Wednesday 25 May 2011

बड़े तीस मार खां निकले जज साहब!

सूचना आयुक्त ने हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार बजट से पूछा, जांच में कितना समय लगेगा
विशेष सचिव न्याय नरेन्द्र सिंह रावल की सेवा पुस्तिका से अर्हता व जाति सर्टिफिकेट गायब

 सूबे में एक जज साहब जो विशेष सचिव भी हैं उनके खिलाफ शिकायत है कि उन्होंने फर्जी जाति प्रमाण पत्र लगा कर 23 दिसंबर 1979 में मुंसिफ मजिस्ट्रेट की नौकरी हासिल कर ली। सालों बाद जज साहब के फर्जीफिकेशन का मामला उजागर हुआ। इतने साल नौकरी करते-करते साहब का रसूख इतना पावरदार हो गया कि हाईकोर्ट से लेकर सूचना आयोग तक हर जगह उनकी शिकायत हुई मगर उनकी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। अलबत्ता जिसने मुख्यमंत्री मायावती तक साहब के विरुद्ध शिकायत की वह भी उन्हें टश से मश नहीं कर पाया। जज साहब के विरुद्ध राज्य सूचना आयोग ने जब उनकी जाति का सर्टिफिकेट मांगा तो उन्होंने सूचना आयुक्त को ही कटघरे में खड़ा कर दिया है।

बताते चलें कि वह जज साहब हैं विशेष सचिव न्याय नरेन्द्र सिंह रावल और उनके खिलाफ मोर्चा खोल रखा है बसपा के ही वरिष्ठ नेता अजय कुमार पोइया ने। बसपा नेता ने वर्ष 2009 में ही मुख्यमंत्री मायावती को पत्र लिखकर विशेष सचिव के खिलाफ कार्रवाई किए जाने की मांग की थी। पोइया ने आरोप लगाया है कि नरेन्द्र सिंह रावल सामान्य जाति अहेरिया से ताल्लुक रखते हैं और उन्होंने अनुसूचित जाति का फर्जी प्रमाण पत्र लगाकर मुंसिफ मजिस्ट्रेट की नौकरी हासिल कर ली थी। पिछले 20 सालों से वे सरकारी सुख-सुविधाओं का लुत्फ उठा रहे हैं। यह मामला हाईकोर्ट में भी चल रहा है। शिकायतकर्ता बसपा नेता ने जब आरटीआई का सहारा लिया और हाईकोर्ट के जनसूचना अधिकारी से जज साहब का जाति प्रमाण पत्र और अर्हता सम्बंधी अभिलेख मांगा तो प्रतिवादी हाईकोर्ट के जनसूचना अधिकारी की ओर से सूचना आयोग में उपस्थित सीपीआईओ अजय कुमार ने कहा कि रावल की सेवा पुस्तिका से उनकी अर्हता एवं जाति सर्टिफिकेट अभिलेख गायब हैं। इस सम्बंध में उन्होंने सम्बंधित अधिकारियों को पत्र लिखा है। सूचना आयोग में 18 अप्रैल को हुई इस मामले की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट के जनसूचना अधिकारी के प्रतिनिधि ने बताया कि नरेन्द्र सिंह रावल को भी पत्र लिखा गया है परन्तु उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया है। सीपीआईओ ने बताया कि इस प्रकरण में रजिस्ट्रार आके तिवारी ने 27 मई 2010 को जांच के लिए एक पत्र हाईकोर्ट के महानिबंधक के समक्ष प्रस्तुत किया था। जिस पर महानिबंधक ने आरके तिवारी को जांच अधिकारी नियुक्त किया है। राज्य सूचना आयुक्त वीरेन्द्र सक्सेना ने पूरे मामले की सुनवाई के बाद अपने आदेश में कहा कि लगभग 10 महीने पूरे होने जा रहे हैं परन्तु कोई जांच रिपोर्ट प्रतिवादी को प्राप्त नहीं हुई है। सूचना आयुक्त ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि यह भी आश्चर्य की बात है कि नरेन्द्र सिंह रावल लगभग पिछले दो दशक से बिना अर्हता व जाति प्रमाण पत्र के सेवा में कार्यरत हैं। उनके विरुद्ध अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। सूचना आयुक्त ने हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार बजट से पूछा है कि यह जांच पूरी करने में अभी कितना और समय लगेगा? उन्होंने इस आदेश की प्रति मुख्य न्यायाधीश एफआई रिबेलो को भेजने को कहा। उधर जज साहब ने अपने को चारो ओर से घिरते देख दलित संगठनों को आगे कर दिया है। पता चला है कि विशेष सचिव न्याय ने अखिल भारतीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति कर्मचारी कल्याण संघ के जरिए सूचना आयुक्त को ही यह कहते हुए कटघरे में खड़ा कर दिया है कि वे किन्हीं कारणों से नरेन्द्र सिंह रावल को जानबूझ कर प्रताड़ित करना चाहते हैं।

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