Thursday, 20 October 2011

5 करोड़ का प्लाट 90 लाख में बेचा


लघु उोग निगम के अफसरों का खेल, 600 ट्रक कोयला गायब कर बाजार में बेचा

यूपी में लघु उोग भले ही पनप नहीं पा रहे हों मगर लघु उोग निगम लिमटेड के अफसर जरूर मालामाल हो गए हैं। निगम में लौह-इस्पात योजना देख रहे अजय शर्मा ने बिना गारंटी के मेसर्स अनुज स्टील को पांच करोड़ रुपए का लोहा उधार दे दिया। वह काम छोड़ कर भाग गया। निगम अपने पास से छह करोड़ स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया को भुगतान कर रहा है। यही नहीं साहब ने 600 ट्रक कोयला गायब करवा कर बाजार में बिकवा दिया। निगम को बेचने पर आमादा अफसर ने आगरा में लघु उोग निगम का पांच करोड़ रुपए का प्लाट 90 लाख में प्राइवेट हाउसिंग कम्पनी के हाथों बिकवा दिया।

कानपुर के रवि शुक्ला ने निगम अफसर अजय शर्मा की शिकायत मुख्यमंत्री मायावती से की है। उन्होंने मुख्यमंत्री से कहा है कि लघु उोग निगम लघु उोग इकाइयों को कच्चा माल उपलब्ध कराता है। इसमें कोयला, लोहा व पीतल आदि शामिल हैं। निगम में लौह-इस्पात की योजना देख रहे अजय शर्मा ने बिना गारंटी के मेसर्स अनुज स्टील को पांच करोड़ का लोहा उधार दे दिया। वह वर्ष 2000 में काम छोड़ कर भाग गया जिससे निगम को छह करोड़ का नुकसान हुआ। यह पैसा निगम द्वारा स्टील अथॉॅरिटी ऑफ इंडिया को दिया जा रहा है। शर्मा के रसूख के चलते कोई कार्रवाइ्र नहीं हुई अलबत्ता उसे पुरस्कार में कोयला की योजना अलग से दे दी गई। कोयला का इंचार्ज बने शर्मा ने यहां भी अपना हाथ दिखाना शुरू कर दिया। वर्ष 2006 में कोयले के एमओयू होल्डर्स मेसर्स दयाल फ्यूल को सड़क से ट्रकों के द्वारा कोयला लाने के लिए 600 फार्म -31 उपलब्ध करा दिए गए। मेसर्स के साथ मिलकर शर्मा द्वारा 600 ट्रक कोयला गायब करवा कर बाजार में बिकवा दिया गया। जिसका हिसाब शर्मा ने अभी तक नहीं दिया है। उन्होंने लघु उोग इकाइयों से कोई कर नहीं लिया था जिससे स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया द्वारा निगम से व्यापार कर के मद में 1.50 करोड़ वसूले गए जो उसे अपने पास से भुगतान करना पड़ा। इस हरकत पर डिप्टी एकाउंटेंट जनरल ने ऑडिट में साफ लिखा कि शर्मा ने निगम का 1.90 करोड़ का नुकसान किया है। मगर इसे दबा दिया गया।

निगम के उप मुख्य प्रबंधक लेखा शर्मा प्रॉपर्टी अनुभाग के भी प्रभारी हैं। उन्होंने आगरा के संजय प्लेस में स्थित निगम के पांच करोड़ रुपए वाले प्लाट को 90 लाख रुपए में प्राइवेट हाउसिंग कम्पनी के हाथों बिकवा दिया। शर्मा ने सर्वोच्च न्यायालय में चल रहे इस प्रकरण को वापस कराकर उसकी रजिस्ट्री हाउसिंग सोसाइटी के पक्ष में करा दी। मुख्यमंत्री से अजय शर्मा के खिलाफ शिकायत पर निगम के प्रबंध निदेशक राज मंगल ने डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट से कहा कि मुझे अभी चार महीने आए हुआ है। इन मामलों में शासन स्तर पर जांच चल रही है। कोयले वाले मामले में सीबीआई जांच चल रही है।लघु उोग निगम के प्रबंध निदेशक राज मंगल पहले ऐसे दलित अफसर हैं जिन पर सरकार मेहरबान है। प्रमुख सचिव कुंवर फतेह बहादुर के चहेते साहब को यूपिका और हैंडलूम का भी प्रभार सौंप दिया गया है। 1981 बैच के पीसीएस अफसर को निगम में फैले भ्रष्टाचार पर फोन से बात करना पसंद नहीं है। कहते हैं कि बात करनी हो तो कानपुर आइए।

Wednesday, 19 October 2011

ऐक्टिविस्ट को सूचना आयुक्त ने बनाया बंधक


वयोवृद्ध आरटीआई ऐक्टिविस्ट से माफीनामा लिखवाया

यूपी में सूचना के कानून को बंधक बना चुकी राज्य की मौजूदा सरकार के साथ-साथ सूचना आयोग में सरकार द्वारा नियुक्त सूचना आयुक्त भी कानून को बंधक बनाने का दुस्साहस करने लगे हैं। मंगलवार को राज्य सूचना आयुक्त बृजेश कुमार मिश्रा ने तो हद ही कर दी तथा अपने संवैधानिक अधिकारों का अतिक्रमण करते हुए आरटीआई ऐक्टिविस्ट 73 वर्षीय वयोवृद्ध तुलसी बल्लभ गुप्ता को न सिर्फ पुलिस के जरिए बंधक बनाया बल्कि दबाव डालकर उलटे उनसे माफीनामा भी लिखवा लिया।

आरटीआई ऐक्टिवस्टिों के साथ ज्यादती का यह पहला मामला नहीं है। ऐक्टिविस्ट तुलसी बल्लभ गुप्ता का मामला मंगलवार को सूचना आयुक्त बृजेश कुमार मिश्र की कोर्ट में लगा था। उन्होंने लखनऊ के जिला विालय निरीक्षक द्वितीय के जनसूचना अधिकारी से प्राइमरी स्कूलों की सूची मांगी थी जिनमें अध्यापक-अध्यापिकाओं की नियुक्ति होनी थी। उसमें कितने पद आरक्षित हैं तथा कितने सामान्य वर्ग के हैं? अध्यापिकाओं की पात्रता व चयन प्रक्रिया संबंधी अनेक सूचनाएं मांगी थी। मगर जनसूचना अधिकारी ने कोई सूचना उपलब्ध नहीं कराई। वयोवृद्ध कार्यकर्ता ने सूचना दिलाने के लिए सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाया। मंगलवार को सूचना आयुक्त बृजेश मिश्रा की कोर्ट में यह मामला सुनवाई के लिए लगा था। श्री मिश्र ने उनसे पूछा कि जो आवेदन जिला विालय निरीक्षक के यहां की है उसमें सूचना मांगने का 10 रुपए की शुल्क रसीद कहां है? जवाब में श्री गुप्ता ने बताया कि उन्होंने 10 रुपए नगद दिया था मगर जनसूचना अधिकारी ने रसीद नहीं दी। इसी बात को लेकर सूचना आयुक्त और वादी में नोक-झोंक होने लगी। श्री गुप्ता ने बताया कि वे गुस्से में कुछ ज्यादा ही तेज स्वर में अपनी दलील देने लगे। इस बात से नाराज होकर सूचना आयुक्त ने तत्काल पुलिस को बुलाकर कस्टडी में लेने का आदेश दे दिया। इसके साथ ही आदेश लिखाने लगे कि मैने शोर मचाया और एक ही प्रकरण पर कई आवेदन दे रखा है।

श्री गुप्त ने बताया कि सूचना आयुक्त ने उन्हें एक शपथपत्र दायर करने को कहा है कि उनके सारे वादों की सुनवाई एक साथ की जाय। मगर यह आरटीआई की मंशा के विपरीत है। सूचना आयुक्त अफसरों के दबाव में सूचनाएं नहीं दिलवाना चाहते हैं। इसके पहले राज्य सूचना आयुक्त सुनील कुमार चौधरी से भी ऐक्टिविस्ट का वाद-विवाद माध्यमिक शिक्षा परिषद के स्कूलों में होने वाली अध्यापकों की भर्ती में शिक्षकों की पात्रता व प्रारूप संबंधी मांगी गई सूचना पर हो चुका है। डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट ने जब सूचना आयुक्त बृजेश कुमार मिश्र से इस संबंध में प्रतिक्रिया के लिए सम्पर्क किया तो उन्होंने बताया कि शिकायतकर्ता को शपथपत्र दायर करने को कहा गया है जिससे एक ही विषय पर अलग-अलग सुनवाई न की जा सके। श्री मिश्र ने बताया कि इस ऐक्टिविस्ट ने सैकड़ों मामले दायर कर रखे हैं। इससे दूसरे मामलों की सुनवाई में अड़चन पैदा होती है। दूसरे उसने सुनवाई के दौरान अनुशासनहीनता भी करने की कोशिश की। बाद में लिखित माफीनामे के बाद उसे छोड़ दिया गया।

Tuesday, 18 October 2011

अन्ना इफेक्ट या माया इफेक्ट!



चार सालों बाद लोकायुक्त व सरकार की बदली धारणा पर सवाल
लगातार चार सालों तक उदासीनता के साए में दिन काटने वाले लोकायुक्त न्यायमूर्ति एनके मेहरोत्रा के चेहरे पर अचानक तैरने वाली विजयी मुस्कान जितनी चमक रही है ठीक उतनी ही बसपानेत्री की सरकार भी चहक रही है। चार साल तक बेदाग घूम रहे मंत्रियों को दागी घोषित कर लोकायुक्त वाहवाही लूट रहे हैं तो वहीं सरकार भी अपना दागदार चेहरा बेदाग करने में जुटी है। महज मुठ्ठीभर भ्रष्ट मंत्रियों को किनारे लगा कर न तो सरकार भ्रष्टाचार की कालिख से बच सकती है और न ही अपने दो-चार फैसलों से फूलकर कुप्पा हो रहे लोकायुक्त कोई भ्रष्टाचार मुक्त उत्तर प्रदेश की बुनियाद ही रखने जा रहे हैं। अगर ऐसा होता तो नौकरशाहों के विरुद्ध भ्रष्टाचार की शिकायतों को न्यायमूर्ति मेहरोत्रा गंभीरता से लेते और सरकार उनकी सिफारिशों पर तत्परता से कार्रवाई करती।

सत्ता के गलियारों में इस बात की जबरदस्त चर्चा है कि जिस तरह और जिस अतिवेग से भ्रष्टाचार में लिप्त मंत्रियों को उनके पद से हटाने की सिफारिश लोकायुक्त कर रहे हैं उससे तो यही लगता है कि उन पर समाजसेवी अन्ना का इफेक्ट कम बल्कि माया का इफेक्ट कुछ ज्यादा ही दिखाई दे रहा है। वरना यह इफेक्ट पिछले चार सालों में भी लोकायुक्त और बसपा सरकार के बीच दिखना चाहिए था। लगता है कि लोकायुक्त ने 2010 के अपने वार्षिक प्रतिवेदन में जो सुझाव मुख्यमंत्री को दिए थे सरकार उसके पालन में आखिरकार जुट ही गई है। उन्होंने मुख्यमंत्री को भेजे अपने प्रतिवेदन में लिखा कि अब ऐसा समय आ गया है कि यदि किसी सरकार को आम जनता का विश्वास हासिल करना है और अपनी साख बचानी है तो उसे भ्रष्टाचार के खिलाफ तत्काल प्रभाव से कोई न कोई कठोर कार्रवाई करनी ही होगी। अब कोरी बयानबाजी पर्याप्त नहीं होगी। चार सालों बाद सरकार के बारे में लोकायुक्त की बदली धारणा और इसके ठीक विपरीत विधानसभा चुनाव के ऐन वक्त पर बसपा सरकार का बदला आचरण बड़ी सहजता के साथ समझा जा सकता है। सवाल यह उठता है कि सिर्फ भ्रष्ट मंत्रियों के ही खिलाफ लोकायुक्त और सरकार क्यों अत्यधिक सक्रिय हैं।

..मगर भ्रष्ट नौकरशाहों के प्रति दोनों के नजरिए में इस प्रकार की सक्रियता क्यों नहीं है? अगर ऐसा न होता तो लोकायुक्त द्वारा सरकार को भेजे गए 2007 में तत्कालीन प्रमुख सचिव समाज कल्याण, पूर्व प्रमुख सचिव आर रमणी, पूर्व प्रमुख सचिव आरसी श्रीवास्तव, पीसीएस रमाशंकर सिंह, 2007 में ही पीलीभीत के तत्कालीन जिलाधिकारी, आईएएस करनैल सिंह, 2008 में शाहजहांपुर के तत्कालीन जिलाधिकारी, निदेशक समाज कल्याण, 2009 में तत्कालीन वन विभाग के प्रमुख सचिव, 2010 में तत्कालीन प्रमुख सचिव समाज कल्याण, विशेष सचिव समाज कल्याण, राज्य म निषेध अधिकारी, चंदौली के तत्कालीन जिलाधिकारी, बांदा के तत्कालीन जिलाधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की जाती। नौकरशाहों के खिलाफ कार्रवाई पर लोकायुक्त ने डीएनए से कहा कि उनके विरुद्ध जांच में देर की जाने लगती है और मामला कोर्ट में जाने से कोई फैसला नहीं हो पाता है। मगर लोकायुक्त के पास ही नौकरशाहों के खिलाफ ढेरों शिकायतें जांच के लिए लम्बित पड़ी हैं।

Thursday, 13 October 2011

नियम-कानून?.. बनाने वाले ही जानें

संरक्षित स्मारकों के प्रतिबंधित क्षेत्र में अवैध निर्माण पर बोले डीएम
 कमिश्नर ने देखेंगे कह कर पल्ला झाड़ा
सरकारी इमारतें भी अवैध

समेट्री चिरैया झील के आस-पास प्रतिबंधित इलाके में अवैध आलीशान इमारतें, व्यावसायिक काम्प्लेक्स, बड़ी-बड़ी मोटर व ऑटोमोबाइल कम्पनियों के शोरूम तथा बेशकीमती दुकानों का संरक्षक पुरातत्व विभाग न सिर्फ अपनी नाकामियों पर पर्दा डाले बैठा है बल्कि गैरकानूनी तरीके से बनाए गए भवनों को हटाने के लिए सरकारी तंत्र की मदद लेने का पहल भी नहीं कर रहा है। विभाग सिर्फ अवैध निर्माणकर्ताओं को नोटिस जारी कर सरकारी मशीनरी या फिर कोर्ट की सक्रियता का बाट जोह रहा है। पुरातत्व विभाग तो उदासीन है ही लखनऊ के कमिश्नर, डीएम, नगर आयुक्त तथा डीआईजी तक गैरकानूनी तरीके से बने भवनों को हटाने में बेबश हैं।

दरअसल केन्द्रीय संरक्षित चिरैया झील के 100 मीटर वाला प्रतिबंधित क्षेत्र मूल रूप से हजरतगंज में आता है। यहां ज्यादातर बड़े व्यावसायियों की दुकानें, होटल, व्यावासायिक काम्प्लेक्स, मोटर गाड़ियों के शोरूम व अन्य प्रतिष्ठान हैं। इस नाते अवैध निर्माणकर्ताओं के सम्बंध राजनेताओं, नौकरशाहों व पुलिस प्रशासन से होने के कारण पुरातत्व विभाग बौना पड़ जाता है और वह स्वयं इसमें रुचि लेना बंद कर देता है। विभाग और प्रशासन की सांठ-गांठ का फायदा उठाते हुए अवैध निर्माणकर्ता पैसे व अन्य तरकीबों से अपना बचाव करते हैं। संरक्षित चिरैया झील के प्रतिबंधित क्षेत्र में विभाग ने मोहम्मद दाऊद के सप्रू मार्ग स्थित अवैध निर्माण, सिटी फाइनेंस भवन, दुर्गमा रेस्टोरेंट, प्रबंधक मिशनरीज ऑफ चैरिटी ट्रस्ट, प्रेम नगर निवासी धनराज का भवन संख्या 22, अशोक ठुकराल, सर्वोदय कालोनी निवासी सीएस श्रीवास्तव, उत्तम आहुजा, वीरेन्द्र गुप्ता निखलेश पैलेस अशोक मार्ग, परमजीत सिंह, अशोक मार्ग के पीछे अजय गुप्ता, राहुल गुप्ता, जवाहर लाल जायसवाल, सप्रू मार्ग पर जैदीप माथुर, महिन्द्रा शोरूम, अशोक टावर, तेज कुमार, पुलिस अधीक्षक गोपनीय शाखा के सामने श्रवण प्लाजा, शाहनजफ मार्ग स्थित हिन्दुस्तान मोटर्स, सर्वोदय कालोनी निवासी श्रीमती गीता मिश्रा, प्रेमनगर निवासी धरराज व राजीव, सप्रू मार्ग पर डा. रवि दुबे, शुक्ला बिजनेस प्वांइट, सर्वोदय कालोनी के एके घई, राणा प्रताप मार्ग पर परमार हाऊस को नोटिस जारी किया है।

आरटीआई के जरिए पुरातत्व विभाग व प्रशासन की लापरवाही उजागर करने वाले अधिवक्ता एसपी मिश्र का कहना है कि नियम और कानून सिर्फ कागजों पर बनाए गए हैं। केन्द्रीय संरक्षित स्मारक शाहनजफ इमामबाड़ा व सिमेट्री चिरैया झील के प्रतिबंधित क्षेत्र में बने अवैध निर्माणों को लेकर पुरातत्व विभाग हाथ पर हाथ धरे बैठा ही है साथ ही लखनऊ के मंडलायुक्त व डीएम ने भी खामोशी ओढ़ रखी है। डीएनए ने जब इस सम्बंध में मंडलायुक्त प्रशांत त्रिवेदी से बात की तो उन्होंने विवाद से बचते हुए कहा कि हम इसे देखेंगे। वहीं लखनऊ के डीएम ने कहा कि अवैध निर्माण नहीं हट पाएंगे। पुरातत्व विभाग द्वारा स्थापित नियम और कानून पर उन्होंने कहा कि नियम-कानून बनाने वाले ही इसे जानें।

Wednesday, 12 October 2011

पैसों पर टिका पुरातत्व का अस्तित्व!

जवाहर लाल जायसवाल ने जवाहर होटल से बना लिया होटल इंडिया अवध
अवैध होटलों, बेशकीमती दुकानों व व्यावसायिक काम्प्लेक्सों पर छह साल से लटकी है तलवार

 पुरातत्व विभाग को जब तक पैसे नहीं मिलते हैं तब तक वह केन्द्रीय संरक्षित स्मारक की प्रतिबंधित सीमा में बने अवैध निर्माणधारकों पर कार्रवाई की तलवार लटकाए रहता है। संरक्षित स्मारक शाहनजफ इमामबाड़ा व चिरैया झील के 100 मीटर के अंदर बने अवैध बेशकीमती दुकानों, होटलों और करोड़ों की लागत वाले आवासों पर पुरातत्व विभाग बीते कई वर्षो से तलवार लटकाए है। उसने तकरीबन 70 से अधिक अवैध निर्माणधारकों को नोटिस भी जारी किया है तथा कुछेक के विरुद्ध एफआईआर भी दर्ज करा रखी है। पता चला है कि इन नोटिस की आड़ में पुरातत्व विभाग के अफसरों की दुकानें खूब फल-फूल रही हैं।

पुरातत्व विभाग ने सप्रू मार्ग स्थित जवाहर लाल जायसवाल द्वारा निर्मित अवैध निर्माण को भी नोटिस जारी किया है। 14 अगस्त 2005 को जारी नोटिस में विभाग के अधीक्षण पुरातत्वविद ने कहा है कि जवाहर लाल द्वारा कराया गया निर्माण संरक्षित स्मारक सिमेट्री चिरैया झील के प्रतिबंधित क्षेत्र में आता है। जो प्राचीन स्मारक एवं पुरास्थल व अवशेष 1959 के नियम 33 के प्राविधानों के विपरीत है। गौरतलब है कि पुरातत्व विभाग ने यह नोटिस जवाहर जायसवाल को छह साल पहले जारी की थी। विभाग के सूत्रों का कहना है कि जब नोटिस से जुड़े पक्षों द्वारा अधिकारियों की मिजाजपुर्सी में कमी की शिकायत आने लगती है तो अफसर अपना शिकंजा और कसने लगता है। ठीक इसी प्रकार का हथकंडा अफसरों ने जवाहर जायसवाल के विरुद्ध अपनाया तो मामला हाईकोर्ट ले जाना पड़ा। विभाग ने जब कोर्ट का रास्ता दिखाया तो जवाहर जायसवाल भी सीधे रास्ते पर आ गए। वर्ष 2009 में कोर्ट ने यथास्थिति का आदेश जारी कर दिया। मगर इसके बावजूद ऐसा खेल रचा गया कि कोर्ट का आदेश धरा का धरा ही रह गया। मसलन पुरातत्व विभाग ने जवाहर होटल के नाम से बने जिस अवैध निर्माण के खिलाफ नोटिस जारी की तथा अदालत तक मामला गया, उसी होटल का नाम विभागीय अफसरों की सांठ-गांठ के चलते होटल इंडिया अवध हो गया। इस होटल को बीते नवरात्र में चालू भी कर दिया गया। यही नहीं मेसर्स हिन्दुस्तान मोटर्स, श्रवण प्लाजा, तेज कुमार, अशोक टावर, सप्रू मार्ग स्थित महिन्द्रा शो रूम के मालिक मेसर्स नारायण आटोमोबाइल जैसे अवैध निर्माणकर्ता हों तो पुरातत्व विभाग के अफसरों की दुकानें खूब फलेंगी भी और फूलेंगी भी। विभाग के अधीक्षण पुरातत्वविद ने इन सभी को नोटिस जारी करते हुए कहा है कि उनके द्वारा कराया गया अवैध निर्माण संरक्षित स्मारक सिमेट्री चिरैया झील के प्रतिबंधित क्षेत्र में आता है जो प्राचीन स्मारक एवं पुरास्थल व अवशेष नियम 1959 के नियम 33 क के प्राविधानों के विपरीत है। विभाग ने नोटिस में विधिवत स्पष्ट किया है कि इसके उल्लंघन के दोषी को तीन महीने के कारावास अथवा पांच हजार रुपए तक अथवा दोनों दंड दिए जाने का प्रावधान है।

आरटीआई ऐक्टिविस्ट व अधिवक्ता एसपी मिश्र का कहना है कि सहारागंज माल के अलावा 70 से अधिक अवैध निर्माणधारक हैं जिसमें होटल से लेकर बड़ी-बड़ी बेशकीमती दुकानें तथा करोड़ों की लागत से बने लोगों के आवास हैं। पुरातत्व विभाग को जब तक पैसे नहीं मिलता है तब तक वह कार्रवाई की तलवार अवैध इमारतों पर लटकाए रहता है। मसलन इस क्रम में विभाग द्वारा जारी की गई 70 से अधिक नोटिस से पता चलता है कि वह अपनी जिम्मेदारियों को इससे ज्यादा नहीं निभा सकता है। उप अधीक्षण पुरातत्वविद इंदु प्रकाश ने डीएनए को बताया कि विभाग ने संरक्षित स्मारक के प्रतिबंधित क्षेत्र में बने अवैध निर्माणधारकों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज कराया है। सिर्फ प्राथमिक रिपोर्ट दर्ज कराना पर्याप्त है, के सवाल पर वह कहते हैं कि हमारी अपनी सीमाएं हैं। विभाग के पास स्टाफ नहीं है। कमिश्नर, डीएम, नगर आयुक्त व डीआईजी समेत सभी को 2005 में ही सूचित किया गया था। यहां तक अवैध निर्माण को भी गिराने का आदेश जारी किया गया है। मगर यह काम मेरा नहीं है।

Tuesday, 11 October 2011

वाह! झूठ और फरेब का ‘सहारा’

संरक्षित शाहनजफ इमामबाड़ा और चिरैया झील का बदल डाला मानचित्र
सहारागंज मॉल को मिले अनापत्ति प्रमाण पत्र पर खड़ा हुआ विवाद
पैसों के चक्कर में सरकारी अफसर नियम-कानून को खूंटी पर टांग देते हैं। सही को गलत और गलत को सही ठहराने में जुट जाते हैं। यदि पैसे हैं तो पैसों के बल पर झूठ और फरेब करना कितना आसान हो जाता है इसका उदाहरण लखनऊ शहर में बने सबसे आलीशान मार्केट सहारागंज मॉल को देखने और उसकी सच्चाई जानने के बाद पता चल जाता है। सहारागंज मॉल की बुनियाद रखने में पैसों ने इतना कमाल दिखाया कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने आस-पास का मानचित्र ही बदल कर रख दिया। सहारागंज मॉल से केन्द्रीय संरक्षित स्मारक शाहनजफ इमामबाड़ा की दूरी 102 मीटर और चिरैया झील की दूरी 69 मीटर बताकर खुद ही नए विवाद को जन्म दे दिया है। अब तो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के निदेशक द्वारा कार्टन होटल के मालिक और सहारागंज के निर्माण को दिए गए अनापत्ति प्रमाण पत्र पर भी सवाल खड़े हो गए हैं। इसके साथ ही पुरातत्व विभाग का दोहरा मापदंड भी सामने खुलकर आ गया है कि उसने केन्द्रीय संरक्षित स्मारक के आस-पास बने दूसरे अवैध निर्माण को तो नोटिस जारी कर दिया मगर सहारागंज मॉल के निर्माण पर विभागीय अफसर मुंह खोलने तक तैयार नहीं हैं।

सहारागंज मॉल के निर्माण को लेकर भारतीय पुरातत्व विभाग कटघरे में खड़ा हो गया है। अधिवक्ता व आरटीआई ऐक्टिविस्ट एसपी मिश्र ने विभाग के जनसूचना अधिकारी से संरक्षित इमारत शाहनजफ इमामबाड़ा और संरक्षित चिरैया झील से सहारागंज मॉल की दूरी, संरक्षित इमारत का दायरा व चारों ओर प्रतिबंधित क्षेत्र, सहारागंज मॉल निर्माण को अनापत्ति प्रमाण पत्र देने की प्रक्रिया व अधिकारी आदि का नाम बताने समेत अन्य अवैध निर्माण की जानकारी मांगी थी। श्री मिश्र का कहना है कि जो जानकारी पुरातत्व विभाग ने मुहैया कराई है वह बेहद चौकाने वाली है। लगता है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक ने 21 जून 2002 को अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करते समय सारे नियम व कानून ताक पर रख दिए। सिर्फ सहारागंज मॉल के निर्माण की ऊंचाई 22.50 मीटर तक प्रतिबंधित करते हुए अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी कर दिया। अधिवक्ता का कहना है कि पुरातत्व विभाग के केन्द्रीय महानिदेशक को यह अनापत्ति प्रमाण पत्र तो जारी ही नहीं करना चाहिए था। चूंकि यह लखनऊ मंडल का मामला है इसलिए मंडल के अधीक्षण पुरातत्वविद को ही अधिकार है कि वह अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करे। मगर उन्होंने दबाव के चलते स्थानीय अफसरों के अधिकारों को छीनते हुए इसलिए अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी कर दिया कि अगर कहीं मंडल स्तर पर संरक्षित इमारत के आस-पास की दूरी की नाप-जोख की जाएगी तो आलीशान मॉल की योजना खटाई में पड़ जाएगी।

श्री मिश्र ने पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित चिरैया झील व शाहनजफ इमामबाड़े से सहारागंज माल की दूरी क्रमश: 69 मीटर व 102 मीटर बताए जाने पर कड़ी आपत्ति व्यक्त करते हुए कहा है कि विभाग द्वारा दोनों की दूरियां जान-बूझ कर ज्यादा दर्शाई गई हैं। इससे लगता है कि बड़ा खेल खेला गया है। आरटीआई द्वारा दिए जवाब में पुरातत्व विभाग के केन्द्रीय महानिदेशक द्वारा जो अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी किया गया है उसमें सहारागंज मॉल या उसके मालिक का कहीं जिक्र तक नहीं है। प्रमाण पत्र में कार्टन होटल व उसके मालिक के नाम का उल्लेख किया गया है। विभाग की इस पूरी प्रक्रिया पर इसलिए भी संदेह हो रहा है कि अगर संरक्षित इमारत के चारों तरफ 100 मीटर का क्षेत्र प्रतिबंधित है और चिरैया झील से सहारागंज माल की दूरी सिर्फ 69 मीटर ही (जैसा कि विभाग ने गूगल सर्च और विभागीय नाप-जोख के आधार पर दूरी दर्शाई है) है तो चिरैया झील की दूरी को क्यों नजरअंदाज कर दिया गया? डीएनए ने जब लखनऊ मंडल के उप अधीक्षण पुरातत्वविद् इंदू प्रकाश से यही सवाल किया तो वे चुप्पी साध गए। उन्होंने कहा कि यह सवाल आप केन्द्रीय महानिदेशक से पूछिए। मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकता हूं। यह अनापत्ति प्रमाण पत्र दिल्ली से जारी किया गया है।

Sunday, 9 October 2011

मलाईदार विभागों के अफसर नहीं गए विदेश


40 में से 24 पीसीएस अफसर अमेरिका रवाना
महिला अफसरों ने भी जाने से किया इनकार


स्थान - अमौसी एयरपोर्ट, समय- सायं छह बजे . दिन - रविवार .. 24 पीसीएस अफसर अमेरिका जाने के लिए पूरी तैयारी के साथ हवाई जहाज में सवार होने के लिए कर रहे इंतजार! परदेश जा रहे अफसरों की तैयारी बिलकुल देशी तरीके वाली! किसी के बैग में देशी घी के लड्डू तो कोई लइया-चना से लेकर सत्तू तक साथ में लिए जा रहा है! मगर यह क्या? ट्रेनिंग के लिए अमेरिका जा रहे 40 अफसरों के बैच में सिर्फ 24 अफसर ही एयरपोर्ट पहुंचे। माजरा न जाने वाले अफसरों के मलाईदार विभागों से समझ में आया। सबसे चौकाने वाली बात तो यह है कि पुरुष पीसीएस अफसर तो पुरुष ठहरे किंतु मलाईदार विभागों से जुड़ीं दो महिला अफसरों ने अमेरिका जाने से इनकार कर दिया।

यूपी एकमात्र ऐसा राज्य है जहां पीसीएस अफसरों को विदेश में प्रशिक्षण के लिए भेजा जाता है। मजे की बात यह है कि विदेश प्रशिक्षण का कार्यक्रम मायावती सरकार ने ही शुरू किया था। इससे भी बड़ी दिलचस्प बात यह है कि यूपी का ही एक रिटायर्ड आईएएस अफसर अमेरिका में पीसीएस अफसरों को गुड गर्वनेंस के गुर सिखाता है और बदले में राज्य सरकार से करोड़ों ऐंठता है। ट्रेनिंग में 20 वर्ष की सेवा कर लेने वाले अफसर ही जाते हैं। रविवार सायं छह बजे अमौसी एयरपोर्ट से 24 पीसीएस अफसरों का दल रवाना हो गया। अफसर पहले दिल्ली जाएंगे फिर रविवार रात 12 बजे फ्लाइट पकड़ कर ड्यूक सेंटर फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट डरहम अमेरिका पहुंचेंगे।

जानकारी के अुनसार प्रशिक्षण के दौरान पीसीएस अफसरों को अमेरिका द्वारा एक्सपोजर विजिट भी कराई जाएगी। प्रशिक्षण 10 अक्टूबर से 21 अक्टूबर तक चलेगा। नवंबर 2007 में 40 अफसरों का पहला बैच विदेश प्रशिक्षण के लिए गया था। अब तक 200 अफसरों को प्रशिक्षण के लिए विदेश भेजा जा चुका है। इस बार भी 40 अफसरों को प्रशिक्षण के लिए अमेरिका जाना था मगर 24 अफसर ही जाने के लिए तैयार हुए। सूत्रों का कहना है कि 16 उन अफसरों ने अमेरिका जाने से इनकार कर दिया जो मलाईदार विभागों से जुड़े हैं। मसलन कानपुर विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष ओएन सिंह, गाजियाबाद के नगर आयुक्त बसंत लाल गुप्ता, यमुना एक्सप्रेस वे नोएडा के उप मुख्य कार्यपालक अधिकारी आरके सिंह, ग्रेटर नोएडा के उप मुख्य कार्यपालक अधिकारी पीसी गुप्ता समेत 16 अफसरों ने अमेरिका जाने से इनकार कर दिया। पीसी गुप्ता का नाम लगातार तीसरी बार विदेश जाने के लिए भेजा गया मगर वे नहीं गए। श्री गुप्ता कैबिनेट सचिव के करीबी बताए जाते हैं। इसके अलावा यह पहला बैच है जिसमें कोई महिला अफसर नहीं जा रही है। संयुक्त आवास आयुक्त शकुंतला गौतम और महिला कल्याण विभाग की संयुक्त सचिव भावना श्रीवास्तव ने विदेश जाने से साफ-साफ मना कर दिया। पीसीएस संवर्ग के अफसरों में यह जबरदस्त चर्चा है कि अमेरिका न जाने के पीछे उनकी मंशा साफ है और वे तथाकथित वसूली के चक्कर में इतना बड़ा मौका छोड़ रहे हैं। पीसीएस अफसर व आईएएस अधिकारी विजय शंकर पांडेय के भाई अजय शंकर का अमेरिका जाने से इनकार किए जाने का मामला भी पंचम तल से जोड़ कर देखा जा रहा है।

राज्य सरकार पीसीएस अफसरों के प्रशिक्षण पर करोड़ों रुपए खर्च करती है मगर इसके बावजूद कई एक अफसर जाने से मना कर देते हैं। नियुक्ति विभाग के सयुंक्त सचिव योगेश्वर राम ने बताया कि एक अफसर के विदेश में प्रशिक्षण पर ढाई से तीन लाख रुपए खर्च होते हैं। 71 हजार रुपए तो टिकट का ही लग जाता है। डेढ़ लाख रुपए ट्यूशन पर खर्च होते हैं।

भ्रष्टाचार के पुराने पुरोधा हैं निदेशक

पंचायतीराज विभाग के निदेशक ने पत्नी की कम्पनी को मालामाल किया
लखनऊ। पंचायतीराज विभाग में भ्रष्टाचार का मकड़जाल बुनने वाले निदेशक व विशेष सचिव डीएस श्रीवास्तव के हाथ बहुत पहले से ही भ्रष्टाचार के कीचड़ में सने हैं। यूपी इलेक्ट्रॉनिक्स कारपोरेशन में तत्कालीन प्रबंध निदेशक व आईटी एवं इलेक्ट्रॉनिक्स विभाग के विशेष सचिव साहब ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए न सिर्फ अपनी पत्नी की संस्था मे. इन्नोटेक इन्फोकॉम सोल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड को फायदा पहुंचाया बल्कि कम्प्यूटर प्रशिक्षण कार्यक्रम के तहत 33,04,800 रुपए के फर्जी भुगतान का षड्यंत्र भी रचा था। तत्कालीन प्रबंध निदेशक व मौजूदा पंचायतीराज निदेशक को वित्तीय अनियमितता व अपने पद के दुरुपयोग के चलते 21 दिसंबर 2009 को निलंबित कर दिया गया था।

पीसीएस संवर्ग के 1979 बैच के अफसर दया शंकर श्रीवास्तव को तत्कालीन राज्यपाल ने 21 दिसंबर 2009 को यह कहते हुए निलंबित कर दिया था कि उन्होंने झूठ बोला कि मे. इन्नोटेक इन्फोकॉम सोल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी से उनकी पत्नी श्रीमती शशी श्रीवास्तव का कोई लेना-देना नहीं है। जबकि उनकी पत्नी कम्पनी में निदेशक थीं। शासन की नीतियों के विरुद्ध अपनी पत्नी की संस्था को 2.50 करोड़ की धनराशि से खोले गए कम्प्यूटर प्रशिक्षण केन्द्रों को उन्होंने हस्तांतरित कर दिया। 2.50 करोड़ का सम्यक उपयोग भी नहीं किया गया। मौजूदा पंचायतीराज निदेशक व इलेक्ट्रॉनिक्स कारपोरेशन लि. के तत्कालीन प्रबंध निदेशक ने विभिन्न विभागों के ई-टेंडरिंग से सम्बंधित कार्यो का भुगतान इलेक्ट्रॉनिक्स कारपोरेशन लि. के बजाय मे. इन्नोटेक इन्फोकॉम सोल्यूशन प्राइवेट लि. को करा कर वित्तीय अनियमितताएं की थीं। यही नहीं तत्कालीन प्रबंध निदेशक ने अपनी पत्नी की संस्था को अनुचित लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से प्रशिक्षण हेतु पूर्व में बनाई गई सभी फ्रेंचाइजीज को बंद कर बनाई गई नई फ्रेंचाइजी मे. इन्नोटेक कम्पनी को भुगतान किए जाने का नियम विरुद्ध आदेश भी दिया। कम्प्यूटर प्रशिक्षण से प्राप्त होने वाली आय का 95 प्रतिशत भाग अपनी पत्नी की कम्पनी के पक्ष में तथा पांच प्रतिशत भाग यूपी इलेक्ट्रॉनिक्स कारपोरेशन लि. के पक्ष में देने का आदेश 22 दिसंबर 2008 को किया था। इसके अलावा शासकीय विभागों से 33,04,800.00 रुपए का फर्जी भुगतान अपनी पत्नी की कम्पनी को कराए जाने का षड्यंत्र भी तत्कालीन प्रबंध निदेशक ने रचा था। नियुक्ति विभाग ने राज्यपाल की ओर से 21 दिसंबर 2009 को जारी अपने आदेश में निलंबन की सजा डीएस श्रीवास्तव को सुनाई थी। नियुक्ति विभाग के प्रमुख सचिव व जांच अधिकारी कुंवर फतेह बहादुर सिंह ने कहा था कि मे. इन्नोटेक इन्फोकॉम सोल्यूशन प्राइवेट लि. कम्पनी श्रीमती शशी श्रीवास्तव के नाम से रजिस्ट्रार कम्पनी के आफिस में 11 दिसंबर 2008 को पंजीकृत हुआ है। इसमें डीएस श्रीवास्तव की पत्नी निदेशक हैं। प्रमुख सचिव ने इस प्रकरण में श्री श्रीवास्तव द्वारा शासन को झूठी सूचना देने का दोषी पाया था।गोयल को मुक्त नहीं कर रहे मीना

लखनऊ। पंचायतीराज विभाग का बेड़ा गर्क करने में और कई अफसर फुरसत के साथ जुटे हैं। एक विशेष सचिव ऐसे हैं कि उनका पिछले 29 सितंबर को ही विभाग से ट्रांसफर हो गया था। मगर उनकी योग्यता और कमर्ठता को देखते हुए विभाग के प्रमुख सचिव बीएम मीना ही उन्हें कहीं और नहीं जाने देना चाहते हैं। विभाग के विशेष सचिव राजेन्द्र कुमार गोयल ट्रांसफर होने के बावजूद न तो जाना चाहते हैं और न ही उन्हें विभाग के मुखिया मीना साहब जाने देने की इजाजत दे रहे हैं।

Wednesday, 5 October 2011

‘40 परसेंट कमीशन मांग रहे हैं विशेष सचिव’

शिकायतकर्ता के पास कमीशन मांगने वाली ऑडियो सीडी
कमीशन मांगने का मामला हाईकोर्ट पहुंचा
 पंचायतीराज विभाग में सिर्फ एक ही डीएस श्रीवास्तव नहीं हैं बल्कि ऐसे कइयों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लग रहे हैं। विभाग के एक दूसरे विशेष सचिव व बीआरजीएफ का कामकाज देख रहे राजेन्द्र गोयल ने तो कमीशन लेने की खातिर सारी हदें ही पार कर दीं। उन्होंने क्षमता विकास कार्यक्रम के तहत कराए गए प्रशिक्षण कार्य में सेवा प्रदाता एजेंसियों से खुलेआम डेढ़ करोड़ रुपए कमीशन मांगा है। खुल्लम-खुल्ला 40 प्रतिशत कमीशन मांगने की बात अब हाईकोर्ट तक पहुंच गई है। याचिकाकर्ता ने कोर्ट में वह ऑडियो सीडी भी साक्ष्य के तौर पर प्रस्तुत की है जिसमें विशेष सचिव गोयल साहब 40 परसेंट कमीशन एडवांस मांग रहे हैं।

याचिकाकर्ता इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरप्राइज साइंस इंजीनियरिंग एंड मैनेजमेंट ने पंचायतीराज विभाग के विशेष सचिव व बीआरजीएफ के प्रोजेक्ट डायरेक्टर राजेन्द्र गोयल के खिलाफ न सिर्फ इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में कमीशन लेने व अन्य भ्रष्टाचार सम्बंधी याचिका प्रस्तुत की है बल्कि मुख्यमंत्री मायावती से भी इसकी शिकायत की है। मुख्यमंत्री को भेजे शिकायती पत्र में शिकायतकर्ता संस्था ने कहा है कि केंद्र सरकार द्वारा संचालित पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि में करोड़ों रुपए राज्य को मिल रहा है। वर्तमान में इस योजना को विशेष सचिव एवं परियोजना निदेशक राजेन्द्र गोयल देख रहे हैं। विशेष सचिव परियोजना के तहत काम कर रहीं सेवा प्रदाता एजेंसियों को काम के एवज में अभी तक आंशिक रूप से ही धन का भुगतान किया गया है। जब सेवा प्रदाता एजेंसियों ने पंचायतीराज विभाग के प्रमुख सचिव बीएम मीना से इस बाबत सम्पर्क किया तो उन्होंने श्री गोयल से मिलकर उनके द्वारा बताई गई शर्तो के अनुसार कार्य करने के लिए कहा। एजेंसी द्वारा यह आरोप लगाने से साफतौर पर स्पष्ट हो जाता है कि प्रमुख सचिव भी कहीं न कहीं इस मामले में लिप्त हैं। गौरतलब है कि याचिकाकर्ता एजेंसी ने प्रमुख सचिव को भी पार्टी बनाया है।

बीआरजीएफ के तहत क्षमता विकास में कराए गए प्रशिक्षण कार्य व अन्य कार्यो का शेष भुगतान 3,05,32,115.00 रुपए के लिए सेवा प्रदाता एजेंसी के संचालक ने जब विशेष सचिव राजेन्द्र गोयल से इस सम्बंध में बात करने गए तो उन्होंने 40 प्रतिशत यानि लगभग डेढ़ करोड़ रुपए कमीशन एडवांस देने की शर्त रखी। शिकायतकर्ता ने कहा कि श्री गोयल ने काफी अनुरोध के बावजूद भी 40 प्रतिशत कमीशन की जिद नहीं छोड़ी और कहा कि इसके बगैर संभव नहीं है। मुख्यमंत्री मायावती और कोर्ट में दाखिल की गई याचिका में भी शिकायतकर्ता ने कहा है कि उसके पास श्री गोयल से हुई वार्ता की ऑडियो सीडी तैयार की गई है। हाईकोर्ट में तो उसने ऑडियो सीडी प्रस्तुत भी की है। मुख्यमंत्री को अगर जरूरत होगी तो ऑडियो सीडी प्रस्तुत कर दी जाएगी। वहीं बीआरजीएफ के लंबित तीन करोड़ रुपए से अधिक की धनराशि में सेवा प्रदाता एजेंसियों से 40 प्रतिशत कमीशन मांगने तथा अन्य भ्रष्टाचार के आरोपों पर जब डीएनए ने विशेष सचिव राजेन्द्र गोयल से प्रतिक्रिया जाननी चाही तो उन्होंने कहा कि इस तरह वे कोई जवाब नहीं देंगे। आप शासन में आकर बात कीजिए। सेवा प्रदाता एजेंसी द्वारा प्रमुख सचिव पर लगाए गए आरोपों के सम्बंध में बीएम मीना ने कहा कि मैं सभी आरोपों का जवाब दूंगा।

Tuesday, 4 October 2011

कंप्यूटरीकरण के नाम पर भ्रष्टाचार का खेल!


821 विकासखंडों को कंप्यूटरीकृत करने का नया खाका तैयार
पंचायतीराज डायरेक्टर समेत अफसरों के दफ्तर होंगे हाईटेक

पंचायतीराज विभाग के प्रमुख सचिव बीएम मीना को यह नहीं मालूम कि कंप्यूटरीकरण के नाम पर पैसे कहां से आ रहे हैं? कहां खर्च हो रहा है? वे कहते हैं उन्हें कुछ भी नहीं मालूम। लगता है कि निदेशक डीएस श्रीवास्तव का पंचायतीराज विभाग में अखंड राज चल रहा है। निदेशक साहब पिछले चार सालों से तीनों पंचायतों को हाईटेक बनाने में जुटे हुए हैं मगर आज तक एक भी ग्राम पंचायत में एक अदद कंप्यूटर तक खरीद कर नहीं लगा पाए। 12 वें वित्त आयोग से कंप्यूटर के लिए मिले 62 करोड़ से भी ज्यादा रकम को शुद्ध पानी और सफाई के नाम से सफाचट कर गए तो राष्टीय ग्राम स्वरोजगार का पैसा क्षेत्र पंचायतों में कंप्यूटर लगाने के नाम पर डकार गए। अब फिर से कंप्यूटरीकरण के लिए भ्रष्टाचार का तानाबाना बुनने में जुट गए हैं।

सरकारी सूत्रों के अनुसार पंचायतीराज विभाग ने पंचायतीराज संस्थाओं के कंप्यूटरीकरण के लिए 51,914 ग्राम पंचायतें, 821 क्षेत्र पंचायतें तथा 72 जिला पंचायतों के अलावा 72 जिला पंचायतराज अधिकारी, 18 मंडलीय उपनिदेशक, राज्य स्तर पर जिला पंचायत अनुश्रवण कोष्ठक, परियोजना प्रबंध इकाई पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि तथा निदेशक पंचायतीराज का दफ्तर कंप्यूटरीकरण से लैश होगा। जानकारी के अनुसार प्रथम चरण में पांच हजार से अधिक जनसंख्या की ग्राम पंचायतों में एमजी नरेगा से कंप्यूटरीकरण का प्रस्ताव तैयार किया गया है। क्षेत्र पंचायत कार्यालयों में कंप्यूटरीकरण के लिए यूनीवर्सल सर्विस औबलिगेशन फंड से योजना अफसरों ने तैयार की है। इस सम्बंध में 16 सितंबर 2009 को बीएसएनएल एवं एचसीएल के मध्य एक समझौता हुआ है जिसकी वैधता की तिथि 19 जनवरी 2017 तक है।

पता चला है कि पंचायतीराज विभाग के अफसरों की बीएसएनएल के सहायक प्रबंधक इन्द्रमणि से बातचीत भी हो चुकी है कि कंप्यूटरीकरण के लिए बीएसएनएल द्वारा देय कनेक्टिविटी 512 केबीपीएस है। विकास खंड स्तर पर बढ़ते दायित्वों को देखते हुए एक एमबीपीएस की स्पीड के साथ अनलिमिटेड डाउनलोड की आवश्यकता हो सकती है। अफसरों ने विकासखंडवार कंप्यूटरीकरण का जो खर्च निकाला है उसके मुताबिक प्रति विकास खंड में अगर तीन साल का प्लान तैयार किया जाएगा तो 96,689 रुपए और अगर प्रति विकास खंड में पांच साल का प्लान बनाया जाएगा तो 1,13,658 रुपए खर्च आएगा। अफसरों ने 821 विकासखंडों में कंप्यूटरीकरण के लिए तीन साल के प्लान के मुताबिक कुल 7,93,81, 669 रुपए का बजट बनाया है तथा इन्हीं विकासखंडों में पांच साल के प्लान का हिसाब कुल 9,33,13,218 रुपए का निकाला है।

एक-दो नहीं, अब छह परसेंट दो बाबा


सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान में प्रशासनिक मद के पैसों पर अफसरों की नजर

जनता से जुड़ी योजनाओं पर पैसा बाद में स्वीकृत होता है मगर अफसर धन ऐंठने की जुगलबंदी पहले से ही शुरू कर देते हैं। पंचायतीराज विभाग में कुछ इसी प्रकार की ही तस्वीर दिखाई पड़ती है। केंद्र द्वारा संचालित सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के पैसों से जिला परियोजना समन्वयक की तैनाती, वेतन एवं अन्य भत्तों की व्यवस्था प्रशासनिक मद से कर ली गई। सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के तहत ही प्रशासनिक मद के नाम से एक परसेंट का बैंक ड्राफ्ट भी भेजने का निर्देश सभी डीपीआरओ को दे दिए गए। मगर इतने से भी तसल्ली नहीं हुई तो पंचायतीराज निदेशक डीएस श्रीवास्तव ने दो प्रतिशत धन का बैंक ड्राफ्ट भेजने का दूसरा आदेश भी जारी कर दिया। मगर अब वह कह रहे हैं कि प्रशासनिक मद में धन ही उपलब्ध नहीं है लिहाजा इस परियोजना लागत का छह प्रतिशत धन राज्य स्तर पर उपलब्ध होना चाहिए।

विभाग के सूत्रों के अनुसार निदेशक डीएस श्रीवास्तव ने 12 जुलाई 2011 को समस्त डीपीआरओ को पत्र लिखकर कहा था कि 31 मार्च 2009 में विमान व्यवस्था के क्रम में सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के तहत अनुमन्य पांच प्रतिशत प्रशासनिक मद की धनराशि से एक प्रतिशत धन का बैंक ड्राफ्ट स्टेट सैनिटेशन एण्ड हाइजिन एजूकेशन सेल के नाम तैयार कर निदेशालय को उपलब्ध कराएं। इसके पीछे निदेशक व विशेष सचिव ने यह तर्क दिया कि सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के तहत जिला परियोजना समन्वयक की तैनाती सेवा प्रदाता वीबग्योर एजेंसी के माध्यम से की गई है। इनके वेतन एवं भत्ते का भुगतान सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के प्रशासनिक मद से ही वहन किया जाना है। इसलिए राज्य स्वच्छता मिशन द्वारा प्रशासनिक मद की धनराशि को एक प्रतिशत के स्थान पर दो प्रतिशत धनराशि जिलों से राज्य स्तर पर प्राप्त किए जाने का निर्णय लिया गया है। जबकि इसके ठीक विपरीत विभाग के कुछ अफसरों व कर्मचारियों ने मुख्यमंत्री मायावती को पत्र लिख कर निदेशक के विरुद्ध यह आरोप लगाया है कि वीबग्योर एजेंसी के माध्यम से दो लाख रुपए प्रति व्यक्ति से रिश्वत लेकर 70 से भी अधिक लोगों की नियुक्तियां की गई हैं।

पंचायतीराज विभाग में प्रशासनिक मद के पैसों की चाहत अफसरों में किस प्रकार होती है इस बात से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि 30 मार्च 2011 को प्रस्तुत की जाने वाली सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान की समीक्षात्मक टिप्पणी में साफ-साफ कहा गया कि प्रदेश स्तर पर प्रशासनिक मद में धनराशि उपलब्ध न होने के कारण योजना के अनुश्रवण एवं मूल्यांकन में कठिनाइयां व्याप्त है। इसलिए परियोजना लागत का छह प्रतिशत अंश प्रशासनिक मद के रूप में राज्य स्तर पर उपलब्ध कराया जाना चाहिए। इससे तो यही लगता है कि अधिकारी विकास योजनाओं में भले ही रुचि न रखते हों मगर वे प्रशासनिक मद के रूप में मिलने वाले धन के लिए जरूर व्याकुल रहते हैं। शायद इसीलिए खासकर पंचायतीराज विभाग में यह शिकायतें भी ज्यादा तादाद में हैं कि जिला परियोजना समन्वयकों की नियुक्ति का मामला हो या फिर स्वच्छता कार्यक्रम में अवैध ढंग से विकास खंडों में कम्प्यूटर आपरेटरों की नियुक्ति हो सभी में प्रशासनिक मद का पैसा खर्च होने के बावजूद रिश्वत लेने के आरोप लगे हैं। प्रशासनिक मद में खर्च किए जाने वाले पैसों के बाबत डीएनए ने निदेशक डीएस श्रीवास्तव से प्रतिक्रिया जाननी चाही तो उन्होंने फोन ही नहीं उठाया और न ही एसएमएस का कोई जवाब दिया। प्रशासनिक मद के बारे में व्यय किए जा रहे पैसों को लेकर प्रमुख सचिव बीएम मीना ने अनभिज्ञता जाहिर की तथा कहा कि निदेशक की बात निदेशक ही जानें।

डीपीआरओ की तैनाती में उगाही कर रहे निदेशक!


कृषि एवं ग्राम्य विकास संस्थान ने की प्रमुख सचिव से शिकायत
पंचायतीराज विभाग के निदेशक व विशेष सचिव डीएस श्रीवास्तव पर अब जिलों में पैसे लेकर डीपीआरओ की नियुक्तियां करने का भी आरोप लगने लगा है। झूंसी इलाहाबाद की संस्था कृषि एवं ग्राम्य विकास संस्थान की मंत्री अनीता ने प्रमुख सचिव से शिकायत की है कि जिला पंचायतराज अधिकारियों की जिला स्तर पर नियमों के विपरीत तैनाती में धन उगाही की जा रही है। शासन के उच्च अफसरों को संज्ञान में लाए बिना निदेशक मनमाने फैसले ले रहे हैं।
संस्थान ने विभाग के प्रमुख सचिव को लिखे शिकायती पत्र में कहा है कि जिला पंचायतराज अधिकारियों की स्वीकृत संख्या 72 है। 72 पदों में लोक सेवा आयोग के माध्यम से सीधी भर्ती के 36 पदों से स्पष्ट है कि पदोन्नति के जरिए पदों के भरे जाने की अनुमन्यता के सापेक्ष सहायक विकास अधिकारी के कुल 32 पदों के विपरीत 46 पदों पर पूर्व से ही प्रभारी जिला पंचायतराज अधिकारी बनाए गए हैं। जबकि सहायक जिला पंचायतराज अधिकारी तकनीकी के लिए अनुमन्य चार पदों के सापेक्ष 14 पदों पर तैनाती की गई है। इस प्रकार सहायक विकास अधिकारी (पंचायत) संवर्ग से 14 तथा सहायक जिला पंचायत अधिकारी तक संवर्ग से 10 अधिक पदों पर प्रभारी जिला पंचायतराज अधिकारी तैनात हैं। इससे स्पष्ट है कि पूर्व से ही स्वीकृत जिला पंचायतराज अधिकारियों के पदों के विपरीत 24 अधिकारी अधिक प्रभारी बनाए गए हैं। संस्थान के मंत्री ने कहा है कि प्रभारी जिला पंचायतराज अधिकारियों के अलावा निदेशक ने अंबेडकरनगर में अनिल कुमार सिंह को कनिष्ठ सहायक विकास अधिकारी एवं गोरखपुर में अति कनिष्ठ ग्राम पंचायत अधिकारी आरके भारती को प्रभारी जिला पंचायत अधिकारी बनाया है। कृषि एवं ग्राम्य विकास संस्थान ने कहा है कि प्रशासनिक भ्रष्टाचार के अलावा सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान में भी गड़बड़ियां सामने आई हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के समस्त बीपीएल परिवारों तथा 10 प्रतिशत एपीएल परिवारों को व्यक्तिगत शौचालय से आच्छादित करने के लिए प्रोत्साहन राशि दिए जाने का प्रावधान है। इसमें प्रति शौचालय निर्धारित धनराशि 2640 है जबकि डॉ. अंबेडकर ग्रामों में प्रदेश सरकार द्वारा 4940 जिसमें 4540 रुपए अनुदान तथा 400 लाभार्थी अंश है। राज्य स्तर से जारी शासनादेश व भारत सरकार की गाइड लाइन के अनुसार शौचालय की धनराशि लाभार्थियों के खाते में जानी चाहिए। किंतु शासनादेश के विपरीत जनपद स्तर के शौचालय सेट की धनराशि काटकर पंचायत उोगों को दी जा रही है।
लाभार्थी को कोई भी धनराशि उपलब्ध नहीं कराई जा रही है। संस्थान ने कहा है कि पंचायत उोगों को निदेशक द्वारा अधिकृत करते हुए अग्रिम में कमीशन वसूला जा रहा है। डा. अंबेडकर गांवों में फिर भी कुछ शौचालय बनाए जा रहे हैं मगर नॉन अंबेडकर गांवों में व्यापक स्तर पर हेराफेरी की जा रही है। संस्थान ने फर्जी प्रगति रिपोर्ट भेजे जाने का भी आरोप लगाया है। निदेशक द्वारा जिलों में नियमों के विपरीत डीपीआरओ की तैनाती पर 28 फरवरी 2011 को की गई शिकायत तथा धन उगाही के मामले में प्रमुख सचिव बीएम मीना ने कहा कि मैं तो उस समय विभाग में नहीं था। पता नहीं उस समय इसकी जांच क्यों नहीं की गई? मगर मैं इसे देखूंगा।