Tuesday 12 April 2011

हिसाब लाओ, पैसा ले जाओ

पिछले वर्ष के खर्च का ब्यौरा नहीं
32 करोड़ 75 लाख की सशर्त स्वीकृति

 राज्य सरकार गरीबों की सेहत को लेकर अब तक सिर्फ जुगाली करती रही है। दवाओं के मद में मिलने वाला पैसा मंत्रियों, अफसरों, डॉक्टरों और दवा माफियाओं की जेब में जाता रहा है। लखनऊ में दो-दो सीएमओ की हत्या से उपजे हालात व इस हत्याकांड को लेकर कटघरे में खड़े दो-दो मंत्रियों के बाद से तो सरकार और चौकन्नी हो गई है। गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले असंगठित क्षेत्र के परिवारों की चिकित्सा स्वास्थ्य बीमा योजना के लिए राज्य सरकार ने 32 करोड़ 75 लाख रुपए इस शर्त पर स्वीकृत किया है कि पहले पिछले साल वाला हिसाब दिखाओ फिर यह पैसा ले जाओ।

ग्राम्य विकास विभाग के प्रमुख सचिव मुकुल सिंहल ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना की क्रियान्वयन के लिए राज्य के कोटे का पैसा जारी करते हुए कहा है कि अप्रैल से जून तक का 32 करोड़ 75 लाख रुपए स्वीकृत कर दिया गया है। अफसरों को खबरदार करते हुए श्री सिंहल ने कहा है कि इन पैसों को खर्च करने में जल्दबाजी बिलकुल भी न दिखाएं नहीं तो एक-एक पाई का हिसाब लिया जाएगा। इतना चौकन्नापन शायद लखनऊ में हुए सीएमओ हत्याकांड और दवा बजट में हुई वित्तीय अनियमिताताओं के मद्देनजर दिख रहा है। गरीबों के इलाज का ढोल पीटने वाली सरकार में ही सबसे ज्यादा अनियमितताओं की शिकायतें आई हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना में हर बार की तरह इस बार भी असंगठित क्षेत्र के मजदूरों और उनके परिवार के पांच सदस्यों के इलाज की कागजी जुगाली की गई है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के प्रथम चरण की बात करें तो 15 जिलों में 8,34,871 स्मार्ट कार्ड बांटे गए थे जिनमें से सिर्फ 63,741 गरीबों को ही इलाज की सुविधा मयस्सर हो पाई। इसमें 259 निजी अस्पतालों ने अफसरों से साठगाठ कर अपना उल्लू सीधा किया। योजना के आंकड़े बताते हैं कि द्वितीय चरण में प्रदेशभर में तकरीबन 1000 से ज्यादा निजी अस्पतालों को गरीबों के पैसों पर डाका डालने के लिए छूट दे दी गई। अफसरों की हीलाहवाली की ही वजह से ही बीमा कम्पनियों के पास भुगतान के लिए अभी भी 1525.53 लाख रुपए लंबित हैं। जबकि इसके ठीक विपरीत बीमा कम्पनियों को 2138.70 लाख रुपए का दावा अस्पतालों द्वारा किया गया था। सरकारी सूत्रों का कहना है कि प्रदेश के 71 जिलों के 9,953,905 बीपीएल परिवार तथा ग्रामीण क्षेत्रों के 887,845 बीपीएल परिवारों को सरकार स्मार्ट कार्ड ही नहीं दे पाई। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तृतीय चरण का भी हाल बुरा रहा है। अब जबकि राज्य सरकार गरीबों के इलाज के लिए जो पैसे दे रही है तो उसे पहले से ही क्यों दुरुपयोग की आशंका सता रही है? ऐसा न होता तो प्रमुख सचिव अपने शासनादेश में यह न लिखते कि पैसे तो सरकार दे रही है मगर फिर भी धन के आहरण आवश्यकता होने पर ही किया जाएगा। वित्तीय स्वीकृति के सापेक्ष एकमुश्त पैसे नहीं मिलेंगे। तीन महीने में से सिर्फ दो महीने के खर्च के लिए ही धन मिलेगा। दरअसल सरकार इसलिए डर रही है कि पहले दिए पैसों का हिसाब-किताब जिलों के अफसरों ने नहीं दिया है। इस बात का जिक्र करते हुए प्रमुख सचिव ने विभिन्न अफसरों को कड़ा निर्देश जारी करते हुए कहा है कि 32 करोड़ 75 लाख रुपए इस प्रतिबंध के अधीन स्वीकृत किए जा रहे हैं कि पिछले वर्ष की स्वीकृत धनराशि के उपभोग की सूचना को प्रत्येक दशा में वे उपलब्ध करा देंगे।

1 comment:

  1. एक जरुरी पोस्ट, हम कितने भ्रष्ट सरकार के हांथों में है |

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