Monday, 21 February 2011

महाधिवक्ता ने छीन ली महिला की रोजी

यूपी के महाधिवक्ता पर भी सत्ता का नशा सवार है। वकील साहब अपने दफ्तर में जिसे चाहते हैं उसे नौकरी करने देते हैं और जिन्हें नहीं चाहते उसका कानूनी बंदोबस्त इस तरह कर देते हैं ताकि वह बाद में कानून की भाषा भी न बोल पाए। महाधिवक्ता ने हाईकोर्ट लखनऊ बेंच के अपने दफ्तर में छह साल से कार्यरत नैत्यिक श्रेणी की लिपिक श्रीमती आदर्श गुप्ता को नौकरी से निकाल दिया। महिला कर्मचारी ने राज्य सूचना आयोग में नौकरी से निकाले जाने के औचित्य पर सवाल उठाते हुए इंसाफ की गुहार लगाई है।

हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच स्थित महाधिवक्ता दफ्तर में कार्यरत रही महिला ने बताया कि 24 सितंबर 2003 को तत्कालीन महाधिवक्ता वीरेन्द्र भाटिया ने दिए नियुक्ति पत्र में लिखा था कि श्रीमती मिथिलेश कुमारी तिवारी की प्रतिनियिुक्ति पर बाल विकास एवं पुष्टाहार में जाने से रिक्त हुई नैत्यिक श्रेणी लिपिक के लिए आदर्श गुप्ता की नियुक्ति उनके वापस आने तक कार्य करने की अनुमति प्रदान की जाती है। इस दौरान उसे महंगाई व अन्य भत्ते देय होंगे। उसे वर्तमान महाधिवक्ता ज्योतीन्द्र मिश्र ने पांच फरवरी 2010 को नोटिस देकर यह कहते हुए नौकरी से निकाल दिया कि श्रीमती आदर्श गुप्ता की निुयक्ति बिना चयन प्रक्रिया के तहत हुई थी। इसके लिए विज्ञापन भी नहीं निकाले गए थे। मगर शिकायतकर्ता का कहना है कि महाधिवक्ता ने 27 फरवरी 2007 को ही इलाहाबाद स्थित हाईकोर्ट के शासकीय अधिवक्ता के दफ्तर में श्रीमती मिथिलेश कुमारी तिवारी को नैत्यिक श्रेणी की लिपिक पद पर कार्यभार ग्रहण करवा दिया था। आदर्श गुप्ता ने सवाल खड़ा करते हुए कहा कि नियुक्ति पत्र के हिसाब से उसे 27 फरवरी 2007 को क्यों नहीं निकाला गया? तीन साल अधिकनौकरी क्यों करने दी गई? साथ ही राज्य सूचना आयोग में दाखिल अपने वाद में आदर्श गुप्ता ने कहा है कि बाल विकास एवं पुष्टाहार में प्रतिनियुक्ति पर गई श्रीमती मिथिलेश तिवारी के वापस आकर कार्यभार ग्रहण करने के बारे में उसे सूचना नहीं दी गई। सूचना के कानून के तहत दिए अपनी शिकायत में उसने यह भी कहा है कि वर्ष 2002 के शासनादेश में यह अंकित है कि किसी भी सरकारी कर्मचारी की प्रतिनियुक्ति तीन वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए। किसी विषम परिस्थिति में ही वित्त विभाग की सहमति के बाद उसे दो वर्ष के लिए बढ़ाया जा सकता है और पांच वर्ष के बाद मुख्यमंत्री के आदेश के बिना प्रतिनियुक्ति का कार्यकाल नहीं बढ़ाया जा सकता है जबकि मिथिलेश की प्रतिनियुक्ति कुल अवधि पांच वर्ष छह माह और 29 दिन हो गई है। आदर्श गुप्ता ने पूछा है कि किन विषम परिस्थितियों में उसका कार्यकाल बढ़ाया गया है? कार्यकाल बढ़ाए जाने से संबंधित अनुमति किस अधिकारी द्वारा प्रदान की गई है? इस संबंध में डीएनए ने जब महाधिवक्ता ज्योतीन्द्र मिश्र से उनके मोबाइल 9415016021 पर बात करने की कोशिश की तो वह स्विच ऑफ मिला। उनके आवासीय व कार्यालय के दूरभाष पर भी सम्पर्क नहीं हो पाया।

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