Tuesday 30 August 2011

यूपी में आरटीआई पर आई शामत

नियुक्ति सम्बंधी सूचना से पल्ला झाड़ रहा प्रशासनिक सुधार विभाग
छह सूचना आयुक्तों व सीआईसी की नियुक्ति पर उठे सवाल

यूपी में कानूनी,संवैधानिक और प्रशासनिक संस्थाएं भी पिछले चार सालों में मौजूदा सत्ताधारियों के तिरस्कार व मनमानियों की शिकार हुई हैं। सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की तो इतनी छीछालेदर शायद ही दूसरे राज्यों में देखने को मिली हो। छह-छह राज्य सूचना आयुक्तों और मुख्य सूचना आयुक्त के अत्यंत महत्वपूर्ण पद पर भ्रष्टाचार के आरोपी अफसर रणजीत सिंह पंकज को बैठा दिया गया। सूचना आयुक्तों और सीआईसी के चयन पर अब प्रशासनिक सुधार विभाग को जवाब देते नहीं बन रहा है। विभागीय अधिकारी यह कह कर पल्ला झाड़ रहे हैं कि मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच चलने वाली फाइल को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है। मगर क्यों? सूचना आयुक्तों और मुख्य सूचना आयुक्त को लेकर आखिर ऐसी कौन सी गोपनीय बात है जिसके चलते मुख्यमंत्री व राज्यपाल के बीच की फाइल को जनहित में सार्वजनिक करने से प्रशासनिक विभाग के अधिकारियों को गुरेज हो रहा है।

अधिवक्ता एसपी मिश्र और आरटीआई ऐक्टिविस्ट सलीम बेग ने इस मुद्दे को सूचना के कानून केतहत उठाया है। श्री मिश्र ने कहा कि पिछले चार सालों में सूचना आयुक्तों और मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति में चयन प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है। सरकार ने पहले चार सूचना आयुक्तों राम सरन अवस्थी, सुभाष चंद पांडेय, बृजेश मिश्र और सुनील कुमार चौधरी की नियुक्ति की। चारों की नियुक्ति में मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में गठित समिति ने नेता विरोधी दल की राय जाने बिना ही हरी झंडी दे दी। इसी प्रकार दो और सूचना आयुक्तों ज्ञान प्रकाश मौर्य और खजीअतुल कुबरा को भी राज्य सूचना आयुक्त बनाए जाते समय निर्धारित चयन प्रक्रिया नहीं अपनाई गई। नेता विरोधी दल शिवपाल सिंह यादव की समिति में उपस्थिति और बगैर उनकी स्वीकृति के ही दोनों सूचना आयुक्तों को सूचना आयोग में बैठा दिया गया। इस प्रकार मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर भी नियमों की अनदेखी की गई। रणजीत सिंह पंकज की नियुक्ति के दौरान भी मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने नेता विरोधी दल की स्वीकृति नहीं ली। जबकि पंकज पर खनन विभाग के एक मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 50 हजार रुपए का जुर्माना किया था। मौजूदा सीआईसी पर भ्रष्टाचार के कई आरोप भी विभिन्न विभागों में विभागीय अधिकारी रहते लग चुके हैं। चार सूचना आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर तो मामला हाईकोर्ट में लंबित भी है।

सीआईसी और छह सूचना आयुक्तों की नियुक्ति से सम्बंधित आरटीआई द्वारा मांगी गई सूचना पर प्रशासनिक सुधार विभाग ठोस जवाब देने के बजाय राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच की फाइल को सार्वजनिक करने से इनकार कर पल्ला झाड़ रहा है। विभाग के अनु सचिव और जनसूचना अधिकारी रामचन्द्र यादव ने कहा है कि राज्य सूचना आयोग द्वारा सुनील कुमार यादव बनाम उप सचिव प्रशासनिक सुधार विभाग के वाद में यह आदेश पारित किए गए हैं कि जो फाइल मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच चलती है, जनहित में उनको बताया जाना बिलकुल उचित नहीं है। इस प्रकार राज्य सूचना आयुक्तों की नियुक्ति से सम्बंधित समिति की सिफारिश तथा मंत्रिमंडल के सदस्य को नाम निर्देशित किए जाने में हुई कार्यवाही की सूचना नहीं उपलब्ध कराई जा सकती है। अब सवाल यह उठता है कि अगर सूचना आयुक्तों और मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति में ही जब पारदर्शिता नहीं दिखाई देती है तो इन पदों पर बैठने वाले लोग सूचना के कानून की मंशा के अनुरूप सरकारी विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार, वित्तीय अनियमितताएं, सरकारी कर्मचारियों के कामकाज में पारदर्शिता सुनिश्चित करा पाएंगे।

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