निजी अस्पतालों में इलाज कराने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाता है। दूसरे, सरकारी अस्पतालों में लापरवाही इतनी है कि डॉक्टर से लेकर चिकित्सा अधीक्षक तक गरीबों को सुनने के लिए तैयार नहीं होते हैं।

दरअसल गरीबों के इलाज के नाम पर बीमा कम्पनियां अपना खेल दिखा रही हैं। पिछले एक साल में 14 जिलों के जिन 1684 बीपीएल धारक गरीबों ने अपने स्मार्ट कार्ड पर इलाज की सुविधा प्राप्त की उसमें अस्पतालों ने 102.14 लाख रुपए का दावा बीमा कम्पनियों को प्रस्तुत किया। इसके एवज में बीमा कम्पनियों ने सिर्फ 5.75 लाख रुपए भुगतान किया है। सूत्र बताते हैं कि बीमा कम्पनियों के पास 95.79 लाख रुपए भुगतान का मामला लम्बित है।

उल्लेखनीय है कि 14 जिलों में क्रमश: अलीगढ़ में 13,134 बीपीएल परिवारों को, बलरामपुर में 46,712, बरेली में 53,872, इटावा में 35,759, फरुखाबाद में 30,150, फिरोजाबाद में 13,477, जालौन में 37,489, कन्नौज में 28,666, लखनऊ में 32,402, मैनपुरी में 44,352, मथुरा में 13,544, मऊ में 33,578, प्रतापगढ़ में 53,480 और उन्नाव में 90,204 स्मार्ट कार्ड वितरित किए गए थे। इन जिलों के शहरी इलाकों से कुल 168,725 बीपीएल परिवारों को तथा 1,678,124 ग्रामीण बीपीएल परिवारों को राष्ट्रीय स्वाथ्य बीमा योजना की सुविधा देने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। लक्ष्य के विपरीत मात्र 1684 बीपीएल कार्ड धारक गरीबों जिसमें ज्यादातर अनुसूचित जाति व जनजाति तथा पिछड़े वर्ग के लोग हैं, यह सुविधा किसी प्रकार मयस्सर हुई है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत सरकारी अफसरों की सोच का ही नतीजा है या यूं कहें कि उनकी सेटिंग निजी अस्पतालों से हो जाने की ही वजह से शायद योजना लगभग फ्लाप हो चुकी है। मात्र लखनऊ में ही 60 निजी अस्पतालों को गरीबों की योजना के पैसों में बंदरबांट के लिए खुली छूट दे दी गई। इसके विपरीत 18 सरकारी अस्पतालों को ही राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना से जोड़ा गया। डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट ने बीमा कम्पनियों द्वारा भुगतान न किए जाने के बाबत ग्राम्य विकास आयुक्त संजीव कुमार से पूछा तो उन्होंने कहा कि बीमा कम्पनियां भुगतान नहीं करेंगी तो जाएंगी कहां।

Sunday 3 April 2011

सूचना आयोग से ढाई हजार फाइलें गायब


सीआईसी की लचर कार्यशैली की खुली पोल
सुनवाई कक्षों में हजारों मामले दर्ज नहीं

 यूपी के मुख्य सूचना आयुक्त रणजीत सिंह पंकज की लापरवाही और हीलाहवाली वाली कार्यशैली से राज्य सूचना आयोग का कामकाज प्रभावित होने लगा है। करीब ढाई हजार फाइलें गायब हो गई हैं और वे सीआईसी की कुर्सी पर ठाट से बैठकर आराम फरमा रहे हैं। हजारों की तादात में मामले अभी तक सुनवाई कक्षों में दर्ज नहीं होने से उनके लचर प्रशासनिक तौर-तरीकों की पोल खुल गई है।

आयोग की सूत्रों के मुताबिक करीब 2492 मामले जो विभिन्न सुनवाई कक्षों में भेजे गए थे उनमें से अभी तक ये दर्ज नहीं हो पाए हैं। पता चला है कि ये फाइलें मिल न पाने की वजह से विभिन्न सुनवाई कक्षों में दर्ज नहीं हो पा रही हैं। सूत्र बताते हैं कि सीआईसी ने एक गोपनीय पत्र जारी करते हुए सूचना आयुक्तों से खोई हुई फाइलों को दर्ज करने के लिए कहा है। उन्होंने गायब हुई फाइलों की संख्या तथा वादकारियों के नाम की सूची भी उपलब्ध कराई है। इनमें सीआईसी के कोर्ट की खुद 243 फाइलें, पूर्व सूचना आयुक्त ज्ञानेन्द्र शर्मा के समय में 380 फाइलें, मेजर संजय यादव के कोर्ट की 531 फाइलें, वीरेन्द्र सक्सेना के कोर्ट की 26 फाइलें, राम हरि विजय त्रिपाठी के कोर्ट की 228 फाइलें, अशोक कुमार गुप्ता के कोर्ट की 315 फाइलें, सुनील कुमार चौधरी के कोर्ट की 10 फाइलें, सुभाष चंद पांडेय के कोर्ट की 31 फाइलें, राम सरन अवस्थी के कोर्ट की 19 फाइलें, बृजेश कुमार मिश्र के कोर्ट की 338 फाइलें तथा सूचना आयुक्त ज्ञान प्रकाश मौर्य के कोर्ट की 271 फाइलें गायब हैं। पंकज ने गोपनीय पत्र में अपनी प्रशासनिक अव्यवस्था को दर्शाते हुए कहा है कि आयोग में अभी तक सुनवाई कक्षों के अभिलेखों के निरीक्षण की कोई प्रथा नहीं है। आयुक्तों से कहा है कि प्रत्येक आयुक्त कम से कम तीन माह में एक बार या तो स्वयं अपने सुनवाई कक्ष के समस्त कार्य का निरीक्षण कर ले अथवा सचिव के माध्यम से उस सुनवाई कक्ष के अभिलेखों के रखरखाव का निरीक्षण करा ले। इस सम्बंध में पंकज ने सूचनायुक्तों से सुझाव भी मांगे हैं। सीआईसी की नियुक्ति के तकरीबन दो साल पूरे होने वाले हैं अभी तक वे यह नहीं जान पाए कि आयोग की मूलभूत समस्याएं क्या हैं? आयोग में हालत यह है कि एक-एक कर्मचारी चार-चार कर्मचारियों का बोझ ढो रहा है। स्वाभाविक है कार्य के दबाव के चलते कामकाज प्रभावित होगा। बजाय सरकार को आयोग में कर्मचारियों की संख्या बढ़ाने के वे उनका शोषण करने पर तुले हैं। कर्मचारियों को परेशान करने की नियति से ही सीआईसी ने सूचना आयुक्तों से कहा है कि आयोग में एक ही पटल पर कर्मचारियों को कार्य करते हुए तीन या तीन से अधिक वर्ष हो गए हैं। इसलिए इनका पटल पर्वितन होना चाहिए। दरअसल ढाई हजार की तादात में फाइलों के न मिलने से सीआईसी हक्का-बक्का हैं। उन्हें अब अनुशासन याद आया है और इसीलिए उन्होंने कर्मचारियों से समयशीलता का पालन किए जाने को लेकर सुचना आयुक्तों से सुझाव भी मांगे हैं। सीआईसी ने सूचना आयुक्तों से ये सारे सुझाव 31 मार्च तक देने को कहा था। पंकज ने आयोग में लम्बित वादों की सुनवाई वीडियो कान्फ्रेसिंग के जरिए कराए जाने का प्रस्ताव रखा है। डीएनए संवाददाता ने आयोग के करीब ढाई हजार फाइलों के गुम हो जाने के बाबत पंकज के मोबाइल नं.9415042277 पर सम्पर्क किया तो न उन्होंने फोन उठाया और न ही मैसेज भेजने पर भी प्रतिक्रिया दी।

Friday 1 April 2011

मुफलिसी में इतिहास पढ़ रहे भाजपाई

पासी समाज को इंसाफ दिलाएंगे : राजनाथ
 मुफलिसी में भाजपाइयों के सामने ज्ञानबोध के अलावा करने को कुछ रहा भी नहीं। संगठन कमजोर, नेता कमजोर और जहां कार्यकर्ता तक कमजोरी महसूस कर रहे हों वहां ज्ञान ही ऐसी कुंजी है जो दर्द कुछ कम करने का काम करती है। गुरुवार को लखनऊ स्थित महाराजा बिजली पासी किला में पासी नेताओं ने भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह समेत सूबे के तमाम भाजपाइयों को पासी समाज की वीरांगनाओं और वीरों के इतिहास का पाठ पढ़ाया।

मंच के ऊपर और पंडाल में नीचे बैठे भाजपा नेता यह मानकर चल रहे थे कि राजनाथ पासी समाज के इतिहास से परिचित होंगे। मगर उनके आश्चर्यबोध का ठिकाना उस समय नहीं रहा जब खुद राजनाथ बोलने के लिए खड़े हुए और यह कहा कि अंग्रेजों ने पासी समाज के लोगों को जरायम पेशे वाली जाति बता दिया। आज तक इतिहास में यही पढ़ाया जा रहा है। लानत है इस देश पर 50 साल से हुकूमत चलाने वाली कांग्रेस व दूसरी पार्टियों पर जिसने इसका कभी रंचमात्र तक विरोध ही नहीं किया। यूपी में बैठी महारानी मायावती दलितों की मसीहा बनती हैं और दलित जाति को अपमानित करने वाला यह संबोधन उनको दिखाई और सुनाई नहीं पड़ रहा है। उन्होंने एलान भी कर दिया कि जिस दिन भाजपा की सरकार बनेगी और जो भी मुख्यमंत्री बनेगा उससे मैं पार्टी का वरिष्ठ नेता होने के नाते तीन महीने के अन्दर पासी समाज के पथ प्रदर्शक गंगा बख्श सिंह रावत का स्मारक बनाने को कहूंगा। इसके साथ ही पासी समाज को कलंकित करने वाले विषयों को दूर करने के लिए आवाज उठाऊंगा।

मायावती द्वारा सामाजिक न्याय समिति की सिफारिशों को रद्द करने तथा समिति द्वारा तय किए गए अति दलितों व अति पिछड़ों के आरक्षण के पीछे उनकी राजनीतिक सोच की आलोचनाओं का जवाब देते हुए राजनाथ ने उस दौरान अपनी इस पहल का पूरा किस्सा ही सुना डाला। उन्होंने कहा कि पार्टी के वरिष्ठ नेता हुकुम सिंह को बुलाकर एक समिति गठित करने तथा अब तक आरक्षण के फायदे से वंचित अति दलित और अति पिछड़े समाज को इसका लाभ दिलाने के लिए ही तीन सदस्यीय सामाजिक न्याय समिति का गठन किया था। इसके पीछे सिर्फ यह सोच थी कि वंचित लोगों को भी आर्थिक आरक्षण के साथ राजनीतिक आरक्षण का भी लाभ मिले। तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री रमापति शास्त्री व दयाराम पाल ने रिपोर्ट बनाने में अथक मेहनत की। समिति ने रिपोर्ट भी समय से पेश कर दी और भाजपा सरकार ने इसे लागू भी कर दिया था। मगर दलितों की मसीहा बनने वाली मायावती ने मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठते ही इसे रद्द कर दिया।