सरकार दे रही कंजूसी का खिताब
मार्च में पैसों के समर्पण का चला खेल
यूपी में सरकार का भय सरकारी विभागों पर इस कदर सिर चढ़ कर बोल रहा है कि विभिन्न विभागों के अफसरों में सबसे बड़ा कंजूस कौन की मानो प्रतियोगिता सी चल रही हो। मार्च महीने में तो इस बात की होड़ लगी थी कि कौन सा विभाग अपने खर्चे में कटौती कर सरकार को सबसे ज्यादा पैसे समर्पण करता है। विकलांग कल्याण विभाग जो पूरी तरीके से सरकारी अनुदान पर आश्रित है, उससे भी सारे पैसे सरकार ने समर्पण करा लिए और उसे कंजूसी करने में अव्वल का सर्टिफिकेट थमा दिया।
विकलांग कल्याण विभाग के सूत्र बताते हैं कि यह एक ऐसा विभाग है जहां सारी की सारी प्रक्रिया सरकार से मिले धन पर ही चलती है। विभाग के पास खुद का कोई कमाई का जरिया नहीं है। यूपी जैसे विशाल प्रदेश में विकलांगों के कल्याण के लिए बने इस विभाग के पास अगर धन नहीं होगा तो कमजोर और लाचार लोगों के लिए क्या काम कर पाएंगे। सरकार वैसे भी विकलांगों के कल्याण के लिए पैसे नापतोल कर देती है। विभाग के एक अधिकारी ने अपना नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि शासन में बैठे अफसर दबाव बनाते रहे कि पैसे कम खर्च करो और साल के अंत में ज्यादा से ज्यादा पैसे सरकारी खजाने में वापस करो। सूत्रों ने बताया कि वित्तीय वर्ष 2010-11 में कार्यालय व्यय के लिए 27,429 में से 15,301 वापस कराए। लेखन सामग्री के मद में मिले 35,600 रुपयों में से 23,395 रुपए, टेलीफोन के 15,000 में से 904 रुपए, कम्प्यूटर व स्टेशनरी को मिले 29,480 में से 14,850 रुपए तथा कार्यालय फर्नीचर पर मिले 12,000 रुपए में से 6,945 रुपए समर्पित करवा लिए।
यही नहीं, शासन में बैठे बड़े अधिकारियों ने सरकारी कर्मचारियों के वेतन मद में मिले धन को भी सरेंडर करवा लिया। विकलांग कल्याण विभाग के कर्मचारियों को वेतन के मद में 10 लाख, 40 हजार रुपयों में से 1,45,535 रुपए समर्पित करा लिए गए। कर्मचारियों को महंगाई मद में मिले 3,80,000 रुपयों में से 22,525 रुपए विभाग ने सरकार को समर्पित कर दिए। इसी प्रकार यात्रा भत्ता में मिले 11,000 रुपयों में से 5,113 रुपए विभाग को वापस करने पड़े। अन्य भत्ते के रूप में मिले 1,60,000 में 47 हजार रुपए भी वापस हो गए। सरकार ने कर्मचारियों को 40 प्रतिशत एरियर भुगतान के लिए 2,80,000 रुपए आवंटित किए थे।
मगर उसमें से भी 63,201 रुपए समर्पित करा लिए। प्रदेश में तकरीबन 40 लाख विकलांगजन हैं। मगर अभी तक विकलांग कल्याण विभाग अपने मुख्य दायित्वों को पूरा करने में नाकारा ही साबित हुआ है। यूपी में ही विकलांगों के सम्बंध में बनी राष्ट्रीय नीति का पालन ईमानदारी के साथ आज तक नहीं किया गया और न ही राज्य में बनने वाली किसी भी सरकार ने इसमें कोई रुचि ली है। विकलांगों से सम्बंधित सामाजिक, शैक्षणिक एवं आर्थिक विकास की योजनाएं सिर्फ कागजों पर बनती और बिगड़ती रहती हैं। मुक व बधिरों की शिक्षा एवं पुनर्वास के लिए बने विालय सिर्फ नाम के चल रहे हैं। पुनर्वास के लिए या तो सरकार धन नहीं देती है या फिर उन पैसों को अफसर डकार जाते हैं। अब तो हालात यहां तक आ गए हैं कि विभाग चलाने के लिए मिले पैसों में भी सरकार कटौती करने लगी है।
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