Thursday 26 May 2011

लाशों के ढेर पर सरकार

35,256 लाशों को लावारिस बताकर पल्ला झाड़ा
यूपी में बगैर चीरफाड़ के लावारिस लाशों का फर्जी पोस्टमार्टम



यूपी में लाशों के ढेर ने सनसनी पैदा कर रखी है। सरकार और पुलिस महकमा इन लाशों को लावारिस बता कर पल्ला झाड़ लेता है तो प्रदेश में लाशों का धंधा करने वाले डॉक्टरों के गिरोह भी सक्रिय हैं जो चीरफाड़ किए बिना ही लावारिस लाशों की फर्जी पोस्टमार्टम रिपोर्ट तैयार कर देते हैं। पिछले 10 सालों में 35,256 लाशों (ये सरकारी आंकड़े हैं जो विश्वास की कसौटी पर खरे नहीं उतरते हैं) को राज्य अपराध अभिलेख ब्यूरो लावारिस बता रहा है। ये लाशें किसकी थीं? लावारिस लाशों की चीरफाड़ किए बिना ही फर्जी पोस्टमार्टम क्यों किया जा रहा है? इन सवालों ने सरकार और पुलिस के आला अफसरों को कटघरे में खड़ा कर दिया है।

आरटीआई ऐक्टिविस्ट सलीम बेग द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गई सूचना में राज्य अपराध अभिलेख ब्यूरो ने जो जानकारी उपलब्ध कराई है उससे तो कई सवाल खड़े हो गए हैं। ऐक्टिविस्ट ने पुलिस महानिदेशक से पूछा था कि पिछले 10 वर्षो में यूपी के सभी थाना क्षेत्रों में कितनी लावारिस लाशें पाई गईं? उनके पोस्टमार्टम की तिथि थाना व वर्षवार उपलब्ध कराएं। लावारिस लाशों से सम्बंधित मुकदमा, अपराध संख्या एवं उनका अंतिम संस्कार करने वाले व्यक्तियों व संस्थाओं के पते, सरकार किस मद से लावारिस लाशों के क्रियाकर्म के लिए धन उपलब्ध कराती है समेत आदि जानकारियां मांगी थीं? राज्य अपराध अभिलेख ब्यूरो के पुलिस अधीक्षक ने पुलिस महानिदेशक के जनसूचना अधिकारी को पत्र लिख कर बताया है कि ब्यूरो मात्र अज्ञात शवों की पहचान के लिए कार्रवाई कराता है। पोस्टमार्टम करने का दिनांक , जिला, थाना एवं वर्षवार की जानकारी का वह संकलन नहीं करता है। हैरान करने वाली बात यह है कि इस तथ्य को न तो राज्य अपराध अभिलेख ब्यूरो स्पष्ट कर पा रहा है और न ही पुलिस महानिदेशक का कार्यालय। इससे तो लावारिस लाशों को लेकर तमाम संदेह उत्पन्न होने लगे हैं। आखिर दो जिम्मेदार विभाग पल्ला क्यों झाड़ रहे हैं? इनकी जानकारी कौन देगा?

राज्य अपराध अभिलेख ब्यूरो ने बताया है कि वर्ष 2001 में 5310, 2002 में 4081, 2003 में 4327, 2004 में 3804, 2005 में 3580, 2006 में 3447, 2007 में 3482, 2008 में 2126, 2009 में 3297 तथा 2010 में एकदम से गिर कर 1802 लावारिश लाशें बरामद की गईं। सरकारी आंकड़े जब इतनी तादात बता रहे हैं तो इन लाशों की वास्तविक संख्या का सहज अनुमान लगाया जा सकता है। सिर्फ लाशों की संख्या में ही सरकारी स्तर पर खेल नहीं होता है बल्कि अब तो लाशों का धंधा भी जोरों पर चल रहा है। अभी मुरादाबाद में फर्जी पोस्टमार्टम के मामले में केन्द्रीय पुलिस अस्पताल के नेत्र सर्जन और फार्मासिस्ट समेत तीन लोगों का गिरोह प्रकाश में आया है। इन लोगों के पास से एक स्ट्रेचर पर बंधी दो साबुत लावारिस लाशें बरामद की गईं है। ये दोनों लावारिश लाशें जीआरपी से आईं थी जिन्हें बिना चीरेफाड़े के ही डॉक्टर और पोस्टमार्टम स्टाफ ने उनकी फर्जी पोस्टमार्टम रिपोर्ट बनाकर जीआरपी को भेज दी थी। इधर चर्चा यह भी है कि प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में मानव शरीर पर शोध के लिए जो लाशें मानक के अनुसार उपलब्ध कराई जानी चाहिए वह भी नहीं दी जाती हैं बल्कि इन मेडिकल कॉलेजों की सीधी सेटिंग अस्पतालों की मरचरी से होती है।

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