Wednesday 2 March 2011

सरकार का गांवों से टूट गया तार

डेढ़ दर्जन जिलों में ग्रामसभा की बैठकों से अनभिज्ञ सरकार
पंचायतों को स्वशासन की इकाई के रूप में सक्षम बनाने के सरकारी दावे सिर्फ हवाहवाई ही साबित हुए हैं। प्रदेश सरकार ने कभी यह सुध नहीं ली कि ग्राम पंचायतों में गठित समितियां काम कर भी रही हैं अथवा नहीं। विभिन्न विभागों की गतिविधियां गांवों में चल भी रही हैं कि नहीं। हालत यह है कि दर्जनभर जिले ऐसे हैं जहां ग्राम पंचायतों की किसी भी गतिविधियों की जानकारी सरकार के पास नहीं है।

राज्य सरकार लगातार यह दुहाई दे रही है कि गांवों में आर्थिक एवं सामजिक विकास से ही प्रदेश की तरक्की संभव है। आजादी के बाद सबसे पहले उत्तर प्रदेश में पंचायतीराज व्यवस्था लागू करने के उद्देश्य से संयुक्त प्रांत पंचायतराज अधिनियम 1947 पारित कर 1949 में गांव सभाओं की स्थापना की गई। सत्ता के विकेन्द्रीकरण के लिए गठित बलवंतराय मेहता समिति की संस्तुतियों के आधार पर 1961 में प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायतीराज व्यवस्था लागू करने के उद्देश्य से क्षेत्र समितियों तथा जिला परिषदों का गठन किया गया। राज्य सरकार का पंचायतीराज विभाग यह कहते थकता नहीं कि पंचायतों को स्वशासन की इकाई के रूप में सक्षम बनाना और उन्हें आर्थिक रूप से सुदृढ़ करना सरकार की प्राथमिकताओं में से एक है। इसके लिए 16 कार्य पंचायतों को हस्तांतरित किए गए हैं। विभिन्न विभागों की 10 गतिविधियों व योजनाओं के लिए ग्राम पंचायतों को धन दिया जा रहा है मगर वे कहां कितना खर्च कर रहे हैं सरकार के पास इसकी बिलकुल जानकारी नहीं है। मालूम हो कि राज्य सरकार गांवों में राजकीय नलकूप, हैंडपंप, चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, महिला एवं बाल विकास, युवा कल्याण, समाज कल्याण, पशुधन विभाग, कृषि, ग्राम्य विकास, प्राथमिक विालय, मातृ एवं शिशु कल्याण केंद्र आदि योजनाएं चल रही हैं। ताज्जुब की बात तो यह है कि विकास से सम्बंधित गठित डेढ़ दर्जन जिलों में ग्राम समितियों के किसी गतिविधि की जानकारी सरकार के पास नहीं है। विभाग की जानकारी के अनुसार वर्ष 2009-10 में गाजियाबाद, बुलंदशहर, महामायानगर, पीलीभीत, उन्नाव, छत्रपतिशाहूजी महराजनगर, सुलतानपुर, बलरामपुर, फतेहपुर, वाराणसी, महोबा, मऊ, इटावा जिले के किसी भी ग्राम पंचायत की बैठक की सूचना सरकार को नहीं प्राप्त हुई है। इसी प्रकार वर्ष 2009-10 में भी 14 जिलों इटावा, मऊ, महोबा, वाराणसी, फतेहपुर, बलरामपुर, सुलतानपुर, छत्रपतिशाहूजी महराजनगर, उन्नाव, पीलीभीत, फिरोजाबाद, महामायानगर, बुलंदशहर व गाजियाबाद के किसी भी ग्रामसभा की बैठकों की जानकारी राज्य सरकार के पास उपलब्ध नहीं है। इसी तरह सहारनपुर, आगरा, मथुरा, रामपुर, श्रावस्ती, प्रतापगढ़, मिर्जापुर, संतरविदासनगर, हमीरपुर, झांसी, ललितपुर व जालौन जिले के ग्राम पंचायतों में गठित समितियों की किसी भी गतिविधि की जानकारी पंचायतीराज विभाग के पास नहीं है। डेढ़ दर्जन जिलों में इस प्रकार की संवादहीनता पर पंचायतीराज निदेशक डीएस श्रीवास्तव ने इस प्रकार की किसी भी शिकायत से इंकार करते हुए कहा कि आप हमे लिखकर दे दीजिए मैं इसे दिखवा लूंगा। उल्लेखनीय है कि पंचायत स्तर पर सभी कार्यो में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत तथा जिला पंचायत स्तर पर छह समितियों की संस्तुतियों की व्यवस्था की गई है। इन समितियों के किसी भी गतिविधि की जानकारी सरकार के पास नहीं है।

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