Tuesday 4 October 2011

एक-दो नहीं, अब छह परसेंट दो बाबा


सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान में प्रशासनिक मद के पैसों पर अफसरों की नजर

जनता से जुड़ी योजनाओं पर पैसा बाद में स्वीकृत होता है मगर अफसर धन ऐंठने की जुगलबंदी पहले से ही शुरू कर देते हैं। पंचायतीराज विभाग में कुछ इसी प्रकार की ही तस्वीर दिखाई पड़ती है। केंद्र द्वारा संचालित सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के पैसों से जिला परियोजना समन्वयक की तैनाती, वेतन एवं अन्य भत्तों की व्यवस्था प्रशासनिक मद से कर ली गई। सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के तहत ही प्रशासनिक मद के नाम से एक परसेंट का बैंक ड्राफ्ट भी भेजने का निर्देश सभी डीपीआरओ को दे दिए गए। मगर इतने से भी तसल्ली नहीं हुई तो पंचायतीराज निदेशक डीएस श्रीवास्तव ने दो प्रतिशत धन का बैंक ड्राफ्ट भेजने का दूसरा आदेश भी जारी कर दिया। मगर अब वह कह रहे हैं कि प्रशासनिक मद में धन ही उपलब्ध नहीं है लिहाजा इस परियोजना लागत का छह प्रतिशत धन राज्य स्तर पर उपलब्ध होना चाहिए।

विभाग के सूत्रों के अनुसार निदेशक डीएस श्रीवास्तव ने 12 जुलाई 2011 को समस्त डीपीआरओ को पत्र लिखकर कहा था कि 31 मार्च 2009 में विमान व्यवस्था के क्रम में सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के तहत अनुमन्य पांच प्रतिशत प्रशासनिक मद की धनराशि से एक प्रतिशत धन का बैंक ड्राफ्ट स्टेट सैनिटेशन एण्ड हाइजिन एजूकेशन सेल के नाम तैयार कर निदेशालय को उपलब्ध कराएं। इसके पीछे निदेशक व विशेष सचिव ने यह तर्क दिया कि सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के तहत जिला परियोजना समन्वयक की तैनाती सेवा प्रदाता वीबग्योर एजेंसी के माध्यम से की गई है। इनके वेतन एवं भत्ते का भुगतान सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के प्रशासनिक मद से ही वहन किया जाना है। इसलिए राज्य स्वच्छता मिशन द्वारा प्रशासनिक मद की धनराशि को एक प्रतिशत के स्थान पर दो प्रतिशत धनराशि जिलों से राज्य स्तर पर प्राप्त किए जाने का निर्णय लिया गया है। जबकि इसके ठीक विपरीत विभाग के कुछ अफसरों व कर्मचारियों ने मुख्यमंत्री मायावती को पत्र लिख कर निदेशक के विरुद्ध यह आरोप लगाया है कि वीबग्योर एजेंसी के माध्यम से दो लाख रुपए प्रति व्यक्ति से रिश्वत लेकर 70 से भी अधिक लोगों की नियुक्तियां की गई हैं।

पंचायतीराज विभाग में प्रशासनिक मद के पैसों की चाहत अफसरों में किस प्रकार होती है इस बात से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि 30 मार्च 2011 को प्रस्तुत की जाने वाली सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान की समीक्षात्मक टिप्पणी में साफ-साफ कहा गया कि प्रदेश स्तर पर प्रशासनिक मद में धनराशि उपलब्ध न होने के कारण योजना के अनुश्रवण एवं मूल्यांकन में कठिनाइयां व्याप्त है। इसलिए परियोजना लागत का छह प्रतिशत अंश प्रशासनिक मद के रूप में राज्य स्तर पर उपलब्ध कराया जाना चाहिए। इससे तो यही लगता है कि अधिकारी विकास योजनाओं में भले ही रुचि न रखते हों मगर वे प्रशासनिक मद के रूप में मिलने वाले धन के लिए जरूर व्याकुल रहते हैं। शायद इसीलिए खासकर पंचायतीराज विभाग में यह शिकायतें भी ज्यादा तादाद में हैं कि जिला परियोजना समन्वयकों की नियुक्ति का मामला हो या फिर स्वच्छता कार्यक्रम में अवैध ढंग से विकास खंडों में कम्प्यूटर आपरेटरों की नियुक्ति हो सभी में प्रशासनिक मद का पैसा खर्च होने के बावजूद रिश्वत लेने के आरोप लगे हैं। प्रशासनिक मद में खर्च किए जाने वाले पैसों के बाबत डीएनए ने निदेशक डीएस श्रीवास्तव से प्रतिक्रिया जाननी चाही तो उन्होंने फोन ही नहीं उठाया और न ही एसएमएस का कोई जवाब दिया। प्रशासनिक मद के बारे में व्यय किए जा रहे पैसों को लेकर प्रमुख सचिव बीएम मीना ने अनभिज्ञता जाहिर की तथा कहा कि निदेशक की बात निदेशक ही जानें।

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