Tuesday 6 September 2011

एक ही सुर अलाप रहे पिता-पुत्र

गठबंधन के दरवाजे नहीं खोल पा रहे रालोद मुखिया
कांग्रेस को मुंह चिढ़ाने का कर रहे काम

 रालोद मुखिया और उनके बेटे एक ही सुर अलाप रहे हैं। सोमवार को लखनऊ आए जयंत चौधरी की भी टीश कांग्रेस के प्रति देखने को मिली। कांग्रेस से समझौते की बात न बनती देख छोटे चौधरी ने भी यूपीए सरकार और उनके मंत्रियों पर हमला बोला। अब तो समाजसेवी अन्ना हजारे की भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम की तारीफ में पुल बांध रहे रालोद नेता कांग्रेस को मुंह चिढ़ाने का भी काम शुरू कर दिया है। कांग्रेसियों द्वारा तवज्जो न मिलने से हैरान और परेशान पिता-पुत्र यह कहते फिर रहे हैं कि हमारे दरवाजे खुले हैं।

पिछले एक साल से गठबंधन और सीटों के तालमेल के लिए छटपटा रहे चौधरी अजित सिंह की सारी कसरतों पर पानी फिरता जा रहा है। पहले उन्होंने डा. उदितराज वाली इंडियन जस्टिस पार्टी, डा. अयूब की पीस पार्टी, ओमप्रकाश राजभर वाली भारतीय समाज पार्टी समेत अन्य छोटे दलों का मोर्चा बनाया। यह सियासी कुनबा बन भी नहीं पाया था कि उससे पहले ही बिखर गया। चौधरी साहब ने फिर कांग्रेस और सपा की ओर तांक-झांक करनी शुरू की तो दोनों दलों के नेताओं ने इनसे किनारा कसना ही मुनासिब समझा। बसपा-भाजपा से गठबंधन न करने की सार्वजनिक घोषणा पर भी यदि सपा और कांग्रेस रालोद को तवज्जो नहीं दे रही है तो इसके पीछे सियासी रणनीति के संकेत साफ हैं। दोनों पार्टियां चुनाव पूर्व ऐसे किसी छोटी पार्टियों को साथ लेकर नहीं चलना चाहती हैं जो उनके वोटों का फायदा भी उठाएं और सरकार में बड़े साझीदार का दावा भी करते नजर आएं। वैसे भी अजित सिंह की दिल्ली और लखनऊ की सरकारों में शामिल होने के अनुभवों को देखते हुए सपा और कांग्रेस पहले से ही कन्नी काटे हुए है। रालोद मुखिया दिल्ली में भी गठबंधन की कसरत जारी रखे हुए हैं। बीते दिनों उन्होंने कामरेड प्रकाश करात, पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा, आंध्र के पूर्व मुख्यमंत्री चन्द्रबाबू नायडू समेत पुराने राष्ट्रीय मोर्चा के नेताओं से हाथ मिलाकर भी यूपी की राजनीतिक पार्टियों का ध्यान खींचने की कोशिश की। मगर चौधरी साहब की ये सारी कवायदें आकार लेती नहीं दिख रही हैं।

राष्ट्रीय स्तर जिन नेताओं के साथ किसान नेता घूम रहे हैं वे सभी के सभी अपने-अपने राज्यों में खारिज किए जा चुके हैं। उत्तर प्रदेश में सपा और कांग्रेस से बात बनती नजर नहीं आ रही है। यहां तक कि छोटे दल भी उनसे किनारा कस चुके हैं। बसपा-भाजपा से हाथ मिलाएंगे नहीं। सिर्फ पश्चिम यूपी में छिटके राजनीतिक ताकत के जरिए किसके लिए दरवाजे खोल रखे हैं।

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