Tuesday 22 March 2011

मुलायम से खीझ नहीं मिटा पा रहीं मायावती

गुरुवार को पुलिस ने क्रूरता में नरमी बरती
गुरुवार को पुलिस ने क्रूरता में नरमी बरती



लखनऊ। सपा के 7, 8 और 9 मार्च को हुए उग्र आंदोलन के इतर गुरुवार का विरोध प्रदर्शन गांवों तक फैला तो वहीं पुलिसिया तांडव इस बार कम जरूर दिखाई पड़ा। यह शायद संसद तक उठे मुख्यमंत्री के खिलाफ विरोध की आवाज व कोर्ट की नोटिस का ही परिणाम था कि सरकार ने खुद को शर्मसार मानते हुए पुलिस को बर्बरता से बचने की सलाह दी हो। लेकिन जिस तरह से सरकारी स्तर पर सपाइयों से निपटने की तैयारियां चल रही थीं उससे तो साफ हो ही गया कि सपा मुखिया अपने इरादे में सफल रहे और बसपा नेत्री मुलायम से अपनी पुरानी खीझ सरकार में रहते नहीं निकाल पा रही हैं।

दरअसल मायावती की मुलायम के साथ राजनीतिक वैमनस्यता जगजाहिर है। उन्हें जब भी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने का मौका मिलता है वे अपनी पुरानी खीझ निकालने में ही पूरी की पूरी सरकारी ताकत झों देती हैं। जब-जब भी वे यूपी में सत्ता में आईं सपाइयों के लिए आफत बन कर आईं। पार्टी नेताओं का यह आरोप बिलकुल बेबुनियाद नहीं है कि उन्हें उत्पीड़न और प्रताड़ना के लिए सिर्फ सपाई ही नजर आते हैं। दूसरे दलों के प्रति उनका आक्रोश इतना उबाल नहीं मारता। दूसरे, मुख्य विपक्षी दल तथा बसपा को बार-बार चुनौती देना भी सरकार की मुखिया को नागवार गुजरता है तथा सीधे तौर पर सपाई ही उनके कोपभाजन का शिकार बनते हैं। राजनीतिक समीक्षक भी यह स्वीकार करते हैं कि सपा ही उन्हें चुनौती देने में सक्षम है और दूसरे दल इस काबिल नहीं कि वे सरकार के बराबर खड़े होकर विरोध के स्वर मुखर कर सकें। इसके साथ ही मुलायम और मायावती के बीच उपजे छत्तीस के आंकड़े कई मौकों पर इसे साबित करते रहे हैं।

गोरखपुर के अधिवेशन में सपा द्वारा घोषित तीन दिनी आंदोलन को जिस तरीके से सरकार के इशारे पर प्रशासन और पुलिस के अफसरों ने विफल बनाने की कोशिश की उससे नाराज मुलायम ने गुरुवार 17 मार्च को एक बार फिर विरोध प्रदर्शन करने का एलान किया था। इस बार इसे गांवों तक फैलाने का आदेश उन्होंने कार्यकर्ताओं को दिया था। पुलिस ने बैरीकेडिंग समेत तमाम उपाय जरूर किए थे मगर 7, 8 और 9 मार्च की तरह की हरकतों को अंजाम नहीं दिया। बड़े नेता उनके निशाने पर थे मगर पुलिस अफसर क्रूरता के साथ पेश नहीं आए। मगर लखनऊ में प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ सख्ती कर सरकार ने एक बार फिर वही खीझ निकाली जिससे मुख्यमंत्री मायावती अपने दिमाग से नहीं निकाल पा रही हैं।

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