सलाहकारों ने मैडम को संकट में डाला
सपाइयों ने अब बनाई बड़ी रणनीति
सूबे की मुखिया मायावती के सिपहसालार ही उन्हें आए दिन नई मुसीबत में डाल देते हैं। पता नहीं वे ऐसा कर किसको फायदा पहुंचाना चाहते हैं? उनकी करतूतों से तो नहीं लगता कि वे मैडम की राह में फूल बिछा रहे हैं। इससे तो विरोधी और सीना तान कर विरोध का बिगुल फूंक रहे हैं। सपाइयों को मुख्यमंत्री ने चुनौती देकर बैठे-बिठाए ही पंगा ले लिया। तीन दिन के लगातार आंदोलन के बाद सपाई खुद ही आराम के मूड में थे। सिपहसालारों को पता नहीं क्या सूझी कि उन्होंने मैडम से दूसरे दिन ही सपाइयों के मुखिया को चेतावनी दिलवा दी। अब तो दूसरे दल भी सड़कों पर उतरने का साहस दिखलाने लगे हैं।
कहते हैं कि राजा को सलाह देने वाला मंत्री अगर अच्छा कूटनीतिज्ञ है तो वह बड़े सलीके से राजपाट चलाता है। यहां यूपी में तो मुख्यमंत्री के आस-पास जितने मशविरा देने वाले हैं, शायद सूबे की मालकिन से जल्द से जल्द छुटकारा चाहते हैं। इसीलिए वे मैडम को गाहे-बगाहे ऐसा मंत्र देते रहते हैं ताकि सरकार की फजीहत हो और सरकार की मुखिया नए संकटों से घिरती रहें। उसका फायदा विरोधी दल उठाएं। आखिरकार वही हुआ जो मुख्यमंत्री के सिपहसालार चाहते थे। चार साल से फूंक-फूंक कर कदम रख रहीं और नापतौल कर बोल रहीं माया की भृकुटि तन ही गई। उन्होंने आव देखा न ताव, दे दिया विरोधियों को फर्जी लड़ने का प्रस्ताव। नतीजा तीन दिन तक सरकारी लाठी खाने के बावजूद सपाइयों ने फिर 17 मार्च को मैदान-ए-जंग का एलान कर दिया।
सपाइयों के एलान के साथ ही सरकारी महकमे में हड़कम्प मच गया है। शासन के आला अफसर बीते दो दिनों से सपाइयों से निपटने के लिए बैठक पर बैठक कर रहे हैं। उन्हें आखिर यह समझ नहीं आ रहा है कि वे कौन सी रणनीति बनाएं। वैसे भी 7,8 और 9 मार्च के जनांदोलन में जिस प्रकार पुलिस ने सिपहसालारों के इशारे पर तांडव मचाया उससे सपाई और उत्तेजित हो उठे हैं। नेताओं व कार्यकर्ताओं का ध्यान सिर्फ बसपा सरकार को जवाब देने में लगा है। वहीं सरकार दूसरे कामकाज को छोड़ सपाइयों से निपटने में अपना ज्यादातर वक्त खर्च कर रही है। सपा नेताओं का मानना है कि अच्छा हुआ मायावती ने चुनौती दे दी है। मैडम के सलाहकार भी इस समय अच्छी सलाह दे रहे हैं। इसी तरह उनके सिपहसालार सलाह देते रहें तो समाजवादी पार्टी का काम आसान हो जाएगा। वैसे भी अब विधानसभा चुनाव के लिए ज्यादा दिन नहीं बचे हैं। इससे कार्यकर्ता एकजुट तो रहेगा ही पार्टी नेतृत्व भी उन्हें इस संघर्ष के जरिए सत्ता तक पहुंचने के लिए ऊर्जा देता रहेगा। पार्टी के वरिष्ठ नेता अंबिका चौधरी का कहना है कि मायावती को शायद यह अनुमान नहीं रहा होगा कि समाजवादी पार्टी इतनी जल्दी इस चुनौती को स्वीकार कर लेगी। उन्हें इसका मूल्य चुकता करना ही पड़ेगा।
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