Thursday 7 April 2011

ये भ्रष्टाचार तो शिष्टाचार बन गया

भ्रष्टाचार के मूल में जाए बिना निराकरण नहीं
यूपी में ही भ्रष्टाचारियों की लंबी जमात

 देश में व्याप्त भ्रष्टाचार ने शिष्टाचार का रूप धारण कर लिया है। संभव है कि प्रसिद्ध समाज सेवी अन्ना हजारे के आमरण अनशन से केंद्र सरकार जागे और जन लोकपाल विधेयक संसद में लाकर भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग का एलान करे। राजनेता, नौकरशाह और बड़े-बड़े व्यापारियों का गठजोड़ इतना मजबूत है कि इतने आसानी से भ्रष्टाचार के खिलाफ विधेयक का पारित हो जाना बड़ा मुश्किल है। लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री तथा लोकायुक्त की परिधि में मुख्यमंत्रियों को घसीटना तो और भी चुनौतीपूर्ण है।

डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट ने भ्रष्टाचार के सवाल पर जब प्रसिद्ध चिंतक गोविंदाचार्य से पूछा तो उन्होंने कहा कि एक तरफ जहां देश की आधी आबादी आर्थिक अभावों में जिंदगी घिसट रही है वहीं देश के भ्रष्ट राजनेताओं, नौकरशाहों और बड़े व्यापारियों के लाखों करोड़ रुपए विदेशी बैंकों में जमा हैं। मगर भ्रष्टाचार के मूल में जाए बिना उस पर नियंत्रण संभव नहीं। उन्होंने कहा कि अफसर घूस लेने से चूकेगा नहीं और राजनेता राजकोष का अपहरण करेगा जरूर।

अभी बीते 9 व 10 अक्टूबर 2010 को भोपाल में सभी प्रदेशों के लोकायुक्तों का एक सम्मेलन हुआ था। सम्मेलन में दिल्ली के लोकायुक्त के नेतृत्व में तीन सदस्यीय एक उपसमिति गठित की गई थी कि वह राज्यों में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए मुख्य लोकायुक्त और लोकायुक्त विधेयक की रिपोर्ट तैयार करे। इस समिति में यूपी के लोकायुक्त न्यायमूर्ति एनके मेहरोत्रा और मध्यप्रदेश के उप लोकायुक्त भी शामिल थे। समिति ने विधेयक सम्बंधी अपनी रिपोर्ट भी केंद्रीय कानून मंत्री वीरप्पा मोइली को सौंप दी। इसे संसद के बीते सत्र में पेश किया जाना था मगर सदन के पटल पर नहीं रखा जा सका। भ्रष्टाचार में केंद्र सरकार के हाथ जितने सने हैं वही हाल यूपी में मौजूदा सरकार और यहां के भ्रष्ट अफसरों व राजनेताओं का है। लोकायुक्त ने वर्ष 2001 से 2010 तक की जितनी भी रिपोर्ट कार्रवाई के लिए राज्यपाल से लेकर मुख्य सचिव को भेजे हैं उनमें बड़े-बड़े मंत्रियों से लेकर नौकरशाही की बड़ी-बड़ी हस्तियां भ्रष्टाचार के दल-दल में हैं। यूपी की ही बात करें तो पूर्व खादी ग्रामोोग मंत्री राजाराम पांडेय, पूर्व ग्रामीण अभियंत्रण एवं लघु सिंचाई मंत्री मारकंडेय चन्द्र, पूर्व शिक्षा मंत्री डॉ. नैपाल सिंह, पूर्व महिला कल्याण मंत्री राजेन्द्र सिंह राणा तथा पूर्व मंत्री नरेन्द्र कुमार गौण के साथ मौजूदा मंत्री धर्म सिंह सैनी समेत कइयों के हाथ भ्रष्टाचार के कीचड़ से सने हैं। वर्ष 2007 में तत्कालीन विधायक शिशुपाल सिंह यादव व एमएलसी सुधाकर वर्मा, 2006 में पूर्व मंत्री अवधेश प्रसाद के साथ तत्कालीन प्रमुख सचिव समाज कल्याण, पूर्व प्रमुख सचिव आर रमणी व पूर्व प्रमुख सचिव आरसी श्रीवास्तव के खिलाफ लोकायुक्त ने विशेष प्रतिवेदन राज्यपाल व सरकार को भेजे थे। इसी प्रकार 2009 में तत्कालीन प्रमुख सचिव वन, 2008 में तत्कालीन प्रमुख सचिव समाज कल्याण, विशेष सचिव व निदेशक, 2004 में तत्कालीन अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक पावर कारपोरेशन, 2004 में तत्कालीन विधायक बृजेन्द्र पाल सिंह, 2002 में तत्कालीन आयुक्त ग्राम्य विकास, 2002 में ही तत्कालीन प्रमुख सचिव चिकित्सा, 2001 में तत्कालीन एलडीए उपाध्यक्ष दिवाकर त्रिपाठी, 2000 में तत्कालीन प्रमुख अभियंता सिंचाई के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगे। 2009 में तत्कालीन प्रमुख अभियंता डीएस सरावत व 2009 में बसपा सांसद कैसर जहां के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। लोकायुक्त न्यायमूर्ति एनके मेहरोत्रा ने यहां तक कहा कि यदि सरकार भ्रष्टाचार मुक्त प्रदेश बनाने के उद्देश्य की पूर्ति चाहती है तो लोकायुक्त द्वारा भेजे प्रतिवेदनों पर विचार किया जाना चाहिए।

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