Friday 1 April 2011

मुफलिसी में इतिहास पढ़ रहे भाजपाई

पासी समाज को इंसाफ दिलाएंगे : राजनाथ
 मुफलिसी में भाजपाइयों के सामने ज्ञानबोध के अलावा करने को कुछ रहा भी नहीं। संगठन कमजोर, नेता कमजोर और जहां कार्यकर्ता तक कमजोरी महसूस कर रहे हों वहां ज्ञान ही ऐसी कुंजी है जो दर्द कुछ कम करने का काम करती है। गुरुवार को लखनऊ स्थित महाराजा बिजली पासी किला में पासी नेताओं ने भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह समेत सूबे के तमाम भाजपाइयों को पासी समाज की वीरांगनाओं और वीरों के इतिहास का पाठ पढ़ाया।

मंच के ऊपर और पंडाल में नीचे बैठे भाजपा नेता यह मानकर चल रहे थे कि राजनाथ पासी समाज के इतिहास से परिचित होंगे। मगर उनके आश्चर्यबोध का ठिकाना उस समय नहीं रहा जब खुद राजनाथ बोलने के लिए खड़े हुए और यह कहा कि अंग्रेजों ने पासी समाज के लोगों को जरायम पेशे वाली जाति बता दिया। आज तक इतिहास में यही पढ़ाया जा रहा है। लानत है इस देश पर 50 साल से हुकूमत चलाने वाली कांग्रेस व दूसरी पार्टियों पर जिसने इसका कभी रंचमात्र तक विरोध ही नहीं किया। यूपी में बैठी महारानी मायावती दलितों की मसीहा बनती हैं और दलित जाति को अपमानित करने वाला यह संबोधन उनको दिखाई और सुनाई नहीं पड़ रहा है। उन्होंने एलान भी कर दिया कि जिस दिन भाजपा की सरकार बनेगी और जो भी मुख्यमंत्री बनेगा उससे मैं पार्टी का वरिष्ठ नेता होने के नाते तीन महीने के अन्दर पासी समाज के पथ प्रदर्शक गंगा बख्श सिंह रावत का स्मारक बनाने को कहूंगा। इसके साथ ही पासी समाज को कलंकित करने वाले विषयों को दूर करने के लिए आवाज उठाऊंगा।

मायावती द्वारा सामाजिक न्याय समिति की सिफारिशों को रद्द करने तथा समिति द्वारा तय किए गए अति दलितों व अति पिछड़ों के आरक्षण के पीछे उनकी राजनीतिक सोच की आलोचनाओं का जवाब देते हुए राजनाथ ने उस दौरान अपनी इस पहल का पूरा किस्सा ही सुना डाला। उन्होंने कहा कि पार्टी के वरिष्ठ नेता हुकुम सिंह को बुलाकर एक समिति गठित करने तथा अब तक आरक्षण के फायदे से वंचित अति दलित और अति पिछड़े समाज को इसका लाभ दिलाने के लिए ही तीन सदस्यीय सामाजिक न्याय समिति का गठन किया था। इसके पीछे सिर्फ यह सोच थी कि वंचित लोगों को भी आर्थिक आरक्षण के साथ राजनीतिक आरक्षण का भी लाभ मिले। तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री रमापति शास्त्री व दयाराम पाल ने रिपोर्ट बनाने में अथक मेहनत की। समिति ने रिपोर्ट भी समय से पेश कर दी और भाजपा सरकार ने इसे लागू भी कर दिया था। मगर दलितों की मसीहा बनने वाली मायावती ने मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठते ही इसे रद्द कर दिया।

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