सीडा रिपोर्ट के लिए सरकार ने मुलायम सरकार की महिला नीति अपनाई
सूबे में बसपा सरकार की कोई महिला नीति ही नहीं है! जी हां यह सही है और बिलकुल सही है। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा महिलाओं से भेदभाव समाप्त करने वाले प्रस्ताव सम्बंधी सीडा रिपोर्ट (कनवेंशन फॉर द इलीमिनेशन ऑफ डिसक्रिमिनेशन अगेंस्ट वूमेन) के लिए राज्य सरकार ने जो जवाब तैयार किया है, वह पूर्ववर्ती सपा सरकार की बनाई गई महिला नीति को ही हू-बहू ग्रहण कर ली गई है। मतलब बिलकुल साफ यह है कि महिला मुख्यमंत्री के राज में महिलाओं के लिए अपनी कोई महिला नीति नहीं है।
मालूम हो कि 1979 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा महिलाओं से भेदभाव समाप्त करने का प्रस्ताव रखा गया था। महासंघ द्वारा हर वर्ष हर देशों और हर प्रांतों से महिला सम्बंधी नीति तथा महिलाओं के अधिकारों से सम्बंधित सरकार द्वारा उठाए गए कदम की जानकारी मांगता है। इस वर्ष महासभा ने यूपी की सरकार से उसने महिलाओं के अधिकारों को बढ़ावा देने, महिला नीति को क्रियान्वित करने वाले विभाग, एजेंसी, महिलाओं से सम्बंधित राहतकारी योजनाएं, महिलाओं के कल्याण सम्बंधी पैसों के dोत, दहेज, घरेलू हिंसा को रोकने के नियम, अस्पताल, शरणालय तथा पीड़ित महिलाओं को जल्दी राहत दिलाने सम्बंधी आयोगों के बारे में ढेरों जानकारियां मांगी है। सीडा रिपोर्ट के लिए महिला कल्याण विभाग व महिला एवं बाल विकास विभाग जिस रिपोर्ट को वह भेजने जा रहा है वह पूर्ववर्ती सपा सरकार के कार्यकाल में बनी उत्तर प्रदेश महिला नीति 2006 है।
आइए देखें कि राज्य की मायावती सरकार संयुक्त राष्ट्र महासंघ की सीडा रिपोर्ट के तहत मांगी गई सूचना में क्या बताने जा रही है : महिला नीति के लक्ष्य बताते हुए महिला कल्याण विभाग का कहना है कि महिलाओं के मामले में समाज के रवैये में परिवर्तन लाना और उसे संवेदनशील बनाना। संविधान एवं विधायन के तहत महिलाओं को दिए गए अधिकारों एवं संरक्षण का प्रभावी ढंग से अनुपालन किया जा रहा है। सरकार नारी जीवन के अस्तित्व और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने में लगी है। समाज में महिलाओं की सहभागिता और निर्णय लेने की उसकी भूमिका को सशक्त बना रही है। सरकार महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार और हिंसा की रोकथाम समेत आदि-आदि कदम उठा रही है। अगर पिछले छह महीने में महिलाओं के साथ हुए बलात्कार एवं अन्य प्रकार के अत्याचार पर नजर डालें तो शायद सरकार के ये उठाए गए तमाम कदम के पोल स्वत: खुल जाएंगे।
यूपी में महिलाओं से सम्बंधित अनैतिक देह व्यापार अधिनियम के तहत चलने वाली संस्थाएं काम करना बंद कर चुकी हैं। इतने बड़े प्रदेश में सिर्फ छह जिला शरणालय है। बसपा सरकार ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है। आज के 20 साल पहले बने छह संरक्षण गृह ही संवासिनियों के लिए हैं। इसमें भी कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई है। इसके अलावा प्रदेश में सिर्फ पांच दत्तक ग्रहण इकाइयां हैं जहां 0 से छह वर्ष तक के शिशुओं के कल्याणार्थ दत्तक ग्रहण व पोषण सेवा की सुविधा है। पति की मृत्यु के बाद निराश्रित महिलाओं को इतने कम पैसे दिए जाते हैं कि वे महीने में एक दिन भी गुजारा नहीं कर सकती हैं। 19,884 ग्रामीण व 25,546 शहरी निराश्रित महिलाओं को सहायक अनुदान का आंकड़ा सरकार की महिला नीति को मुंह चिढ़ाने वाला जैसा है। देहज से पीड़ित महिलाओं को इस सरकार ने एक पैसा ही नहीं दिया है।
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