बुलंदशहर के कारागार अधीक्षक ने केंद्र को लिखा पत्र
कहा, उत्तराखंड जाने के लिए विवश किया जा रहा
कहा, उत्तराखंड जाने के लिए विवश किया जा रहा
राज्य सरकार बुलंदशहर के कारागार अधीक्षक दधिराम मौर्य के पीछे हाथ धो कर पड़ी है। उन्हें उत्तराखंड भेजने पर आमादा है। हाईकोर्ट का हस्तक्षेप नहीं होता तो सरकार कबका उत्तराखंड भेज चुकी होती। उनकी वरिष्ठता प्रभावित करने और दूसरे राज्य में आरक्षण का फायदा न मिलने की मंशा से उन्हें उत्तराखंड में जबरन धकेला जा रहा है।
बुलंदशहर के कारागार अधीक्षक राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग से लेकर राज्य के पिछड़ा वर्ग आयोग तक तथा केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार तक अपनी पीड़ा व्यक्त कर चुके हैं मगर उनकी कोई सुनने वाला नहीं है। कारागार अधीक्षक दधिराम ने डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट से बताया कि 2005 में सरकार ने राज्य कर्मचारियों के उत्तराखंड में आवंटन की प्रक्रिया शुरू की थी। जो सूची बनाई उसी के हिसाब से आवंटन की प्रक्रिया प्रारम्भ कर दी गई। बाद में वर्तमान सरकार ने अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों को भेजने का क्रम स्थगित कर अन्य पिछड़ा वर्ग के अधिकारी-कर्मचारी को भेदभाववश भेजना शुरू कर दिया। दधिराम ने डीओपीटी नार्थ ब्लॉक केंद्रीय सचिवालय के संयुक्त सचिव को भेजे पत्र में लिखा कि वह राज्य सेवा संवर्ग के अधिकारी हैं। उनका चयन अन्य पिछड़ा वर्ग की आरक्षित श्रेणी के तहत हुआ है तथा नवगठित उत्तराखंड राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग की श्रेणी में कनिष्ठता के आधार पर किया गया है। कारागार अधीक्षक ने कहा है कि रिजर्वेशन डिवीजन की राय एवं आरक्षण नीति के अनुसार आरक्षित श्रेणी के किसी भी व्यक्ति को उस राज्य में आरक्षण का लाभ तभी अनुमन्य होगा जब उसकी जाति उस राज्य की सूची में आरक्षित वर्ग में अंकित हो और वह उस राज्य का मूल निवासी हो। इससे तो उसकी वरिष्ठता ही प्रभावित हो जाएगी और वह इस पद पर रिटायर हो जाएगा। कारागार अधीक्षक ने केंद्रीय पिछड़ा वर्ग विभाग के निदेशक से यह भी कहा है कि पिछड़े वर्ग के कर्मचारियों के आश्रितों को भी उत्तराखंड में कोई फायदा नहीं मिलेगा। शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा। ऐसे कर्मचारियों को लाभ तभी मिलेगा जब कर्मचारी उत्तराखंड का मूल निवासी हो। दूसरे राज्य सरकार ने भी पिछड़े वर्ग के कर्मचारियों के साथ भेदभाव किया है। 29 जुलाई को सरकार ने जो शासनादेश इस सम्बंध में जारी किया है, पिछड़े वर्ग के बारे में कोई चर्चा ही नहीं की गई। दधिराम ने केंद्रीय पिछड़ा वर्ग विभाग से कहा है कि इससे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत प्रदत्त विधि के समक्ष समता के प्रावधान का खंडन होता है। उनके आवेदन पर विचार न कर जबरन उत्तराखंड भेजने के लिए विवश किया जा रहा है। इससे उनके आश्रितों को उत्तर प्रदेश की सेवाओं में नियुक्ति तथा शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में प्राप्त 27 प्रतिशत आरक्षण की सुविधा नहीं मिलेगी। दधिराम ने डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट को बताया कि सरकार का वश चले तो मुझे आज ही उत्तराखंड भेज दे। कोर्ट का मामला न होता तो अफसर लात मार कर भेज देते। सरकार चाह रही है कि मैं उत्तराखंड जाकर इसी पद पर रिटायर हो जाऊं।
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