...तो कोई और दलित छात्र आईएएस न बने! वह पीएल पुनिया बनकर दलित सरकार की जड़ में मठ्ठा न डालने लगे। इसीलिए शायद दलितों के नाम पर बनी सरकार दलित छात्रों के अरमानों का गला घोटने पर तुली है। दलित आईएएस और पीसीएस पैदा करने वाले इलाहाबाद विश्वविालय के पंत हास्टल से दलित छात्रों को खदेड़ा जा रहा है और वहां विवि के कुलपति द्वारा मेहमानों को रहने व बारात ठहराने से लेकर अफगान छात्रों को रहने के नाम पर व्यावसायिक गतिविधियों को अंजाम दिया जा है।
आईएएस मुख्य परीक्षा की तैयारी कर रहे दलित छात्र श्याम चन्द्र समेत अनेकों दलित व पिछड़े वर्ग के छात्रों ने राष्ट्रपति से लेकर इलाहाबाद के जिलाधिकारी तक इंसाफ की गुहार लगाई मगर कोई सुनने तक तैयार नहीं। यहां तक कि केन्द्रीय अनुसूचित जाति जनजाति आयोग से लेकर राज्य के अनुसूचित जाति जनजाति आयोग में भी आईएएस की तैयारी कर रहे छात्रों ने दस्तक दी मगर हर जगह नक्कारखाने में तूती की आवाज ही साबित हो रहा है। दलित छात्रों ने बताया कि इलाहाबाद विश्वविालय प्रशासन द्वारा आल इंडिया सर्विसेज प्रि एक्जामिनेशन ट्रेनिंग सेंटर यानि पंत हास्टल में सिविल सेवा की तैयारी कर रहे दलित व पिछड़े वर्ग के छात्रों को हास्टल से खदेड़ा जा रहा है। प्रतिभाशाली सिविल सेवा प्रतियोगी छात्रों पर अत्याचार किया जा रहा है। छात्रों ने बताया कि पंत हास्टल में 100 दलित व पिछड़े छात्रों, जिसमें 70 दलित व 30 पिछड़े छात्रों को रहने की व्यवस्था है, वहां अब 36 छात्र ही रह गए हैं और शेष छात्रों को विश्वविालय प्रशासन व हास्टल के प्राचार्य मानवेन्द्र नाथ वर्मा ने खदेड़ दिया है। मालूम हो कि भावी दलित आईएएस अफसरों को प्रोत्साहित करने पहुंचे दलित आईएएस अफसर पीएल पुनिया भी सिर्फ ढांढस दे कर लौट आए।
हालांकि वे वहां राष्ट्रीय अनुसूचित जाति जनजाति आयोग अध्यक्ष की हैसियत से गए थे इसलिए भी उनकी मौजूदगी से भन्नाई राज्य सरकार ने दलित छात्रों की समस्याओं की तरफ से मुंह मोड़ लिया। पीएल पुनिया 21 जनवरी को प्रताड़ित किए जा रहे दलित छात्रों से उनकी समस्याएं जानने पहुंचे थे। दलित छात्र श्याम चन्द्र ने बताया कि आईएएस मुख्य परीक्षा की तैयारी कर रहे 40 छात्रों को इलाहाबाद विश्वविालय प्रशासन ने 30 अगस्त 2010 को बाहर निकाल दिया था। छात्र ने बताया कि पीएसी लगाकर दलित छात्रों को हास्टल से खदेड़ा गया। दलित छात्रों ने आरोप लगाया है कि पंत हास्टल के प्राचार्य पिछले तीन वर्षो से छात्रों को मैगजीन, पुस्तकीय सहायता से वंचित कर रहे हैं। हास्टल में बाहरी छात्रों को रखा जा रहा है। हास्टल का उपयोग विश्वविालय के अध्यापकों के अतिथियों को रखा जाता है। बारात ठहराकर पैसे वसूल किए जाते हैं। उल्लेखनीय है कि वर्ष 1958 में स्थापित पंत हास्टल का गौरवमयी इतिहास रहा है। इस हास्टल ने 2005 तक 477 दलित व पिछड़े आईएएस तथा 2000 से अधिक प्रांतीय सिविल सेवा के अफसर पैदा किए हैं। राज्य सरकार की दुर्भावना व विश्वविालय प्रशासन की उपेक्षा के चलते 2005 के बाद से संस्थान कोई परिणाम देने में सक्षम नहीं रहा। वहीं संस्थान के प्राचार्य ने डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट को बताया कि सारे आरोप बेबुनियाद हैं। सामाजिक कल्याण मंत्रालय के नियमों का हवाला देते हुए कहा कि छात्रों को पांच महीने बाद हास्टल से निकाल दिया जाता है। बारात ठहराने जैसे आरोप पर श्री वर्मा ने कहा कि वर्किंग प्रोफेसर के अतिथियों को कभी-कभार चाय-पानी पिलवा दिए जाने को तूल दिया जा रहा है।
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