कम्प्यूटरीकरण के नाम पर मिले पैसों का आयोग नहीं दे रहा हिसाब
राज्य सूचना आयोग में कम्प्यूटरीकरण के नाम पर लाखों के वारे-न्यारे हो चुके हैं। मगर सूचना आयुक्तों द्वारा परित आदेशों को आयोग की वेबसाइट पर अपलोड करने की कार्यवाही अभी तक शुरू नहीं की जा सकी है। इस विफलता की कोई जिम्मेदारी इसलिए नहीं ले रहा है क्योंकि कम्प्यूटरीकरण के मद में मिले लाखों रुपयों का कहीं अता-पता ही नहीं है। आरटीआई ऐक्टिविस्ट उर्वशी शर्मा ने सूचना का अधिकार के तहत आयोग के जनसूचना अधिकारी से पूछा था कि राज्य सूचना आयोग के आदेशों को डिजिटल रूप में परिवर्तित कर संरक्षित करने के लिए केंद्र व राज्य सरकार ने कितना धन मुहैया कराया है? आयोग के आदेशों को वेबसाइट पर अपलोड न करने के लिए जिम्मेदार अधिकारी के नाम व पदनाम की सूचना प्रदान करें। जनसूचना अधिकारी माता प्रसाद ने उर्वशी शर्मा को भेजे जवाब में लिखा है कि सूचना आयोग में आयोग द्वारा धारित आदेशों को वेबसाइट पर अपलोड करने की कार्यवाही अभी तक प्रारम्भ नहीं हो पाई है। वेबसाइट पर अपलोड न करने के लिए किसी एक अधिकारी को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है। आयोग द्वारा पारित आदेशों को वेबसाइट पर अपलोड किए जाने की प्रकिया चल रही है। यह कितना हास्यास्पद है कि आयोग में ही सूचना के कानून की मंशा को रौंदा जा रहा है। केंद्र सरकार ने जिस मद के लिए पैसा भेजा था उस पर कितना काम हुआ और कितना पैसा खर्च हुआ तथा आयोग में कम्प्यूटरीकरण न होने के लिए कौन जिम्मेदार है, यह न बताना आयोग के लिए नितांत शर्मनाक है।
सबसे हैरत करने वाली बात तो यह है कि आयोग के पास सूचना आयुक्तों द्वारा पारित अंतरिम आदेशों का विवरण भी नहीं है। दूसरे मुख्य सूचना आयुक्त की कुर्सी पर बैठे रणजीत सिंह पंकज सरकार के खिलाफ सरकार के वफादार सिपाही जैसा काम करने का आरोप लगने लगा है। होमगार्डस मुख्यालय संबंधी एक मामले में आवेदनकर्ता सलीम बेग का कहना है कि पंकज आदेश लिखाते समय कहीं भी जिक्र नहीं करते कि जुर्माना 250 रुपए के हिसाब से कितने दिन का लगा रहे हैं? नियमानुसार 25 हजार रुपए जुर्माना है। बेग का कहना है कि अगर सूचना मांगने के दिन से विलंब 100 दिन का होता है तो 25 हजार रुपए जुर्माने की धनराशि वसूली जाती है।
achchhi khabar lee aapne
ReplyDeleteआजकल ज़मीनों और कमीनों का ज़माना है