Sunday 10 April 2011

दहशत में हैं नए नवेले प्रमुख सचिव


मनरेगा के 125 करोड़ हिसाब से खर्च करने की दे रहे हिदायत

ग्राम्य विकास विभाग के नए-नए प्रमुख सचिव बने मुकुल सिंहल सरकार से इतने दहशत में हैं कि वे अपने नीचे के अफसरों को फूंक-फूंक कर चलने की हिदायत दे रहे हैं। और कह रहे हैं कि मनरेगा में राज्य के कोटे के पैसों को अधिकारी तभी खर्च करें जब उसकी जरूरत हो। मनरेगा में मिलने वाले केंद्र के पैसे को मटियामेट करने वाली राज्य सरकार अपने हिस्से वाले पैसे का कितना वजन समझती है? सरकार ने छह अप्रैल को मनरेगा में अपने कोटे से 125 करोड़ रुपए स्वीकृत किए हैं जरूर मगर जिस प्रकार प्रमुख सचिव ने उसे खर्च करने के तरीके बताए हैं, उससे तो नहीं लगता कि अफसर इसे खर्च करने का दुस्साहस भी जुटा पाएंगे।

प्रमुख सचिव मुकुल सिंहल ने ग्राम्य विकास आयुक्त समेत सभी अफसरों को एक पत्र लिखकर अवगत कराया है कि राज्य सरकार ने वित्तीय वर्ष 2011-12 में मनरेगा में अप्रैल से जून तक के खर्च के लिए 125 करोड़ रुपए की स्वीकृति दे दी है। यह तभी मिलेगा जब केंद्र का पैसा आ जाएगा। प्रमुख सचिव के यह कहने का मतलब बिलकुल साफ है कि जब केंद्र पैसा दे ही देगा तो इसके खर्च करने की जरूरत नहीं पड़ेगी और यह कहने को हो जाएगा कि राज्य सरकार अपने कोटे के पैसे देने से नहीं चूकी। उन्होंने कहा कि 125 करोड़ के आहरण की आवश्यकता होने पर ही यह राशि दी जाएगी। वह भी एकमुश्त नहीं मिलेगी। कोषागार से धन निकालने का तरीका भी बिलकुल अलग होगा। यह कई चरणों में निकाला जाएगा। दो महीने की आवश्यकता से अधिक पैसा नहीं निकलेगा।

गौरतलब है कि मनरेगा अधिनियम के तहत यदि किसी को रोजगार नहीं मिलता तो उसे बेरोजगारी भत्ता, मनरेगा के पैसों से हो रहे निर्माण में प्रयुक्त सामग्री अंश का 25 प्रतिशत तथा राज्य रोजगार गारंटी परिषद पर होने वाले व्यय को राज्य सरकार अपनी तरफ से पैसे देती है। इतनी मदों पर पैसे देने में राज्य सरकार कोताही बरतती है। जिस 125 करोड़ रुपए को खर्च करने के सरकार अनेकों इंतजाम बता रही है उसमें समय-समय पर जारी मितव्ययिता संबंधी शासनादेश व वित्तीय नियमों के पालन का हवाला भी दिया है। प्रमुख सचिव ने अधिकारियों से यह भी कहा है कि 125 करोड़ रुपए को वह राज्य सरकार द्वारा वहन किए जाने वाली मदों पर ही खर्च करेंगे। कितना आश्चर्यजनक है कि राज्य सरकार केंद्र का पैसा अपने मद में खर्च करे तो ठीक मगर वह केंद्र के मद में करे तो ठीक नहीं। मालूम हो कि राज्य सरकार की ज्यादातर मद वाली योजनाओं में मनरेगा के पैसों से ही काम चलाया जा रहा है। सिंचाई, सड़क, पानी, वर्षा जल संचय तथा ग्रामसभा सचिवालय से लेकर तमाम ग्रामीण क्षेत्र की योजनाएं मनरेगा के पैसों से ही चलाई जा रही हैं। प्रमुख सचिव ने राज्य सरकार के पैसों को खर्च करने के लिए यह भी हिदायत दी है कि यदि कोई धनराशि बचती है तो उसे नियमानुसार वित्त विभाग को समर्पित किया जाएगा। उन्होंने वित्तीय नियमों के पालन करने की जिम्मेदारी वित्त नियंत्रक व अपर आयुक्त लेखा ग्राम्य विकास पर थोपी है।

1 comment:

  1. श्री प्रकाश तिवारी जी आपका ये पोस्ट सभी को पढनी चाहिए अपने तो पोल खोल कर दी है मनरेगा में होनेवाली धांधली की |
    अच्छी रचना के लिए धन्यवाद |
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