Tuesday 20 September 2011

कांशीराम स्वरोजगार योजना में घपला


सही आंकड़े नहीं दे रहे जिलों के अफसर

सूबे की मुखिया मायावती की शीर्ष प्राथमिक योजनाओं पर भी बट्टा लगाने से भ्रष्ट अफसर नहीं चूक रहे हैं। कांशीराम जी अल्पसंख्यक स्वरोजगार योजना में अल्पसंख्यक कल्याण विभाग व अल्पसंख्यक वित्तीय विकास निगम के अधिकारियों ने भारी पैमाने पर गोलमाल किया है। दर्जनों जिलों में लाभार्थियों की संख्या और उन्हें दिए गए धन की सूचना ही विशेष सचिव को नहीं है। कई जिलों में मान्यवर कांशीराम जी अल्पसंख्यक स्वरोजगार योजना का पैसा भी जरूरमंदों को नहीं मिला है।

अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के सूत्रों का कहना है कि मान्यवर कांशीराम जी अल्पसंख्यक स्वरोजगार योजना में जमकर धांधली की गई है। जिलों में भारी कमियां पाई गईं हैं। इस योजना में जिलों के अफसरों ने विशेष सचिव को सही आंकड़े ही नहीं भेजे हैं। अफसरों की हीलाहवाली की वहज से ही कानपुर, उन्नाव, झांसी, बाराबंकी आदि जिलों में वर्ष 2009 में किसी को भी योजना का लाभ नहीं दिया गया है। योजना में भारी गोलमाल का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2011-12 में एटा, अंबेडकरनगर, कानपुर में लाभार्थियों की संख्या एवं वितरित धनराशि का विवरण ही जिले के अफसरों ने विशेष सचिव शहाबुद्दीन मोहम्मद को नहीं भेजा है। यही नहीं जिन जिलों में लाभार्थियों की संख्या एवं व्यय धन की सूचना विशेष सचिव को भेजी है वहां के लाभार्थियों के नाम, पते व वितरित धनराशि आदि की सूचना तथा जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारियों के पत्रों की प्रतियां उपलब्ध नहीं कराई गई हैं। इस प्रकार बड़ी मात्रा में पैसों का घपला किया गया है। इन जिलों में महामाया नगर, अलीगढ़, मैनपुरी, कांशीरामनगर, आजमगढ़, बलिया, मऊ, इलाहाबाद, कौशाम्बी, संतकबीरनगर, बहराइच, फैजाबाद, सुलतानपुर, कुशीनगर, जालौन, इटावा, फरुखाबाद, कन्नौज, औरैया, हरदोई, मेरठ, बागपत, गौतमबुद्धनगर, मिर्जापुर, गाजीपुर, चन्दौली और जौनपुर शामिल हैं।

विभाग के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2009-10 में आगरा में पांच लाभार्थियों को 0.38 लाख, झांसी में 16 लाभार्थियों को 1.08 लाख, फिरोजाबाद में सात लाभार्थियों को 0.49 लाख, बिजनौर में 58 लाभार्थियों को 4.35 लाख, बदायूं में 23 लाभार्थियों को 1.60 लाख, एटा में 12 लाभार्थियों को 0.71 लाख, अंबेडकर नगर में चार लाभार्थियों को 0.30 लाख, बस्ती में 13 लाभार्थियों को 0.95 लाख, बरेली में 26 लाभार्थियों को 1.80 लाख, लखनऊ में 30 लाभार्थियों को 2.17 लाख, सहारनपुर में 78 लाभार्थियों को 5.51 लाख, सिद्धार्थनगर में 11 लाभार्थियों को 0.83 लाख रुपए दिया गया है।

मान्यवर कांशीराम जी अल्पसंख्यक योजना का पैसा बेरोजगारों को कई जिलों में वर्ष 2010 में भी नहीं मिला है। इनमें झांसी, फिरोजाबाद, बिजनौर, एटा, बस्ती व लखनऊ प्रमुख रूप से शामिल हैं। सूत्रों का कहना है कि अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के विशेष सचिव शहाबुद्दीन मोहम्मद ने अल्पसंख्यक वित्तीय एवं विकास निगम लि. के प्रबंध निदेशक को इस सम्बंध में पत्र लिखा है कि भारी कमियों को दूर किया जाय तथा मान्यवर कांशीराम जी अल्पसंख्यक स्वरोजगार योजना में परियोजना लागत एवं अनुदान राशि बढ़ाए जाने सम्बंधी प्रकरण में संशोधित सूचना व अभिलेख सहित पुनरीक्षित प्रस्ताव शासन को उपलब्ध कराएं। अल्पसंख्यक स्वरोजगार योजना में व्यापक गड़बड़ियों के बाबत डीएनए संवाददाता ने जब विशेष सचिव शहाबुद्दीन मोहम्मद से पूछा तो उन्होंने बहाना बताते हुए कहा कि वे कहीं और बैठे हैं और सम्बंधित अधिकारी से जानकारी कर ही बता पाएंगे।

भ्रष्टों को सेवा विस्तार का तोहफा!


पीडब्लूडी में रिटायर होने के बाद भी मिलता है वेतन

पीडब्लूडी में इंजीनियर रिटायर होने के बाद भी सरकारी वेतन पाते हैं। भ्रष्टाचार में आरोपित अफसरों को सेवा विस्तार देकर इनाम दिया जाता है। मंत्री और प्रमुख सचिव की एक प्रमुख अभियंता पर इतनी कृपा बरसी कि उसके रिटायर होने के तुरंत बाद तीन सेवा विस्तार व चौथी दफे संविदा पर रख उसके भ्रष्ट अनुभवों का फायदा उठाया गया। अब भ्रष्टाचार में आरोपित विधि अधिकारियों को सेवा विस्तार का तोहफा दिया जा रहा है।

मंत्री नसीमुद्दीन और प्रमुख सचिव रवीन्द्र सिंह को तकनीकी रूप से मदद करने वाले सेवा विस्तार के हकदार बताए जाते हैं। पीडब्लूडी के रिटायर्ड प्रमुख अभियंता टी. राम को ही देख लीजिए, उनके गुड वर्क से मंत्री और प्रमुख सचिव इतने प्रभावित हुए कि रिटायर होने के बाद पहली बार दो साल, दूसरी बार छह महीने, फिर तीन महीने और चौथी दफे नहीं कुछ समझ आया तो संविदा पर ही रख दिया। टी. राम ने भी इस परम्परा को आगे बखूबी बढ़ाया। उन्होंने 28 फरवरी 2011 को विधि अधिकारी पद से रिटायर हो रहे जेपी यादव को छह महीने के अनुबंध के आधार पर सेवा विस्तार दे दिया। श्री यादव 30 सितंबर के दिन सेवानिवृत्त होने वाले थे कि टी. राम के पदचिन्हों पर चल रहे प्रमुख अभियंता यदुनंदन प्रसाद यादव ने उन्हें दूसरी बार सेवा विस्तार दे दिया।

पीडब्लूडी में इस प्रकार के खेल को खत्म करने के लिए अधिवक्ता त्रिभुवन कुमार गुप्ता ने मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव से दो विधि अधिकारियों को हटाए जाने की मांग की है। श्री गुप्ता ने कहा है कि दो विधि अधिकारी पिछले 10 वर्षो से लखनऊ में ही कार्यरत हैं। इनका वेतनमान तो अवर अभियंता से भी अधिक है। इन दोनों द्वारा 20-20 वर्षो से अधिक समय तक की अनेकों कोर्ट में चल रही याचिकाओं में प्रतिशपथ पत्र तक दाखिल नहीं किया है। जबकि प्रत्येक मास वसूली करने के लिए न्यायालय के मुकदमों की मासिक बैठक आयोजित होती है। दोनों ही विधि अधिकारियों द्वारा याचिकाकर्ता की याचिका संख्या 8535 एसएस 2005 वशिष्ट नारायन उपाध्याय बनाम यूपी सरकार व अन्य मामले में जिसमें उच्च न्यायालय ने 23 दिसंबर 2005 को छह सप्ताह में शपथपत्र दाखिल करने का आदेश दिया था, पांच वर्षो तक शपथपत्र नहीं दाखिल किया, याची को कोर्ट के आदेश की आड़ में 10 लाख 45 हजार 65 रुपए का फायदा करा दिया। शासन द्वारा विजलेंस जांच भी चल रही है।

भ्रष्टाचार का खेल यहीं तक सीमित नहीं है। यहां यह खेल पुराना है। टीआर गुप्ता बताते हैं कि विभाग के अवर अभियंता इकबाल सिंह व कृष्णमोहन 31 जुलाई 2004 को सेवानिवृत्त हो गए थे। इसके बावजूद दोनों 31 जुलाई 2006 तक न सिर्फ वेतन प्राप्त करते रहे बल्कि अन्य सरकारी सेवाओं का भी पूरा लाभ उठाया। फिर सेवानिवृत्त दिखाकर पेंशन लेने लगे। ठीक इसी तरह निर्माण निगम के सेवानिवृत्त अवर अभियंता वशिष्ठ नारायण उपाध्याय और विजय सिंह वर्मा ने रिटायर होने के दो साल बाद तक वेतन व सरकारी सुविधाओं का फायदा उठाया। विभाग में नियम विरुद्ध सेवा विस्तार व विधि अधिकारियों द्वारा की जा रही वित्तीय अनियमितताओं के बारे में डीएनए ने प्रमुख सचिव रवीन्द्र सिंह से उनके मोबाइल नंबर 9839173644 पर प्रतिक्रिया जाननी चाही तो उन्होंने फोन ही नहीं उठाया।

Wednesday 7 September 2011

अवधपाल की ऐंठ बरकरार

अवधपाल के खिलाफ कार्रवाई के लिए समय मांग रही सरकार : लोकायुक्त
कहा : कम्पेल्ड बाई द ऑनरेबल चीफ मिनिस्टर फॉर सबमिटिंग रेजिग्नेशन

लखनऊ। मंत्री पद छिनने से नाराज अवध पाल सिंह यादव की ऐंठ अभी भी बरकरार है। अब तो वे मुख्यमंत्री मायावती को भी हेकड़ी दिखा रहे हैं। कह रहे हैं कि उन्हें इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया है। लगता है कि अवधपाल की दबंगई से बसपा सरकार भी डर गई है। इसीलिए सरकार की मुखिया भ्रष्टाचार में आरोपित मंत्री के खिलाफ और कोई कार्रवाई करने के लिए लोकायुक्त से छह महीने का समय मांग रही हैं।

लोकायुक्त की जांच में दोषी पाए गए पशुधन एवं दुग्ध विकास राज्य मंत्री अवध पाल सिंह यादव ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में एक याचिका भी दायर कर दी है। श्री यादव के वकील ओपी श्रीवास्तव द्वारा अपने विरोधी पक्ष डॉ. सुबोध यादव को दिए रिट नोटिस में साफ-साफ कहा है कि उन्हें मंत्रीपद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया है। इसका सीधा और साफ मतलब है कि वे बसपानेत्री और मुख्यमंत्री मायावती के फैसले को चुनौती देने की भी जुर्रत कर रहे हैं। अवधपाल के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले डॉ. सुबोध यादव का कहना है कि रिट नोटिस में पूर्व मंत्री ने कोर्ट से लोकायुक्त की सिफारिश पर कोई कार्रवाई न किए जाने की प्रार्थना की है। लिहाजा सरकार को भेजी लोकायुक्त की सिफारिश निरस्त कर दी जाय। कुल मिलाकर अवधपाल न सिर्फ बसपानेत्री की राजनीतिक मजबूरियों का फायदा उठाकर दोबारा मंत्रिपद पर काबिज होने के लिए दबाव बनाने की फिराक में हैं बल्कि दूसरी तरफ वे बसपा की उन्हीं राजनीतिक लाचारियों के चलते मुख्यमंत्री को अपनी हेकड़ी भी दिखा रहे हैं। शायद इसलिए भी राज्य सरकार मंत्रीपद छीनने के अलावा अवधपाल के खिलाफ और कोई कानूनी कार्रवाई करने से आनाकानी कर रही है।

प्रदेश के लोकायुक्त न्यायमूर्ति एनके मेहरोत्रा ने डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट को बताया कि पशुधन एवं दुग्ध विकास राज्यमंत्री पद से हटाए गए अवधपाल सिंह के खिलाफ राज्य सरकार कार्रवाई करने के लिए छह माह का समय मांग रही है। इससे तो सरकारी बेबसी साफ-साफ नजर आती है।

लोकायुक्त की जांच में दोषी साबित हुए अवधपाल को सिर्फ मंत्रीपद से हटाकर सरकार एक तरफ अपनी इज्जत बचाने में जुटी है तो दूसरी तरफ अपने भ्रष्ट मंत्री के खिलाफ कोई कार्रवाई न कर उसके बचाव का भी नाटक कर रही है। मगर जिस अवध पाल के भ्रष्ट कारनामों पर बसपा सरकार पर्दा डालने में लगी है वही सरकार और सरकार की मुखिया के खिलाफ मूंछ ऐंठ कर ताल ठोंक रहे हैं कि उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया वरन उनको इस्तीफे के लिए मजबूर किया गया।

Tuesday 6 September 2011

अफसर बेलगाम मंत्री जी नाकाम


यूपी में अफसर इतने बेलगाम हो गए हैं कि न तो वे मुख्यमंत्री मायावती के किसी आदेश का पालन करना जरूरी समझते हैं और न ही विभागीय मंत्रियों को सेटते हैं। अफसरों पर पैसा कमाने का इस कदर भूत सवार है कि वे कोई न कोई तरकीब ढूंढ़ते ही रहते हैं। राज्य औोगिक विकास निगम कानपुर में दो अफसर ऐसे हैं जिन्होंने वार्षिक स्थानांतरण नीति को खूंटी पर टांग एक दिन में 50 इंजीनियरों का तबादला अलग-अलग जिलों में कर दिया। विभागीय मंत्री इन्द्रजीत सरोज एवं सचिव एसके वर्मा के आश्चर्य और रोष व्यक्त किए जाने के बाद भी अफसरों ने अपना रवैया नहीं बदला और न ही किसी का स्थानांतरण रद्द किया। एक दिन में इतनी बड़ी तादात में तबादलों के पीछे पैसे की उगाही का खेल बताया जा रहा है।

राज्य औोगिक विकास निगम के सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री मायावती ने सरकारी विभागों व सार्वजनिक निगमों में कार्यरत अधिकारियों व कर्मचारियों की स्थानांतरण सत्र शून्य घोषित किया था। मगर कानपुर स्थित निगम में मुख्यमंत्री के इस आदेश को ताक पर रखते हुए प्रभारी कार्मिक सुभाष चन्द्रा व अपर प्रबंध निदेशक देवी शंकर शर्मा ने बीते दो जून को निगम में कार्यरत 72 अभियंताओं में से 50 का तबादला विभिन्न जिलों में कर दिया। सूत्रों का कहना है कि ये तबादले इसलिए किए गए हैं ताकि इंजीनियर या तो स्थानांतरित जिलों में जाएं अथवा मुंह मांगा पैसा अफसरों को दे दें। सूत्रों का यह भी कहना है कि इन तबादलों में 13 अनुसूचित जाति एवं 16 पिछड़ी जाति के इंजीनियर हैं। कानपुर से हटाए गए अभियंताओं ने अफसरों की इस करतूत की शिकायत मुख्यमंत्री से भी की है कि निगम के दोनों अफसर लगातार उत्पीड़न कर रहे हैं। 50 इंजीनियरों के तबादले समेत धन उगाही की आई शिकायतों को लेकर जसराना के बसपा विधायक राम प्रकाश यादव, हसनगंज उन्नाव के बसपा विधायक राधेलाल रावत, विभागीय विशेष सचिव मुकेश कुमार गुप्ता, भारत रत्न बोधिसत्व बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर महासभा के मंत्री जगत नारायण के अलावा राज्य औोगिक विकास निगम के प्रभारी मंत्री इन्द्रजीत सरोज व विभाग के सचिव एसके वर्मा द्वारा 8 जून को हुई मासिक समीक्षा बैठक में तबादलों एवं अन्य शिकायतों के सम्बंध में नाराजगी जाहिर करने के बाद भी निगम के दोनों अफसरों सुभाष चन्द्रा व देवी शंकर शर्मा के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं हुई है।

अंबेडकर महासभा के मंत्री जगत नरायण ने मुख्यमंत्री मायावती को लिखे पत्र में तो यहां तक कहा है कि विभागीय मंत्री इन्द्रजीत सरोज ने तबादलों से अपनी असहमति जताई थी और उन्हें निरस्त करने को कहा था। मुख्यमंत्री को उन्होंने यह भी लिखा है कि मुख्य अभियंता के अधीन अधिकारियों में से एक कांग्रेस सांसद एवं अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष का रिश्तेदार है और अवैध गतिविधियों में अत्यंत सक्रिय है।

निगम में बेलगाम अफसर नियम और कानूनों की भी धज्जियां उड़ा रहे हैं। सीनियर इंजीनियर मनमोहन को चीफ इंजीनियर इंचार्ज न बना कर उनसे जूनियर आरके चौहान को चीफ बना दिया है। यही नहीं निगम स्थित लखनऊ में अधिशासी अभियंता एनके आदर्श को गाजियाबाद के ट्रानिका सिटी का अतिरिक्त चार्ज दे रखा है जबकि गाजियाबाद में दो अधिशासी अभियंता पहले से ही कार्यरत हैं। डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट ने निगम के अपर प्रबंध निदेशक देवी शंकर शर्मा से जब 50 इंजीनियरों के तबादले और अन्य शिकायतों पर उनकी प्रतिक्रिया पूछी तो उन्होंने कहा कि आप क्यों परेशान हैं? जो छापना हो वो छाप दो। हमे कुछ नहीं कहना है।

एक ही सुर अलाप रहे पिता-पुत्र

गठबंधन के दरवाजे नहीं खोल पा रहे रालोद मुखिया
कांग्रेस को मुंह चिढ़ाने का कर रहे काम

 रालोद मुखिया और उनके बेटे एक ही सुर अलाप रहे हैं। सोमवार को लखनऊ आए जयंत चौधरी की भी टीश कांग्रेस के प्रति देखने को मिली। कांग्रेस से समझौते की बात न बनती देख छोटे चौधरी ने भी यूपीए सरकार और उनके मंत्रियों पर हमला बोला। अब तो समाजसेवी अन्ना हजारे की भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम की तारीफ में पुल बांध रहे रालोद नेता कांग्रेस को मुंह चिढ़ाने का भी काम शुरू कर दिया है। कांग्रेसियों द्वारा तवज्जो न मिलने से हैरान और परेशान पिता-पुत्र यह कहते फिर रहे हैं कि हमारे दरवाजे खुले हैं।

पिछले एक साल से गठबंधन और सीटों के तालमेल के लिए छटपटा रहे चौधरी अजित सिंह की सारी कसरतों पर पानी फिरता जा रहा है। पहले उन्होंने डा. उदितराज वाली इंडियन जस्टिस पार्टी, डा. अयूब की पीस पार्टी, ओमप्रकाश राजभर वाली भारतीय समाज पार्टी समेत अन्य छोटे दलों का मोर्चा बनाया। यह सियासी कुनबा बन भी नहीं पाया था कि उससे पहले ही बिखर गया। चौधरी साहब ने फिर कांग्रेस और सपा की ओर तांक-झांक करनी शुरू की तो दोनों दलों के नेताओं ने इनसे किनारा कसना ही मुनासिब समझा। बसपा-भाजपा से गठबंधन न करने की सार्वजनिक घोषणा पर भी यदि सपा और कांग्रेस रालोद को तवज्जो नहीं दे रही है तो इसके पीछे सियासी रणनीति के संकेत साफ हैं। दोनों पार्टियां चुनाव पूर्व ऐसे किसी छोटी पार्टियों को साथ लेकर नहीं चलना चाहती हैं जो उनके वोटों का फायदा भी उठाएं और सरकार में बड़े साझीदार का दावा भी करते नजर आएं। वैसे भी अजित सिंह की दिल्ली और लखनऊ की सरकारों में शामिल होने के अनुभवों को देखते हुए सपा और कांग्रेस पहले से ही कन्नी काटे हुए है। रालोद मुखिया दिल्ली में भी गठबंधन की कसरत जारी रखे हुए हैं। बीते दिनों उन्होंने कामरेड प्रकाश करात, पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा, आंध्र के पूर्व मुख्यमंत्री चन्द्रबाबू नायडू समेत पुराने राष्ट्रीय मोर्चा के नेताओं से हाथ मिलाकर भी यूपी की राजनीतिक पार्टियों का ध्यान खींचने की कोशिश की। मगर चौधरी साहब की ये सारी कवायदें आकार लेती नहीं दिख रही हैं।

राष्ट्रीय स्तर जिन नेताओं के साथ किसान नेता घूम रहे हैं वे सभी के सभी अपने-अपने राज्यों में खारिज किए जा चुके हैं। उत्तर प्रदेश में सपा और कांग्रेस से बात बनती नजर नहीं आ रही है। यहां तक कि छोटे दल भी उनसे किनारा कस चुके हैं। बसपा-भाजपा से हाथ मिलाएंगे नहीं। सिर्फ पश्चिम यूपी में छिटके राजनीतिक ताकत के जरिए किसके लिए दरवाजे खोल रखे हैं।

Sunday 4 September 2011

एक लाख घूस मांग रहा है ट्रेजरी बाबू


सेवानिवृत्ति लाभ के 10 लाख में से 10 परसेंट मांगी रिश्वत
मरणासन्न कर्मचारी को भी नहीं बख्शा

यूपी की राजधानी लखनऊ में रिश्वत और घूस लेने की घटनाएं आमतौर पर रोजमर्रा की हैं। घूसखोर अफसर हों या बाबू उन्हें सिर्फ किसी भी सूरत में घूस चाहिए ही चाहिए। सामने वाला व्यक्ति चाहे मरणासन्न ही क्यों न हो? खासतौर पर कुछेक विभागों में तो ऐसे बाबू हैं जिन्हें रिश्वत के सामने कुछ सूझता ही नहीं है। लखनऊ कलक्ट्रेट भी उसी में से एक है। ऐसे ही ट्रेजरी के एक बाबू से पीडब्लूडी के रिटायर कर्मचारी का पाला पड़ गया। कर्मचारी बिलकुल मरणासन्न हालत में है। उसे अपनी सेवानिवृत्त व अन्य लाभ के 10 लाख लेने के लिए लोहे के चने चबाने पड़ रहे हैं। मगर टस से मश नहीं हो रहे बाबू का खुलेआम कहना है कि जब तक 10 लाख में से 10 परसेंट यानि एक लाख घूस नहीं दोगे तब तक ये पैसे तुम्हें कदापि मिलने वाले नहीं हैं।

आइए देखते हैं लखनऊ ट्रेजरी के घूसखोर बाबू हरीराम की कथा और पीडब्लूडी के सेवानिवृत्त कर्मचारी जियाउल हक की व्यथा : पार्किंसन रोग से ग्रसित कर्मचारी हक इन दिनों मरणासन्न दशा में हैं। वे नजरबाग के क्लासिक अपार्टमेंट में रहते हैं। वह चलने-फिरने में असमर्थ हैं। याददाश्त भी लगभग जा चुकी है। उनके शरीर के नर्वस सिस्टम डाउन हो चुके हैं। जियाउल को उम्मीद बंधी थी कि सेवानिवृत्त के 10 लाख मिल जाएंगे तो वे इलाज भी करा लेंगे और उनकी बाकी की जिंदगी कट जाएगी। मगर उन्हें नहीं पता था कि उनका पाला ऐसे बाबू से पड़ जाएगा कि वह उनकी जिंदगी ही नरक बना देगा।

ट्रेजरी के बाबू हरीराम ने सेवानिवृत्त कर्मचारी के लाख भाग-दौड़ करने के बाद भी उसका पैसा नहीं दिया। बाबू के हेकड़ी का आलम देखिए कि उसने कर्मचारी के 10 लाख रुपयों को पांच-पांच बार कोई न कोई आपत्ति लगाकर वापस कर दिया। कर्मचारी से साफ-साफ कह दिया कि जब तक 10 लाख का 10 परसेंट यानि एक लाख रुपए बतौर घूस के नहीं दोगे तो तुम्हें यह रकम मिलने वाली नहीं है। रिटायर्ड कर्मचारी को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने भी उनके सभी देयों को देने के लिए पीडब्लूडी को आदेश दिया था। कोर्ट के आदेश के क्रम में विभाग द्वारा 10 लाख रुपए आदर्श कोषागार को भेज भी दिया गया। मगर बाबू किसी भी हालत में पैसा देने से इनकार कर दिया। तमाम आपत्तियां लगाकर पैसे को वापस करता रहा। सेवानिवृत्त कर्मचारी ने अपने अधिवक्ता टीआर गुप्ता के जरिए जब बाबू से उसकी शिकायत भ्रष्टाचार निवारण संगठन से करने की चेतावनी दी तो उसने घूस की राशि एक लाख रुपए से घटाकर 60 हजार कर दिया।

किसी भी तरह सुनवाई न होते देख जियाउल हक ने बाबू हरीराम की शिकायत प्रदेश के मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव वित्त, अल्पसंख्यक आयोग व जिलाधिकारी से की है। बाबू द्वारा रिटायर्ड कर्मचारी से एक लाख रुपए रिश्वत मांगे जाने पर डीएनए ने मुख्य कोषाधिकारी प्रिय रंजन से पूछा तो उन्होंने बताया कि बाबू को उसके पद से हटा दिया गया है और पूरे मामले की जांच कराई जा रही है।

बेकाबू हैं एलडीए के करामाती बाबू

आश्रयहीनों से भी किया खिलवाड़
एक-एक मकान तीन-चार लोगों को आवंटित

भ्रष्ट प्राधिकरणों में से एक लखनऊ विकास प्राधिकरण गरीबों को भी बलि का बकरा बनाने से नहीं चूकता है। एलडीए में कुंडली मारे बैठे बाबुओं की तो पूछिए ही नहीं। बड़े-बड़े तेज-तर्रार अफसर आए और चले गए मगर बाबुओं का धेला भी बिगाड़ नहीं पाए। यहां अफसर वही करता है जो बाबू उसे करने के लिए कहता है। लिहाजा वह गरीब हो या मालदार हरेक को बगैर चप्पल घिसे एलडीए की छत मुहैया नहीं होती है और किसी को तो मिलती भी नहीं है। किसी-किसी को छप्पर फाड़कर मिल जाता है। यह वही एलडीए है जहां करामाती बाबू और अफसर एक-एक मकान को दो-दो, तीन-तीन और चार-चार लोगों को आवंटित कर देते हैं। आश्रयहीन भवनों के निर्माण में भी अफसरों ने बाबुओं की मिलीभगत से गरीबों और झुग्गी-झोपड़ीवासियों की गरीबी से मजाक उड़ाने में कोई कोताही नहीं बरती है।

आरटीआई के जरिए एलडीए में व्याप्त भ्रष्टाचार और धांधली का मामला एक बार फिर उजागर हुआ है। अधिवक्ता एसपी मिश्र ने सूचना का कानून के माध्यम से एलडीए द्वारा आश्रयहीन लोगों के लिए बनाए गए मकानों के बारे में सूचनाएं मांगी थी। एलडीए ने जो सूचना शारदानगर एवं जानकीपुरम में बनाई गई कालोनी के बारे में उपलब्ध कराई है, वह बेहद चौकाने वाली है। इससे भी बड़ी दिलचस्प बात तो यह है कि सूचना देने के साथ-साथ ही एलडीए ने बड़ी ईमानदारी भी बरतने की कोशिश की है। सम्पत्ति अधिकारी गजेन्द्र कुमार ने अपने जवाब में बड़े ही साफगोई से लिखा है कि भविष्य में यदि कोई आवंटी आश्रयहीन भवन के लिए अपात्र पाया जाता है तो प्राधिकरण द्वारा नियमानुसार आवंटन निरस्त किए जाने की कार्रवाई करेगा। गौरतलब है कि 2001-02 में बनाई गई कालोनी में पिछले 10 सालों से अवैध रह रहे लोगों की पड़ताल एलडीए इसलिए नहीं करता कि वहां बैठे अफसरों और बाबुओं ने ही उसे रहने की इजाजत दे रखी है। अधिवक्ता एसपी मिश्र बताते हैं कि यह सब मात्र एकखेल है। इस खेल में अफसर और बाबू पारंगत हैं। उनका कोई कुछ बिगाड़ भी नहीं सकता है।

आश्रयहीनों के लिए शारदानगर के रक्षा खंड व अन्य खंडों में 50 से ज्यादा ऐसे मकान होंगे जिन्हें तीन-तीन और दो-दो लोगों को आवंटित कर दिया गया है। तीनों आवंटियों से पैसे भी वसूले गए और सबसे बड़ी तो यह है इस प्रकार झमेले वाले मकानों में कोई चौथा आदमी रह रहा है। श्री मिश्र को मिली मकानों की सूची के मुताबिक करीब 50 से ज्यादा मकान तो ऐसे हैं जिनके नाम मकान एलॉट हुआ उसे मिला ही नहीं उस मकान का किराया एलडीए का बाबू वसूल कर अपनी जेब में डाल रहा है। रक्षा खंड के ई 393, ई 406 ए, एफ-8/571, एफ-8/472, 473, 474 और 475 समेत 50 से अधिक मकान हैं जो मिसिंग में हैं। ई-394 ए, ई-408, ई-419, ई-420, ई-445, ई-476, रुचि खंड में 1/333, 1/336, 1/737, 1/747, 1/827, 1/828, 1/835, 1/852, 54, 86, 99 और 900, रजनी खंड में 6/ 239, 7/404 और 409 नंबर वाले मकानों को दो-दो लोगों को आवंटित कर दिया गया है। इसी प्रकार रुचि खंड में 1/299, 3/358 समेत कई मकानों को तीन-तीन लोगों को आवंटित कर दिया गया है। ठीक इसी प्रकार रक्षा खंड में मकान नंबर 1/924 को चार-चार लोगों को दे दिया गया है। एलडीए के बाबुओं की बड़ी करामात तो देखिए कि आठ मकान ऐसे हैं जिसका भवन ही नहीं नहीं बना और नम्बर भी एलॉट कर दिया। कई ऐसे भी मकान हैं जो किसी को भी नहीं मिले हैं। पता यह भी चला है कि वहां या तो बाबू या किसी अफसर का जानने वाला रह रहा है।

Thursday 1 September 2011

हैदर कैनाल से भी पैदा कर लिया माल

रकारी कर्मचारियों को दे दिए मकान
जिन्होंने नहीं लिए उनके बेच दिए मकान
शिकायतों को गंभीरता से देखूंगा : आवास आयुक्त

आवास एवं विकास परिषद के अफसरों ने राजधानी लखनऊ में हैदर कैनाल के बाएं और दाएं सरकारी जमीन पर दो-दो और तीन-तीन मंजिला मकान बनाने वाले उन सरकारी कर्मचारियों को भी वृन्दावन, तेलीबाग व आम्रपाली योजना में मकान दे दिए जिन्हें सरकार मकान का भत्ता तक देती है। आरटीआई के जरिए इस खुलासे के साथ विभागीय अफसरों द्वारा की गई धांधलीबाजी भी सामने आने लगी है। विस्थापितों में सरकारी कर्मचारियों को मकान देने के पीछे यह भी चर्चा है कि न सिर्फ एक-एक सरकारी कर्मचारी से मोटी रकम वसूली गई है बल्कि जिन्होंने घर नहीं लिया उनके मकानों को ऊंची-ऊंची दरों में बेच देने के आरोप भी अधिकारियों पर हैं।

दरअसल हैदर कैनाल के किनारे बसे लोगों को इसलिए उजाड़ दिया गया क्योंकि कैनाल का एक किनारा बसपा के राष्ट्रीय महासचिव व राज्यसभा सांसद सतीश चन्द्र मिश्रा के मकान की शोभा को नष्ट कर रहा था तो बहुजन प्रेरणा स्थल के नाते हैदर कैनाल वासी सरकार की आंखों में चुभ रहे थे। कैनाल के दोनों किनारों पर रहने वाले लोगों को रातों-रात उजाड़ दिया गया। इसके खिलाफ विरोध के स्वर को भी पुलिसिया लाठी के सहारे कुचला गया। विस्थापितों को रातों-रात बसाने का काम भी सरकार के इशारे पर बड़ी तत्परता के साथ किया गया। विभागीय सूत्र बताते हैं कि सरकार मलिन बस्तियों को उजाड़ने के नाम पर कोई बखेड़ा खड़ा होना नहीं देखना चाहती थी, इसलिए इसकी आड़ में आवास एवं विकास परिषद के अफसरों ने जमकर फायदा उठाया। उन्होंने ऐसे सरकारी कर्मचारियों को भी वृन्दावन, तेलीबाग, आम्रपाली व हरदोई रोड योजना में मकान दे दिए जो जल निगम, पीडब्लूडी, शक्ति भवन, सचिवालय, सूचना विभाग, बिजलेंस, बीएसएनएल, रेलवे, बिजली विभाग में काम करने के साथ शिक्षक भी हैं जिन्होंने दो-दो और तीन-तीन मंजिला मकान बनाकर कब्जा कर रखा था। मालूम हो कि अधिवक्ता एसपी मिश्र ने आरटीआई के तहत हैदर कैनाल के विस्थापितों की सूची, उन्हें विभिन्न योजनाओं में दिए गए मकान समेत विभिन्न सूचनाएं मांगी थी। जिला नगरीय अभिकरण के परियोजना अधिकारी सतीश चन्द्र वर्मा ने बड़ी मुश्किल से जो सूची उपलब्ध कराई उससे सरकारी कर्मचारियों और दूसरी धांधलीबाजी का भंडाफोड़ हुआ है। श्री मिश्र ने डीएनए को बताया कि सरकारी कर्मचारियों को विस्थापितों में शामिल ही नहीं किया जाना चाहिए था। चूंकि सरकार उन्हें मकान भत्ता देती है दूसरे वे सरकारी जमीन पर कब्जा कर दो-दो और तीन-तीन मंजिला मकान बना रखे थे। उन्होंने यह भी बताया कि जिन्होंने मकान नहीं लिए उनके मकानों को अधिकारियों द्वारा ऊंची-ऊंची दरों पर बेच दिया गया। जिला नगरीय विकास अभिकरण द्वारा उपलब्ध कराई गई सूची के अनुसार जिन सरकारी कर्मचारियों को मकान दिए गए उनमें जलनिगम की श्रीमती मीना यादव, पीडब्लूडी से शांती देवी, शक्ति भवन में काम करने वाले कामता प्रसाद, सचिवालय की कर्मचारी रमा देवी, असमा बेग, गलफीश, सुरजीत, श्रीमती सीमा, कैसर जहां, सरे, देवमुखी व रामफेरी, इस्लामिया कॉलेज की टीचर श्रीमती राजदा, गन्ना संस्थान की चम्पा, नगर निगम की सोनी, जवाहर भवन में काम करने वाली जीनत बेगम, सूचना विभाग की श्याम कली, बीएसएनएल के कमलेश, रेलवे में काम करने वाली सावित्री शुक्ला, बिजलेंस की प्रेम कुमारी समेत सैकड़ों सरकारी कर्मचारियों को मकान दे दिए गए। इस मामले में हुई धांधली पर नवनियुक्त आवास आयुक्त जगमोहन ने कहा कि इसे मैं गंभीरता से देखूंगा।