Wednesday 31 August 2011

हिलोरें मार रही मंत्री जी की प्रभुता


मालदार केडीए और जीडीए में रंग जमाए हैं 
अधीक्षण अभियंता बीके सोनकर





सूबे की मुखिया और बसपा नेत्री मायावती की वरदहस्त से किनारे हुए बाबू सिंह कुशवाहा की जगह अब अपना रंग दिखा रहे मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी की प्रभुता जमकर हिलोरें मार रही है। मंत्री जी के इर्द-गिर्द रहने वाले अफसर और इंजीनियर भी खूब रंग जमाए हुए हैं। बीके सोनकर नाम के एक अधीक्षण अभियंता की तो जमकर तूती बोल रही है। इंजीनियर साहब सूबे के दो मालदार प्राधिकरणों कानपुर विकास प्राधिकरण और गाजियाबाद विकास प्राधिकरण में अपना कमाल दिखा रहे हैं। मसलन दोनों प्राधिकरणों में मंत्री जी की कृपा से वे तीन-तीन पद एक साथ थामे हुए हैं। मजाल क्या है कोई उन पर हाथ डाल दे?

सत्ता के गलियारों में इन दिनों न सिर्फ पीडब्लूडी, सिंचाई व आवास समेत डेढ़ दर्जन विभागों के मुखिया नसीमुद्दीन सिद्दीकी के पावर की गूंज रहती है बल्कि उनके सरपरस्ती में निष्ठा रखने वाले अफसर और इंजीनियर भी पूरे यूपी में धाक जमाए हुए हैं। मंत्री जी के सानिध्य में रहने वाले एक इंजीनियर साहब की पोल आरटीआई के जरिए खुल ही गई। लखनऊ निवासी व अधिवक्ता एसपी मिश्र ने केडीए, आवास विभाग व शासन से यह सूचना मांगी थी कि अधीक्षण अभियंता वीके सोनकर कानपुर विकास प्राधिकरण में न सिर्फ कार्यवाहक मुख्य अभियंता हैं बल्कि गाजियाबाद विकास प्राधिकरण में भी अधीक्षण अभियंता के पद पर तैनात हैं। इसका जवाब न तो शासन कारगर तरीके से दे पाया और न ही सरकार के पसंदीदा अफसर रहे और वर्तमान में प्रदेश के मुख्य सूचना आयुक्त रणजीत सिंह पंकज यह सूचना दिलवा पाए। सीआईसी ने तो इस मामले को यह कह कर निस्तारित कर दिया कि आवेदनकर्ता सूचना आयोग की बजाय किसी और सक्षम फोरम पर गुहार लगाए। इस मामले में शासन के अनु सचिव और जनसूचना अधिकारी बराती लाल ने यह कह कर पल्ला झाड़ लिया है कि कानपुर विकास प्राधिकरण में मुख्य अभियंता का पद जुलाई 2010 से रिक्त पड़ा है। मुख्य अभियंता का पद कितने दिन तक रिक्त रखा जा सकता है, इस सम्बंध में नियमों में कोई व्यवस्था नहीं है। सोनकर केडीए में अधीक्षण अभियंता की जिम्मेदारी के साथ 17 जुलाई 2010 से मुख्य अभियंता का कार्य भी देख रहे हैं। अधिवक्ता एसपी मिश्र का कहना है फिर सोनकर द्वारा गाजियाबाद में अधीक्षण अभियंता के पद पर तैनाती का क्या औचित्य है? केडीए की विशेष कार्याधिकारी रेनू पाठक ने कहा है कि मुख्य अभियंता का पद केन्द्रीयित सेवा का पद है। इस पर नियुक्ति शासन द्वारा की जाती है। मगर शासन ने अभी तक केडीए में मुख्य अभियंता के पद पर किसी की तैनाती क्यों नहीं की? पता चला है कि सम्बंधित विभाग के मुखिया और मंत्री जी की कृपा से ही बीके सोनकर दोनों प्राधिकरणों में जमे हुए हैं। उधर आरटीआई के जरिए यह भी पता चला है कि अयोध्या-फैजाबाद, गोरखपुर, मथुरा-वृन्दावन व खुर्जा विकास प्राधिकरण में अधीक्षण अभियंता के पद रिक्त हैं। इसके साथ ही कानपुर, वाराणसी और गोरखपुर में मुख्य अभियंता के पद भी रिक्त पड़े हुए हैं। चर्चा यह भी है रिक्त पड़े पदों पर मंत्री जी के सानिध्य वाले अभियंता बागडोर सभाले हैं। यही नहीं मंत्री जी की कृपा से ही प्राधिकरण केन्द्रीयित सेवा के मुख्य अभियंता एससी मिश्र की तैनाती आवास बंधु में हो गई है। तो भला किसकी हिम्मत है कि रिक्त पड़े पदों पर मुख्य अभियंताओं व अधीक्षण अभियंताओं की नियुक्ति बिना उनसे पूछे करे।

Tuesday 30 August 2011

यूपी है! यहां आबरू किसी की भी लुट जाए

भ्रष्टाचार के साथ अपराधों ने भी राज किए चार साल




लखनऊ। यूपी में बसपा सरकार की स्थापना के साथ ही अपराध और भ्रष्टाचार की वापसी भी बड़े जोर-शोर से शुरू हुई जो आज भी उतने वेग से बदस्तूर जारी है। सूबे की मुखिया और बसपा नेत्री मायावती के सरकारी कारिंदे भ्रष्टाचार व अपराध के आंकड़ों पर पर्दा डालते रहे तो ये दोनों सरकार के लिए सिर दर्द बनते गए। कानून व्यवस्था के नाम पर विरोधी दलों को चित कर सत्ता में प्रतिष्ठित हुईं माया मैडम के राज में अपहरण, बलात्कार, लूट, हत्या, डकैती और छिनैती की घटनाओं ने पूरे प्रदेश को झकझोर कर रख दिया। चार साल तक प्रदेश के हर कोने में पुलिस और प्रशासन की नाकामियां तथा बसपा सरकार व संगठन के नुमाइंदों ने अराजकता का विशाल अखंड राज स्थापित किया।

बसपा के विरोधियों ने जब-जब सूबे में बढ़ते अपराध को लेकर सरकार पर हमला बोला तब-तब सरकारी कारिदों ने कांग्रेस और भाजपा शासित वाले राज्यों के आंकड़े दिखाकर बसपाइयों के दामन पर लग रहे खून के घब्बों को धोने की खूब कसरतें कीं। हालांकि समय-समय पर पुलिस और प्रशासनिक अफसरों को इसकी बख्शीश भी मिलती रही। दरअसल अपराध के आंकड़ों से जवाब देने वाली सरकार आंकड़ों में हीआंकड़ों के ही अनुसार कुछ अन्य संगीन अपराधों सहित कुल भारतीय दंड विधान के तहत 2008 में 161082, 2009 में 160875 तथा 2010 में 159796 प्रकरण दर्ज किए गए। राष्ट्रीय मानवाधिकार द्वारा जो रिपोर्ट केन्द्र को भेजी गई है उसमें फर्जी इनकाउंटर के 2006-07 में 82, 2007-08 में 48, 2008-09 में 41 तथा 2009-10 में माह जुलाई तक 11 फर्जी इंनकाउंटर के मामले सामने आए हैं। इन आंकड़ों के साथ ही साथ सरकार को कटघरे में खड़ा करने वाली वे घटनाएं भी हैं जो एक महिला मुख्यमंत्री के राज में पूरे प्रदेश को शर्मशार करती हैं। इनमें वही लिप्त पाए गए जो सर्वजन सुखाय का नारा देकर सत्ता हासिल किए हैं। महिलाओं की आबरू बचाने में नाकारा साबित हुई। सामूहिक बलात्कार के घटनाओं की जैसी झड़ी सी लग गई। थानों में बलात्कार हुए। यहां तक कि दलित महिलाएं और बच्चियां निशाना बनाई गईं। लखीमपुर खीरी में 10 जून 2011 को 14 वर्षीय सोनम से पुलिस कर्मियों ने दुराचार की कोशिश की और हत्या कर दी। 11 जून 2011 को बाराबंकी के थाना घुंघटेर में पांच वर्षीय सविता की हत्या कर दी गई। उसकी किडनी तक निकाली गई। 17 जून 2011 को गोंडा के करनैलगंज निवासी राजेश की 15 वर्षीय पुत्री की बलात्कार के बाद हत्या की गई। 17 जून को ही कानपुर में एक नाबालिग लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार कर उसकी हत्या कर दी गई।

यूपी में आरटीआई पर आई शामत

नियुक्ति सम्बंधी सूचना से पल्ला झाड़ रहा प्रशासनिक सुधार विभाग
छह सूचना आयुक्तों व सीआईसी की नियुक्ति पर उठे सवाल

यूपी में कानूनी,संवैधानिक और प्रशासनिक संस्थाएं भी पिछले चार सालों में मौजूदा सत्ताधारियों के तिरस्कार व मनमानियों की शिकार हुई हैं। सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की तो इतनी छीछालेदर शायद ही दूसरे राज्यों में देखने को मिली हो। छह-छह राज्य सूचना आयुक्तों और मुख्य सूचना आयुक्त के अत्यंत महत्वपूर्ण पद पर भ्रष्टाचार के आरोपी अफसर रणजीत सिंह पंकज को बैठा दिया गया। सूचना आयुक्तों और सीआईसी के चयन पर अब प्रशासनिक सुधार विभाग को जवाब देते नहीं बन रहा है। विभागीय अधिकारी यह कह कर पल्ला झाड़ रहे हैं कि मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच चलने वाली फाइल को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है। मगर क्यों? सूचना आयुक्तों और मुख्य सूचना आयुक्त को लेकर आखिर ऐसी कौन सी गोपनीय बात है जिसके चलते मुख्यमंत्री व राज्यपाल के बीच की फाइल को जनहित में सार्वजनिक करने से प्रशासनिक विभाग के अधिकारियों को गुरेज हो रहा है।

अधिवक्ता एसपी मिश्र और आरटीआई ऐक्टिविस्ट सलीम बेग ने इस मुद्दे को सूचना के कानून केतहत उठाया है। श्री मिश्र ने कहा कि पिछले चार सालों में सूचना आयुक्तों और मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति में चयन प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है। सरकार ने पहले चार सूचना आयुक्तों राम सरन अवस्थी, सुभाष चंद पांडेय, बृजेश मिश्र और सुनील कुमार चौधरी की नियुक्ति की। चारों की नियुक्ति में मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में गठित समिति ने नेता विरोधी दल की राय जाने बिना ही हरी झंडी दे दी। इसी प्रकार दो और सूचना आयुक्तों ज्ञान प्रकाश मौर्य और खजीअतुल कुबरा को भी राज्य सूचना आयुक्त बनाए जाते समय निर्धारित चयन प्रक्रिया नहीं अपनाई गई। नेता विरोधी दल शिवपाल सिंह यादव की समिति में उपस्थिति और बगैर उनकी स्वीकृति के ही दोनों सूचना आयुक्तों को सूचना आयोग में बैठा दिया गया। इस प्रकार मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर भी नियमों की अनदेखी की गई। रणजीत सिंह पंकज की नियुक्ति के दौरान भी मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने नेता विरोधी दल की स्वीकृति नहीं ली। जबकि पंकज पर खनन विभाग के एक मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 50 हजार रुपए का जुर्माना किया था। मौजूदा सीआईसी पर भ्रष्टाचार के कई आरोप भी विभिन्न विभागों में विभागीय अधिकारी रहते लग चुके हैं। चार सूचना आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर तो मामला हाईकोर्ट में लंबित भी है।

सीआईसी और छह सूचना आयुक्तों की नियुक्ति से सम्बंधित आरटीआई द्वारा मांगी गई सूचना पर प्रशासनिक सुधार विभाग ठोस जवाब देने के बजाय राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच की फाइल को सार्वजनिक करने से इनकार कर पल्ला झाड़ रहा है। विभाग के अनु सचिव और जनसूचना अधिकारी रामचन्द्र यादव ने कहा है कि राज्य सूचना आयोग द्वारा सुनील कुमार यादव बनाम उप सचिव प्रशासनिक सुधार विभाग के वाद में यह आदेश पारित किए गए हैं कि जो फाइल मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच चलती है, जनहित में उनको बताया जाना बिलकुल उचित नहीं है। इस प्रकार राज्य सूचना आयुक्तों की नियुक्ति से सम्बंधित समिति की सिफारिश तथा मंत्रिमंडल के सदस्य को नाम निर्देशित किए जाने में हुई कार्यवाही की सूचना नहीं उपलब्ध कराई जा सकती है। अब सवाल यह उठता है कि अगर सूचना आयुक्तों और मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति में ही जब पारदर्शिता नहीं दिखाई देती है तो इन पदों पर बैठने वाले लोग सूचना के कानून की मंशा के अनुरूप सरकारी विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार, वित्तीय अनियमितताएं, सरकारी कर्मचारियों के कामकाज में पारदर्शिता सुनिश्चित करा पाएंगे।

Thursday 25 August 2011

मंत्री, नेता और दलाल-सब हुए मालामाल

सरकारी विभागों ने खूब उड़ाए पैसे
उजागर हुई सरकारी तंत्र की संवेदनशून्यता

लखनऊ। बसपा सरकार अपने खिलाफ विरोधी दलों के बयानों से तिलमिलाती जरूर रही है मगर उसके कच्चे-चिट्ठे पर नजर डाली जाय तो इतना जरूर साफ हो जाता है कि मुख्यमंत्री और बसपानेत्री के दलित एजेंडे समेत उनके ड्रीम प्रोजेक्ट के अलावा उत्तर प्रदेश के आम आदमी के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया। जनता की जरूरतमंद जरूरतों जैसे बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार समेत तमाम क्षेत्रों में या तो पैसा लगाया नहीं गया या फिर जो धन खर्च किया गया वह मंत्रियों, बसपा नेताओं, दलालों व ठेकेदारों की जेबों में जाकर गिरा।

डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट ने कैग रिपोर्ट समेत तमाम आंकड़ों के आधार पर सरकारी विभागों की वस्तुस्थिति की सिलसिलेवार पड़ताल की तो सरकारी तंत्र की निरंकुशता व संवेदनशून्यता उजागर हुई। सूचना क्रांति के इस दौर में भी राज्य सरकार बुनियादी पहल नहीं कर पाई। यूपी में ई-गर्वर्नेस का पिछले चार साल में कहीं कोई बुनियादी ढांचा ही नहीं खड़ा हो पाया। सरकारी कामकाज की विश्वसनीयता, पारदर्शिता और दक्षता सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय ई-गवर्नेस कार्यक्रम का क्रियान्वयन मई 2006 में शुरू किया था। इसके तहत सूचना प्रौोगिकी के क्षेत्र में बुनियादी ढांचे जैसे स्टेट वाइड ऐरिया नेटवर्क, स्टेट डाटा सेंटर और सामान्य सेवा केन्द्रों की स्थापना करना था। पिछले चार सालों में सूचना एवं तकनीक की मूलभूत स्वरूप ही सरकार नहीं बना पाई। यह पहली दफे है जहां सरकार ने वित्तीय प्रशासन और नियंत्रण का कोई पालन ही नहीं किया। वित्तीय अनुशासन को खूंटी पर टांग दिया गया। परिणाम यह रहा कि भारी पैमाने पर वित्तीय अनियमितता और धोखधड़ी की शिकायतें जैसे मुख्य अभियंता मध्य गंगा सिंचाई विभाग द्वारा जरूरत से ज्यादा सीमेंट कम्प्रेस्ड टाइलों में 5.15 करोड़ फूंक दिया गया। लोक निर्माण विभाग में रोड चौड़ीकरण के नाम पर 3.68 करोड़ ठेकेदार खा गए। सिंचाई विभाग के 1.69 करोड़ रुपए कुंवरपुर एवं पांडेयपुर रजबहों पर अनावश्यक खर्च कर दिए गए। कई विभागों में तो बिना किसी औचित्य के पैसे लुटाए गए। जनकल्याण के लिए खर्च किए जाने वाले धन में विशेष सर्तकता बरतनी पड़ती है। मगर मौजूदा सरकार में इस प्रकार की सर्वाधिक शिकायतें सामने आई हैं। नियंत्रक महालेखा परीक्षक की जांच में 47.56 करोड़ रुपए के अनुचित और अधिक खर्च का मामला उजागर हुआ है। वन विभाग द्वारा बुन्देलखंड में बिना किसी योजना के वृक्षारोपण अभियान पर 40.10 करोड़ रुपए अनियमित तरीके से खर्च कर दिया गया। सिंचाई विभाग द्वारा डिक्रीटल धनराशि के विलंब से भुगतान किए जाने की वजह से निर्माण कम्पनी को 1.87 करोड़ का ब्याज अतिरिक्त भुगतान करना पड़ा। नियोजन की कमी के कारण लखनऊ जिले में मध्यम सुरक्षा कारागार के अधूरे निर्माण पर जेल प्रशासन एवं सुधार विभाग द्वारा चार करोड़ का निर्थक व्यय किया गया। लघु सिंचाई विभाग में 1.03 करोड़ लागत वाली डायरेक्ट सरकुलेटरी रोटरी रिंग मशीन 2009 से निष्क्रिय पड़ी है। मलिन बस्तियों पर खर्च किया गया 54.80 लाख रुपए किसी काम नहीं आया। लेखा परीक्षा में यह बात भी सामने उभर कर आई है कि मंत्रियों और अफसरों की लापरवाही की वजह से 58.43 करोड़ रुपए की अनियमितता उान विभाग, सिंचाई, आईआईटी रुड़की, कारागार प्रशासन, महिला कल्याण व खेल के क्षेत्रों में आई है। पशुपालन विभाग में 77.54 करोड़ रुपए का सही रूप से इस्तेमाल नहीं हो पाया।

खेल में भी भ्रष्टाचार का खेल

स्टेडियम में न चौकीदार न ग्राउंडमैन और न ही प्रशिक्षक
ग्रामीण क्षेत्रों में बने खेल स्टेडियमों पर खर्च 18.31 करोड़ पानी में

यूपी के हर सरकारी विभागों की तरह ग्रामीण खेलकूद विभाग भी भ्रष्टाचार के खेल का शिकार हुआ। 50 खेल स्टेडियमों के निर्माण में खर्च 18.31 करोड़ रुपए पानी में पड़ गया। बेसुध सोई सरकार करोड़ों की लागत से बने स्टेडियम विभाग को सौंप नहीं पाई। महज स्टेडियम का ढांचा भर खड़ा कर फर्ज अदायगी कर छुट्टी पा ली। न वहां चौकीदार, न ही ग्राउंडमैन तैनात किए गए। यही नहीं 18.27 लाख रुपए के खरीदे गए खेल के सामान भी खिलाड़ियों को नहीं मिले। और तो और युवाओं को खेल से जोड़ने के लिए प्रशिक्षकों की कोई व्यवस्था ही नहीं की गई।

यह हाल है ग्रामीण क्षेत्रों के उत्कृष्ट खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देने के उद्देश्य से बनी योजना का। जहां स्टेडियम, प्रशिक्षक, खेल सामग्री तथा खेल से जुड़ी जरूरी चीजें सरकार की समझ में नहीं आती हैं तो वहां यह कल्पना करना कि उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय स्तर पर खिलाड़ी पैदा करेगा, यह समझ से परे है। मगर भ्रष्टाचार के खेल ने खेल को भी अपने साथ जमकर जकड़ कर रखा है। युवा कल्याण विभाग की जानकारी के मुताबिक तत्कालीन प्रदेश सरकार ने 1995 में ग्रामीण क्षेत्रों में स्टेडियम स्थापित करने की योजना शुरू की थी। वर्ष 2004 से 2009 की अवधि में विभिन्न सरकारों द्वारा 26 जिलों में 50 मिनी स्टेडियम के निर्माण के लिए 18.31 करोड़ रुपए स्वीकृत किए गए। प्रत्येक स्टेडियम के निर्माण कार्य को पूरे करने के लिए तीन कार्यदायी संस्थाओं को धन भी स्वीकृत कर दिया गया। इसमें कंस्ट्रक्शन एण्ड डिजाइन सर्विस, जल निगम, पैक्सफेड तथा प्रोजेक्ट कॉरपोरेशन शामिल हैं। नामित कार्यदायी संस्थाओं को 2006-07 में तीन, 2007-08 में चार, 2008-09 में आठ तथा 2009-10 में 16 स्टेडियम बनाने थे। ये स्टेडियम सोनभद्र में दो, गोंडा में एक, कानपुर देहात में एक, मेरठ में दो, रायबरेली में तीन, हरदोई में चार, मऊ में तीन, उन्नाव में तीन, बाराबंकी में तीन, फिरोजाबाद में तीन, लखनऊ में एक, कौशाम्बी में दो, कानपुर नगर में एक, आजमगढ़ में एक, एटा में दो, फैजाबाद में दो, बुलंदशहर में दो, बरेली में एक, खीरी में एक, बहराइच में दो, मैनपुरी में एक, शाहजहांपुर में एक, गाजीपुर में छह, बलिया में एक और गाजियाबाद में एक स्टेडियम बनाया गया है।

कैग की रिपोर्ट के मुताबिक महानिदेशक प्रांतीय रक्षा दल, विकास दल एवं युवा कल्याण के जब दस्तावेजों की जांच की गई तो जनवरी 2010 यानि मौजूदा सरकार के कार्यकाल में यह पाया गया कि 50 में से 19 स्टेडियम विभाग को हस्तांतरित ही नहीं किए गए। इसमें तमाम प्रकार की लापरवाहियां सामने आईं मसलन चल सम्पत्ति का विवरण न होना, चहर दिवारी न बनना और विुतीकरण शामिल थी। महानिदेशक ने तो इन स्टेडियम को उपयोग में लाने के लिए राज्य सरकार को प्रशिक्षकों, ग्राउंड मैन एवं चौकीदार की नियुक्ति के लिए एक प्रस्ताव किया था जिसे 2010 तक स्वीकृत नहीं किया गया। इस प्रकार विभाग को स्टेडियमों को विलंब से हस्तांतरित करने एवं प्रशिक्षकों, ग्राउंड मैन तथा चौकीदारों की नियुक्ति न किए जाने से स्टेडियम के निर्माण पर किया गया 18.13 करोड़ व खेल सामग्री की खरीद पर 18.27 लाख रुपए का व्यय किसी काम नहीं आया। यही नहीं लखनऊ जनपद में युवा छात्रावासों के निर्माण पर किया गया 1.39 करोड़ रुपए का खर्च भी व्यर्थ गया क्योंकि वहां वार्डन और सहायक वार्डन की तैनाती ही नहीं की गई। सरकार सिर्फ कागजों पर पैसे दिखाकर भ्रष्टाचार का खेल करती रही। छात्रावास तो काम नहीं कर रहे मगर सरकार ने कागजों पर छात्रावास के बने भवन की देखभाल के लिए 1.88 लाख रुपए जरूर खर्च कर डाले।

Tuesday 23 August 2011

माननीयों को लैपटॉप का नया चस्का


विधायकों ने की खूब मनमानियां
सूबे के माननीयों ने भी विधायक निधि से खूब मनमानियां कीं। अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों में कोई कारगर काम तो जनता के लिए किया नहीं अलबत्ता स्कूलों, कॉलेजों पर पैसे खर्च कर अपना उल्लू जरूर सीधा किया है। ज्यादातर माननीय सियासत में इतने मशगूल रहे कि अपने ही निधि के पैसों को खर्च करने के लिए वक्त ही नहीं निकाल पाए। लिहाजा 385.58 करोड़ रुपए तो जस का तस पड़ा रहा। पांच जिलों ने अपने अधिकार सीमा से परे हटकर लैपटॉप पसंद माननीयों के शौक पर लाखों रुपए लुटा दिए। मगर देखने वाली बात यह रही कि यूपी के ये लैपटॉप पसंद माननीयों ने स्वास्थ्य और पीने के पानी पर खर्च करना मुनासिब नहीं समझा।
कैग की रिपोर्ट ने सूबे के माननीयों के मंसूबे और उनकी जनता के प्रति गंभीरता की कलई खोल कर रख दी है। स्कूलों पर दिल खोल कर विधायक निधि का पैसा खर्च करने में माननीयों में जबरदस्त होड़ रही। 11 जिलों के 48 विधानसभा क्षेत्रों में निधि के वार्षिक आवंटन का 40 प्रतिशत से 70 प्रतिशत तक और आठ जिलों की 25 विधानसभा क्षेत्रों में 71 से 100 प्रतिशत तक धनराशि स्कूल भवनों के निर्माण पर माननीयों ने खर्च किए। कैग ने इन विधायकों को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा है कि स्थानीय जरूरतों से परे जाकर पैसे खर्च करना इस योजना के साथ खिलवाड़ है। माननीयों ने आम आदमी की सेहत और पीने के पानी की जरूरतों को नजरअंदाज करते हुए सड़क और स्कूलों पर 82 प्रतिशत धन खर्च कर दिया। सड़कों और स्कूलों पर धन खर्च करने के पीछे मोटे कमीशन ऐंठने की ज्यादातर शिकायतें पूरे प्रदेश से प्राप्त हुई हैं।
माननीयों ने मनमानियों के सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए ऐसे काम कराए जो किसी भी दशा में मान्य नहीं थे। अनियमित तरीके अपनाकर अस्थाई काम करवाए ताकि पैसे उनकी जेबों में आते रहें। इस तरह विधायकों ने 5.20 करोड़ रुपए अनाप-शनाप खर्च कर दिए। नई सड़कें नहीं बनाई। सिर्फ सड़कों की मरम्मत में कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी दिखाई। तकरीबन 111.62 लाख रुपए गड्ढे भरने में खपा दिए। विकास कार्यो को कराने के लिए जिलों में तमाम सीडीओ को तकनीकी सलाह न मिलने से गलत कार्यदायी संस्थाएं चुनी गईं। आठ जिलों में तो 35.33 करोड़ रुपए का काम छह संस्थाओं को आवंटित कर दिया गया। इसमें अभी भी 10.98 करोड़ के काम अधूरे छूटे हुए हैं।
सबसे हैरानी वाली बात यह है कि माननीयों ने बिना मॉडल ड्राइंग के बारात घर, रैन बसेरों का निर्माण करा दिया। कई जिलों में बनाए गए प्रतीक्षालय खंडहर के रूप में खड़े हैं। उसका इस्तेमाल जानवर कर रहे हैं। इस तरह करोड़ो रुपए बारात घरों और रैन बसेरों पर बर्बाद कर दिए गए। यहीं नहीं माननीयों ने सारे कार्य बेतरतीब और बेढंगे तरीके से कराए। 9.21 करोड़ रुपए हाई मास्ट लाइटों पर तो खर्च कर दिए मगर उनको बिजली से नहीं जोड़ पाए और वे सारी लाइटें धूल खा रही हैं।
लैपटॉप पसंद माननीयों ने जिलों में दबाव डालकर अपने लिए लैपटॉप नियम विरुद्ध खरीदवा लिए। पांच जिलों में 42.56 लाख रुपए की कीमत वाले 38 लैपटॉप विधायकों ने खरीदे। मगर कार्यदायी संस्था उत्तर प्रदेश इलेक्ट्रानिक्स को सिर्फ 2.78 लाख रुपए ही भुगतान किया गया। विभागीय सचिव को माननीयों से शेष धनराशि वसूलनी है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि प्रदेश के माननीय विकास कार्यो के प्रति सजग इतना रहे कि 385.58 करोड़ खर्च ही नहीं कर पाए। खर्च वहीं किए जहां विधायक निधि का कायदे से दोहन कर सकते थे। इस प्रकार की शिकायतें कैग रिपोर्ट से उजागर हुई हैं।

Monday 22 August 2011

मंत्री से ठेकेदार तक सब मालामाल

कैग रिपोर्ट में अधिशासी अभियंताओं व ठेकेदारों की मिलीभगत उजागर
पीडब्लूडी में पिछले चार सालों में दोनों हाथों से पैसे लुटाए गए। सड़कें भले ही न बनीं हों मगर मंत्री से लेकर इंजीनियर व ठेकेदार तक आदमी बन गए। पीडब्लूडी का कोई ऐसा सेक्शन नहीं है जहां पैसों का घालमेल न किया गया हो। प्रांतीय खंड जौनपुर में 1.75 करोड़ रुपए का घपला हुआ। ठेकेदारों की जेब में 1.51 करोड़ डाल दिया गया। ढुलाई कार्यो में दोगुनी दूरी बताकर 1.92 करोड़ रुपए भुगतान हुआ। क्षेत्रीय मुख्य अभियंताओं द्वारा करोड़ो रुपए अतिरिक्त खर्च कर दिए गए। विभाग में आमतौर पर चर्चा है कि यह सारा खेल बगैर विभागीय मंत्री के संभव नहीं है।
कैग की रिपोर्ट से साफ हो जाता है कि पीडब्लूडी में भ्रष्टाचार को लेकर न तो सरकार अपने ऊपर अंकुश लगा पाई और न ही विभागीय काम करते हुए इंजीनियरों पर कोई लगाम लगा सकी। जौनपुर जिले में इंडियन ऑयल कारपोरेशन मथुरा ने 728 इनवायसों द्वारा खंड को 10,688,350 मीट्रिक टन बिटुमिन 33.09 करोड़ लागत वाली की आपूर्ति अप्रैल 2006 से नवंबर 2009 की अवधि में की। इसमें से 1.75 करोड़ मूल्य के 43 इनवायस के 627.920 मीट्रिक टन बिटुमिन को खंडीय भंडार के लेखाओं में दर्ज नहीं किया गया था। अवर अभियंताओं ने 1.41 करोड़ मूल्य के 515.340 मीट्रिक टन बिटुमिन यानि 35 इनवायस को जो उनके द्वारा प्राप्त किया गया था उन्हें भंडार लेखाओं में दर्ज नहीं किया था। बिटुमिन की शेष मात्रा 112.580 मीट्रिक टन खंड को प्राप्त नहीं हुई थी। करीब 40 लाख रुपए का नुकसान पहुंचाया गया।
वर्ष 2007 में निविदा पत्रों में पारदर्शिता लाने के लिए मॉडल बिड डाक्यूमेंट का आरम्भ जनवरी में जारी कर प्रमुख अभियंता, जिलाधिकारियों एवं क्षेत्रीय मुख्य अभियंताओं को इसे अपनाने के निर्देश दिए गए थे। मॉडल बिड डाक्यूमेंट में यह प्राविधानित था कि ठेकेदार भारतीय तेल रिफाइनरियों से बिटुमिन की खरीद करेगा तथा भुगतान का दावा करते समय इन कम्पनियों द्वारा निर्गत मूल कनसाइनी रिसीट सर्टिफिकेट प्रस्तुत करेगा। मगर इसे तो कई खंडो में अपनाया ही नहीं गया। मॉडल बिड डाक्यूमेंट को अपनाने के स्थान पर अधीक्षण अभियंता आगरा एवं फैजाबाद ने अपने स्तर से नियमों व शर्तो में बदलाव कर लिया। जांच में यह पाया गया कि अधिशासी अभियंता निर्माण खंड प्रथम में ठेकेदारों को 1.51 करोड़ रुपए अनुचित तरीके से फायदा पहुंचाया गया। लोक निर्माण विभाग सुलतानपुर के तहत सुलतानपुर-रायबरेली मार्ग बनाने के लिए ठेकेदारों को 19.86 लाख रुपए लाभ पहुंचाया गया। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा निर्गत मानक के अनुसार प्लांट से कार्यस्थल तक वेट मिक्स व हाट मिक्स सामग्री की ढुलाई की दरों की गणना में आने एवं जाने की यात्रा शामिल होती है। इसमें भी अभियंताओं ने जबरदस्त घपला किया। शासन द्वारा फैजाबाद जनपद के तीन मार्गो के चौड़ीकरण एवं सुदृढ़ीकरण हेतु 44.63 करोड़ स्वीकृत किया गया था। फैजाबाद के अधिशासी अभियंता ने एक ठेकेदार के साथ तीन अनुबंध कर लिए और उसकी जेब में 1.29 करोड़ रुपए डाल दिए। कैग रिपोर्ट के अनुसार कानपुर के अधिशासी अभियंता ने रमईपुर-सारा-जहानाबाद मार्ग के एक से 30 किलोमीटर तक के चौड़ीकरण एवं सुदृढ़ीकरण के लिए 20.04 करोड़ की स्वीकृति प्रदान की गई। इस कार्य में अधीक्षण अभियंता ने 18.87 करोड़ का ही अनुबंध किया। डब्लूएमएम, बीएम एवं एसडीबीसी की सतह को बिछाने के लिए मिश्रण की ढुलाई में 62 लाख रुपए अधिक भुगतान कर दिया।

Sunday 21 August 2011

पीजीआई में तो घपले ही घपले

विभागीय मंत्री लालजी वर्मा के इशारे पर हुए घपले के खेल
यूपी के सबसे बड़े अस्पताल एसजीपीजीआई में अब घोटाले परत दर परत खुलने लगे हैं। मरीजों के हितों के साथ खिलवाड़ करने का ठीकरा चिकित्सा शिक्षा मंत्री लालजी वर्मा और उनसे कदमताल कर रहे निदेशक आरके शर्मा पर फूटने भी लगा है। पता चला है कि पीजीआई में साइक्लोट्रोन मशीन खरीदने और उसको लगाने के लिए भवन बनाने में 2.5 करोड़ रुपए का भुगतान अनियमित तरीके से कर दिया गया। हॉस्पिटल रिवाल्विंग फंड का बेजा दुरुपयोग किया गया है। हॉस्पिटल इनफारमेशन सिस्टम के उच्चीकरण में 12 करोड़ रुपए की धांधली की गई है। मंत्री जी पर तो यह खुला आरोप भी लगने लगा है कि उनकी चहेती दवा कंपनियों को नियमों के विरुद्ध दवाइयों की खरीद में 20 करोड़ रुपए का घपला किया गया है।

  नेता विरोधी दल शिवपाल सिंह यादव ने पीजीआई में व्याप्त भ्रष्टाचार पर कहा कि यह सब मंत्री लालजी वर्मा के इशारे पर किया गया है। निदेशक डॉ. आरके शर्मा वही कर रहे हैं जो मंत्री जी उन्हें निर्देश दे रहे हैं। भ्रष्टाचार से अर्जित की गई बड़ी धनराशि मंत्री तक पहुंची है।
घपला नं. एक- कार्यालय सहायक निदेशक स्थानीय निधि लेखा परीक्षा ने पीजीआई में साइक्लोट्रोन एवं इसकी स्थापना के लिए भवन बनाने में 2.50 करोड़ रुपए का घपला पकड़ा है। सहायक निदेशक अबुल फजल ने कहा है कि मशीन लगाने के लिए मैं गुजरात आइसेटोप लि. द्वारा प्रस्तुत टर्न के आधार पर 2.5 करोड़ के प्रस्ताव में लागत का 20 प्रतिशत कार्या आदेश जारी करते समय तथा शेष 80 प्रतिशत बैंक गारंटी के विरुद्ध अग्रिम भुगतान किया जाना अपेक्षित था। इस प्रस्ताव का परीक्षण सिविल अभियंत्रण विभाग से कराते हुए भवन निर्माण के विभिन्न स्तरों पर भुगतान किया जाना चाहिए था। फर्म द्वारा दी गई बैंक गारंटी भी अस्पष्ट व भ्रमपूर्ण थी।
..पत्रावली की नोटशीट पर इसके फर्म के पक्ष में होने की टिप्पणी अंकित थी जबकि इसे संस्थान के पक्ष में होना चाहिए था। इस बैंक गारंटी के विरुद्ध भुगतान किया जाना अनियमित था। इस प्रकार पीजीआई पर 10 लाख रुपए की अनियमित जिम्मेदारी डाली गई और अधिकारियों द्वारा 45 लाख रुपए का भुगतान फर्म को बैंक गारंटी के विरुद्ध कर दिया गया।

पीजीआई निदेशक डॉ. आरके शर्मा 
स्थानीय निधि लेखा परीक्षा जैसी हजारों जांच हुआ करती हैं। मैं टेलीफोन पर बात नहीं करसकता हूं। आपफेस टू फेस बात करिए। मैं आपको अपने कागज दिखाऊंगा।

घपला नं. दो- हास्पिटल रिवाल्विंग फंड में बरती गई वित्तीय अनियमितताओं के सम्बंध में पुलिस अधीक्षक उत्तर प्रदेश सर्तकता अधिष्ठान, कानपुर द्वारा 28 जुलाई 2009 द्वारा पीजीआई लखनऊ से सूचना मांगे जाने के बावजूद भी सूचना उपलब्ध नहीं कराई गई। आरोप यह लग रहा है कि इस घपले को दबाने का प्रयास मंत्री लालजी वर्मा के इशारे पर निदेशक डा. आरके शर्मा द्वारा किया जा रहा है। पुलिस अधीक्षक ने इस अनियमितता में तत्कालीन निदेशक महेन्द्र सिंह भंडारी, डा. आरके शर्मा, प्रो. पीके सिंह, डा. एके बरोनिया, एके चंदोली, हरेन्द्र श्रीवास्तव, आरए यादव, जुनेद अहमद, केके श्रीवास्तव, अरविंद अग्रवाल, पीसी खन्ना, अनिल श्रीवास्तव समेत 24 लोगों के बारे में सूचना मांगी थी मगर यह नहीं दी गई। इस प्रकार इसमें 20 करोड़ के भ्रष्टाचार की चर्चा है।
 घपला नं. तीन- हास्पिटल इनफारमेशन सिस्टम के उच्चीकरण में भी करोड़ों रुपए का घपला किया गया। एचआईएस के उच्चीकरण के लिए 12 करोड़ रुपए की धनराशि मंजूर की गई थी। मंत्री लालजी वर्मा पर यह आरोप है कि उनके दबाव में यह कार्य मेसर्स एसआरआईटी बंगलौर को 2009 तक करने को दिया गया था मगर आज तक नहीं हुआ। योजना को साकार करने के लिए तीन फर्मो से निविदाएं प्राप्त हुई थीं। निविदा की शर्तो के अनुसार फर्म द्वारा साफ्टवेयर, हार्डवेयर उपकरणों की सप्लाई करना एवं स्थापना के लिए भवन निर्माण करना था।

Friday 19 August 2011

पारसनाथ ने ऐंठ लिए 15 लाख

पिछड़ों की सूची में शामिल करने के लिए दोसर वैश्य से की वसूली
बेटे के दहेज में मिली कार को सम्बद्ध कर ले रहे सरकारी पैसा
पूर्व मुख्यमंत्री राम नरेश यादव ने की राज्यपाल से शिकायत

 बसपा सरकार में सिर्फ एक ही अवधपाल सिंह यादव नहीं हैं बल्कि भ्रष्टाचार में और कइयों के हाथ सने हैं। पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष एवं राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त पारसनाथ मौर्य भी उनमें से एक हैं जिन पर लगातार भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं, यह जानने के बावजूद सूबे की मुखिया मायावती उनके कारनामों को नजरअंदाज कर आयोग के अध्यक्ष पद पर बैठाए हुए हैं। पारसनाथ के विरुद्ध भ्रष्टाचार की सारी हदें पार कर जातियों को पिछड़े वर्ग की सूची में शामिल करने के नाम पर लाखों रुपए लेने का गंभीर आरोप लगा है। यह आरोप किसी सामान्य व्यक्ति ने नहीं अपितु यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री रामनरेश यादव ने लगाया है कि पारसनाथ ने दोसर वैश्य जाति को पिछड़े वर्ग की सूची में शामिल करने के नाम पर 15 लाख रुपए ऐंठ लिए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री रामनरेश यादव ने राज्यपाल को लिखे पत्र में इलाहाबाद हाईकोर्ट के दो वकीलों संजय राजपूत व रमेश चन्द्र द्वारा पारसनाथ मौर्य पर गंभीर आरोपों का हवाला देते हुए कहा है कि आयोग अध्यक्ष ने दोसर वैश्य जाति को पिछड़े वर्ग की सूची में शामिल करने के नाम पर लगभग 15 लाख रुपए एेंठ लिए हैं। यही नहीं श्री मौर्य ने अपनी दो बेटियों की शादी में पूरी व्यवस्था का खर्च दोसर जाति के संगठन के पदाधिकारियों से लिया है। आयोग अध्यक्ष द्वारा जिन जातियों की संस्तुतियां की गई हैं उनसे इस प्रकार धन लिया गया है। 


 श्री यादव ने राज्यपाल को यह भी लिखित शिकायत की है कि पारसनाथ के पुत्र राजीव रत्न को दहेज में प्राप्त अंबेसडर कार संख्या यूपी 32-ओजे 9805 का आयोग अध्यक्ष द्वारा अपनी पहुंच के बल पर राज्य सम्पत्ति विभाग से सम्बद्ध कराते हुए अपने साथ सम्बद्ध कराकर फर्जी यात्रा दिखाते हैं और पेट्रोल आदि का भुगतान स्वयं लेते हैं। जबकि वे यात्रा आयोग के वाहन संख्या यूपी 32 बीजी 5005 से करते हैं। पिछड़ा वर्ग आयोग अध्यक्ष ने वाहनों के जरिए भ्रष्टाचार करने की अच्छा तरकीब ढूंढ़ निकाली है। पूर्व मुख्यमंत्री ने राज्यपाल को यह भी बताया है कि शासन द्वारा आयोग में तैनात सचिव के उपयोग के लिए एक अंबेस्डर कार संख्या यूपी 32 बीजी 5005 वर्ष 2009 में आयोग को दी गई है। पारसनाथ मनमाने ढंग से इसका उपयोग अपने तथा परिवार के लिए करते हैं। इसके साथ ही चूंकि उन्हें राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त है इसलिए इनको एक कार राज्य सम्पत्ति विभाग द्वारा प्रदत्त है। ईंधन आदि का व्यय विभाग द्वारा ही वहन किया जाता है। बावजूद इसके सचिव के लिए नामित कार का भी वह इस्तेमाल कर रहे हैं। आयोग के सचिव को मिली कार संख्या यूपी 32 बीजी 5005 जिसका वर्ष 2010 में पारसनाथ मौर्य के यात्रा भ्रमण के दौरान हरदोई में एक्सीडेंट हुआ था उसको बनवाने में लाखों रुपए का व्यय किया गया है। दुर्घटना की कोई एफआईआर नहीं दर्ज कराई गई जो सरकारी धन का दुरुपयोग है। पूर्व मुख्यमंत्री के अन्य आरोपों में आयोग अध्यक्ष पर सैंथवार मल्ल को पिछड़े वर्ग की सूची में अलग क्रमांक पर रखने की संस्तुति के बदले लाखों रुपए का सौदा करना भी शामिल है। जिसका साक्ष्य अंबेडकर टुडे में छपे विज्ञापन से स्पष्ट है। पारसनाथ मौर्य के विरुद्ध पूर्व मुख्यमंत्री रामनरेश यादव द्वारा लगाए गए गंभीर आरापों पर राज्यपाल के विशेष सचिव एम देवराज ने पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव से जांच कराने को लिखा है। श्री यादव द्वारा लगाए गए आरोपों पर आयोग अध्यक्ष ने डीएनए से कहा कि कोई कुछ भी आरोप लगा सकता है। उन्होंने बताया कि जांच रिपोर्ट शासन को गई है।

Tuesday 16 August 2011

माया तेरे काबीना में कैसे-कैसे मंत्री

अवधपाल के पास 200 कच्ची शराब की भट्ठियां
सरकारी विभागों से धन उगाही कराते हैं मंत्री
मंत्री अवधपाल सिंह यादव की दबंगई सिर्फ अपने राजनीतिक विरोधियों के विरुद्ध ही नहीं बल्कि दूसरे-दूसरे क्षेत्रों में भी उजागर हुई है। मसलन मंत्री जी धन उगाही का भी धंधा भी करते हैं। यहीं नहीं उनके कई और धंधों की कलई लोकायुक्त न्यायमूर्ति एनके मेहरोत्रा ने यह कह कर खोल दी है कि सरकार एटा में बन रही कच्ची शराब पर जल्द रोकथाम करे और हो रहे सरकारी धन के नुकसान को रोके।

बसपानेत्री मायावती की सरकार ऐसे ही लोगों को क्लीन चिट देती है जो नख से सिख तक भ्रष्टाचार और अपराध में डूबे रहते हैं। बीते विधान सभा सत्र में पूरी की पूरी सरकार अवध पाल के गुनाहों पर पर्दा डालने के लिए खड़ी दिखाई दी। ऐसे-ऐसे मंत्री अगर सरकार में रहेंगे तो जनता सुरक्षित कैसे रह सकती है यह सहज ही समझा जा सकता है। दरअसल धन उगाही का धंधा मंत्री जी का पुराना काम है। मगर यह खुलकर पहली बार सामने आया है और इसे लोकायुक्त ने भी अपनी जांच रिपोर्ट में सार्वजनिक ही नहीं किया है अपितु मुख्यमंत्री को भी बताया है कि ऐसे-ऐसे मंत्री आपने पाल रखे हैं। मंत्री रहते उन्होंने सरकारी विभाग से धन उगाही के लिए दो प्राइवेट लोगों संजू यादव व अजीत यादव को रखा है। दोनों मंत्री के प्रतिनिधि के रूप में अवध पाल के नाम पर विभागीय अधिकारियों से अनुचित कार्य करा कर धन उगाही करते हैं। शिकायतकर्ता डा. सुबोध यादव ने संजू यादव व अजीत यादव द्वारा मंत्री के नाम पर धन उगाही का शपथ पत्र तक दिया था। वहीं धन उगाही की शिकायत पर जांच कर रहे लोकायुक्त को विभागीय अधिकारियों ने भी गोपनीय तरीके से बताया है कि ये दोनों प्राइवेट प्रतिनिधि धन उगाही करते हैं। मंत्री जी का कच्ची शराब बनाने का धंधा भी प्रकाश में आया है। उन्होंने अपने परिवार के सदस्यों की कच्ची शराब की लगभग 200 भट्टियां खोल रखी हैं। जिनमे वे लगभग 10 हजार लीटर कच्ची शराब अपने परिवार के लोगों से बनवाते हैं। इस कच्ची शराब की बिक्री से होने वाली सम्पूर्ण आय अवधपाल व उनके भाई चन्द्र प्रताप सिंह एमएलसी, पुत्र रणजीत सिंह व भतीजे सुरजीत को जाती है। लोकायुक्त ने कच्ची शराब बनाने की शिकायत की भी जांच की है तथा जांच रिपोर्ट में उन्होंने स्वीकार किया है कि एटा में कच्ची शराब के निर्माण का कार्य गतिमान होने के कारण आबकारी विभाग और पुलिस प्रशासन की संयुक्त टीम तैयार की जाय और सरकार की अभिसूचना इकाई से सूचना एकत्र कर कच्ची शराब बनवाने वाले राजनेताओं के विरुद्ध प्रभावी कार्यवाई की जाय ताकि सरकार को राजस्व की हानि न हो।
विधायक निधि से कमीशन वसूला
मंत्री अवधपाल ने अपनी पूरी विधायक निधि का 95 प्रतिशत हिस्सा केवल स्कूल प्रबंधकों को निर्माण के लिए दिया है। उन्होंने इन प्रबंधकों से 50 प्रतिशत से 60 प्रतिशत कमीशन लिया है।

प्रजनन का 335 लाख खा गए अवधपाल!


गाय-भैंस के प्रजनन के पैसों को खर्च करने का आरोप
पैसा अफसर खर्च करते हैं : अवधपाल


सूबे के पशुधन एवं दुग्ध राज्य मंत्री अवधपाल सिंह यादव के अपराधों और भ्रष्टाचार की फेहरिस्त बहुत लम्बी है। दबंग मंत्री ने विभाग को ऐसा कंडम बना दिया है कि आने वाले कई वर्षो तक पशुधन व दुग्ध विकास विभाग जल्दी उबर नहीं पाएगा। वर्ष 2010-11 में राष्ट्रीय गाय-भैंस प्रजनन परियोजना के लिए मिले 980 लाख रुपयों में से 335 लाख रुपए मंत्री जी ने कहां खर्च कर दिए यह किसी को नहीं मालूम है। यही नहीं मंत्री जी अफसरों को ब्लैकमेल करने में भी बड़े उस्ताद हैं। उन्होंने पशुधन विभाग के निदेशक डा. रुद्र प्रताप पर भ्रष्टाचार के 19 गंभीर आरोप लगाए, जांच कराई और जांच रिपोर्ट की फाइल दो साल से अपने पास दबाए बैठे हैं। और ताज्जुब वाली बात ये कि निदेशक भी अपने कुर्सी पर यथावत बैठे हुए हैं।

विभागीय सूत्रों के अनुसार प्रदेश पशुधन विकास परिषद को भौतिक एवं वित्तीय प्रगति वर्ष 2010-11 में राष्ट्रीय गाय-भैंस प्रजनन परियोजना के द्वितीय चरण के लिए विभाग को कुल 980 लाख रुपए प्राप्त हुए थे। इस मद में प्राप्त धनराशि 980 लाख में से 477.610 खर्च किया गया। विभाग के 168.05 लाख रुपए शेष बचा है। खर्च धनराशि एवं शेष धनराशि 645.625 लाख रुपए ही होता है। इस मद का करीब बाकी 335 लाख रुपयों का कोई अता-पता नहीं है। मंत्री जी अपने विभाग के अफसरों से भी काम लेना बखूबी जानते हैं। पहले आरोप लगाते हैं। फिर जांच कराते हैं। और फिर अपना उल्लू सीधा करते हैं।

प्राप्त जानकारी के अनुसार अवधपाल ने अपने ही विभाग के निदेशक डा. रुद्र प्रताप पर 19 बिन्दुओं पर गंभीर आरोप लगाए। तत्कालीन मुख्य सचिव अतुल कुमार गुप्ता को पत्र लिखकर जांच कराया। तत्कालीन प्रमुख सचिव चंचल कुमार तिवारी ने जांच की। श्री तिवारी ने कुल सात बिन्दुओं पर पशुधन निदेशक डा. रुद्र प्रताप को गंभीर रूप से दोषी पाया।

उन्होंने अपनी रिपोर्ट प्रमुख सचिव पशुधन को सौंप दी। इस जांच रिपोर्ट पर प्रमुख सचिव स्तर से कोई कार्यवाई नहीं हुई। पता चला है कि इस प्रकरण की पत्रावली मंत्री जी ने अपने पास मंगाकर करीब दो साल से रख रखी है। मालुम हो कि पशुधन विभाग के वर्तमान निदेशक डा. रुद्र प्रताप के पास तीन वर्षो से निदेशक के अतिरिक्त करीब 11 अन्य चार्ज नियम विरुद्ध हस्तगत किए गए थे। विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार के मुद्दे पर उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में जैसे ही इन बिन्दुओं पर एक जनहित याचिका दाखिल कर नियमों की अवहेलना एवं भ्रष्टाचार के जांच की मांग की गई तो आनन-फानन में विभागीय प्रमुख सचिव द्वारा आदेश संख्या 1270/37-1-2011-5 (117/2007) लखनऊ दिनांक 18 मार्च 2011 द्वारा निदेशक से निदेशक के अतिरिक्त समस्त प्रभार वापस लेकर संयुक्त निदेशक प्रशासन सीआरके को हस्तगत करने का आदेश निर्गत कर दिया गया। तब विभागीय मंत्री अवधपाल द्वारा तत्कालिक रूप से लिखित आदेश जारी कर दिया गया कि प्रमुख सचिव पशुधन द्वारा जारी आदेश को निरस्त किया जाता है। मगर प्रमुख सचिव के आदेश का अनुपालन आज तक नहीं किया जा सका।

विधायक कुलदीप सिंह सेंगर विभाग में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार की जांच की मांग कर चुके हैं। पता यह भी चला है कि 2007-08 एवं 2008-09 में चूजा खरीदने के क्रम में भी शासन द्वारा निर्धारित नियमों को दरकिनार कर करोड़ों रुपए की बंदरबाट करने के आरोप लगे हैं। डीएनए से सारे आरोपों पर अपनी प्रतिक्रिया में मंत्री अवधपाल ने कहा कि ये सारे आरोप मेरे राजनीतिक विरोधी का बेटा लगा रहा है। वह बेबुनियाद है। वह खुद अपराधी है। पैसा खर्च करने का काम अफसरों का है। निदेशक की जांच मैने कराई। थोड़े से बिन्दुओं की पुष्टि हुई है। फाइल उच्च आदेशों के लिए भेज दिया गया है।

स्कूल की जमीन जोत रहे हैं अवधपाल

ग्राम प्रधान ने किया मंत्री जी को बेपर्दा
शपथपत्र देकर अवधपाल की दबंगई का दिखाया नजारा 
कुल 12 गाटों पर अवधपाल, चंद्रपाल व अमर पाल सिंह का कब्जा


बसपा सरकार अवधपाल सिंह यादव के कारनामों पर भले ही पर्दा डाल कर क्लीनचिट दे दे मगर मंत्री जी के ग्राम प्रधान ओंमपाल सिंह यादव ने ही उन्हें बेपर्दा कर दिया है। मौजा पुराहार के रहने वाले अवधपाल ग्राम प्रधान के सगे ताऊ के बड़े लड़के भी हैं। उन्होंने शपथपूवर्क बयान दिया है कि ग्राम समाज की आबादी, नवीन परती, बंजर और नाली समेत सभी की सभी जमीनों पर दबंग मंत्री ने कब्जा कर लिया है। यही नहीं विालय की जमीन को कब्जा कर मंत्री जी दबंगई के साथ खेती भी करा रहे हैं। मुनाफा संस्था को न देकर स्वय ले रहे हैं।

मंत्री जी के खिलाफ ताल ठोंक कर बोलने वाले ग्राम प्रधान ओंमपाल ने कहा है कि मौजा पुराहार बुलाकी नगर तहसील व ब्लॉक अलीगंज के गाटा संख्या 7, 53, 10, 5, 19, 52 और 49 जिन पर राजस्व अभिलेखों में आबादी, नवीन परती, बंजर, नाली और चक मार्ग दर्ज है उन पर अवधपाल सिंह यादव ने कब्जा कर रखा है। गाटा संख्या 7 पर अवधपाल का मकान बना हुआ है। इसमें वह खुद रहते हैं। इस गाटा संख्या का 30 डिसमल भाग गांव सभा का है जो इनके मकान में शामिल है। गाटा संख्या 53, 10, 5, 19, 52 और 49 गांव सभा की जमीन है। इन गाटा संख्याओं की जमीन पर मंत्री ने कब्जा कर रखा है। ग्राम प्रधान ने कहा है कि गाटा संख्या 92/2.45, 96 ख, 105 क, 71 ख, 46, 220 और 290 पर हम लोगों के पट्टे निरस्त होने के बाद से बराबर अवधपाल सिंह कब्जा किए हुए हैं। और तार फेसिंग भी कर ली है। यह सब भूमि पट्टे निरस्त होने के बाद ग्राम सभा की है। लेकिन कब्जा मंत्री का है।

ग्राम प्रधान के अनुसार गाटा संख्या 71 ग की कुल भूमि करीब दो हेक्टेयर से कुछ ऊपर यानि 25 बीघा के करीब है और इस पर अवधपाल सिंह का कब्जा है। ईंट भट्ठे की पिच बनी है। कुछ हिस्से पर मंत्री के नाम का पट्टा है जो गलत है। ग्राम प्रधान ने बताया है कि श्रीकृष्ण लक्ष्मण उच्चतर माध्यमिक विालय पुराहार बुलाकी नगर का भवन विालय की जमीन पर न होकर हमारे परिवार के लोगों की निजी जमीन पर बना हुआ है। विालय की जमीन पर मंत्री खेती करा रहे हैं। लाभ संस्था को न देकर स्वयं ले रहे हैं। इस प्रकार गांव पुराहार बुलाकी नगर की खसर संख्या 96 क, 102 क, 105 क, 107 क, 130, 132 क, 187 ग, 203 क, 204, 219, 293 ख व 311 क समेत कुल 12 गाटों यानि 6.6770 हेक्टेयर जमीन पर अवध पाल सिंह यादव समेत उनके भाई चन्द्रपाल सिंह यादव, अमर पाल सिंह यादव तथा अध्यक्ष प्रा. समिति श्रीकृष्ण लक्ष्मण विालय पर कब्जा है।

Friday 12 August 2011

नवनीत सहगल से पावरफुल कौन!

भूकेश ने सी एंड डीएस में किया था 185 करोड़ का घपला
सहगल समेत तीन आईएएस के खिलाफ राज्यपाल से मुकदमा चलाने की मांग
भ्रष्ट इंजीनियर पीके भूकेश को बना दिया सी एंड डीएस का निदेशक



लखनऊ। मुख्यमंत्री के सचिव और वरिष्ठ आईएएस अफसर नवनीत सहगल भ्रष्ट अफसरों को संरक्षण देने के फन में भी माहिर हैं। अब देखिए न उन्होंने जल निगम के अध्यक्ष रहते भ्रष्ट इंजीनियर पीके भूकेश को निगम की निर्माण इकाई सी एंड डीएस यानि कंस्ट्रक्शन एंड डिजाइन सर्विसेज का निदेशक बना दिया। जबकि सहगल साहब के पास यह पावर ही नहीं कि वे जल निगम के बतौर अध्यक्ष रहते किसी अफसर को निदेशक बना दें। मगर यह तो उनके बाएं हांथ का खेल है। पावर हो या न हो। उन्हें किसी पावर की जरूरत नहीं पड़ती है। माया मेमसाहब के रहते उनसे ज्यादा पावरफुल कौन है?

हिंदनगर कानपुर रोड निवासी महेन्द्र शुक्ल ने राज्यपाल को एक पत्र लिख कर तीन वरिष्ठ आईएएस अधिकारी नवनीत सहगल, एसआर लाखा, तथा अमल कुमार वर्मा की भ्रष्टाचार में संलिप्तता उजागर होने की बात कही है। उन्होंने इन तीनों अफसरों के विरुद्ध मुकदमा चलाने की मांग की है। जल निगम के अधीक्षण अभियंता शिकायत एके सिंह ने आरटीआई के तहत पूछे गए सवालों के जवाब में बताया है कि कंस्ट्रक्शन एंड डिजाइन सर्विसेज के मौजूदा निदेशक पीके भूकेश को कर्तव्यों एवं दायित्वों का निर्वहन न करने, नियमों के अनुकूल काम न करने, निर्माण कार्यो में अनियमितता, आर्थिक क्षति पहुंचाने तथा विभाग की छवि धूमिल करने के मामले में दोषी पाए जाने पर वर्ष 2007 में बर्खास्त कर दिया गया था। तत्कालीन जल निगम के अध्यक्ष और मंत्री मो. आजम खां ने बर्खास्तगी का आदेश दिया था। मौजूदा निदेशक और इंजीनियर पीके भूकेश पर 185 करोड़ रुपए के हेरफेर का आरोप है। मालूम हो कि भ्रष्ट इंजीनियर और सी एंड डीएस के निदेशक पीके भूकेश के भ्रष्टाचार की जांच तत्कालीन वित्त निदेशक वीडी दोहरे, पूर्व मुख्य सचिव रविशंकर माथुर, आईएएस टीजार्ज जोसेफ, नगर विकास के सचिव डीसी मिश्रा, स्थानीय निकाय की निदेशक रेखा गुप्ता, विशेष सचिव एसपी मिश्रा द्वारा की गई। सभी अफसरों ने इंजीनियर पर लगे आरोपों को सिद्ध पाया और सभी ने कठोर कार्रवाई की संस्तुति की।

मगर दोष कितना भी हो अगर उसके पीठ पर बड़ों का हाथ है तो कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता। यह साबित किया पीके भूकेश ने। अब देखिए असली खेल। तत्कालीन प्रमुख सचिव एसआर लाखा ने 9 जुलाई 2008 के दिन भूकेश को सेवा में बहाली का आदेश पारित कर दिया। बाकी का काम पूरा किया मुख्यमंत्री के सचिव और जल निगम के अध्यक्ष नवनीत सहगल ने। उन्होंने उसे 2 जुलाई 2009 को सी एंड डीएस का निदेशक बना दिया। शिकायतकर्ता महेन्द्र शुक्ला का कहना है कि सहगल ने भ्रष्ट इंजीनियर को निदेशक पर तैनाती नियमों के विपरीत जाकर की है। उन्हें निगम के अध्यक्ष रहते यह अधिकार ही नहीं है। श्री शुक्ल ने बताया कि 2007 में एक अधिनियम बनाया गया है कि जल निगम के अध्यक्ष का पद लाभ का पद नहीं समझा जाएगा। उसका निगम के प्रबंधकीय कृत्यों पर कोई अधिकार नहीं होगा। निगम के प्रबंधकीय कामों का निष्पादन प्रबंध निदेशक और निगम के अन्य अधिकारियों के नियंत्रण में होगा। शिकायतकर्ता ने कहा कि तब कैसे नवनीत सहगल ने भ्रष्ट इंजीनियर को सी एंड डीएस का निदेशक तैनात कर दिया।

Wednesday 10 August 2011

भ्रष्टाचार में फलफूल रहे फूलबाबू !


रिकवरी के पैसों को खा गए अल्पसंख्यक वित्त विकास निगम के अफसर

 विधायक निधि के दुरुपयोग में फंसे अल्पसंख्यक कल्याण एवं वक्फ राज्य मंत्री फूलबाबू समेत उनके विभाग के तमाम छोटे से लेकर बड़े अफसर तक भ्रष्टाचार में फल-फूल रहे हैं। अल्पसंख्यक वित्तीय एवं विकास निगम लि. में आलम यह है कि शायद ही कोई ऐसा अफसर और कर्मचारी होगा जिसने भ्रष्टाचार की गंगा में न नहाया हो। मंत्री जी के खिलाफ तो शिकायतें ऐसी-ऐसी हैं जिसे सुनकर होश फाख्ता हो जाते हैं। एक शिकायतकर्ता ने तो लोकायुक्त को लिखे पत्र में यहां तक कहा है कि मंत्री जी जागते में भी सोते दिखते हैं। वे बगैर दलालों के बात नहीं करते। जिला बिजनौर स्थित कम्प्यूटर सेंटर चलाने वाले परवेज अख्तर ने लोकायुक्त को लिखे शिकायती पत्र में कहा है कि मंत्री फूलबाबू जागते में भी सोते दिखते हैं। उनके पास पहुंचते ही एक सरकारी और एक प्राइवेट दलाल कमीशन की बात तय करते हैं। उसी के अनुसार मंत्री जी राजी होते हैं। जब किसी अधिकारी के खिलाफ कोई मामला कार्रवाई के लिए आता है तो पहले मंत्री जी के यहां भरपूर रिश्वत खाई जाती है। फिर अगले दिन से उस अधिकारी को मंत्री अपना रिश्तेदार बताने लगते हैं। शिकायतकर्ता परवेज ने आरोप लगाते हुए फूलबाबू के अधीनस्थ कार्य करने वाले भ्रष्ट अफसरों की करतूतों को बेनकाब किया है। उसके गंभीर आरोपों की फेहरिश्त में अल्पसंख्यक वित्तीय एवं विकास निगम के प्रबंधक मसऊद अख्तर का नाम भी है। निगम के एक रिकवरी सहायक परमानंद की मौत से जुड़े मामले का उल्लेख करते हुए परवेज ने लिखा है कि मसऊद अख्तर ने उसे रेगुलर करने का लालच देकर फर्जी रशीदों के माध्यम से 11 लाख रुपए प्राप्त किया तथा घर का व्यक्तिगत काम कराते रहे। निगम के एक और बड़े अफसर लईक अहमद ने भी परमानंद को लालच देकर फर्जी रसीदों के माध्यम से 70 हजार रुपए ले लिए। फील्ड आफीसर अब्दुल कादिर ने मृतक रिकवरी सहायक से 65 हजार रुपए तो लिए ही हजारों रुपए का गेहूं, चावल लिया तथा सालों घर पर नौकर की तरह रात 12 बजे तक काम लेते रहे। लोकायुक्त को लिखे पत्र में कहा गया है कि तीनों बड़े अफसरों द्वारा रिकवरी सहायक को रेगुलर करने के नाम पर ब्लैक मेल करने तथा उल्टा उसे ही फसाने के सदमें से उसकी मौत हो गई। शासन के उप सचिव मो. शफीक ने दो मार्च 2010 को तत्कालीन प्रबंध निदेशक को लिखे पत्र में निर्देश दिया था कि मृतक परमानंद के मामले में जांच उपरांत नियमानुसार कार्रवाई की जाय। रिकवरी सहायकों से पैसा वसूलने का धंधा यहीं तक सीमित नहीं है। एक और वसूली सहायक राजेश मान सिंह तथा सहायक रामरेखा प्रसाद ने पांच फरवरी 2010 को एक पत्र अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव को लिखा जिसमें कहा गया कि लखनऊ तथा आसपास वसूली करने से मिली रकम में से आधा संयुक्त प्रबंध निदेशक लईक अहमद ले लेते थे। राजेश मान सिंह ने प्रमुख सचिव को बताया कि लईक ने उससे डेढ़ लाख रुपए ले रखा है। फील्ड आफीसर खुर्शीद अहमद भी लगभग 60 हजार रुपए रिकवरी के ले चुके हैं। मृतक परमानंद ने भी तीनों बड़े अफसरों के खिलाफ फर्जी रसीदों को उपलब्ध कराकर लाखों रुपए लेने का आरोप लगाया था। निगम के एक ड्राइवर विकास चन्द्र भारती ने लईक अहमद के खिलाफ मुख्यमंत्री से शिकायत भी की है। जब फूलबाबू से उनके फोन न. 9415607716 पर सम्पर्क किया गया तो घंटी बजती रही लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया।

Monday 8 August 2011

3000 करोड़ के घेरे में शशांक शेखर!

राज्यपाल से हवाई जहाज व हेलीकॉप्टरों की खरीद में घपले की शिकायत


नागरिक उड्डयन विभाग के पूर्व  क्लर्क को जानमाल के खतरे का अंदेशा
नागरिक उड्डयन विभाग व लखनऊ एयरपोर्ट में 3000 करोड़ के घोटाले की शिकायत राजभवन तक पहुंच गई है। शिकायतकर्ता कोई और नहीं बल्कि नागरिक उड्डयन विभाग से हटाए गए एक बाबू देवेन्द्र कुमार दीक्षित ने ही कैबिनेट सचिव शशांक शेखर का नाम लिए बिना आरोप लगाया है कि लगभग 3000 करोड़ के घोटाले में प्रदेश शासन में सर्वोच्च पद पर बैठा यह अफसर प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से संलिप्त है। वे अपने पद, पहुंच एवं धनबल के प्रभाव से आरटीआई के तहत घोटाले से सम्बंधित सूचनाएं उपलब्ध नहीं कराने दे रहे हैं। राज्यपाल से अपने जानमाल के खतरे का अंदेशा जताते हुए कहा है कि उसकी या उसके परिवार की हत्या कराई जा सकती है।

श्री दीक्षित ने राज्यपाल को दी शिकायत में कहा है कि उसने आरटीआई के तहत जिन बिन्दुओं पर सूचनाएं नागरिक उड्डयन विभाग से मांगी हैं उसकी जांच किसी निष्पक्ष जांच एजेंसी या सीबीआई से कराई जाय। नागरिक उड्डयन विभाग में 1987 से लेकर 2002 तक क्लर्क के पद पर नौकरी करने वाले शिकायतकर्ता ने कहा है कि विभाग और लखनऊ एयरपोर्ट में घोर भ्रष्टाचार व्याप्त है। वित्तीय व प्रशासनिक अनियमितताओं एवं देशद्रोही गतिविधियों के संचालन का विरोध 1988 से किया जाता रहा है। इसके लिए अधिकारियों द्वारा षड्यंत्र के तहत उसे उत्पीड़ित किया गया। फर्जी मुकदमों में फसाने के साथ-साथ उसे असंवैधानिक तरीके से सेवा से पृथक कर दिया गया। इससे सम्बंधित एक मुकदमा वाद संख्या 7191(एस/एस) 2002 इलाहाबाद उच्च न्यायालय में लंबित है।

उल्लेखनीय है कि नागरिक उड्डयन विभाग से सेवामुक्त क्लर्क ने विभाग के प्रमुख सचिव के जनसूचना अधिकारी से आरटीआई के तहत एक जनवरी 2007 से 31 जुलाई 2010 तक के मध्य त्यागपत्र देने वाले या वीआरएस लेने वाले पायलट व अभियंताओं के नाम, हवाई जहाज व हेलीकॉप्टरों के क्रय हेतु स्वीकृत धन, आहरित धन, क्रय आदेश, बेचे गए हवाई जहाज और हेलीकॉप्टरों की संख्या, बेचने के कारण, बेचने में अपनाई गई प्रक्रिया, यूपी सरकार के अधीन हवाई पट्टियों के निर्माण, रख-रखाव के लिए स्वीकृत धन, राजकीय नागरिक उड्डयन विभाग व लखनऊ एयरपोर्ट के पास उपलब्ध वाहनों की संख्या आदि की विस्तृत सूचना मांगी है। नागरिक उड्डयन विभाग से हटाए गए शिकायतकर्ता क्लर्क ने डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट को बताया कि 1989 में विभागीय निदेशक शशांक शेखर के रहते चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की भर्ती में भी घोटाला हुआ था। इसके साथ ही उसने आरटीआई के तहत नागरिक उड्डयन विभाग के जनसूचना अधिकारी से चतुर्थ श्रेणी कर्मियों व 1989 में वर्क सुपरवाइजरों के पद पर हुए साक्षात्कार, पद की संख्या, बुलाए गए अभ्यर्थियों की संख्या, उपस्थित हुए अभ्यर्थियों की संख्या तथा चयनित अभ्यर्थियों की संख्या की जानकारी मांगी है। यही नहीं उसने वर्तमान में राजकीय नागरिक उड्डयन विभाग के निदेशक के पद की अनिवार्य योग्यता, यूपी एयर सर्विसेज सोसाइटी के अधिकारियों की चल एवं अचल सम्पत्ति की सूचना मांगी है। शिकायतकर्ता ने बताया है कि कार्यालय प्रमुख सचिव नागरिक उड्डयन विभाग के जनसूचना अधिकारी द्वारा उसे कोई सूचना उपलब्ध नहीं कराई जा रही है। इसकी शिकायत उन्होंने यूपी के मुख्य सूचना आयुक्त रणजीत सिंह पंकज से की है। सीआईसी ने सूचना न दिए जाने के लिए विभाग के जनसूचना अधिकारी के खिलाफ 25 हजार रुपए जुर्माने की नोटिस भेजी है।

Sunday 7 August 2011

अवधपाल ठोक रहे हैं झूठ की ताल


मेरा कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं : अवधपाल
मंत्री जी के खिलाफ डेढ़ दर्जन से भी ज्यादा आपराधिक मामले
भाई चन्द्रप्रताप सिंह के विरुद्ध आधा दर्जन आपराधिक रिकॉर्ड दर्ज
अवधपाल सिंह


बसपा सरकार के दबंग और दागदार मंत्री अवधपाल सिंह यादव सफेद झूठ बोलने पर उतर आए हैं। पता नहीं उन्हें माया मेमसाहब ने झूठ बोलने की इजाजत दे दी है या फिर खुद अपनी दादागीरी पर पर्दा डालने के लिए उन्होंने नया पैंतरा भांजना शुरू किया है। रविवार को सफाई देने उतरे दबंग मंत्री ने कहा कि मेरा कोई आपराधिक इतिहास नहीं है। जबकि वहीं माफिया मंत्री के खिलाफ दर्जनों आपराधिक मामले उन्हें चीख-चीख कर गुनहगार बता रहे हैं। अब चूंकि वे सूबे की मुखिया के खासमखास सिपहसालार हैं इसलिए उनका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है। वे पाक-साफ हैं इसलिए भी वे न तो इस्तीफा देंगे और न ही माया मेमसाहब उनको अपने मंत्रिमंडल से बर्खास्त करेंगी।

सरकारी इजाजत पाकर रविवार को सफाई देने निकले अवधपाल ने कहा कि मैं न तो अपराधी हूं, न था और न कभी हो सकता हूं। मैंने अपने जीवन में किसी की हत्या नहीं कराई। एटा के तीनों मर्डर केस में मेरा एक परसेंट भी हाथ नहीं है। मैं राजनीति में सौ प्रतिशत सही बोलता हूं यह बात पूरा जिला जानता है। माफिया मंत्री की यह हेकड़ी शायद सरकारी संरक्षण का ही नतीजा है वरना एटा की सीजीएम कोर्ट के आदेश के बाद अब तक उन्हें गिरफ्तार हो जाना चाहिए था या सरकार और अवधपाल में इतनी नैतिकता होती तो या तो वे खुद इस्तीफा दे देते या फिर माया मैडम उन्हें मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर देतीं। मगर जैसा कि हर दबंग मंत्रियों व विधायकों के मामलों में सरकार ने बचाव का रवैया अख्तियार किया वही इस बार भी अपने इस दागदार मंत्री को बचाने में कर रही है।

मंत्री अवधपाल की झूठी सफाई की सच्चाई डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट ने खंगाली तो पता चला कि न सिर्फ उनके खिलाफ डेढ़ दर्जन से ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज हैं बल्कि भाई व एमएलसी चन्द्रपाल सिंह के विरुद्ध भी आधा दर्जन मामले विभिन्न थानों में दर्ज हैं। आपराधिक मामले बताते हैं कि अवधपाल का पूरा परिवार ही आपराधिक पृष्ठभूमि से जुड़ा हुआ है। जानकारी के मुताबिक अवधपाल के खिलाफ एटा जिले की कोतवाली अलीगंज में अपराध संख्या 356/78 धारा 147-323 आईपीसी, 247-81 धारा 147-148-307, थाना जैथरा में अपराध सं. 42/85 धारा 395-397, थाना जैथरा में ही 42 ए/82 धारा 396, थाना अलीगंज में 161/82 धारा 147-323, थाना जसरथपुर में 50/93 धारा 147-148-149-307, कोतवाली नगर एटा में 384/93 धारा 147-332-504-506, थाना अलीगंज में 259 ए/93 धारा 147-324-323, थाना राजा का रामपुर में 77 ए/2002 धारा 342-323, थाना जैथरा में 60 ए/ 2002 धारा 147-148-149-504-506-307,थाना जैथरा में ही 60 ए/2002 धारा 147-323-504-506, थाना कोतवाली नगर एटा में 879/2002 धारा 376, थाना जैथरा में 242/03 धारा 147-148-149-323-395-506-420, थाना कोतवाली नगर में 125/03 धारा 409-420, थाना अलीगंज में 5/85 धारा 147-148-149-307 व 426, बागवाला में 73/05 धारा 147-353-504-506, थाना सकीट में 2ए/98 धारा 147-148-149-307 व 426, थाना नयागांव में 175/04 धारा 406-409 व 169/05 धारा 147-148-323-506-504-332-353-188 आईपीसी 135 व 136 व थाना जैथरा में 156, धारा 147,148, 332, 336, 436 व 354 के तहत मामले दर्ज हैं। अब साफ-सुथरे मंत्री जी के एमएलसी भाई के अपराधों की फेहरिश्त पर नजर डालें जिसमें रामपाल पुत्र इतवारी लाल मै. रैवाडी थाना सकीट में 2ए, धारा 147, 148,149 व 307, लखमी पुत्र मुंशी नि. नगला बल्लभ थाना अलीगंज में 247/81 धारा 147,148,307, थाना पटियाली जनपद कांशीरामनगर में 170, धारा 395, 397, 364, 302 व 120, आछेलाल पुत्र ततवीर नि. परईया थाना राजा का रामपुर में 242, धारा 147, 148, 149, 323, 395, 506 व 420, थाना अलीगंज में 169/05 धारा 147, 148, 332, 352, 188, 135, 136 (2) जप्रअधि. व 7 क्रिअलाअधि अलीगंज व जैथरा एटा थाने में 157/05 धारा 147, 148, 149, 332, 353, 336, 436, 307 व 394 के तहत मामले दर्ज हैं।

Friday 5 August 2011

सीडी में अवधपाल का अत्याचार देखो

लोकायुक्त द्वारा सीएम को भेजी सीडी डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट के भी पास


कहते हैं कि अत्याचारी हुकूमत के आंख-कान सबके सब बंद होते हैं। उन्हें न कुछ दिखाई और न ही सुनाई पड़ता है। ऐसा ही कुछ सत्ता का नशा बसपाइयों के सिर चढ़ कर बोल रहा है। सरकार में बैठे हत्यारों की फौज भोली-भाली जनता के अरमानों का गला घोंट रही है। आम आदमी बदहवास है तो अराजकता पर उतारू मंत्री, विधायक और नेता गरीबों के गाढ़े खून-पसीने की कमाई को दोनों हाथों से लुटाने में लगे हैं। बीते चार सालों में कानून व्यवस्था के नाम पर कितने निर्दोषों को अपनी जान के साथ हांथ धोना पड़ा। सरकार की नाक के नीचे वह चाहे तीन-तीन सीएमओ का मर्डर हुआ हो या फिर एटा में बीते 10 जून को तीन-तीन मर्डर कराने वाले दबंग और माफिया मंत्री अवध पाल सिंह यादव हों वे खुलेआम माननीय मंत्री का लबादा ओढ़े अत्याचारी व हत्यारी सरकार का असली चेहरा जनता को दिखा रहे हैं। मगर ये सब देखते और सुनते हुए भी सूबे के निजाम की मुखिया माया मेमसाहब अपने मंत्री के खून से सने हाथ देखकर चुप्पी साधे हैं। समय-समय पर सरकार में बैठे दबंग और दागदार मंत्रियों व विधायकों का क्रूर चेहरा दिखाने वाले यूपी के लोकायुक्त न्यायमूर्ति एनके मेहरोत्रा भी निराश नहीं हैं बल्कि कर्नाटक के पूर्व लोकायुक्त जस्टिस संतोष हेगड़े की भांति अत्याचारी और अराजक सरकार की कलई खोलने में जुटे हैं। यह अलग बात है कि जस्टिस हेगड़े ने भ्रष्ट मुख्यमंत्री येदियुरप्पा को पैदल करके ही दम लिया। मगर न्यायमूर्ति मेहरोत्रा ने भी अभी हार नहीं मानी है और माया मेमसाहब को उनका असली चेहरा दिखाने में पूरी मुहिम के साथ लगे हैं। लोकायुक्त ने एटा में पिछले 10 जून को हुए तीन-तीन मर्डर केस में लिप्त दबंग और माफिया मंत्री की संलिप्तता वाली वह सीडी भी मैडम को भेज दी है जो अवधपाल को चीख-चीख कर असली गुनहगार बता रही है। यह सीडी डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट के हाथ भी लगी है जिसे संक्षेप में दृश्यवार प्रस्तुत किया जा रहा है :

सीडी का प्रथम दृश्य-

(कस्बा जैथरा जिला एटा, मृतक विजय सिंह वर्मा के बेटे सोनू से पत्रकारों द्वारा मर्डर के सम्बंध में सवाल)

सवाल- क्या हुआ, क्या घटना हुई?

जवाब- 20-25 लोग आए, दनादन फायरिंग करने लगे, पापा को मारने लगे तो मम्मी उन्हें बचाने के लिए आगे आईं, उन्हें भी मारा-पीटा। फिर पापा को गोली मार दी। मेरे बच्चे, मेरे भइया को गोली मार दी।

सवाल- कसका हाथ है?

जवाब- बहुत बड़ी साजिश है। मंत्री जी का हाथ है। अवधपाल मंत्री उनका भाई एमएलसी और लड़का रणजीत।

सवाल- मंत्री ऐसा क्यों कर रहे हैं?

जवाब- एक मर्डर मेरी दुकान पर हुआ था। उसी मामले में मेरा भाई जो जेल में है। थाना इंचार्ज एके राय ने कहा कि तुम गुंडे हो। 15 लाख रुपए दो। मैं रात में 15 लाख दे आया।

Wednesday 3 August 2011

भ्रष्टाचार के भी सर्वेसर्वा हैं कैबिनेट सचिव!

सूचना न देने पर नागरिक उड्डयन के जनसूचना अधिकारी को जुर्माना
हवाई जहाज व हेलीकॉप्टरों की खरीद फरोख्त में भ्रष्टाचार का आरोप
 
नागरिक उड्डयन विभाग के सलाहकार एवं राज्य कैबिनेट सचिव शशांक शेखर की सलाह से विभाग के नित-नए भ्रष्टाचार की उड़ान भरने की चर्चा इन दिनों जोरों पर है। भ्रष्टाचार के नाम पर चुप्पी साधने वाला नागरिक उड्डयन विभाग पता नहीं किससे डर रहा है कि वह आरटीआई से भी पीछा छुड़ाने में लगा हुआ है। अगर ऐसा न होता तो विभाग हवाई जहाज व हेलीकॉप्टर के क्रय और विक्रय में व्याप्त भ्रष्टाचार की शिकायतों के निस्तारण के लिए गठित की गई उच्च समिति के पदाधिकारियों का कम से कम नाम तो बता ही देता। मगर विभाग में इस बात की भी चर्चा जोरों पर है कि कैबिनेट सेकेट्रेरी साहब कहने को तो नागरिक उड्डयन विभाग के न सिर्फ कथित तौर पर सलाहकार हैं बल्कि वे ही सर्वेसर्वा हैं। भ्रष्टाचार की उड़ान धीमी न पड़े शायद इसीलिए 25 मार्च वर्ष 2008 में राज्यपाल द्वारा विभाग की परिचालन तथा अनुरक्षण, सुरक्षा एवं सामान्य प्रशासन इकाई समेत तमाम चीजों को आरटीआई के चंगुल से बाहर करने का अजीबोगरीब नाटक रचा गया।

सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि जिस कैबिनेट सेक्रेटरी साहब के इशारे पर नागरिक उड्डयन विभाग को आरटीआई के दायरे से अलग हटा दिया गया, मौजूदा सरकार के पसंदीदा अफसर रहे और अब राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त रणजीत सिंह पंकज ने ही नागरिक उड्डयन विभाग के नाटक पर पानी फेर दिया है। पंकज ने विभाग के तमाम भ्रष्टाचार सम्बंधी मांगी गई सूचना न देने पर नागरिक उड्डयन विभाग के जनसूचना अधिकारी नुजहत अली को 25 हजार जुर्माना दिए जाने का नोटिस जारी कर दिया है। उल्लेखनीय है कि लखनऊ स्थित एलडीए कालोनी कानपुर रोड निवासी देवेन्द्र कुमार दीक्षित ने नागरिक उड्डयन विभाग के प्रमुख सचिव को लिखे पत्र में यह कह कर हड़कम्प मचा दिया है कि नागरिक उड्डयन निदेशालय, लखनऊ एयरपोर्ट में व्यापक पैमाने पर भ्रष्टाचार व्याप्त है एवं देशद्रोही गतिविधियों के संचालन से सम्बंधित सूचनाएं न दिए जाने के षड्यंत्र की जांच कराई जाय।

गौरतलब है कि विभागीय प्रमुख सचिव के जनसूचना अधिकारी से श्री दीक्षित द्वारा जो सूचनाएं मांगी गई हैं उनका जवाब न देना तथा सूचना आयोग द्वारा जनसूचना अधिकारी को 25 हजार रुपए की नोटिस बतौर जुर्माने का आदेश देना, ने पूरे के पूरे नागरिक उड्डयन महकमे को कठघरे में लाकर खड़ा कर दिया है। श्री दीक्षित ने विभाग से पहली जनवरी 2007 से 31 जुलाई 2010 के बीच त्याग पत्र देने वाले अथवा वीआरएस लेने वाले पायलट के नाम, हवाई जहाज व हेलीकॉप्टर के खरीद के लिए स्वीकृत धन, आहरित धनराशि, बेचे गए हवाई जहाज व हेलीकॉप्टर की संख्या, बेचने का कारण, बेचने में अपनाई गई प्रक्रिया, यूपी सरकार के अधीन हवाई पट्टियों के निर्माण, रख-रखाव के लिए स्वीकृत धन, लखनऊ एयरपोर्ट के पास उपलब्ध वाहनों की संख्या, हवाई जहाज एवं हेलीकॉप्टरों के रख-रखाव पर प्रति वर्ष किए गए खर्च, राजकीय नागरिक उड्डयन विभाग के हिन्द नगर लखनऊ स्थित आवासीय कालोनी के अनुरक्षण तथा रख-रखाव के लिए स्वीकृत धनराशि, हवाई जहाज व हेलीकॉप्टर के क्रय तथा विक्रय में व्याप्त भ्रष्टाचार की शिकायतों के सम्बंध में गठित कमेटी के अध्यक्ष व अन्य के नाम के साथ कोऑपरेटिव हिन्दी फ्लाइंग क्लब, लखनऊ एयरपोर्ट के वायुयानों व हेलीकॉप्टर के नीलामी से प्राप्त धन के विवरण तथा उस धन को रखे जाने वाले बैंक खाते की संख्या सहित बैंक शाखा का नाम बताए जाने की सूचना मांगी है।