2010 के कलेंडर में बच्चे कितने जन्मे पता नहीं
2009 के जन्म-मृत्यु रजिस्टर भी जमा नहीं हुए
यह कितना आश्चर्यजनक है कि पिछले कलेंडर वर्ष में यूपी में कितने बच्चों का जन्म हुआ और कितने लोगों की मृत्यु हुई है, जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण की सांख्यकीय रिपोर्ट सरकार के पास नहीं है? वर्ष 2010 यानि जनवरी 2010 से दिसंबर 2010 तक जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण की सांख्यकीय रिपोर्ट अभी तक मुख्य रजिस्ट्रार को सौंपी नहीं जा सकी है।
जिलों में बैठे अफसर कितने लापरवाह हैं इसकी मिशाल मुख्य रजिस्ट्रार व पंचायतीराज विभाग को पिछले वर्ष की सांख्यकीय रिपोर्ट न मिलने से देखने को मिली है। सरकारी सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक पंचायतीराज विभाग के निदेशक ने समस्त जिला पंचायतराज अधिकारियों को लिखे पत्र में कहा है कि जन्म एवं मृत्यु रजिस्ट्रीकरण नियमावली 2002 के नियम 4 के अनुसार मुख्य रजिस्ट्रार जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण हर साल सांख्यकीय रिपोर्ट राज्य सरकार को प्रस्तुत करता है। ऐसी स्थिति में यह आवश्यक है कि जनपद स्तर पर जिला पंचायतराज अधिकारी द्वारा ग्राम स्तर पर नामित सभी रजिस्ट्रार जन्म एवं मृत्यु, अर्थात ग्राम पंचायत अधिकारी व ग्राम विकास अधिकारियों के स्तर से चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग द्वारा निर्धारित रूपपत्रों पर वर्ष 2010 की सूचनाएं मुख्य चिकित्साधिकारी को 31 जनवरी 2011 तक अवश्य उपलब्ध करा दें। लेकिन तीन माह के बीत जाने के बाद भी जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण की सांख्यकीय रिपोर्ट सरकार को प्रस्तुत नहीं की जा सकी है। दरअसल सरकार को जब जरूरत पड़ती है तब ही यह आंकड़े बटोरने की खानापूर्ति की जाती है। वैसे भी जिलों से सही आंकड़े सरकार के पास नहीं आते हैं। सरकारी सूत्रों का कहना है कि आनन-फानन में मंगाए जाने वाली सांख्यकीय रिपोर्ट ज्यादातर विश्वसनीय होती ही नहीं है। जिस रूपपत्रों को भरकर ग्राम पंचायत अधिकारी या ग्राम विकास अधिकारी द्वारा भेजने की प्रक्रिया की जाती है वह सिर्फ खाना पूर्ति करने वाली ही होती है। गांव स्तर पर ये अधिकारी जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण की रिपोर्ट को रखने में हीलाहवाली करते हैं। पता चला है कि जिलों में ग्रामीण स्तर पर स्थानीय अधिकारी मनगढं़त संख्या भेज कर छुट्टी पा लेते हैं। पंचायतीराज अधिकारियों का कहना है कि यह आंकड़े महत्पूर्ण होते हैं। इन आंकड़ों से प्रदेश की प्रत्येक वर्ष बढ़ती जनसंख्या का पता चलता है। सरकार को भी विकास कार्यो में इससे सहूलियत मिलती है। गौरतलब है कि प्रत्येक जन्म रजिस्टर, मृत्यु रजिस्टर और मृत जन्म रजिस्टर को रजिस्ट्रार अपने कार्यालय में रखता है। सबसे चौकाने वाली बात यह है कि जिलों में अभी तक 2009 तक के जन्म-मृत्यु पंजीकरण रजिस्टर जमा नहीं हो पाए हैं। जब दो साल के पीछे का रजिस्टर इकट्ठा नहीं हो पाए हैं तो 2010 का सांख्यकीय रिपोर्ट राज्य सरकार को कैसे भेज सकें होंगे? जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण की सांख्यकीय रिपोर्ट पर पंचायतीराज विभाग के सचिव आलोक कुमार ने शासन की मीटिंग में व्यस्तता का बहाना बता कर टाल गए तो डीजी हेल्थ एसपी राम ने भी अपने को शासन की मीटिंग में व्यस्त बताया।
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