Thursday 30 June 2011

शोक में हैं और कई बीपी अशोक


सरकार की नाकामियों पर पर्दा डालने की मची है होड़ 

सूबे में प्रशासनिक नियंत्रण फेल हो जाने से बदहवास सत्तातंत्र के चापलूस अफसरों ने सारी मर्यादाओं को खूंटी पर टांगने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। सरकार की नाकामियों पर पर्दा डालने के लिए बसपा नेत्री मायावती एकबारगी भले ही पीछे रही हों मगर नमक हलाल अफसर उनसे दो कदम आगे ही खड़े दिखाई देते रहे हैं। मसलन वह चाहे किसी बलात्कारी विधायक को बचाने का मामला हो या सरकार की जनविरोधी नीतियों के विरोध का मुद्दा हो या फिर सरकारी गड़बड़झाले को उजागर कर रहे पत्रकार हों, सब पर चाबुक चलाने में प्रशासनिक और पुलिस अफसरों ने नए-नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं। प्रदेशभर में बलात्कार की घटनाएं व राजधानी लखनऊ में सीएमओ स्तर के तीन-तीन अफसरों की हत्या से सरकार पर छाए संकट के बादल से सिर्फ एएसपी बीपी अशोक ही नहीं बदहवास हैं बल्कि मैडम के इर्द-गिर्द रहने वाले वे सभी अफसर भी शोकग्रस्त हैं जिन्होंने चाटुकारिता के सारे रिकार्ड तोड़ दिए। कहने को तो शशांक शेखर प्रदेश के कैबिनेट सेकेट्ररी हैं मगर वे बलात्कार के आरोपी बसपा विधायक पुरुषोत्तम द्विवेदी के पार्टी से निलम्बन की घोषणा करते हैं। उन्हें कभी इस बात का एतराज नहीं होता कि वे सरकारी आचरण का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन कर रहे हैं बल्कि ब्यूरोक्रेसी के विपरीत आचरण करते हुए कैबिनेट सचिव बसपा प्रवक्ता का काम करने में गौरव महसूस करते हैं कि बलात्कार के मुद्दे पर घिरी सरकार का बचाव वे बखूबी कर लेते हैं तथा सरकार पर छाए आसन्न संकट को टाल देते हैं। लखीमपुर जिले के निघासन थाने में नाबालिग बच्ची के साथ बलात्कार हो या प्रदेश की राजधानी में दो-दो सीएमओ की सरेआम हत्या कर दी जाय या फिर सबसे सुरक्षित समझी जाने वाली जेल में डिप्टी सीएमओ डॉ. वाईएस सचान की संदिग्ध हालत में मौत हो जाय तो प्रदेश के पुलिस मुखिया डीजीपी करमवीर सिंह शायद ही कभी पुलिस के आचरण पर उठ रहे सवालों का जवाब दिए हों मगर सरकारी नाकामियों पर पर्दा डालने व पुलिस को बेदाग साबित करने के लिए एडीजी कानून व्यवस्था व मैडम के खास सिपहसलारों में शुमार बृजलाल ही कमान सभालते नजर आए। सूबे की मुखिया ने प्रमुख सचिव गृह फतेबहादुर पर भी उतना भरोसा नहीं जताया जितना बृजलाल पर। लोकतांत्रिक प्रणाली की नई परिभाषा गढ़ रहीं मुख्यमंत्री अपने राजनीतिक सहयोगियों पर भरोसा करने के बजाय कुछ चुनिंदा अफसरों पर ही सारा का सारा सरकारी मैनेजमेंट का जिम्मा दे रखा है। वह चाहे गंगा एक्सप्रेस वे व यमुना एक्सप्रेस वे के लिए किसी थैलीशाह को ढूंढना हो या यूपी में पूंजी निवेश को लेकर औोगिक घरानों के मालिकों की मुख्यमंत्री के साथ मीटिंग तय करने की बात हो या फिर राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ रणनीति तैयार करने का मसौदा हो तो बसपाई रणनीतिकारों के करीबी ही बताते हैं कि जब मैडम के पास नवनीत सहगल जैसा उच्चकोटि का प्रबंधक है तो उन रणनीतिकारों को मैनेजमेंट का जिम्मा देकर बहन जी कैसे रिस्क ले सकती हैं। बसपा के राजनीतिक विरोधी भी बसपानेत्री के नेतृत्व में अफसरों के कामकाज की शैली को बहुत महत्व इसलिए नहीं देते हैं कि जिन्हें लोकतंत्र से कोई मतलब ही नहीं उसके बारे में कोई टिप्पणी बेमानी लगती है। सपा नेता अंबिका चौधरी व भाजपा नेता हुकुम सिंह ऐसे ही विचारों से इत्तेफाक रखते हैं। राजनीतिक समीक्षक राजनाथ सिंह सूर्य कहते हैं कि यूपी में लोकतंत्र ही कहां है?

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