Thursday, 2 June 2011

घर में नहीं दाने अम्मा चलीं..

कर्मचारी कल्याण निगम का हाल
विदेशों से 68 करोड़ की दाल और खा तेल मंगाने के लिए पैसे नहीं


घर में नहीं दाने, अम्मा चलीं भुनाने! कर्मचारी कल्याण निगम का कमोवेश यही हाल है। चले हैं कारोबार करने और कमाई एक पैसे की नहीं है। निगम अफसरों की बुद्धिमानी देखिए कि विदेशों से 68 करोड़ रुपए की दाल और खा तेल खरीदने जा रहे हैं और जेब में एक धेला भी नहीं है। 68 करोड़ की दाल और खा तेल आयात करने के लिए सिर्फ 17 करोड़ रुपए परिवहन पर खर्च करने पड़ेंगे। निगम राज्य सरकार को चिठ्ठी लिख कर 85 करोड़ रुपए की मांग कर रहा है। मगर सरकार के खाते में निगमों का क्रेडिट इतना गंदा है कि वित्त विभाग किसी भी सूरत में कर्मचारी कल्याण निगम की दुकानदारी चमकाने का खतरा मोल नहीं ले सकता है।

सरकारी सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक कर्मचारी कल्याण निगम ने शासन को एक पत्र लिख कर उसकी कार्यशील पूंजी बढ़ाने की दरख्वास्त की है। निगम ने सरकार से प्रति माह 20,000 मीट्रिक टन पीली मटर की दाल, 8725 मीट्रिक टन तुवर दाल एवं 2000 मीट्रिक टन पामोलीन खा तेल की आवश्यकता बताई है। इसके लिए उसको क्रमश: 68 करोड़ तथा 17 करोड़ रुपए परिवहन पर खर्च करने की जरूरत है। निगम ने वर्तमान वित्तीय वर्ष 2011-12 में चार से पांच चक्रों में व्यवसाय करने की योजना बनाई है। जिसके लिए उसे 80 हजार से एक लाख मीट्रिक टन पीली मटर एवं 20,000 से 25,000 मीट्रिक टन तुवर दाल समेत कुल एक लाख से 1,25,000 मीट्रिक टन दलहन खरीदने की आवश्यकता पड़ेगी। राज्य सरकार का यह कोटा भारत सरकार द्वारा अनुमन्य पांच लाख मीट्रिक टन दलहन की सीमा से काफी सीमित मात्रा में है। निगम सूत्रों कहा कहना है कि भारत सरकार की योजना के तहत दाल पर 10 रुपए प्रति किलो एवं खा तेल पर 15 रुपए प्रति किलो की दर से अनुदान देय है। केन्द्र सरकार ने खा तेलों के लिए राज्यों से उसकी जरूरतों की सूची मांगी थी। इसके उत्तर में 24 मई को भेजे पत्र में प्रदेश सरकार ने 8000 मीट्रिक टन खा तेल की मांग की है। दलहन आयात के सम्बंध में भी केन्द्र सरकार ने पांच लाख टन दलहन आयात किए जाने की बात कही थी तो इस पर प्रदेश सरकार ने 16064 मीट्रिक टन पीली मटर, 8725 मीट्रिक टन तुवर दाल एवं 2000 मीट्रिक टन पामोलिन खा तेल प्रति माह खरीदने सम्बंधी आवंटन सचिव भारत सरकार से अनुरोध किया है। निगम ने इस सम्बंध में मेसर्स एसटीसी लि. से खरीदारी व आपूर्ति का अनुबंध भी कर लिया है। अनुबंध की शर्त के अनुसार उसे पूर्व अग्रिम धनराशि का भुगतान भी करना पड़ेगा। मगर इन सभी औपचारिकताओं की पूर्ति के लिए निगम के पास पैसा नहीं है। वह सरकार पर निर्भर है। सरकार जब पैसे देगी तभी दलहन और खा तेल की आपूर्ति की प्रक्रिया पूरी हो पाएगी। सूत्रों का कहना है कि सरकार इसके लिए कदापि तैयार इसलिए नहीं है क्योंकि यह चुनावी वर्ष चल रहा है और 75 करोड़ रुपए की वित्तीय स्वीकृति देकर शासन कोई रिस्क मोल लेना नहीं चाहता है। वैसे भी निगमों का रिकार्ड बिलकुल अच्छा नहीं है। वे विशुद्ध घाटे में चल रहे हैं। किसी भी प्रकार की कमाई करने में वे अक्षम साबित हुए हैं। दरअसल 2010 में कर्मचारी कल्याण निगम ने भारत सरकार की इस योजना के तहत 1,32,229.847 मीट्रिक टन दाल 97,67,46,207 रुपए में तथा 2000 मीट्रिक टन खा तेल 7,99,86,000 रुपए में खरीदी थी। इसी आधार पर निगम दोबारा राज्य सरकार से पैसों की मांग कर रहा है। मगर चुनावी साल में वित्त विभाग पैसे देने में आनाकानी कर रहा है।

1 comment:

  1. सरकारी नीतियों की पोल खोलती हुई रचना , आभार

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