Monday 25 July 2011

शशांक शेखर के अरमानों पर फिरा पानी


सुप्रीम कोर्ट के फैसले से नियुक्ति विभाग को झटका
सात पूर्व सैन्य अफसरों की पीसीएस में ज्येष्ठता पुनर्निर्धारित करने के आदेश

 पायलट से कैबिनेट सचिव बने शशांक शेखर बसपा सरकार की सरकारी मशीनरी को अपने हिसाब से हांक रहे हैं। उन्होंने खासकर आईएएस अफसरों को तो यह सबक सिखा ही दिया है कि उन्हें भी हैंडिल करना उनके बाएं हाथ का खेल है। लगता भी यही है कि नौकरशाही विशेषकर आईएएस लॉबी को मुंह चिढ़ाने की खातिर ही कैबिनेट सचिव साहब ने सेना से कमीशन प्राप्त पूर्व अधिकारियों को पीसीएस और पीपीएस में ज्येष्ठता प्रदान कर सीधे आईएएस व आईपीएस अफसर बना कर सबको हक्का-बक्का कर दिया है। सैन्य अफसरों को नियुक्ति विभाग के जरिए आईएएस का तमगा पहनाने में उन्होंने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की भी जरा सी परवाह नहीं की।

प्राप्त जानकारी के अनुसार कैबिनेट सचिव द्वारा नियुक्ति विभाग के जरिए आईएएस बनाने के इस खेल से न सिर्फ आईएएस-आईपीएस बल्कि पीसीएस और पीपीएस संवर्ग में भी हड़कम्प मचा हुआ है। मगर किसी में इतना साहस नहीं कि वह मुखर विरोध कर सके। कहने को तो नियुक्ति विभाग ने सेना से कमीशन प्राप्त अफसरों योगेन्द्र कुमार बहल, अरविंद कुमार द्विवेदी, सुशील कुमार यादव, संतोष कुमार द्विवेदी व सुधीर कुमार को पीसीएस में ज्येठता प्रदान कर आईएएस बना दिया है मगर इसके पीछे सीधे-सीधे कैबिनेट सचिव साहब की भूमिका की चर्चा पीसीएस संवर्ग में जोरों पर है। इसके साथ ही दो और अफसरों राजेन्द्र सिंह व अमिताभ प्रकाश का नाम भी ज्येष्ठता सूची में शामिल है जिन्हें आईएएस बनाने की योजना है। मगर उच्चतम न्यायालय ने बीते अपने पांच जुलाई के फैसले में नियुक्ति विभाग और उसके मार्गदर्शक कैबिनेट सचिव साहब को यह कह कर बड़ा सदमा पहुंचाया है कि आईएएस बने दिनकर प्रकाश दूबे, विशाल राय, योगेन्द्र कुमार बहल, अरविन्द कुमार द्विवेदी, सुशील कुमार यादव, संतोष कुमार द्विवेदी व सुधीर कुमार के साथ राजेन्द्र सिंह तथा अमिताभ प्रकाश की ज्येष्ठता फिर से निर्धारित की जाए क्योंकि जिस 1980 में बनी नियमावली का हवाला देकर सैन्य सेवा का सिविल सेवा में ज्येष्ठता का लाभ इन सभी को दिया गया है उसकी परिधि से ये सभी बाहर हैं। लिहाजा सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से राज्य सरकार और नियुक्ति विभाग को गहरा धक्का लगा है।

नियुक्ति विभाग की सूत्रों की मानें तो यह मामला काफी पुराना है जिसकी आड़ में कैबिनेट सचिव साहब ने आईएएस तबके को मुंह चिढ़ाने की खातिर सारा खेल खेला है। दरअसल सेना में कमीशन प्राप्त अफसरों के लिए 1973 में एक नियम बनाया गया था कि आपातकाल के दौरान जो वहां पांच साल की सर्विस करेंगे तो उन्हें आरक्षण के तौर पर पीसीएस एवं पीपीएस संर्वग की सेवा में आने पर पांच साल की अधिक ज्येष्ठता प्रदान कर दी जाएगी। इसके तहत ही सरकार ने 2003 में एक शासनादेश जारी कर सैन्य वियोजित अधिकारियों सुधीर कुमार एवं राजेन्द्र सिंह को यूपी सिविल सेवा में ज्येष्ठता निर्धारण का लाभ प्रदान कर दिया। इसके खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में तीन-तीन याचिकाएं दाखिल की गईं। हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने सरकार के शासनादेश को खंडित कर दिया तथा सुधीर कुमार व राजेन्द्र सिंह की ज्येष्ठता पुनर्निर्धारित किए जाने के आदेश दिए। वहीं इस आदेश के खिलाफ सुधीर कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की। इसी प्रकार पुलिस सेवा में कार्यरत सैन्य वियोजित अधिकारी राकेश कुमार जोली ने एक रिट हाईकोट में दायर की जिसमें उन्होंने सेना में की गई अपनी सेवा अवधि को पुलिस सेवा में वरिष्ठता निर्धारण के लिए प्रार्थना की थी। इस पर कोर्ट ने जोली को पुलिस सेवा में ज्येष्ठता निर्धारण का आदेश दे दिया।

हाईकोर्ट के इस निर्णय से क्षुब्ध पुलिस अफसर राजेन्द्र सिंह यादव व सुरेश्वर द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दो अलग-अलग याचिकाएं दायर की गईं। कोर्ट ने पुलिस अफसरों तथा पीसीएस अधिकारियों की चारों विशेष रिट एक साथ सम्बद्ध कर पांच जुलाई को फैसला सुनाया कि 1980 में बनी नियमावली के तहत उन्हीं पूर्व सैन्य अफसरों को ज्येष्ठता का लाभ मिलेगा जिन्होंने आपातकाल के दौरान सैन्य सेवा में कमीशन प्राप्त किया हो। उनके यूपी सिविल सेवा या पुलिस सेवा अथवा अन्य किसी अप्राविधिक सेवा में चयन की प्रक्रिया छह अगस्त 1978 से पूर्व सम्पन्न हो गई हो अथवा प्रारम्भ हो गई हो, को ही मानी जाएगी। इस आदेश से कैबिनेट सचिव द्वारा नियुक्ति विभाग के जरिए बनाए गए सातों आईएएस का कैडर खतरे में इसलिए पड़ गया है कि कोर्ट द्वारा निर्धारित तिथि छह अगस्त 1978 की परिधि से सभी सैन्य अफसरों की चयन प्रक्रिया बाहर है।

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