Thursday 5 April 2012

यूपी में सूचना आयोग हाईजैक


सीआईसी के शिकंजे में महत्वपूर्ण विभाग, 35 हजार से ज्यादा मामले लंबित

लखनऊ। यूपी के सीआईसी रणजीत सिंह पंकज ने राज्य सूचना आयोग को हाईजैक कर लिया है। आए दिन सूचना के कानून को पलीता लगाने वाले पंकज की कार्यशैली से खिन्न सूचना आयुक्त तक कई धड़ों में बंट चुके हैं। सीआईसी की कुर्सी पर बैठते ही उन्होंने एक-एक कर सरकारी महकमे के सारे महत्वपूर्ण विभाग मसलन राज्यपाल से लेकर मुख्यमंत्री कार्यालय तक अपने अरदब में ले लिया। पूर्ववर्ती सरकार में सीआईसी ने लगातार पांच वर्षो तक सत्ता और संविधान के दोनों प्रतिष्ठानों की सूचनाओं पर पर्दा डाले रखा।

पूर्ववर्ती बसपा सरकार के पसंदीदा अफसर रहे रणजीत सिंह पंकज की सीआईसी के पद पर नियुक्ति ही अवैध बताई जाती है। तत्कालीन नेता विरोधी दल शिवपाल सिंह यादव ने सीआईसी की नियुक्ति का मुखर विरोध किया था। मायावती ने जिस खास मकसद से उन्हें सीआईसी की कुर्सी पर बैठाया, वह उसमें कामयाब इसलिए रहे कि ऐसे महत्वपूर्ण सरकारी विभागों, जिनकी सूचनाओं से सरकार की छवि पर बट्टा लग सकता था, उन विभागों से मांगी जाने वाली सूचनाएं आयोग तक आती-आती कहां चली जातीं, आज तक किसी को पता नहीं चल पाया। पिछली सरकार में कई बड़े-बड़े आरटीआई ऐक्टिविस्ट सीएम कार्यालय से लेकर अन्य महत्वपूर्ण विभागों की सूचनाएं मांगते रह गए मगर अंदरखाने की कोई भी सूचना बाहर निकल कर नहीं आ पाई। ऐक्टिविस्टों ने डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट को बताया कि सीआईसी ने सारे महत्वपूर्ण विभाग जैसे राज्यपाल कार्यालय, मुख्यमंत्री कार्यालय, कैबिनेट सचिव कार्यालय, मुख्य सचिव, विधानमंडल के दोनों सदन, गृह विभाग व उससे संबद्ध विभाग, पुलिस महानिदेशक व अन्य पुलिस विभाग, प्रशासनिक सुधार विभाग, आवास एवं विकास परिषद, नियुक्ति एवं कार्मिक विभाग, राज्य संपत्ति विभाग, लोक सेवा आयोग, राज्य सूचना आयोग, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, चिकित्सा शिक्षा, पर्यावरण, सतर्कता, सचिवालय प्रशासन, सामान्य प्रशासन व खा एवं रसद जैसे विभाग अपने मातहत कैद कर रखे हैं। आरटीआई ऐक्टिविस्ट सलीम बेग ने बताया कि पंकज की कार्यशैली सूचना का कानून के अनुरूप नहीं है। सैकड़ों किमी दूर-दूर से आने वाले वादी बिना सूचना के निराश होकर बैरंग लौट जाते हैं। सूचना का कानून के मुताबिक प्रतिवादी द्वारा सूचना मुहैया न कराने पर 250 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से 25 हजार रुपए का अर्थदंड अधिरोपित किया जाता है मगर सीआईसी कानून के विपरीत मात्र 10000 का ही जुर्माना करते हैं। 
वादी को दो-दो साल तक सूचना नहीं मिल पाती है। कई-कई ऐसे मामले हैं जो राज्य सूचना आयोग के गठन के समय के हैं। सीआईसी ने नकल विभाग पर सेंसर लगा दिया है। सूचना आयुक्तों के यहां अब यह पहले ही तय कर लिया जाता है कि किस मामले में नकल की प्रति देनी है अथवा नहीं देनी। वादी को अब तो उनके मामलों में नोटिस भी भेजी जानी बंद कर दी गई है। ऐक्टिविस्टों ने बताया कि सीआईसी के उदासीन रवैए की वजह से दूसरे सूचना आयुक्त भी हीलाहवाली करने लगे हैं। वे अपनी कोर्ट में समय से बैठते भी नहीं हैं। वादी को लंबी-लंबी तारीखें दे दी जाती हैं। 

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