घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम सिर्फ कागजों पर
विधानमंडल महिला एवं बाल विकास संयुक्त समिति की बैठक13 को
महिला मुख्यमंत्री को न तो मजबूर और लाचार महिलाओं की सिसकियां सुनाई पड़ रही हैं तथा न ही उनके पास तंगहाल महिलाओं के जीवन में रोशनी फैलाने के लिए कोई ठोस पहल करने वाली योजना है। यह पहली दफा है जब सीधे-सीधे महिलाओं को विकास की मुख्यधारा से अलग-थलग कर दिया गया है। पिछले चार साल में सूबे की मौजूदा निजाम ने महिलाओं को राहत पहुंचाने के नाम पर कोई घोषणा भी नहीं की। पुरानी योजनाओं के भरोसे मदद की आस लगाए बैठी महिलाएं अब सहारे की सारी उम्मीदें खो चुकी हैं। उत्तर प्रदेश विधानमंडल की महिला एवं बाल विकास सम्बंधी संयुक्त समिति की बैठक 13 मई को होने जा रही है। यह बैठक विधान भवन में होगी। 3 मई को शासन के उपसचिव सर्वोदय कुमार गुप्ता ने महिला कल्याण विभाग तथा महिला व बाल विकास विभाग को लिखे पत्र में साफ-साफ कहा है कि बैठक में समिति बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार विभाग तथा महिला कल्याण विभाग की लखनऊ व बाराबंकी सहित प्रदेश में आंगनबाड़ी केन्द्रों के समय से न खुलने, पोषाहार की खराबी, निराश्रित विधवा पेंशन व बाल संरक्षण गृहों में व्याप्त भ्रष्टाचार से सम्बंधित प्राप्त गंभीर शिकायतों के सम्बंध में प्रमुख सचिव दोनों विभागों से विचार-विमर्श करेंगे। यह महिला कल्याण विभाग द्वारा चलाए जा रहे कल्याणकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार की सरकारी स्वीकारोक्ति है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि पिछले चार सालों में किस कदर महिलाओं की उपेक्षा की गई है।वर्ष 2005 में घरेलू हिंसा से महिला का संरक्षण अधिनियम बनाया गया था। यूपी में यह कागजों पर ही 2006 में लागू हुआ और कागजों पर ही चल रहा है। अभी तक प्रदेश के मुख्यालय स्तर पर अधिनियम के क्रियान्वयन एवं अनुश्रवण करने के लिए सरकार प्रकोष्ठ तक गठित नहीं कर पाई है। जिलों में घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं की व्यथा सुनने के लिए जिला प्रोबेशन अधिकारियों के पास फुर्सत ही नहीं है और न ही प्रदेश के किसी भी जिले में महिलाओं की बात सुनने के लिए कोई एक दफ्तर तक बन पाया है। 2006 में बाल विवाह रोकने के लिए बाल विवाह निरोधक अधिनियम 2006 लागू किया गया था। इस अधिनियम की क्या स्थिति है यह महिला कल्याण अधिकारियों को भी पता नहीं है। सूबे की मौजूदा निजाम महिलाओं के प्रति कितना संवेदनशील है इस बात से पता चलता है कि पति की मृत्यु के उपरांत निराश्रित महिलाओं की पुत्रियों के विवाह के लिए 2007-08 के बाद उसने एक धेला तक नहीं दिया है। यही हाल पति की मृत्यु के उपरांत निराश्रित महिलाओं के पुनर्विवाह करने पर दम्पत्ति को पुरस्कार देने के मामले में भी है। दहेज से पीड़ित महिलाओं की उपेक्षा समेत तमाम पुरानी योजनाएं पैसों के अभाव में फाइलों में गुम पड़ी हैं। महिला कल्याण निगम केन्द्र सरकार द्वारा वित्त पोषित स्वयंसिद्धा परियोजना चलाता है। इस योजना में स्वैच्छिक संगठनों के माध्यम से महिलाओं को शिक्षण, आय सृजक गतिविधियां, जागरूकता, बैंक लिंकेज इत्यादि का काम करती हैं। यह परियोजना 2007 में ही समाप्त हो चुकी है। यूपी सरकार के पास समय नहीं है कि केन्द्र से पहल करके इसे चालू करवाए। राष्ट्रीय महिला कोष की स्थापना के लिए भी राज्य सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है।
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