Wednesday 2 March 2011

महिलाओं को काम देने में सरकार फिसड्डी

बड़बोलेपन से बाज नहीं आ रहे अफसर
मनरेगा में महिलाओं की भागीदारी सबसे कम
बड़बोलेपन से बाज नहीं आ रहे अफसरश्रीप्रकाश तिवारी
 यूपी में मनरेगा के चलते केन्द्र और राज्य के रिश्तों में दरार तो पैदा हुआ ही है, साथ ही अब तो अफसर इस मुद्दे पर राजनीति की भाषा भी बोलने लगे हैं। अधिकारी इस हद तक कहने का दुस्साहस कर रहे हैं कि केन्द्र, प्रदेश में मनरेगा की सफलता से चिढ़ता है। इसलिए उसे सारी कमियां उत्तर प्रदेश में ही दिखाई देती हैं। अफसरों का बड़बोलापन तब है जब सिर्फ यूपी में मनरेगा के तहत महिलाओं को काम देने में सरकार फिसड्डी साबित हुई है।

मनरेगा में महिलाओं की अनदेखी का खुलासा ग्राम्य विकास आयुक्त के पत्र से हुआ है जिसमें उन्होंने जिलाधिकारियों को लिखा है कि 33 प्रतिशत महिलाओं को रोजगार देने का प्राविधान है। अभी तक औसतन 18 प्रतिशत महिलाओं को ही कार्य मिल पा रहा है। महिलाओं की कम भागीदारी के प्रमुख कारणों को इंगित करते हुए कहा है कि उनका जाब कार्ड में नाम नहीं होता है। बैंक खाते अलग नहीं होते। पंचायतकर्मी महिलाओं को कम सहयोग करते हैं। कार्य स्थल पर अधिक संख्या में श्रमिकों के आने की दशा में महिलाओं को वापस किया जाता है। अवांछित लोगों के हस्तक्षेप के कारण महिलाओं को प्रताड़ित होना पड़ता है। उनके मजदूरी का भुगतान विलम्ब से किया जाता है। महिलाओं के बच्चों की देखरेख की सुविधा नहीं होती है। कुएं आदि के निर्माण में महिलाओं से काम ही नहीं लिया जाता है।

गौरतलब है कि इन दुश्वारियों के बाद भी राज्य सरकार यह खुशफहमी पाले है कि 100 प्रतिशत महिलाएं यह कहती हैं कि उनके परिवार को मनरेगा के पैसों से खाने-पीने का बेहतर इंतजाम हो जाता है। 17 प्रतिशत महिलाओं ने कहा है कि उन्हें रोजगार की तलाश में बाहर नहीं जाना पड़ता है। मनरेगा के पैसे बीमारी पर खर्च करती हैं। उन्हें अब जोखिम वाले कामों से भी छुटकारा मिला है। 67 प्रतिशत महिलाएं यह कहती हैं कि इस पैसे को वह कर्जे की किश्त भरने तथा 50 प्रतिशत महिलाओं ने बच्चों की शिक्षा पर धन खर्च करने की बात स्वीकार की है। अफसरों का यह बड़बोलापन महज कोई पहल न करने से है। पिछले चार साल में मनरेगा के आंकड़े देखें तो महिलाओं के विकास की पोल स्वत: खुल जाएगी। वर्ष 2006-07 में 16 प्रतिशत, 2007-08 में 15 प्रतिशत, 2008-09 में 18 प्रतिशत, 2009-10 में 21 प्रतिशत और 2010 -11 में 22 प्रतिशत महिलाओं को उत्तर प्रदेश में रोजगार मिला है। यही नहीं, सरकारी उदासीनता की वजह से सामाजिक असंतुलन के साथ-साथ क्षेत्रीय असंतुलन भी मनरेगा में देखने को मिला है। विभिन्न जिलों के अफसर यह स्वीकार करते हैं कि बुंदेलखंड, पूर्वाचल के कुछ जिलों के अलावां मनरेगा में महिलाओं की भागीदारी बिलकुल शून्य है। ग्राम प्रधानों, पंचायतकर्मियों तथा अन्य कारणों से दलित व वंचित वर्ग की महिलाएं भी मनरेगा से मुह मोड़ रही हैं। मनरेगा में महिलाओं की बढ़ती अरुचि व उनकी कम सहभागिता पर डीएनए ने जब ग्राम्य विकास विभाग के सचिव मनोज कुमार सिंह से उनकी प्रतिक्रिया जाननी चाही तो उन्होंने कहा कि बाद में बात करेंगे।

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