Monday 21 February 2011

यूपी और यूपीए में जगह तलाश रहे छोटे चौधरी

सपा व कांग्रेस के साथ गठजोड़ का दिया संकेत
गठबंधन का तिनका फेंक गए रालोद मुखिया

किसान नेता चौधरी चरण सिंह की राजनीतिक जमीन पर हल चला रहे छोटे चौधरी अजित सिंह चुनाव करीब आते ही सत्ता के खांचे में फिट बैठने की गुंजाइश तलाशने लगते हैं। अब जबकि विधानसभा चुनाव फिर सामने है तो छोटे चौधरी की छटपटाहट जोर मारने लगी है। गुरुवार को लखनऊ आए रालोद मुखिया सूबे में चुनाव पूर्व गठबंधन को यह कह कर हवा दे गए कि उनके पसंदीदा सियासी गोट में बसपा और भाजपा फिट नहीं बैठ रहे हैं।

मतलब बिलकुल साफ है। छोटे चौधरीे सपा और कांग्रेस की ओर इशारा कर रहे हैं। दोनों में से किसी के साथ गांठ बंध जाएगी तो उन्हें किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं है। वह जिस प्रकार का राजनीतिक ढर्रा अपने शुरुआती दिनों से अपना रखे हैं उससे वे हमेशा फायदे में ही रहे हैं। इस बार वे पहले से ही डबल स्टैंडर्ड गेम का तानाबाना बुनने में लगे हैं। दरअसल तिनका फेंक राजनीति के माहिर छोटे चौधरी को मालूम है कि सपा के साथ गठबंधन का जुगाड़ लग गया तो कदाचित सरकार बनने पर फायदा मिलेगा ही और कांग्रेस उनके जाल में फंस गई तो यूपी में न सही यूपीए सरकार में जाने का रास्ता तैयार हो जाएगा। इसी मंसूबे के साथ राजधानी लखनऊ पधारे अजित सिंह गुरुवार को जब पत्रकारों से रूबरू हुए तो यह कह कर अपनी बात शुरू की कि आप लोग गठबंधन के बारे में जानने को उतावले होंगे। छोटे चौधरी अपने उतावलेपन को पत्रकारों पर थोपते हुए बोले आप लोग बयानबाजी को लेकर कयास न लगाएं। गठबंधन को लेकर अभी किसी से गंभीर वार्ता नहीं हुई है। किसी से मुलाकात भी नहीं। यहां तक कि टेलीफोन पर भी नहीं। इतनी सफाई के बाद फिर पलटते हुए उन्होंने कहा कि लोग मायावती से निजात पाना चाहते हैं। अब एक अदद विकल्पों की तलाश की दरकार है। बसपानेत्री को हराने में जो सक्षम होगा जनता उसी के साथ लामबंद होगी। अजित सिंह के इस वक्तव्य के पीछे का निहितार्थ नितांत राजनीतिक और अपने लिए जगह तलाश करने वाला है कि मायावती के साथ आने का उनका कोई मतलब नहीं तथा भाजपा इस लड़ाई से कोसों दूर है। बची सपा और कांग्रेस के जरिए चुनावी वैतरिणी पार करने का इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा। चार साल तक खामोशी साधे रहने के बाद अचानक सक्रिय हुए रालोद नेता यह कह कर भी चुनावी ताल ठोंक रहे हैं कि पश्चिमी यूपी में बसपा की लड़ाई उनसे ही है। इसलिए वे सीटों के मोल-तोल में अपने संभावित गठजोड़ वाले दलों को रालोद की अहमियत समझा रहे हैं। उन्होंने किसानों की बात नहीं की। किसानों की समस्याओं पर नहीं बोले। न ही हरित प्रदेश ही उनके मुंह से निकला। बस मायावती पर औरों की तरह हमला बोले और कहा कि माया सरकार का इकबाल खत्म हो गया है।

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